prohindu  कांग्रेस के रणनीतिकारों का मानना है कि वर्तमान में पार्टी की दुर्दशा का सबसे बड़ा कारण है, पार्टी पर अल्पसंख्यक तुष्टिकरण का लेबल. इसे लेकर भाजपा भी लगातार कांग्रेस पर मुस्लिम परस्त पार्टी होने का आक्षेप लगाती आई है. 2014 में हुई बड़ी हार के बाद जो एंटनी कमेटी गठित की गई थी, उसने भी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि कांग्रेस की छवि हिंदू विरोधी पार्टी की बन गई है, जिसे दूर करने की जरूरत है. अब लगता है कि राहुल गांधी और उनके सलाहकारों ने एंटनी कमेटी की सिफारिशों पर गंभीरता से अमल करना शुरू कर दिया है. हालांकि, वर्तमान समय में देश और समाज पर हिन्दुत्ववादी ताकतों का बढ़ता वर्चस्व इसके पीछे की एक दूसरी वजह है. बताया जाता है कि मध्य प्रदेश में भी चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी को मंदिर-मंदिर घुमाने के लिए एक लम्बी-चौड़ी लिस्ट बनाई गई है, जहां आने वाले महीनों में वे घूमते नजर आएंगे. वहीं, राज्य में कांग्रेस का वर्तमान नेतृत्व भी राहुल गांधी के इसी लाइन पर चलता हुआ नजर आ रहा है.


 

गुजरात के बाद मध्य प्रदेश को संघ की दूसरी प्रयोगशाला कहा जा सकता है. यहां लम्बे समय से भाजपा और संघ का दबदबा रहा है. इस प्रयोगशाला में संघ परिवार से जुड़े संगठनों की गहरी पैठ है और यहां लगातार तीन बार से भाजपा की सरकार है. कांग्रेस इससे पहले गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान नरम हिंदुत्व के रास्ते पर चलते हुए भाजपा को टक्कर दे चुकी है. अब वो मध्य प्रदेश में भी यही दोहराना चाहती है. 17 सितम्बर को राजधानी भोपाल में राहुल गांधी के रोड शो के दौरान कांग्रेस पूरी तरह से धर्म के रंग में सराबोर नजर आई. भोपाल पहुंचने पर राहुल गांधी का स्वागत 11 कन्याओं के तिलक लगाने और 21 ब्राह्मणों द्वारा किए गए स्वस्ति वाचन से किया गया. इस दौरान पूरे भोपाल को राहुल गांधी व सूबे के नेताओं के पोस्टरों से पाट दिया गया था.

इन पोस्टरों में राहुल गांधी को शिवभक्त बताया गया था, जिसमें कहीं वे टीका और अक्षत चिन्ह के साथ दिख रहे थे, तो कहीं कैलाश मानसरोवर के बैकग्राउंड वाली तस्वीर में शिवलिंग पर जल चढ़ाते नजर आ रहे थे. गौरतलब है कि पिछले ही दिनों राहुल गांधी कैलाश मानसरोवर की यात्रा से लौटे हैं, जिसके बाद उन्होंने अपने चुनावी दौरे के लिए सबसे पहले मध्य प्रदेश को ही चुना. दरअसल, गुजरात की तरह मध्य प्रदेश में भी अल्पसंख्यकों की आबादी कम है, इसलिए यहां भी वे ‘हिंदू चादर’ ओढ़कर चुनाव में उतरने की तैयारी में हैं. राहुल के इस रोड शो को विधानसभा चुनाव का शंखनाद माना जा रहा है, जिसमें कांग्रेस ने नरम हिंदुत्व के रास्ते पर चलने के अपने इरादे को बाकायदा ढ़ोल-नगाड़े के साथ जाहिर कर दिया है.

