खुद अपने पैरों पर खड़ा हुआ हूं
मैं समझता हूं कि इस दुनिया में मैं अकेले ही आया हूं और अकेले ही जाऊंगा. मैं मानता हूं कि इस दुनिया में हर इंसान मां के पेट से नंगा ही आता है और नंगा ही जाता है (कोई भी यहां से कुछ भी लेकर नहीं जाता है). मतलब जन्म से हर कोई खाली हाथ ही आता है और एक दिन खाली हाथ ही चला जाता है. अगर हर इंसान इस बात को समझ ले तो कभी भी, कहीं भी, धर्म, जाति, ऊंच-नीच, अमीर-गरीब के नाम पर झगड़े नहीं होंगे और न ही धन-दौलत, जमीन, जायदाद, सत्ता, शक्ति और प्रतिष्ठा की लड़ाई होगी.

मैं जानता हूं कि जब इंसान जन्म लेता है तो वह नाम, जाति, धर्म, समाज, भाषा, क्षेत्र, धन-दौलत, जमीन-जायदाद कुछ भी अपने साथ नहीं लेकर आता है. लेकिन आज इंसान इन बातों को भूलता चला जा रहा है. वो इन चीजों के लिए मरने-मारने तक को तैयार हो जा रहा है. जबकि इस अटल सच को भूल जाता है कि मैं सिर्फ एक आत्मा हूं. मैंने जिंदगी को हमेशा से सच दिखाने वाले आईने की तरह देखा है.
मैं ये मानता हूं कि इस दुनिया में मेरा कुछ भी नहीं है. अपने शरीर के अलावा, हम जो भी चाहते हैं, घर में जो भी सामान है, रुपया-पैसा, धन-दौलत, गाड़ी-घोड़ा, जमीन-जायदाद, शक्ति-सत्ता और प्रतिष्ठा, जिनके ऊपर मैं-मैं-मैं और मेरा-मेरा-मेरा कह कर उसके लिए हम लड़ते हैं और हम मालिक बनते हैं, वह असल में मेरा है ही नहीं.

जो आज मेरा है, वह कल किसी और का था. परसों किसी और का हो जाएगा. परिवर्तन ही संसार का नियम है. लेकिन परिवर्तन को नियम के तहत और सही ढंग से होना चाहिए.

मैंने बचपन से ही जिंदगी से लड़ना सीख लिया था. फिर चाहे वह लड़ाई रोटी की हो या अपने हक की. बचपन में एक वक्त की रोटी के लिए मैं मीलों दूर रास्ता तय कर जंगल से लकड़ियां लाता था. गरीबी और लाचारी की मार झेलते हुए मैंने दिन में डेढ़ रुपए मजदूरी पर बढ़ई (लरीशिपींशी) का काम किया है, जिससे मैं 45 रुपए महीने कमाता था. आज भी बढ़ईगीरी का सामान मेरे पास रखा है.
मैं बचपन में नियमित स्कूल नहीं जा पाया. लेकिन अपने बढ़ईगीरी के काम के साथ-साथ मैंने वयस्क शिक्षा केंद्र (Aअर्वीश्रीं एर्वीलरींळेप उशपींीश, थरश्रश्रर) से पढ़ाई की. मेरी मेहनत और लगन देखकर स्कूल प्रशासन ने मेरी परीक्षा ली और मुझे सीधे कक्षा छह में दाखिला दे दिया गया. फिर मैंने जब दिन के स्कूल में दाखिला लिया, तब 6 से 8 कक्षा तक कैजुअल नौकरी भी की. दिन में पढ़ता और रात में चौकीदारी करता था, जिसमें सुबह पांच बजे राष्ट्रीय झंडा फहराता था और शाम को पांच बजे झंडा उतार लेता था. इसमें मुझे 212 रुपए महीने की आमदनी होती थी.

अपने जीवन में मैने सबसे पहले 400 रुपए में एक ओबीटी घर बनाने का ठेका लिया था. जिसके बाद अपने जिले और राज्य में बहुत सी सड़कें, सरकारी मकानों और पुलों का निर्माण किया. 11-12 कक्षा तक पहुंचते-पहुंचते मेरे पास खुद की जिप्सी गाड़ी और चार ट्रक गाड़ी थी. जिसे मैं व्यापार के काम में लगाता था.

