madarseउत्तर प्रदेश सरकार मदरसों में एनसीईआरटी के पाठ्‌यक्रम को शामिल करने की योजना बना रही है. इसके साथ ही इस बात का आश्वासन दे रही है कि धार्मिक पाठ्‌यक्रम से छेड़छाड़ नहीं की जाएगी और अंग्रेजी व हिन्दी के अलावा तमाम पुस्तकें उर्दू में उपलब्ध कराई जाएंगी. ये योजना एक 40 सदस्यीय कमेटी की सिफारिशों के बाद तैयार की गई है. जाहिर है कि ये योजना मदरसों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को मेन    स्ट्रीम में लाने के मकसद से बनायी गई है. अगर इस योजना को लागू कर दिया जाता है तो पूरे राज्य में 19143 रजिस्टर मदरसों में से 560 पूर्ण सहायता प्राप्त, 8521 नवीकरण योजना के तहत सहायता पाने वाले मदरसे, जिनमें विज्ञान कंप्यूटर जैसे विषयों की शिक्षा हो रही है.

140 में आईटीआई स्कीम के तहत उद्योग और व्यवसायिक की शिक्षा दी जा रही है और बोर्ड से मान्यता प्राप्त 3867 मदरसे, जहां बोर्ड का पाठ्‌यक्रम चलता है, को अपने यहां विशेष पाठ्‌यक्रम के साथ साथ एनसीईआरटी की पुस्तकों को भी शामिल करना होगा. इसके अलावा लगभग 1298 ऐसी मदरसे हैं, जो दारुल उलूम देवबंद या नदवातूल उलमा से संबद्ध है और सरकार के रिकॉर्ड में रजिस्टर नहीं हैं. फिलहाल इन मदरसों में एनसीईआरटी की पुस्तकों को शामिल करने का कोई प्रस्ताव नहीं है.

राज्य सरकार ने अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए 17 सौ करोड़ रुपए आवंटित किए हैं तथा मान्यता प्राप्त मदरसों और प्राइमरी स्कूलों में आधुनिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए 394 करोड़ रुपए स्वीकृत किए गए हैं. सरकार चाहती है कि इस फंड का बेहतर इस्तेमाल करते हुए अल्पसंख्यको में पिछड़े तबके को आधुनिक शिक्षा से जोड़कर उनके पिछड़ेपन को दूर किया जाए. मुख्य रूप से मदरसों के विद्यार्थी, जो धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने में उम्र का एक अच्छा खासा हिस्सा गुजार देते हैं और धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद जब वो व्यवहारिक दुनिया में कदम रखते हैं तो उनके लिए रोजगार के अवसर सिमटे हुए होते हैं, को आधुनिक शिक्षा दी जाए ताकि उनके सामने अवसरों की कमी न रहे और वो भी दूसरे स्कूलों और कॉलेजों के बच्चों की तरह विभिन्न मैदानों में अपना भविष्य तलाश कर सकें.

सरकार का ये फैसला अपने आप में एक बेहतर कदम है. बेशक मदरसे के विद्यार्थियों को इससे रोजगार की तलाश में राहत मिलेगी. यही कारण है कि उलमा का एक वर्ग, जो मदरसों में आधुनिक शिक्षा का समर्थक हैं और इसकी जरूरत भी महसूस करता है, चाहते हैं कि धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थी न सिर्फ एक आलिम बने बल्कि वो सांसारिक ज्ञान लें. मगर इसके साथ ही एक ऐसा ग्रुप भी है, जो इस फैसले का विरोध कर रहा है. इस ग्रुप का मानना है कि मदरसों की स्थापना धार्मिक ज्ञान के उद्देश्य से हुई है. इसलिए इसे आधुनिक ज्ञान विज्ञान से जोड़ना इसके उद्देश्य के खिलाफ होगा. इसके अलावा एक वर्ग ऐसा भी है जो इस फैसला को शक की निगाह से देख रहा है. उसका मानना है कि योगी जैसे हिंदुत्व के अलंबरदार से मुस्लिम बच्चों की कल्याण की उम्मीद नहीं की जा सकती.