कांग्रेस का राइट टर्न

कांग्रेस के रणनीतिकारों का मानना है कि वर्तमान में पार्टी की दुर्दशा का सबसे बड़ा कारण है, पार्टी पर अल्पसंख्यक तुष्टिकरण का लेबल. इसे लेकर भाजपा भी लगातार कांग्रेस पर मुस्लिम परस्त पार्टी होने का आक्षेप लगाती आई है. 2014 में हुई बड़ी हार के बाद जो एंटनी कमेटी गठित की गई थी, उसने भी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि कांग्रेस की छवि हिंदू विरोधी पार्टी की बन गई है, जिसे दूर करने की जरूरत है. अब लगता है कि राहुल गांधी और उनके सलाहकारों ने एंटनी कमेटी की सिफारिशों पर गंभीरता से अमल करना शुरू कर दिया है. हालांकि, वर्तमान समय में देश और समाज पर हिन्दुत्ववादी ताकतों का बढ़ता वर्चस्व इसके पीछे की एक दूसरी वजह है. बताया जाता है कि मध्य प्रदेश में भी चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी को मंदिर-मंदिर घुमाने के लिए एक लम्बी-चौड़ी लिस्ट बनाई गई है, जहां आने वाले महीनों में वे घूमते नजर आएंगे. वहीं, राज्य में कांग्रेस का वर्तमान नेतृत्व भी राहुल गांधी के इसी लाइन पर चलता हुआ नजर आ रहा है. इसमें मध्य प्रदेश कांग्रेस के तीनों प्रमुख नेता शामिल हैं.

प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी मिलने के बाद कमलनाथ सबसे पहले भोपाल के गुफा मंदिर और दतिया के पीतांबरा पीठ मंदिर गए थे, इस दौरान उन्होंने कहा था कि ‘मंदिर जाने पर भाजपा का कॉपीराइट नहीं है.’ इसी तरह चुनाव प्रचार अभियान समिति के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी अपने चुनाव अभियान की शुरुआत महाकालेश्वर मंदिर में पूजा अर्चना और अभिषेक करने के बाद की थी. इस दौरान वे उज्जैन में महाकाल के दर्शन के लिए भी जा चुके हैं. इस पर कांग्रेस प्रवक्ता द्वारा बाकायदा दलील दी गई थी कि सिंधिया धार्मिक व्यक्ति हैं और प्रदेश में 14 साल से अधिक समय तक सत्ता में रही भाजपा को सत्ता से उखाड़ने के लिए देवी-देवताओं का आशीर्वाद लेने के लिए वे प्रदेश के कई मंदिरों में जाने वाले हैं.

इस सम्बन्ध में खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया भी कह चुके हैं कि ‘हिंदू धर्म भाजपा की बपौती नहीं है और न ही भाजपा ने हिंदू धर्म का ठेका लिया है, हिंदू धर्म हिन्दुस्तान का धर्म है.’ इसी तरह से सूबे में कांग्रेस के एक और बड़े नेता दिग्विजय सिंह ने अपने समन्वय यात्रा की शुरुआत ओरछा के राम राजा मंदिर से की थी. पिछले दिनों जब राहुल गांधी कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर थे, तो दिग्विजय सिंह ने इच्छा जताई थी कि अगले साल वे भी कैलाश मानसरोवर जाना चाहते हैं. इससे पहले दिग्विजय सिंह अपनी बहुचर्चित नर्मदा यात्रा पूरी कर चुके हैं, जिसे भले ही वे निजी यात्रा बताते रहे हों, लेकिन यह एक तरह से छवि बदलने की कवायद भी थी.

घोषणाओं में मंदिर और गाय

मध्य प्रदेश में कांग्रेस का सॉफ्ट हिन्दुतत्व केवल मंदिरों में जाने तक सीमित नहीं है, कांग्रेस लगातार ऐसी घोषणाएं भी कर रही है, जिन्हें अभी तक अमूमन भाजपा का कार्यक्षेत्र माना जाता रहा है. कांग्रेस घोषणा कर चुकी है कि राज्य में उसकी सरकार बनी तो वो मध्य प्रदेश को धार्मिक पर्यटन का केंद्र बनाएगी. इसी तरह से पिछले दिनों प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ ने ऐलान किया था कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस के सत्ता में आने पर उनकी सरकार प्रदेश के हर पंचायत में गोशाला बनवाएगी और इसके लिए अलग से फंड उपलब्ध कराया जाएगा.