कॉलेज पहुंचने तक मेरा व्यापार काफी आगे बढ़ गया, मेरे पास गाड़ी-घोड़ा, नौकर-चाकर और खुद का एक छोटा सा पक्का मकान भी था, जिसमें 3 कमरे थे. आज 23 साल तक मंत्री पद पर रहते हुए भी मैंने उससे आगे एक भी कमरा नहीं बढ़ाया है. खूपा में एक छोटा सा घर है, जिसे मैंने 1990 में तीनसुकिया एसबीआई बैंक से पर्सनल लोन लेकर बनाया था. हेउलियांग में एक घर हैं, जिसे मैंने भारतीय स्टेट बैंक तेजू से लोन लेकर बनाया था.

विधायक बनने से पहले मेरे पास आरा मशीन और काष्ठकला की फैक्ट्री भी थी, जिससे मुझे हर साल 46 लाख रुपए की आमदनी होती थी. मैं अपने छात्र जीवन में ही करोड़पति बन गया था. इसपर मैंने कभी घमंड नहीं किया. भगवान गवाह है कि मैंने कभी धन-दौलत, घर-बंगला, गाड़ी-घोड़ा, नौकर-चाकर, सत्ता और प्रतिष्ठा को अपनी जागीर नहीं समझा और न ही इन चीजों पर कभी गर्व व घमंड किया है. मैंने हमेशा से ही इंसानियत की सुरक्षा और गरीबों की सेवा को अपना कर्म समझा है और अब तक उन्हीं के हित के लिए काम कर रहा हूं.
मैं बड़े फक्र से कह सकता हूं कि मैं खुद अपने पैरों पर खड़ा हुआ हूं. लेकिन मैंने कभी इस बात पर गुमान नहीं किया. मैंने अपने रुपयों से हमेशा गरीब, लाचार, अनाथ और जरूरतमंद लोगों की सहायता की है. आज भी मैं 96 गरीब लड़के-लड़कियों को पढ़ाने के साथ उनका सालाना खर्च भी उठाता हूं.

26 दिसम्बर 1994 को जब मैं राजनीति से जुड़ा, उसके अगले ही दिन मैंने अपने दो बिजनेस ट्रेडिंग लाइसेंस को डीसी कार्यालय में वापस कर समर्पण कर दिया. क्योंकि जब मैं राजनीति में आ गया, तो इसे व्यापार के साथ मिलाना नहीं चाहता था. मैं कभी भी राजनीति में नहीं आना चाहता था, लेकिन मुझे जनता ने जबरदस्ती राजनीति में उतारा है. लोग राजनीति में अपने स्वार्थ के लिए आते हैं, लेकिन अगर कोई इसे ईमानदारी से अपनाए तो इससे अच्छा, सेवा और भलाई का काम कोई हो ही नहीं सकता. क्योंकि एक नेता के कह देने से, एक फोन कर देने से, एक सिफारिश कर देने से या किसी सभा में प्रस्ताव रख देने से समाज और जनता का काम हो जाता है, तो इससे बड़ा और अच्छा भलाई या खुशी का काम क्या हो सकता है.

वर्ष 2007 में भी मुझे मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला था, लेकिन उस वक्त मैंने मना कर दिया था. वर्ष 2011 में भी मुझे फिर से मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदारी दी गई, जिसे मैंने फिर से ठुकरा दिया. मैं जानता था कि मेरे साथी विधायक और मंत्री मुझे सिस्टम से, नीति से, कानून से और संविधान के तहत चलने नहीं देंगे.

