biharइतिहास अपने आप को दोहराने की दहलीज पर है. ऐसा इसलिए कि अब यह नए रंग व ढंग में एक बार फिर हर किसी की जुबान पर चढ़ने लगा है. कुछ दिन पहले नीतीश कुमार ने आउटसोर्सिंग की नौकरियों में आरक्षण की बात कर इस बहस का आगाज किया था. बात बढ़ी, तो इसमें नीतीश कुमार ने निजी क्षेत्र को भी लपेट लिया. ऐसा नहीं है कि निजी क्षेत्र में आरक्षण की मांग कोई नई है. राजनेता गाहे-बगाहे अपनी राजनीतिक जरूरतों के हिसाब से इसे उठाते रहे हैं.

आरक्षण को पचास फीसदी से बढ़ाकर कहीं साठ तो कहीं पैंसठ फीसदी करने की कवायद भी होती रही है. शुक्र मनाइए अदालतों का, जिसने बार-बार राजनेताओं को यह अहसास दिलाया कि सीमा मत लांघिए. लेकिन सत्ता और इससे जुड़े खेल इतने निराले हैं कि कुछ दिनों में नेता अदालतों के आदेश को भूल जाते हैं और एक नया अध्यादेश लाकर अपना वोट बैंक बढ़ाने की कवायद में जुट जाते हैं.

इस बार आगाज नीतीश कुमार ने किया है. चर्चा है कि नई सरकार की चाल-ढाल कुछ ठीक नहीं है. भाजपा और जदयू की नई दोस्ती का रंग उस तरह चढ़ नहीं रहा है जैसा पिछली बार चढ़ा था. वजह क्या है इस पर विश्लेषण जारी है, लेकिन इतना कहा ही जा सकता है कि नीतीश कुमार पहले की तरह इस बार बहुत कर्म्फटेबल नहीं लग रहे हैं. जानकार बताते हैं कि अपनी इसी बैचेनी को दूर करने के लिए उन्होंने आरक्षण का तीर चलाना शुरू किया है. पहला तीर आउटसोर्सिंग का छोड़ा गया. नीतीश कुमार ने साफ कहा कि आउटसोर्सिंग की नौकरियों में भी तो पैसा सरकार का ही लगता है, इसलिए इसमें भी आरक्षण के प्रावधान लागू होने चाहिए.

नीतीश कुमार के इस तीर से कई घायल हुए और पहली प्रतिक्रिया सी पी ठाकुर की आई. उन्होंने कहा यह ठीक नहीं है. ऐसा होगा तो फिर रोड पर चलने पर भी आरक्षण लागू कर देना चाहिए. भाजपा के युवा कार्यकर्ताओं ने कई स्थानों पर इसे लेकर विरोध जताया और इसे वापस लेने की मांग की. कई स्थानों पर अब धीरे-धीरे निजी हैसियत से भी नेता लोग आरक्षण की इस आग को सुलगाने में लग गए हैं. आउटसोर्सिंग से बात आगे निकली, तो इसके बाद नीतीश कुमार ने राय दी कि निजी क्षेत्र में आरक्षण को लागू कर देना चाहिए.

नीतीश कुमार के इस बयान पर पहली प्रतिक्रिया लालू प्रसाद की आई. उन्होंने कहा कि जब बिहार में निजी क्षेत्र में कोई कल कारखाने हैं ही नहीं, तो नीतीश कुमार आरक्षण कहां लागू करेंगे. लालू ने कहा कि दरअसल नीतीश कुमार भाजपा की जाल में फंस चुके हैं और जनता को बेमतलब के मुद्दे में उलझा देना चाहते हैं. कहा गया कि अगर सही मन है, तो फिर इसमें बहस की जरुरत कहां है. केंद्र में एनडीए की सरकार है, जिसके साथ नीतीश की पार्टी का गठबंधन है. इस पर चर्चा अभी गर्म ही हो रही थी कि नीतीश कुमार ने महिला आरक्षण का तीर चला दिया.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि महिला आरक्षण बिल लोकसभा में पेश किया जाना चाहिए. जदयू अपनी सीमित ताकत में भी इसका समर्थन करेगा. मुख्यमंत्री ने कहा कि जिस समय शरद यादव जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे, उस समय भी राज्यसभा में महिला आरक्षण विधेयक का हमारी पार्टी ने समर्थन किया था. इस बिल को अब लोकसभा में पेश किया जाना चाहिए.

मुख्यमंत्री ने कहा कि कुछ लोगों को यह भ्रम रहता है कि महिला आरक्षण बिल में पिछड़ा वर्ग की महिलाओं के लिए अलग से आरक्षण का प्रावधान नहीं होने पर वंचित तबके के साथ भेदभाव होगा. बिहार में हमारी सरकार ने वर्ष 2006 में पंचायती राज संस्थाओं में और वर्ष 2007 में नगर निकायों में महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण दिया था. इससे सभी वर्ग की महिलाओं को लाभ मिल रहा है. पिछड़ी जाति की महिलाओं को भी इसका लाभ मिल रहा है. यह नारी सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.