इसके लिए कांग्रेस ने सोशल मीडिया पर कमलनाथ के फोटो के साथ बाकायदा एक विज्ञापन जारी किया था, जिसमें लिखा था कि ‘प्रदेश की हर पंचायत में गोशाला बनाएंगे, ये घोषणा नहीं, वचन है.’ यह घोषणा करते हुए कमलनाथ ने आरोप लगाया था कि भाजपा गोमाता को लेकर बहुत बड़ी-बड़ी बातें करती है, लेकिन करती कुछ नहीं है, प्रदेश में गौशालाओं की हालत बहुत खराब है, सैकड़ों गाय रोज मर रही हैं, भाजपा गाय के नाम पर केवल राजनीति करती है, लेकिन कांग्रेस गाय को तड़पते हुए नहीं देख सकती. इसलिए सड़कों पर आवारा घूम रही गायों को पंचायत स्तर पर गोशाला खोलकर उसमें भेजा जाएगा ताकि वे दुर्घटना का शिकार ना हो सकें. कांग्रेस ने ‘राम पथ’ के निर्माण का भी वादा किया है. इस सम्बन्ध में दिग्विजय सिंह ने कहा है कि ‘भाजपा ने राम पथ का वादा किया था, लेकिन यह अभी तक बना नहीं है. नर्मदा परिक्रमा के दौरान महसूस हुआ था कि राम पथ का निर्माण होना चाहिए.

यह पथ मध्य प्रदेश की सीमा तक बने, इस पर हम विचार कर रहे हैं.’ गौरतलब है कि शिवराज द्वारा राम पथ बनाने की घोषणा कई बार की जा चुकी है, जिसे वे अपनी कई घोषणाओं की तरह भूल चुकेे थे. कांग्रेस अब शिवराज के इस वादे को पूरा करने का दम भर रही है. कांग्रेस ‘राम वन गमन पथ यात्रा’ भी शुरू करने जा रही है. राम वन गमन पथ यात्रा के लिए बाकायदा एक समिति का गठन भी किया जा चुका है, जिसमें हिंदू साधु-संतों के साथ कांग्रेस के सात विधायक भी शामिल होंगे. 21 सितंबर से शुरू होने वाली यह यात्रा 9 अक्टूबर तक चलेगी, जो करीब 35 विधानसभा क्षेत्रों से होकर गुजरेगी.

एक तरफ जहां खुद को शिवभक्त और जनेऊधारी के तौर पर पेश करने की कोशिश करते हुए राहुल गांधी मंदिर-मंदिर घूम रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ वे लगातार संघ और भाजपा को निशाने पर भी लेर हे हैं. पिछले दिनों लंदन में एक कार्यक्रम के दौरान बोलते हुए वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तुलना मुस्लिम ब्रदरहुड से कर चुके हैं. आरएसएस के कट्‌टर हिंदुत्व से इतर राहुल गांधी खुद को और कांग्रेस पार्टी को धर्म और आस्था वाले हिंदुत्व से जोड़ रहे हैं.

प्रारम्भिक तौर पर हिंदू चादर ओढ़ने का फायदा राहुल गांधी को होता दिखाई भी पड़ रहा है. गुजरात चुनाव के बाद से राहुल गांधी की छवि में काफी सुधार देखने को मिला है. जाहिर है, मध्य प्रदेश में हिन्दुत्व के मुद्दों को लेकर इस बार भाजपा के बजाए कांग्रेस ज्यादा आक्रमक नजर आ रही है. कांग्रेस की इस रणनीति से भाजपा दबाव में भी है. भोपाल के रोड शो में शिवभक्त के रूप में राहुल गांधी को पेश करने को लेकर भाजपा का कहना था कि अलग-अलग तरह के हथकंडे अपनाकर कांग्रेस वोट हासिल करना चाहती है, जिसमें वो कभी सफल नहीं हो सकेगी.

