अलीबाबा सिर्फ एक निवेशक नहीं है, बल्कि हिंदुस्तान में पेटीएम के पूरे कारोबार की चाबी इसके हाथ में है. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के मुताबिक, मोबाइल के जरिए कैशलेस भुगतान के बाजार पर 74 फीसदी अलीबाबा और पेटीएम का कब्जा हो चुका है.

इन कंपनियों का मकसद भारत के 200 शहरों में 500 मिलियन लोगों को मोबाइल के जरिए कैशलेस पेमेंट पर आश्रित करना है. अगर अलीबाबा-पेटीएम इस मकसद में कामयाब हो जाता है, तो भारत की पूरी अर्थव्यवस्था इस चीनी कंपनी के हाथ की कठपुतली बन जाएगी. हैरानी तो इस बात पर है कि इस योजना के सबसे मुखर प्रचारक हमारे देश के प्रधानमंत्री बने हुए हैं.

पेटीएम के संस्थापक और सीईओ विजय शेखर शर्मा खुद को देशभक्त बताते हैं, लेकिन असल में एक चीनी कंपनी अलीबाबा के जरिए लोगों की गाढ़ी कमाई खतरे में डाल रहे हैं. या यूं कहें कि चीन की एक कंपनी को भारत के कैशलेस भुगतान के बाजार पर कब्जा करने के लिए रास्ता दिखा रहे हैं. हैरानी इस बात की है कि देश की सरकार ने उन्हें इसके लिए न सिर्फ खुली छूट दे रखी है, बल्कि सारे नियम-कानूनों की अनदेखी करने के लिए भी तैयार है.

हाल में एक टीवी चैनल पर दिए इंटरव्यू में विजय शेखऱ शर्मा ने बताया कि अलीबाबा मात्र एक निवेशक है. यह सरासर झूठ है. अलीबाबा ने सिर्फ पैसा ही नहीं लगाया है, बल्कि पूरा ऑपरेशन भी उनके हाथ में है. हकीकत ये है कि अलीबाबा ने 500 मिलियन डॉलर से ज्यादा का निवेश किया है, साथ ही 20 टेक्निकल सपोर्ट टीम को भी भारत भेजा है, जो पेटीएम के हर पहलू का ऑपरेशन देख रही है.

सवाल ये है कि पेटीएम के मालिक विजय शेखर शर्मा मीडिया में लगातार अपनी देशभक्ति की कसमें खा रहे हैं और लगातार अपने आप को देशभक्त साबित करने पर तुले हैं, फिर ये बात उन्होंने क्यों नहीं बताई कि उनकी कंपनी का सारा ऑपरेशन चीन से आई टीम की निगरानी में चल रहा है. वो हर इंटरव्यू में इस बात पर क्यों बल देते हैं कि पेटीएम पूरी तरह से भारतीय कंपनी है.

सवाल तो ये भी है कि चीन से आई इस टीम को वीसा तो सरकार ने ही दिया होगा, फिर सरकार ये क्यों नहीं पूछ रही है कि इस तथाकथित भारतीय कंपनी में चीन से आई टीम क्या कर रही है? सवाल तो ये भी है कि पेटीएम ने ऐसी क्या टेक्नोलॉजी अपनाई है, जिसे ऑपरेट करने वाले भारत में नहीं हैं? पूरी दुनिया में भारत के सॉफ्टवेयर इंजीनियर्स ने अपनी धाक जमा रखी है. भारत में दुनिया के सबसे बेहतरीन सॉफ्टवेयर इंजीनियर्स मौजूद हैं, फिर ऐसी क्या बात है या वो कौन सी मजबूरी है जिसके कारण पेटीएम को चीन से टेक्निकल टीम मंगाने की जरूरत पड़ी?

हैरानी तो इस बात की है कि चीन से आई अलीबाबा की टेक्निकल टीम न सिर्फ ऑपरेशन देख रही है, बल्कि पेटीएम के हर प्रोडक्ट को भी तैयार कर रही है. यही टीम पेटीएम के टेक्निकल सिस्टम को तैयार कर रही है. मतलब यह कि सर्वर से लेकर पूरा हार्डवेयर तक चीन से मंगाया गया है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अलीबाबा की टीम ही पेटीएम के ऑपरेशन के रिस्क कंट्रोल कैपेसिटी का विकास कर रही है.

रिस्क कंट्रोल कैपेसिटी किसी भी ऑनलाइन कंपनी की रीढ़ की हड्‌डी होती है. इसे कंपनी के कर्मचारियों से भी गुप्त रखा जाता है. पेटीएम ने इतने संवेदनशील काम की जिम्मेदारी भी चीनी कंपनी को सौंप रखी है. इतना ही नहीं, पेटीएम के मार्केटिंग कैंपेन को भी यही चीनी कंपनी चला रही है. इन सब जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए अलीबाबा के भूतपूर्व डायरेक्टर (थोक व्यापार) भूषण पाटील को पेटीएम का वाइस-प्रेसीडेंट बनाया है.

अब सवाल यह है कि अलीबाबा की तकनीक, अलीबाबा के लोग, अलीबाबा का प्रोडक्ट, अलीबाबा का सिस्टम और खतरे से निपटने की जिम्मेदारी… यानी सबकुछ अलीबाबा के हाथ में है तो पेटीएम को तो यही कहना पड़ेगा कि यह कंपनी चीनी कंपनी अलीबाबा के हाथों की एक कठपुतली मात्र है. एक इंडियन कंपनी की आड़ में चीनी कंपनी अलीबाबा भारत के मोबाइल-पेमेंट के बाजार पर कब्जा कर रही है और देश की सरकार कुंभकर्ण की नींद सोई है.

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