नीतीश कुमार का मानना है कि गुजरात में पाटीदार समुदाय द्वारा आरक्षण की मांग कृषि संकट से जुड़ा मुद्दा है. न सिर्फ पाटीदार बल्कि जाट, मराठा और अन्य समुदाय जो कृषि से जुड़े हुए हैं, हम उनके आरक्षण की मांग का समर्थन करते हैं. इसका पॉलिटिकल लेना देना नहीं है. नीतीश कुमार कहते हैं कि आउटसोर्सिग के जरिए सरकार अपने काम के लिए लोगों को बहाल कर रही है. इसके लिए राजकोष से कंपनी को धन मुहैया कराया जाता है. स्वाभाविक है कि सरकारी धन के उपयोग पर रिजर्वेशन एक्ट को मानना पडेग़ा. चाहे कॉन्ट्रेक्ट हो या आउटसोर्स, दोनों में आरक्षण लागू करना पड़ेगा. दरअसल नीतीश कुमार के आरक्षण को लेकर ताबड़तोड़ बयानों ने राजनीतिक गलियारों में गर्मी ला दी है. उनके राजनीतिक विरोधी भी मान रहे हैं कि आरक्षण को लेकर नीतीश अभी सबसे आगे चल रहे हैं.

लालू प्रसाद को भी इसका पूरा अहसास है. इसलिए उन्होंने दूसरे तरीके से इस मुद्दे को उठाने का प्रयास शुरू कर दिया है, ताकि नीतीश की जगह पर पूरा लाभ राजद को मिल सके. लालू प्रसाद ने अपनी राजनीतिक बाजीगीरी का जौहर दिखाते हुए एक बयान दिया कि कहलगांव में जो तटबंध टूटा, उसके लिए ‘भूरे चूहे’ जिम्मेदार थे. गौरतलब है कि जिस समय यह घटना हुई थी, उस समय जल संसाधन मंत्री ने यह बयान दिया था कि चूहों ने अंदर की जमीन को खोखला कर दिया था, जिससे तटबंध को नुकसान पहुंचा.

ललन सिंह के इस बयान पर इस समय लालू प्रसाद ने पूरी चुटकी ली थी और कहा था कि लगता है अब चूहों पर भी सरकार का वश नहीं रहा. इस घटना के महीनों बाद लालू प्रसाद ने ललन सिंह के इसी बयान को भूरे चूहों से जोड़ दिया. गौरतलब है कि जब आरक्षण का आंदोलन बिहार में चरम पर था, उस समय लालू प्रसाद ने कथित तौर पर ‘भूरा बाल साफ करो’ का नारा दिया था. उस समय इसे लेकर भारी बवाल हुआ था, पर इसका राजनीतिक फायदा लालू प्रसाद को मिला था. लालू ने एक बार फिर ‘भूरे चूहों’ की बात कर नीतीश की पूरी पटकथा को ही बदलने की कोशिश की है. इसलिए जदयू ने इसका कड़ा प्रतिकार भी किया है.

राजद-जदयू की ज़ुबानी जंग

प्रदेश जदयू के मुख्य प्रवक्ता संजय सिंह ने कहा कि लालू प्रसाद ने समाज में फूट डाल कर ही राज किया है. वे कभी लोगों को मिलजुल कर नहीं रहने देते हैं. पहले लालू ने ‘भूरा बाल साफ करो’ की बात कर समाज को तोड़ा था, अब वे भूरा चूहा की बात कर रहे हैं. लालू ने राजनीति में इससे ज्यादा कुछ सीखा ही नहीं है. वे जब भी बात करेंगे तो मारने-पीटने की ही बात करेंगे. यही सीख वे अपने बच्चों को दे रहे हैं. लेकिन लालू को समझ लेना चाहिए कि उनका दौर कुछ और था, आज का दौर अलग है.

बिहार की जनता अब जातिवाद के चक्कर में नहीं पड़ने वाली है. लोग जागरूक हैं और इसका मुंहतोड़ जवाब वर्ष 2019 और 2020 के चुनाव में देंगे. लालू और इनका पूरा कुनबा चारों खाने चित हो जाएगा. लालू को गाली-गलौज में भी महारत हासिल है. इनको पता नहीं है कि घर में कैसे रहा जाता है? जहां इनका पूरा परिवार रहता है वहां भी वे गाली-गलौज ही करते होंगे. इसका असर इनके परिवार पर भी दिखता है. जदयू के दूसरे प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा कि लालू प्रसाद को राजनीति के भू-पिल्लू ने काट लिया है. इसी वजह से इनके शरीर में खुजली हो रही है.

इसका नतीजा इनकी भाषा में दिख रहा है. लालू इतने अधिक बेचैन हैं कि अनाप-शनाप बोलते चले जा रहे हैं. लालू की तकदीर को भू-पिल्लू ने ऐसा काटा है कि आज राजनीतिक कारावास की सजा भुगत रहे हैं. जिस सामाजिक समूह में उन्होंने जन्म लिया है, उसी सामाजिक समूह के खिलाफ अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करना ही लालू का राजनीतिक कुसंस्कार है. एक सजायाफ्ता, जिसका परिवार दागी हो चुका है, वह बिहार को जातीय उन्माद में झोंकने का प्रयास कर रहा है. जदयू की ऐसी प्रतिक्रिया से साफ है कि लालू का तीर सही निशाने पर लगा है.

यह सिलसिला लगता नहीं कि लोकसभा चुनाव से पहले थमेगा. आरक्षण के मुद्दे को लेकर नीतीश ने भी कमर कस ली है और आगामी संसद सत्र में इसे लाने के लिए वह काफी दबाव भी डालने वाले हैं. देखना दिलचस्प होगा कि लालू प्रसाद अब आगे नीतीश कुमार के तीर को कैसे राजनीतिक तौर पर भौथरा करते हैं, लेकिन निजी क्षेत्र में आरक्षण की बात करके नीतीश कुमार ने एक तीर से कई निशानें साधने की कोशिश की है. नीतीश की यह मांग कल केंद्रीय राजनीति में भी एक अहम मुद्दा बन सकती है, क्योंकि कई दलित एवं पिछड़े समुदाय से आने वाले नेता वक्त वेवक्त निजी क्षेत्र में आरक्षण की बात उठाते रहे हैं.

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