sarovarसरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने हजारों परिवारों की नींद उड़ा दी है. कोर्ट के आदेश के पालन के लिए सरकारी अधिकारियों की तरफ से लोगों पर विस्थापन का दबाव बनाया जा रहा है. लेकिन विस्थापित परिवार, जो अब तक अपनी जमीन पर डटे हुए हैं, बिना मुआवजे और व्यवस्थित पुनर्वास के गांव छोड़ने को तैयार नहीं हैं. इससे प्रभावित सभी लोग आंदोलनों और प्रदर्शनों के माध्यम से विरोध जता रहे हैं. मध्य प्रदेश के बडवानी में भी लोगों ने इसके खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया है.

बडवानी के झंडा चौक में नर्मदा किनारे के बाशिंदों ने डेरा डाल दिया है. हजारों महिलाओं के साथ आए करीब 5000 किसान, मजदूर, कारीगर, मछुआरों ने 25 मई को 3 कि.मी. लम्बी बैलगाड़ी रैली निकालकर विरोध प्रदर्शन किया था. किसान, मजदूर, केवट-कहार, कुम्हार आदि सभी ने अपनी-अपनी बैलगाड़ियों से बडवानी के सभी रास्ते पाट दिए थे.

कृषि मंडी से निकली बैलगाड़ी रैली महात्मा गांधी मार्ग से होते हुए झंडा चौक पहुंचकर आमसभा में परिवर्तित हो गई. कई किसान-मजदूर नेताओं ने बैलगाड़ियों पर बनाए गए मंच से इस रैली को संबांधित किया. कमला यादव, वाहिद भाई, भागीरथ धनगर, पेमल बहन, श्यामा मछुआरा, सनोबर बी मंसूरी आदि ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाया और कहा कि सरकार विस्थापितों के सात सौतेला व्यवहार कर रही है.

विकास के लिए त्याग करने को कहकर सरकार हमें पुलिसबल के सहारे विस्थापित नहीं कर सकती. हम अपने पीढ़ियों पुराने गांव, खेत, मंदिर-मस्जिद को बर्बाद होते नहीं देख सकते. ग्राम पिछोड़ी की श्यामा बहन ने कहा कि सरकार पुनर्वास नहीं भ्रष्टाचार करना जानती है. वो अत्याचार और अन्याय पर तुली हुई है. मछुआरों के हाथ से मछली और नदियों के जलाशय हम छीनने नहीं देंगे. मुख्यमंत्री केवल घोषणावीर हैं. मछुआरों को वादे नहीं मछली पर अधिकार चाहिए.

इस आंदोलन की मुख्य नेता मेधा पाटकर ने कहा कि सरकार द्वारा सर्वोच्च अदालत के सामने प्रस्तुत किए गए सभी शपथ पत्र झूठे साबित हुए हैं. यदि सरकार हमारी आजादी के इस आंदोलन में भी शहादत लेना चाहती है, तो ले ले, हम तैयार हैं. भोपाल में मुख्यमंत्री द्वारा मात्र भाजपा-आरएसएस के नुमाइंदों को बुलाकर 10 मिनट की तथाकथित पंचायत को मेधा पाटकर ने जनतंत्र विरोधी करार दिया.

सरकार की तरफ से हजारों परिवारों को 40,000 रुपए किराया और 20,000 रुपए भोजन खर्च देने की घोषणा को उन्होंने हास्यास्पद बताया. उन्होंने कहा कि भूमिहीन प्रभावितों का जीवन और जीविका बुरी तरह प्रभावित होगी, ऐसे हर प्रभावित परिवार को 15 लाख दिया जाना चाहिए.

लोगों का कहना है कि सर्वोच्च न्यायालय के 8 फरवरी के फैसले में पुनर्वास के बाद ही विस्थापन का आदेश है. सरकार सही अर्थों में सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का पालन नहीं कर रही है. न्यायालय के आदेश का पालन तब होता, जब पहले महिला खाताधारकों, सह खाताधारकों और अवयस्क खाताधारकों को उनकी पात्रता के 60- 60 लाख रुपए के अनुदान का भुगतान किया जाता. सरकार के द्वारा अलग-अलग स्तरों पर प्रभावितों की अलग-अलग संख्या बताने को लेकर भी लोगों में आक्रोश है.

सर्वोच्च अदालत में सरकार द्वारा पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार 138.68 मीटर बैक वॉटर लेवल कम करने के बावजूद धार जिले के कुक्षी तहसील के 8177, मनावर के 2601, धरमपुरी के 358 और खरगोन के 30 परिवार प्रभावित होने वाले हैं. जबकि धार कलेक्टर ने कहा है कि बांध की ऊचाई बढ़ाने से 6132 परिवार प्रभावित होंगे, वहीं बडवानी कलेक्टर ने अपने जिले में 10000 परिवारों के प्रभावित होने की बात कही है. राज्य के मुख्य सचिव ने तो प्रभावितों की पूरी संख्या को 9000 तक समेट दिया है.

इससे पहले 21 मई को भी लोगों ने मशाल जुलूस निकालकर विरोध-प्रदर्शन किया. बडवानी तहसील के बगूद, छोटा बड़दा, पिपरी, मनावर तहसील के एकलबारा, सेमल्दा और कुक्षी तहसील के कड़माल, खापरखेड़ा, बाजरीखेड़ा और गेहलगांव में लोगों ने मशाल जुलूस निकालकर सरकार के प्रति विरोध प्रदर्शित किया. ग्रामिणों के विरोध को स्थानीय जन प्रतिनिधियों का भी साथ मिल रहा है. कुक्षी (जिला) विधायक सुरेन्द्र सिंह हनी बघेलजी और बडवानी के विधायक रमेश पटेल ने सभा में आकर लोगों को अपना समर्थन दिया.

सुरेन्द्र सिंह हनी बघेलजी ने कहा कि ये सरकार किसान विरोधी है. पिछले 13 सालों में मुख्यमंत्री ने एक बार भी किसानों से बातचीत नहीं की. हजारों हजार परिवारों का विनाश करने वाली इस योजना को रोकना ही आज की स्थिति में न्याय होगा. वहीं, बडवानी के भूतपूर्व नगर अध्यक्ष राजेन्द्र मंडलोई ने कहा कि हम हर हाल में किसानों के इस आंदोलन के साथ हैं.

लोगों के व्यापक विरोध को देखते हुए धार कलेक्टर ने पिछले दिनों कुछ गांवों का दौरा किया. निसरपुर के बड़े गांव में करीब 2000 लोगों से रुबरु हुए कलेक्टर ने जैसे ही कहा कि 31 जुलाई 2017 तक हमें कैसे भी गांव खाली कराने होंगे, लोगों का आक्रोश उबल पड़ा. लोगों ने जोर देकर कहा कि बिना पूरी तरह से पुनर्वास के हम अपनी जमीन नहीं छोड़ सकते. अब तक पुनर्वास का आधा काम भी नहीं हुआ है. स्थानीय प्रतिनिधि प्रदीप पाटीदार ने कहा कि बचे हुए दो महीने में पुनर्वास स्थल तैयार नहीं हो सकते हैं. इसलिए हम किसी भी कीमत पर अपनी जमीन नहीं छोड़ सकते.

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