दिग्विजय को हाशिए पर रखना कांग्रेस की रणनीति या भूल

मध्य प्रदेश में लम्बे समय बाद कांग्रेसी उत्साहित नजर आ रहे हैं, इसका नजारा भोपाल में राहुल गांधी के रोड शो के दौरान देखने को मिला. इस दौरान भोपाल की सड़कों पर लोगों का भारी हुजूम उमड़ा हुआ था. इसके लिए प्रदेशभर से कांग्रेसी कार्यकर्ता भोपाल पहुंचे थे. अंत में राहुल ने दशहरा मैदान में ‘कार्यकर्ता सम्मेलन’ को सम्बोधित किया. कांग्रेस ने राहुल के इस रोड शो से यह संदेश देने की कोशिश की कि इस बार वे पूरी ताकत से चुनाव लड़ने वाली है. इस दौरान राहुल ने शिवराज सिंह चौहान को घोषणा मशीन बताते हुए कहा कि ‘शिवराज अब तक करीब 21 हजार घोषणाएं कर चुके हैं और मध्य प्रदेश बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और बलात्कार में नंबर वन बन गया है.’ इसके साथ शिवराज के तर्ज पर उन्होंने यह घोषणा भी कर डाली कि यदि मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी, तो हम मेड इन भोपाल और मेड इन मध्य प्रदेश मोबाइल बनाएंगे.

इन घोषणाओं से इतर राहुल के इस एक दिवसीय यात्रा में सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि इस दौरान दिग्विजय सिंह नेपथ्य में रहे. यहां तक कि राहुल गांधी के सभास्थल पर प्रदेश कांग्रेस के सभी प्रमुख नेताओं के कटआउट थे, लेकिन इन सबके बीच दिग्विजय सिंह का कटआउट नदारद था. यही नहीं, रोड शो के दौरान राहुल गांधी जिस बस में सवार थे, उसमें भी दिग्विजय सिंह नहीं थे. विवाद होने के बाद दिग्विजय सिंह की तरफ से यह सफाई दी गई कि मैंने खुद ही कटआउट नहीं लगाने के लिए बोला था. जबकि इस सम्बन्ध में कमलनाथ ने कहा कि ये भूल थी, मैं उनसे इस मामले में व्यक्तिगत और सार्वजनिक रूप से माफी मांगता हूं. हालांकि कमलनाथ का यह बयान हजम नहीं होता. यह बात आसानी से समझी जा सकती है कि मध्य प्रदेश की राजनीति में अभी दिग्विजय सिंह की ऐसी स्थिति नहीं हुई है कि इतने बड़े कार्यक्रम में पार्टी उनका कटआउट लगाना भूल जाए.

तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद आज भी दिग्विजय सिंह भूलने नहीं, बल्कि याद रखे जाने वाले नेता हैं. मध्य प्रदेश में उन्हें अगर कोई सबसे ज्यादा याद करता है, तो वे खुद मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान हैं. वे लगातार अपने कार्यकाल की तुलना दिग्विजय सिंह के कार्यकाल से कर रहे हैं. ऐसे में इस बात की संभावना है कि इस चुनाव के दौरान कांग्रेस जानबूझकर दिग्विजय सिंह को फ्रंट पर ना रखना चाहती हो, जिससे दिग्विजय कार्यकाल के बहाने कांग्रेस पर हमला करने की शिवराज के दांव को कुंद किया जा सके. दूसरी तरफ, इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि दिग्विजय सिंह को पीछे रखने का निर्देश आलाकमान से मिला हो. पिछले कुछ समय से दिग्विजय सिंह की दिल्ली में पकड़ कमजोर हुई है और वर्तमान में उन्हें पार्टी में समन्वय बनाने की जिम्मेदारी ही दी गई है.

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