कृषि विभाग के हवाले से छपी एक खबर के मुताबिक उत्तर प्रदेश के बरेली में वर्ष 2016 में खरीफ सीजन में 53,816 किसानों ने 43403 हेक्टेयर फसल का बीमा कराया. प्रीमियम की शक्ल में बीमा कंपनियों को पांच करोड़ से ज्यादा रुपए अदा किए, जबकि फसल बीमा का लाभ मात्र 1208 किसानों को मिला. मुआव़जे के रूप में केवल 32 लाख रुपए मिले. लिहाज़ा सरकार का यह दावा सच से काफी दूर है कि फसल बीमा की प्रक्रिया को आसान बना दिया गया है और अब किसान को न तो बीमा करवाने में परेशानी हो रही है और न ही मुआवजा हासिल करने में. कुछ ऐसा ही हाल छत्तीसगढ़ के रायगढ़ का है, जहां करीब 75 हज़ार किसानों ने फसल बीमा करवाया, लेकिन लाभ मिला केवल 48 किसानों को. यहां भी प्रीमियम के रूप में किसानों से 7 करोड़ 66 लाख रुपए वसूल किए गए थे. फसल बीमा के नाम पर इस तरह की धांधली के खिलाफ अब किसान भी लामबंद होने शुरू हो गए हैं.

insuranceकिसानों के लिए खेती आज न केवल घाटे का सौदा हो गई है, बल्कि पिछले कुछ दशकों से जानलेवा भी साबित हो रही है. फसल की बर्बादी और क़र्ज़ के बोझ तले दब कर किसानों के मरने का सिलसिला जारी है. इस बीच कई सरकारें आईं और गईं, लेकिन किसानों की आत्महत्या की कहानी वहीं की वहीं है. मौजूदा सरकार ने किसानों की आत्महत्या को अलग-अलग खानों में बांटकर समस्या की गंभीरता को कम करने की कोशिश की है, लेकिन वो इसमें असफल रही है. चाहे गुजरात हो या महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश हो या ओड़ीशा या फिर तमिलनाडु, हर जगह किसानों की आत्महत्या की कहानी एक जैसा ही है.

इस कथानक में फसल की बर्बादी, लागत से कम कीमत का मिलना, क़र्ज़ का बोझ ही प्रमुख हैं. मौजूदा सरकार किसानों की बात खूब कर रही है. पिछली बजट में सरकार ने अपनी पीठ इसलिए थपथपाई कि पिछले कई दशकों के बाद कोई सरकार किसानों की बात कर रही है. इसी क्रम में 2016 में पहले से जारी राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना (एनएआईएस) और संशोधित राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना (एमएनएआईएस) में कुछ नए प्रावधानों का इजाफा कर प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफवीवाई) शुरू की गई.

इसका मकसद प्राकृतिक कारणों से फसल की बर्बादी के बाद पैदा होने वाले तनाव से किसानों को निजात दिलाना था. लेकिन अभी तक की रिपोर्टों के मुताबिक यह योजना किसानों का तनाव कम करने के बजाय इजाफा ही कर रही है. साथ ही विपक्ष के इस दावे को भी मजबूती दे रही है कि यह योजना किसानों को कम बीमा कंपनियों को अधिक लाभ पहुंचा रही है.

कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक पैनल में शामिल 11 बीमा कंपनियों ने पीएमएफवीवाई के तहत वर्ष 2016-17 में खरीफ और रबी फसलों के लिए लगभग 15891 करोड़ रुपए प्रीमियम की पॉलिसी बेची है. इस प्रीमियम की राशि में किसानों की भागीदारी 2685 करोड़ रुपए है, जबकि बाक़ी की राशि केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा वहन किया गया है. मंत्रालय द्वारा यह भी दावा किया गया है कि वर्ष 2016-17 में बीमा क्लेम की राशि 13000 करोड़ रुपए हो सकती है, जो किसानों से इकट्‌ठा की गई प्रीमियम से 80 प्रतिशत अधिक है.

वहीं विपक्ष का आरोप है कि सरकार प्रधानमंत्री बीमा योजना के सहारे प्राइवेट कंपनियों को फायदा पहुंचाना चाहती है. कांग्रेस का दावा है कि वर्ष 2016 में खरीफ फसल के लिए बीमा कंपनियों को 17185 करोड़ रुपए अदा किए गए और बदले में कुल 3.9 करोड़ किसानों को 6808 करोड़ रुपए की राहत मिली यानि बीमा कंपनियों ने कुल 10000 करोड़ रुपए का लाभ अर्जित किया.

उसी तरह सभी विपक्षी पार्टियों के अपने-अपने दावे हैं, लेकिन इस सच को सभी बीमा कंपनियां भी कबूल कर रही हैं कि कृषि बीमा की वजह से उनके प्रीमियम कलेक्शन में वृद्धि हुई है. यह भी सच है कि किसानों के जिस तरह के लाभ की बात सरकार कर रही थी, वैसा लाभ किसानों को नहीं मिल रहा है. जिन किसानों ने अपनी फसलों का बीमा करा रखा है, उन्हें नष्ट फसल का बीमा हासिल करने में पसीने छूट रहे हैं. ये कहानी एक केवल एक राज्य तक ही सीमित नहीं है. अखबारों की रिपोर्टों की मानें तो मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश हर जगह से बीमा क्लेम में धांधली की रिपोर्टें छप रही हैं.