लोगों की सेवा के लिए सीएम बना
जब तीसरी बार मुझे मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला, तो मैंने उसे स्वीकार किया. मेरी इच्छा, मेरा सपना और मेरी कोशिश थी कि मेरा पिछड़ा राज्य और गरीब जनता हर क्षेत्र में आगे बढ़ें. सड़क-यातायात ठीक हो, लोगों को शुद्ध-स्वच्छ और नियमित पानी मिले और अच्छी व उच्च शिक्षा मिले. मैं चाहता था कि लोगों को बेहतर और मुफ्त स्वास्थ्य सेवा मिले और बिना रुके 24 घंटे हर घर-हर परिवार को बिजली मिले, हर जाति और समाज को शांत और सुरक्षित माहौल मिले, लोगों के रहन सहन का स्तर व उनकी आमदनी बढ़े, सभी लोग उन्नत और विकासशील हों, राज्य के हर घर में खुशहाली हो और आम जन हर प्रकार से आगे बढ़े. इन बातों को ध्यान में रखते हुए और उन कामों को मुकाम देने के लिए मैंने अपने तन-मन, दिमागी-चिंतन, सोच-विचार, कठिन मेहनत और लगन से राज्य को ऊंचाई देने व जनता की भलाई, उन्नति और बेहतर कल के लिए हर घड़ी हर पल काम किया. लेकिन शायद मेरे साथी मंत्रियों और विधायकों को यह बात मंजूर नहीं थी. क्योंकि उनके लिए मंत्री व विधायक बनने का मतलब कुछ और ही होता होगा. यही कारण है कि मैं राजनीति से दूर रहना चाहता था.

मैंने अपने 23 सालों की राजनीति में अलग-अलग मंत्री पदों पर रहते हुए राज्य के विकास में हर संभव योगदान दिया है. अपने विधानसभा क्षेत्र और पूरे राज्य में काम किया है. लेकिन इन कामों पर हर किसी की नजर नहीं गई. अपने 23 साल के राजनीतिक जीवन में मैंने बहुत से मुख्यमंत्रियों के साथ काम किया, लेकिन अपने अनुभव से मैंने देखा व समझा कि किसी भी मुख्यमंत्री व मंत्री की योजना स्पष्ट नहीं थी, वे किसी भी योजनाओं को सही से प्राथमिकता नहीं दे पाए. उन्होंने हमेशा राजनीति की नजरों से ही फैसला लिया, हमेशा जनता के हितों को नजरअंदाज किया. विधायक व मंत्री हमेशा आपस में हिसाब-किताब कर एक दूसरे को लाभ देने व खुश करने में ही लगे रहे.

जबकि मेरी परिभाषा ये है कि नेता बनने का मतलब केवल अपने घर-परिवार, सगे-संबंधी और दोस्तों को फायदा पहुंचाना नहीं होता. मंत्री, विधायक व बड़े अधिकारी एक-दूसरे की मदद के लिए नहीं आए हैं, बल्कि राज्य के पूर्ण विकास व गरीब जनता की सेवा के लिए उन्हें चुना जाता है. अपने 23 साल के राजनीतिक जीवन में मैंने नेताओं को इसके बिल्कुल उल्टा ही काम करते देखा है. वे लोग सिर्फ एक-दूसरे को या बड़े नेता, बड़े अधिकारी और बड़े व्यापारियों को ही मदद व फायदा पहुंचाने का काम करते रहे हैं.

साढ़े चार महीने के अपने मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल में मैंने अपना सुख-चैन, घर-परिवार, नींद-आराम को त्यागकर 24 घंटे जनता के हित में काम किया. मैंने सही अर्थों में राजधर्म का पालन किया है. इतना ही नहीं मैंने राज्य में विभिन्न विभागों में स्वास्थ्य, शिक्षा, पुलिस और कानून में 11,000 से ज्यादा पदों की जगह निकाली थी, जिन्हें बिल्कुल पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से लागू किया जाना था. मैंने प्लान, नॉन-प्लान फंड को सही और योजनाबद्ध तरीके से पेश किया था. मैंने राज्य में ट्रांसफर-पोस्टिंग, प्रमोशन और अपॉएंटमेंट के लिए मंत्रियों को पैसे लेने से मना किया था, जिसका शायद उन्हें बुरा लगा. प्लान फंड, नॉन-प्लान फंड, कॉन्ट्रैक्ट वर्क, टेंडर वर्क और बिल पेमेंट में कमीशन लेने के लिए भी मनाही थी. शायद यह बात भी उन्हें बुरी लगी.