अब सवाल ये पैदा होता है कि क्या योगी सरकार अपने इस योजना को अमलीजामा पहनाने और मदरसों में एनसीईआरटी के पाठ्‌यक्रम को शामिल करने में सफल हो पाएगी? दरअसल इसमें कुछ अड़चने हैं, जिस पर सरकार को गौर करना होगा. जबतक इन अड़चनों को दूर नहीं किया जाता, ये योजना दूसरे विकास योजना की तरह दफ्तर की शोभा बनी रहेगी. सबसे पहली दिक्कत यह है कि कमेटी ने अपनी सिफारिश में ये कहा है कि हिन्दी और अंग्रेजी के अलावा सारे विषय उर्दू में उपलब्ध कराए जाएं. ये एक अच्छी सिफारिश है और सरकार ने इसको माना भी है. मगर सवाल ये पैदा होता है कि सरकार इन विषयों को पढ़ाने वाले उर्दू अध्यापक कहां से लाए? उत्तर प्रदेश में उर्दू शिक्षा बहुत कम है. ऐसे में इतनी बड़ी संख्या में उर्दू अध्यापकों को तलाशना बहुत मुश्किल काम होगा.

मदरसों में आधुनिक शिक्षा के संबंध में पड़ोसी देश पाकिस्तान के मुफ्ती आजम और दारुल उलूम कराची के संस्थापक मुफ्ती मोहम्मद शफी के लेख से पता चलता है कि मदरसों के पाठ्‌यक्रम में बदलाव समय का तकाजा है. वो अपनी पुस्तक ‘जवाहरुल फिका’ में लिखते हैं कि दरस निजामी जो अब तक हमारे मदरसों में प्रचलित है, धार्मिक शिक्षा की हिफाजत व इशाथ के लिए बिलाशुबा काफी है मगर मुल्की, दफ्तरी जरूरतें बिल्कुल बदली हई है. इनमें हमारी कदीम मंतिक व फलसफा और कदीम रियाजी (कोर्स) और फारसी जुबान काम नहीं देती. अगर आज इस हकीकत को समझकर हमारे उलमा फारसी जुबान की जगह अंग्रेजी को और यूनानी फलसफे की जगह आधुनिक विज्ञान और दर्शन को तरजीह दें तो बेहतर होगा. खतरनाक साधन से परहेज करते हुए अंग्रेजी जुबान और आधुनिक शिक्षा व कला को हासिल किया जाए तो फायदा होगा.

आधुनिक शिक्षा को मदरसों में शामिल करने का रुझान मिस्र की अजहर यूनिवर्सिटी ने सबसे पहले अपनाया. जामिया अजहर के विभागों को देखें तो अंदाजा होता है कि प्राइमरी से लेकर ऊपर तक आधुनिक शिक्षा का खास तौर से ध्यान रखा गया है. यहां तक कि तफसिरे कुरान में और विषयों के साथ फ्रांसिसी, अंग्रेजी के अलावा यहुदी व ईसाई पुस्तकों के अंश उन्हीं के जुबानों में पढ़ाए जाते हैं. इसी तरह मुस्लिम देश इंडोनेशिया के अंदर भी मदरसों में आधुनिक शिक्षा को आगे बढ़ाने के रुझान में बढ़ोतरी हो रही है. अभी हाल ही में इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता की अजहर मस्जिद में मुस्लिम उलमा कौंसिल के सरबराह डायरेक्टर अहमद तैयब ने बयान दिया है कि मदरसों में धार्मिक पुस्तकों के बजाय आधुनिक शिक्षा को प्राथमिकता दी जाए.

फिलीस्तीन का मामला इस सिलसिले में कुछ अलग है. वहां आधुनिक शिक्षा के तहत इजराइल के द्वारा तैयार किए गए पाठ्‌यक्रम को मदरसों में हराम के दर्जे में रखा जाता है. अभी हाल ही में मस्जिद अक्सा के इमाम और खतीदुल शेख अकरमा सबरी ने अपने एक बयान में कहा है कि जो शख्स यहूदी राज्य के पाठ्‌यक्रम को फिलीस्तीनी स्कूलों में पढ़ाएगा वो गुनहगार होगा.

सत्ताधारी फिलीस्तीनी तंजीमों फतह और हमास आधुनिक शिक्षा के खिलाफ नहीं हैं. उनका स्टैंड है कि वो अपने तैयार किए हुए ऐसे पाठ्‌यक्रम के हक में है, जिसमें धार्मिक और आधुनिक विषय शामिल हैं. इन हालात में मुस्लिम मुल्कों में प्रचलित शिक्षा प्रणाली को देखते हुए अगर भारत में मदरसों के विद्यार्थियों के लिए आधुनिक शिक्षा को अनिवार्य करार दिया जा रहा है तो इससे परहेज करने के बजाय संयम का रास्ता अख्तियार करना मुनासिब होगा, ताकि बच्चे जब मदरसों से पढ़ाई करके व्यवहारिक दुनिया में कदम रखें तो उनके सामने रोजगार के अवसर खुले हुए हो.

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