एक और सच जो ज्यादातर लोगों को मालूम नहीं है, वो यह है कि चीनी कंपनी अलीबाबा का सिर्फ पेटीएम में ही निवेश नहीं है. पिछले साल अलीबाबा ने स्नैपडील नामक ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट में भी 500 मिलियन डॉलर का निवेश किया है. इसके अलावा अलीबाबा ने डीएचएल और डेलहीवरी के साथ भी पार्टनरशिप की है. अलीबाबा एक विशालकाय कंपनी है औऱ भारत का कैशलेश भुगतान का बाजार बाल्यावस्था में है. इस पड़ाव पर अगर दुश्मन देश की किसी विशालकाय कंपनी को बाजार में बे रोक-टोक प्रवेश मिलता है तो खतरा बिल्कुल स्पष्ट है.

समझने वाली बात ये है कि हम जैसे ही पेटीएम से जुड़ते हैं और भुगतान करते हैं, वैसे ही हमारी सारी जानकारियां, जिसमें आर्थिक डिटेल, लोकेशन, फोटो वीडियो, कॉन्टेक्ट और बैकग्राउंड की जानकारी है, वो अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क में शेयर हो जाती है. यह बेहद खतरनाक है, क्योंकि ये सभी जानकारियां सीधे चीन की कंपनी अलीबाबा के पास पहुंच जाएगी यानी चीन की सरकार के पास पहुंच जाएगी. इस पर सरकार को अविलंब रोक लगाना चाहिए. किसी भी विदेशी कंपनी को सीधे या परोक्ष रूप से इस क्षेत्र में ऑपरेट करने की छूट नहीं मिलनी चाहिए.

सरकार और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को अपना नेटवर्क और अपनी तकनीक से यह काम करना होगा. जब तक सरकार के पास ये तकनीक नहीं है, तब तक इस कैशलेस की मुहिम को टाल देना चाहिए. क्योंकि जैसे-जैसे यह बाजार विकसित होता जाएगा अलीबाबा की पकड़ मजबूत होती जाएगी. एक ऐसा वक्त भी आएगा कि अगर भारत की सरकार इन्हें हटाना चाहे, तो भी नहीं हटा पाएगी.

यह खतरा इसलिए पुख्ता है, क्योंकि भारत में अलीबाबा को टक्कर देने वाली कोई दूसरी देशी या विदेशी कंपनी अभी तक मोबाइल-भुगतान के बाजार में नहीं है. अगर मोबाइल-भुगतान भारत के गांव-गांव तक पहुंच गया, तो अलीबाबा के जरिए चीन भारत की अर्थव्यवस्था को तबाह करने की शक्ति हासिल कर लेगा. बिना युद्ध किए ही वह भारत को आसानी से घुटने पर लाने में सक्षम हो जाएगा.

मोदी सरकार पेटीएम पर क्यों मेहरबान है?

एक बात समझ के बाहर है कि मोदी सरकार पेटीएम और उसके मालिक विजय शेखर शर्मा पर इतनी मेहरबान क्यों है. एक तो प्रधानमंत्री स्वयं इस कंपनी का प्रचार करने मैदान में उतर जाते हैं. यह किसी भी देश के प्रधानमंत्री के लिए शर्मनाक स्थिति है कि वो किसी निजी कंपनी का प्रचार करें. वो भी यह जानते हुए कि जिस कंपनी का वो बार बार नाम ले रहे हैं, उसके रिश्ते चीन की कंपनी से हैं.

जरा सोचिए, अगर पेटीएम का रिश्ता किसी पाकिस्तानी कंपनी के साथ होता तो देश में क्या हो गया होता? लेकिन पेटीएम ने बेझिझक प्रधानमंत्री की तस्वीर का इस्तेमाल अपने विज्ञापन में किया. सरकार की तरफ से न तो पेटीएम को कोई सजा मिली और न ही कोई चेतावनी. इसका मतलब साफ है कि मोदी सरकार सीधे तौर पर पेटीएम को बढ़ावा दे रही है.

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