मैं केवल इतना जानता हूं कि 14-15 लाख की जनसंख्या वाले राज्य में 60 एमएलए को चुना जाता है. उनमें से 12 मंत्री बनते हैं. मैं सोचता हूं कि वे 60 एमएलए उच्च शिक्षा, सामाजिकता, बेहतर नेतृत्व और उदार सोच के साथ-साथ सभी तरह से अच्छे इंसान हों. वे जनता की सेवा और सुरक्षा को अपना धर्म मानते हों, इंसानियत को अपना ईमान और जनता की भलाई को अपना कर्म समझते हों. हमारे नेताओं को परिवार, समुदाय, जाति, धर्म और समाज से ऊपर उठकर काम करना चाहिए. लेकिन ऐसे नेताओं की आज जैसे कमी ही आ गई है. आज राज्य में हर एक मुख्यमंत्री (पू.) ने आत्महत्या से पहले आखिरी बार लिखा मुझसे 86 करोड़ मांगे गए नेता अपनी जेब भर रहा है. अपने स्वार्थ पूरे कर रहा है. जनहित से ज्यादा वह अपने लिए, अपने परिवार और रिश्तेदारों के बारे में ज्यादा सोच रहा है. मैंने ये महसूस ही नहीं किया, बल्कि अपनी आंखों से देखा भी है. इस बात से मैं बहुत ही आहत और दुखी हूं. इस राज्य के पिछड़ने का कारण भी यही है. राज्य में मंत्री-विधायक आपसी सहयोग से केवल खुद को ही आगे बढ़ाते हैं और गरीब जनता को नजरअंदाज करते हैं. वहीं, मुख्यमंत्री बड़े नेताओं, बड़े अधिकारियों, बड़े व्यापारी को खुश करने में लगा रहता है. ऐसी स्थिति में राज्य, समाज और जनता का क्या होगा?

नेताओं ने राजनीति को धंधा बना लिया है
राज्य में सड़क, पानी, बिजली, कानून, शिक्षा, स्वास्थ्य और सफाई व्यवस्थाओं को सुचारू करने पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता. जिससे आम जनता नेताओं को शक की नजरों से देखती है. यहां हर एक विधायक को मंत्री बनना है, वह भी वर्क्स डिपार्टमेंट में, जहां उन्हें ज्यादा और मोटी कमाई हो. सभी को ज्यादा से ज्यादा नगद पैसा चाहिए. नेताओं और विधायकों ने इसे अपना धंधा बना लिया है. यही सब कारण है कि राज्य में सरकार बार-बार बदलती है. जिसका नुकसान आम जनता और राज्य को उठाना पड़ता है. सरकार बदलने से बहुत सी योजनाएं और प्रोग्राम बदलते हैं, जिससे विकास की राह और गति रुक जाती है, जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए. इस बात से मैं बहुत ही आहत और दुखी हूं. मैं लोगों में जागरूकता लाना चाहता हूं. मैं चाहता हूं कि वे विचार-विमर्श करें, इन बातों को समझें और अपनी सोच-समझ, कर्म-कार्य, हाव-भाव और नीतियों को बदलें. ताकि हम अपने राज्य और देश के सुनहरे भविष्य के सपने को साकार कर सकें.

आज जनता को मंत्रियों और विधायकों से पूछना चाहिए कि पांच साल में उनके पास धन-सम्पत्ति, जमीन-जायदाद, बंगला-गाड़ी कहां से आ गए? जनता को भ्रष्टाचार पहचानना चाहिए और सवाल करना चाहिए कि विधायक या मंत्री बनने से पैसा बनाने का क्या सर्टिफिकेट मिल जाता है? या पैसा छापने की फैक्ट्री और मशीन मिल जाती है? मैं मानता हूं कि जनता जनार्दन है और उन्हें सच को पहचानना चाहिए.
दोरजी खांडू सेना के आम सिपाही थे, विधायक बनने के बाद भी उनके पास कुछ नहीं था. लेकिन जब वे रिलीफ मंत्री बने, तब उन्होंने सरकारी ठेकों को 50 प्रतिशत में बेचकर अपनी जेब में भरना शुरू कर दिया. जब वे पावर (ऊर्जा) मंत्री बने, तब उन्होंने पूरे अरुणाचल प्रदेश में हाइड्रो प्रोजेक्ट योजना में नदी नालों को बेचकर पैसे गबन किए. उन्होंने 30 लाख प्रति मेगावाट के हिसाब से कंपनी को प्रोजेक्ट बेचकर मोटी कमाई की थी.

