अगले साल आम चुनाव होने वाले हैं. चार साल पहले नरेंद्र मोदी ने लोगों में यह उम्मीद पैदा कर दी थी कि वे राजनीति बदलेंगे. खासकर नए-नए मतदाता बने युवाओं में उन्होंने यह संदेश फैलाया कि कांग्रेस पार्टी जिस तरह की राजनीति कर रही है, वो ठीक नहीं है और वे इसे बदलेंगे. नए उद्योगों, रोजगार आदि के वादों के जरिए उन्होंने आशा की किरण दिखाई. चार साल गुजर गए. मोदी जी ने नया कुछ किया नहीं, बल्कि जो हमारे पास था, वो भी हाथ से गिरता जा रहा है. मैं जो कह रहा हूं उसके दो पहलू हैं. पहला यह कि चुनाव में क्या होगा, क्या नहीं होगा, कौन सी नीतियां अच्छी हैं, कौन सी खराब और कैसे इस सूरत-ए-हाल से हम निकल सकते हैं. दूसरा यह समझने की जरूरत है कि कोई भी सरकार आए-जाए, भारत की नींव नहीं हिलनी चाहिए.

10 साल तक कांग्रेस ने राज किया. 2004 में जब कांग्रेस सरकार में आई, तो किसी को उम्मीद नहीं थी. भाजपा की सरकार चल रही थी. अटल बिहारी अच्छी सरकार चला रहे थे. आर्थिक और राजनीतिक स्थिति ठीक थी, कोई दंगे-फसाद नहीं हो रहे थे. वाजपेयी जी विदेशों के साथ संबंध ठीक करने की कोशिशें कर रहे थे, सब कुछ ठीक था. लेकिन उन्होंने मान लिया कि अगली बार भी वे ही सत्ता में आएंगे. इंडिया शाइनिंग का नारा दिया, लेकिन जनता तो जनता होती है. पासा पलट गया और अचानक मनमोहन सिंह आ गए. 2009 में तो मनमोहन सिंह ने सोचा भी नहीं था कि यह सरकार फिर से आएगी, लेकिन आ गई. 10 साल मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री रहे.

वे अर्थशास्त्री हैं, स्वभाव से बहुत संजीदा हैं, शांति से काम करते हैं. पूरे 10 साल में उन्होंने कभी गलत बयानबाजी नहीं की, उनकी कोई नीति गलत नहीं रही. अब जैसा कि इतने बड़े देश में होता है, 2-4 मामलों में स्कैम की खबरें आने लगी. टूजी आवंटन में अनियमितताएं पाई गईं. ऐसा ही कोल ब्लॉक आवंटन में हुआ. उस समय विनोद राय सीएजी थे. सीएजी का काम होता है गलतियां निकालना. लेकिन ऐसा लगता है कि उन्होंने कुछ अतिश्योक्ति से काम लिया. 2013 में ऐसा माहौल बन गया कि बहुत चोरी हो रही है.

मोदी जी को फायदा मिल गया. उन्होंने नई उम्मीदें दिखाई और जीत गए. लेकिन आप हर एक के लिए हर चीज का वादा कर देंगे, फिर उसे लागू करना तो मुश्किल है. मोदी जी तो बातें ऐसी कर रहे थे कि जैसे वे रामराज ला देंगे. वे समझते हैं कि इनफ्रास्ट्रक्चर, चमकीली बिल्डिंगें, चमकीली सड़कें तरक्की के निशान हैं. मेरी सोच यह है कि हिंदुस्तान जैसे देश में, जहां 125 करोड़ लोग रहते हैं, आपसी सद्भाव सबसे जरूरी है. हमारे देश में हर 10-20 किलोमीटर पर भाषा, पोशाक, मजहब और मान्यताएं बदल जाती हैं. इस देश में सद्भाव रहना किसी राजनीतिक दल की देन नहीं है. यह नेहरू की देन नहीं है. यह चार हजार साल की हमारी सांस्कृतिक धरोहर है.