कृषि विभाग के हवाले से छपी एक खबर के मुताबिक उत्तर प्रदेश के बरेली में वर्ष 2016 में खरीफ सीजन में 53,816 किसानों ने 43403 हेक्टेयर फसल का बीमा कराया. प्रीमियम की शक्ल में बीमा कंपनियों को पांच करोड़ से ज्यादा रुपए अदा किए, जबकि फसल बीमा का लाभ मात्र 1208 किसानों को मिला. मुआव़जे के रूप में केवल 32 लाख रुपए मिले.

लिहाज़ा सरकार का यह दावा सच से काफी दूर है कि फसल बीमा की प्रक्रिया को आसान बना दिया गया है और अब किसान को न तो बीमा करवाने में परेशानी हो रही है और न ही मुआवजा हासिल करने में. कुछ ऐसा ही हाल छत्तीसगढ़ के रायगढ़ का है, जहां करीब 75 हज़ार किसानों ने फसल बीमा करवाया, लेकिन लाभ मिला केवल 48 किसानों को.

यहां भी प्रीमियम के रूप में किसानों से 7 करोड़ 66 लाख रुपए वसूल किए गए थे. फसल बीमा के नाम पर इस तरह की धांधली के खिलाफ अब किसान भी लामबंद होने शुरू हो गए हैं. कई जिलों से बीमा करवाने वाले किसानों की संख्या में लगातार गिरावट आ रही है. दरअसल इसमें एक सबसे बड़ी खामी यह है कि अधिकतर किसानों को यह मालूम ही नहीं है कि यह योजना है क्या? इस में क्षति का अंदाज़ा कैसे लगाया जाता है? ये शिकायत मिल रही है कि बीमा पॉलिसी पर किसान का हस्ताक्षर नहीं लिया जाता.

स्थानीय आपदा की स्थिति में अधिकारी नुकसान का जायजा लेने जल्द नहीं पहुंचते. इसका नतीजा यह होता है कि किसान को इस दफ्तर से उस दफ्तर का चक्कर लगाना पड़ता है और हाथ कुछ भी नहीं लगता. देश में बंटाई पर खेत जोतने वाले किसानों की बड़ी संख्या मौजूद है. ऐसे किसानों के लिए बीमा का प्रावधान नहीं है.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने चुनावी भाषणों में किसानों को उनकी मेहनत और लागत के हिसाब से फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करने का आश्वासन दिया था. पिछले साल उन्होंने एक और आश्वासन दिया था कि वे 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी कर देंगे.

2022 तो अभी दूर है लेकिन किसानों की मेहनत और लागत के हिसाब से उन्होंने अभी तक न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित नहीं किया है. महाराष्ट्र के किसान अपनी लागत और पैदावार की कीमत को लेकर आन्दोलन की तैयारी कर रहे हैं. तमिलनाडु के किसान दिल्ली में प्रदर्शन कर जा चुके हैं. किसानों की आत्महत्या का सिलसिला अभी थमा नहीं है. सरकार की फ्लैगशिप बीमा योजना से सम्बंधित जो आंकड़े मिल रहे हैं उसके मुताबिक विपक्षी पार्टियों का दावा सही लग रहा है कि यह योजना बीमा कंपनियों के लिए तैयार की गई है.

ज़ाहिर है किसानों की आमदनी दोगुनी करने में फसल बीमा की एक बड़ी भूमिका हो सकती है, लेकिन ज़रूरत इस बात की है कि इसकी त्रुटियों को जल्द से जल्द दूर कर लिया जाए और किसानों की असल समस्या को समझा जाए. नहीं तो इसका यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि सरकार निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए किसानों का सहारा ले रही है.

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की मुख्य बातें 

  • इस योजना के तहत रबी, खरीफ, वाणिज्यिक फसलों और बागवानी का बीमा हो सकता है.
  • खरीफ की फसल के लिए 2 प्रतिशत प्रीमियम का होगा.
  • रबी की फसल के लिए 5 प्रतिशत प्रीमियम लिया जाएगा.
  • वार्षिक वाणिज्यिक फसलों और बागवानी के लिए 5 प्रतिशत प्रीमियम का भुगतान करना होगा.
  • सरकारी सब्सिडी पर कोई ऊपरी सीमा नहीं होगी.
  • पीएमएफवीवाई की प्रीमियम दर पूर्व की दोनों योजनाओं से बहुत कम है.
  • 2017-18 के आम बजट में केंद्र सरकार ने पीएमएफवीवाई के तहत होने वाली खर्च की राशि को बढ़ा कर 13240 करोड़ रुपए कर दिया है.
  • फसल में आग लगना, चोरी होना आदि को इस योजना के अन्तर्गत शामिल नहीं किया गया है.
Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here