उसके बाद उन्होंने अपांग की सरकार को गिरा दिया और खुद मुख्यमंत्री बन गए. आज उनके (दोरजी खांडू) तवांग, ईटानगर, गुवाहाटी, दिल्ली, कोलकाता और बेंगलुरु में बड़े-बड़े आलीशान मकान और बंगले हैं. बहुत से फार्म हाऊस, होटलें और कॉमर्शियल इस्टेट हैं. आज लोग कहते हैं कि दोरजी खांडू ने घोटाले कर 1700 करोड़ रुपए से ज्यादा धन कमाया, सम्पत्ति बनाई. लेकिन आज वे तो इस दुनिया में नहीं हैं, फिर ये धन-दौलत क्या काम आया? इससे जिन्दगी तो नहीं खरीद सकते और न ही इस धन-दौलत को दूसरी दुनिया में ले जा सकते हैं. कहने का मतलब है, हर किसी को मेहनत-मजदूरी कर अपनी किस्मत में जो है और अपनी जरूरत तक ही कमाई करनी चाहिए. सोशल मीडिया, फेसबुक और वॉटसअप पर लोग कह रहे और पूछ भी रहे हैं कि पेमा खांडू के पास आज जो 1700 करोड़ नगद पैसा है, वो पैसा कहां से आया?

जनता ये खुद सोचे और विचार करे कि मंत्री बनने से पहले उनके पास क्या था और आज क्या है? उनके पास कोई पैसा बनाने की मशीन या फैक्ट्री तो नहीं थी और न ही कुबेर का कोई खजाना था. फिर इतना पैसा कहां से आया? ये जनता का पैसा है. मंत्री बने ये लोग इसी पैसों का रोब दिखाकर जनता को डराते-धमकाते हैं और लोग उसके पीछे भागते हैं. आज जनता को इसका जवाब मांगना चाहिए और इस मामले को पूरी छानबीन होनी चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट में चल रहे केस का पूरा खर्च नबाम तुकी और पेमा खांडू ने मिलकर उठाया था. जिसका फैसला मेरे खिलाफ दिया गया था. ये रकम करीब 90 करोड़ रुपए थी. इस केस में मेरे हित में फैसला देने के लिए मुझे भी फोन किया गया और मुझसे भी 86 करोड़ रुपए की मांग की थी. लेकिन मुझे और मेरे जमीर को ये मंजूर नहीं था. मैंने भ्रष्टाचार नहीं किया, मैं कमाया नहीं और न ही राज्य को कुएं में गिराने की मेरी इच्छा थी. मैं अपनी सत्ता को बचाने के लिए सरकार और जनता के पैसे का दुरुपयोग क्यों करूं? इसका नतीजा आप सबके सामने है.

राहत का पैसा नेताओं की जेब में
तवांग में आज से ही नहीं बल्कि वर्षों से विकास के नाम पर बहुत सा पैसा जा रहा है, लेकिन वहां पैसों का दुरुपयोग हुआ है और नेताओं ने अपनी जेबें भरी हैं. 2005 से रिलीफ फंड के नाम से वहां बहुत पैसा जा रहा है. जनता आरटीआई से इसकी जानकारी ले सकती है. प्रोजेक्ट का दौरा करने पर वहां जमीन पर कुछ भी नहीं मिलेगा. टूरिज्म के नाम पर बहुत पैसा जा रहा है. अर्बन डेवलपमेंट के नाम पर बहुत पैसा जा रहा है. पावर के क्षेत्र में बहुत पैसा जा रहा है. किटपी हाइड्रो प्रोजेक्ट के नाम से वर्ष 2010-11 में बिना सैंक्शन और बिना काम के 27 करोड़ रुपए ‘एलओसी’ (लाइन ऑफ क्रेडिट) किया गया, बिना बिल के पैसे उठाए गए. उन पैसों का गबन किया गया. इसी प्रकार खान्तांग और मुकतो हाइड्रो प्रोजेक्ट के नाम से भी झूठा बिल बनाकर 70 करोड़ से भी ज्यादा पैसों का गबन किया गया.