जब देश का संविधान बनाया गया, तब 40 करोड़ लोग थे. उन सब की मान्यताओं को ध्यान में रखते हुए संविधान बनाया गया और बढ़िया संविधान बना. उस समय जो लोग थे, वे अक्लमंद थे, सोचते-समझते थे. आज जैसे नहीं कि मोदी जी कहें कि दिन है, तो दिन है और रात है तो रात. नेहरू और पटेल कुछ मुद्दों पर सहमत होते थे, कुछ पर नहीं होते थे. गांधी, नेहरू, पटेल, पंत, मौलाना आजाद, बीसी रॉय, कामराज, चव्हाण, मोरारजी देसाई. ये सब लोग सोचते थे और सभी जमीन से जुड़े थे. संविधान सभा में सैकड़ों सदस्य थे. हर एक चीज पर डिबेट हुआ, उसके बाद संविधान बना. इसलिए यह इतने सालों से चला आ रहा है. इंदिरा गांधी ने 1975 में संविधान पर प्रहार किया. संविधान की ही एक धारा का दुरुपयोग कर आपातकाल लगा दिया. वो दौर भी गुजर गया. इतिहास का फायदा यह है कि आज हम खुद को सुधारें और भविष्य में वही गलतियां ना करें. इतिहास की अनदेखी करना मूर्खता है और इतिहास को तोड़ना-मरोड़ना एक तरह से देश के साथ खिलवाड़ है.

मोदी जी ने कहा कि भारतीय उद्योगपतियों और अन्य लोगों ने विदेशों में बहुत पैसा जमा कर लिया है, हम वापस लाएंगे. यह सोच सराहनीय है, लेकिन इसका मैकेनिज्म क्या है. दुनियाभर के देशों के बैंकों की अपनी गोपनीयता है. एक पैसा नहीं आया. अमित शाह को कहना पड़ा कि वो चुनावी जुमला था. जुमला जरूर बोलिए, लेकिन लोगों की मानसिकता और जज्बों से खिलवाड़ मत कीजिए. चार साल में न तो युवाओं को नौकरियां मिलीं, न उद्योग लगे.

मेरे हिसाब से दो-ढाई साल तक सरकार ठीक चली. शुरू में केंद्र सरकार के खिलाफ कोई गलत बात नहीं कर सकता था. सरकार कोशिश करती दिखी. लेकिन 8 नवंबर 2016 को रिजर्व बैंक, आर्थिक मामलों के जानकार और सरकार में भी बिना किसी से सलाह लिए नोटबंदी कर दी गई. देश की 84 फीसदी करेंसी को रद्द कर दिया गया. ये वैसी ही बात है जैसे  किसी छोटे बच्चे के हाथ में पिस्तौल आ जाए और वो सबको गोली मार दे. सरकार ने अपनी जिम्मेदारी समझी नहीं. मोदी जी, बचपना कर गए और वे हार मानते नहीं. बिगड़ी स्थिति को सुधारने के बजाय फिर आनन-फानन में जीएसटी लागू कर दिया गया. पिछला डेढ़ साल देश के लिए बहुत ही खराब बीता है. नई नौकरी की तो बात ही छोड़िए, पुराने लोग हटाए जा रहे हैं. किसान खुदकुशी कर रहे हैं. अब तो इस सरकार के पास करीब 8-9 महीने ही बचे हैं, क्योंकि 3 महीने पहले तो आचार संहिता लागू हो जाती है. अब इतने समय में ये क्या कर सकते हैं. मैं समझता हूं कि सबसे बेहतर सरकार यह कर सकती है कि स्थिति को और बिगड़ने न दे. चुनाव हारना-जीतना जनता पर है.

अभी हो क्या रहा है? पिछले छह महीने के प्रधानमंत्री के तमाम भाषण पढ़ लीजिए. कहीं भी विकास की बात नहीं है. आपको हर भाषण में कांग्रेस पार्टी और नेहरू के खिलाफ बयान मिल जाएंगे. ऐसा लगता है कि भाजपा के पीछे नेहरू का भूत सवार हो गया है. 1947 में जब हमें आजादी मिली, उस समय तो संसाधान नहीं थे, कुछ भी नहीं था. मौजूदा सरकार को तो भरे हुए भंडार मिले हैं. 1947 के भारत और 2014 के भारत में बहुत फर्क है. नेहरू अगर मोदी जी की लाइन पर चलते तो वे 10 साल तक यही बोलते रहते कि अंग्रेजों ने तो बहुत खराब किया, मुगलों ने देश को बर्बाद कर दिया. लेकिन नेहरू ने ऐसा एक शब्द नहीं बोला. वे समझ गए कि अब उत्तरदायित्व मेरा है. अब मुझे करना है. करो या हटो. हालांकि उन्होंने गलतियां भी कीं. जो काम करेेगा, उससे गलतियां भी होंगी. उसे स्वीकार करना मायने रखता है. लेकिन मोदी जी तो गलती भी नहीं मानते.