सार्वजनिक वितरण प्रणाली में हुए भीषण घोटाले (पीडीएस स्कैम) की असली जड़ नबाम तुकी और दोरजी खांडू हैं, उन्होंने ही इस घोटाले की शुरुआत की थी. गेंगो अपांग जब मुख्यमंत्री थे, तब राज्य में पीडीएस का साल भर का काम 61 लाख रुपए में ही हो जाता था. गेंगो अपांग इसे सुधारना चाहते थे, पर सभी ने मिलकर उन्हें फंसाया था. जब नई सरकार बनी तब नबाम तुकी फूड एंड सिविल सप्लाई मिनिस्टर थे. तुकी ने ही राज्य में सिर पर अनाज ढो कर ले जाने की व्यवस्था (हेड लोड सिस्टम) की शुरुआत की थी. एक साल में ही पीडीएस का काम 68 करोड़ रुपए तक बढ़ गया था. वही, अगले ही साल इस काम की लागत 164 करोड़ रुपए तक बढ़ गई थी. इस पर केंद्र सरकार को राज्य सरकार पर शक हो गया था और उन्होंने एफसीआई को जांच और ऑडिट करने का आदेश दिया, जिसमें राज्य सरकार को दोषी पाया गया था. इसके बाद केन्द्र सरकार ने पेमेंट रोक दिया था. पीडीएस घोटाला खुलने पर गेंगो अपांग ने ‘हेड लोड’ का काम बंद करवा दिया, जिससे ये पेमेंट वहीं रुक गया था.

पीडीएस भारत सरकार की योजना थी, जिसका पैसा एफसीआई के जरिए भारत सरकार से ही आता है. राज्य सरकार के पैसों से इसका पेमेंट नहीं होता था. जब 2007 में दोरजी खांडू मुख्यमंत्री बने तब उन्होंने सार्वजनिक वितरण के काम से सम्बद्ध अपने ही ठेकेदारों को अपनी ही सरकार के खिलाफ केस करने के लिए उकसाया और इस काम के लिए उनकी मदद भी की. इस केस में राज्य सरकार फास्ट ट्रैक कोर्ट, सेशन कोर्ट, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी कई बार जान-बूझकर हारती गई. दोरजी खांडू के नेतृत्व में राज्य सरकार ने कोर्ट में जान-बूझकर सही रिकॉर्ड और जानकारी नहीं दी थी और बहुत सी फाइल और रिकॉर्ड को मिटा दिया गया. 50 प्रतिशत हिस्सा लेकर दोरजी खांडू ने ही प्राइवेट पार्टियों को राज्य सरकार के खिलाफ अदालती आदेश (कोर्ट डिक्री) लेने में मदद की थी और पहला पीडीएस पेमेंट उन्हीं के समय में हुआ था.

30 नवम्बर 2011 तक जब मैं राज्य का वित्त मंत्री था, तब अदालती आदेश होने पर भी, मैंने और कृषि मंत्री सेतांग सेना ने पेमेंट नहीं दिया था. केवल पीडीएस पेमेंट देने के के कारण ही नबाम तुकी ने मुझे वित्त मंत्री के पद से हटाया था. मेरे वित्त मंत्री के पद से हटते ही चोउना मीन वित्त मंत्री बने और चार दिनों के अंदर ही 4/12/2011 को नबाम तुकी और चोउना मीन ने पीडीएस कॉन्ट्रैक्टर से पैसों में 50 प्रतिशत की हिस्सेदारी लेकर ‘हेड लोड’ का भुगतान कर दिया.

अपने 23 साल के राजनीतिक जीवन में मैंने पीडीएस बिल की फोटो-कॉपी पर पेमेंट होते पहली बार देखा था. ऐसा किसी और राज्य में नहीं होता है. 600 करोड़ रुपए से भी ज्यादा पैसों का पीडीएस पेमेंट हुआ. इन पैसों को राज्य के डेवलपमेंट फंड से दिया गया था. जबकि ये भारत सरकार की स्कीम थी और भारत सरकार ने इसमें घोटाला देखकर एक भी पैसा राज्य सरकार को नहीं दिया था. पीडीएस घोटाले के मुख्य दोषी दोरजी खांडू, पेमा खांडू, नबाम तुकी और चोउना मीन ही हैं.

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