मोदी जी को प्रधानमंत्री का दायित्व समझना चाहिए. किसने उन्हें बता दिया है कि प्लेन में घूमना, विदेशी नेताओं से हाथ मिलाना, रैली करना, हिंदुस्तान की आंतरिक बातें जाकर न्यूयॉर्क में बोलना, यही सब प्रधानमंत्री का काम है. ये सब तो प्रधानमंत्री के मैनुअल में कहीं हैं ही नहीं. जैसे-जैसे भाजपा के नीचे से जमीन खिसकने लगी, मोदी जी की भाषा और भी तीव्र होती गई. जनता में इससे नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. भाजपा के वोट कम होते जा रहे हैं. 2014 में जो इज्जत मोदी जी ने पाई थी, वो अब कम होती जा रही है. जो लोग पहले मोदी सरकार की नीतियों की तारीफ कर रहे थे, उनकी भी नजर आज मोदी जी द्वारा दिनभर में तीन बार जैकेट बदलने पर है.

कांग्रेस की जो त्रुटियां थीं, उनमें से एक था भ्रष्टाचार, जिसके खिलाफ बात करके मोदी जी सत्ता में आए. आज सरकार कहती है कि मोदी सरकार में कोई घोटाला नहीं हुआ. कोई घोटाला नहीं हुआ, तो ये समझा दीजिए कि भाजपा चुनाव प्रचार में जो पानी की तरह पैसे बहा रही है, वो कहां से आ रहे हैं. ये पैसे उद्योगपतियों के पास से आते हैं. उद्योगपति तो किसी को 10 रुपए तभी देंगे, जब उन्हें 100 रुपए का फायदा होगा. यह अलग बात है कि कोई घोटाला उजागर नहीं हुआ, ऐसी कोई खबर नहीं आई.

अमित शाह के राज में भाजपा ने राज्यों के चुनाव में जितना खर्च किया है, उतना आज तक भारतीय इतिहास में कभी नहीं हुआ. कांग्रसे के सारे चुनाव जोड़ दीजिए, फिर भी इतना खर्च नहीं हुआ होगा. ये सारे पैसे कहां से आ रहे हैं. अब आप नहीं कह सकते कि आप पाक-साफ हैं. भाजपा उतनी ही भ्रष्ट है, जितनी कांग्रेस या उससे ज्यादा भ्रष्ट है. कर्नाटक में कुमारस्वामी के सीएम बनने के बाद भी अमित शाह ने कहा कि अभी भी कांग्रेस और जद (एस) ने अपने विधायकों को बंद कर रखा है. उन्हें खुला छोड़ दें तो मैं सरकार बना लूंगा.

यह कोई अखाड़ा हो रहा है क्या कि मैं खरीद लूंगा-मैं बेच लूंगा? ऐसे आदमी को तो एक मिनट में भाजपा की अध्यक्षता से हटा देना चाहिए, अगर नरेंद्र मोदी चाहते हैं कि वे सभ्य और कार्यशील सरकार चलाएं. नहीं हटाना हो तो मत हटाइए, लेकिन यह मत समझिए कि जनता कुछ समझती नहीं है. इंदिरा गांधी ने भी यही समझा था कि मैंने आपातकाल लगा दिया और जनता तो कुछ बोली ही नहीं, यानि जनता मेरे साथ है. लेकिन जनता ने वोट देकर एक दिन में समझा दिया. 2019 में आपको भी पता चल जाएगा कि शांत जनता कितनी ज्यादा आपके खिलाफ है. आपने जनता को अपने खिलाफ कर लिया है.

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