एक जनवरी 2017 को सपा के राष्ट्रीय महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव की ओर से लखनऊ में बुलाए गए अधिवेशन को राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने भले ही असंवैधानिक करार दिया, लेकिन वही सभा मुलायम-युग के पटाक्षेप का अध्याय लिख गई. मुलायम के भाई रामगोपाल यादव ने ही अपने राजनीतिक गुरु नेताजी मुलायम सिंह यादव को पार्टी का मार्गदर्शक बना कर दरकिनार करने और उनकी जगह अखिलेश यादव को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव पारित कराया.

उन्होंने शिवपाल यादव को प्रदेश अध्यक्ष पद से और अमर सिंह को पार्टी से हटाने का भी प्रस्ताव ध्वनि मत से पास कराया. अखिलेश समर्थकों के  हुजूम ने नए नियुक्त प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल के साथ लखनऊ के विक्रमादित्य मार्ग स्थित पार्टी मुख्यालय पर हमला बोल दिया. अखिलेश सरकार की पुलिस भी दर्शक दीर्घा में खड़ी रही और अखिलेश समर्थकों ने तोड़फोड़ मचाकर पार्टी मुख्यालय पर कब्जा कर लिया. हमलावरों ने शिवपाल यादव के अध्यक्ष का नेमप्लेट उखाड़ कर जमीन पर फेंका और पैरों से कुचला.

नरेश उत्तम भीड़ में से निकले और शिवपाल की कुर्सी पर आकर धंस गए. लोकतंत्र और समाजवाद गेट से बाहर निकल गया. आपस में संधि कराने की कोशिश करने वाले वरिष्ठ सपा नेता आजम खान तक ने कहा कि जो कुछ हुआ उसकी उन्हें कतई उम्मीद नहीं थी. जबकि अखिलेश का कहना था कि नेताजी ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया था पर कुछ लोगों ने उनके खिलाफ साजिश करके न केवल पार्टी को नुकसान पहुंचाने का काम किया, बल्कि राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के सामने भी संकट पैदा किया. साजिश करने वालों ने अपने घर से टाइपराइटर मंगवा कर उनके खिलाफ मनमानी चिट्ठियां लिखवाईं और नेताजी से हस्ताक्षर करवाकर जारी किया. अखिलेश का इशारा साफ तौर पर शिवपाल की तरफ था.

निर्णायक विद्रोह-सभा में पार्टी-अधिग्रहण की कार्रवाई का अंदेशा तभी हो गया था, जब अखिलेश के बुलावे पर तकरीबन दो सौ विधायक और तीन दर्जन से अधिक विधान परिषद सदस्य उनके आवास पर पहुंचे थे. इसके अलावा भारी संख्या में प्रत्याशी और संगठन के पदाधिकारी भी अखिलेश के सरकारी आवास पर मौजूद थे. उधर मुलायम के आवास पर भी विधायकों, प्रत्याशियों और पदाधिकारियों को बुलाया गया था, लेकिन वहां बमुश्किल दो-ढाई दर्जन विधायक और कुछ प्रत्याशी व पदाधिकारी ही पहुंचे. आप जानते हैं कि उत्तर प्रदेश विधानसभा में सपा के 229 विधायक और 67 विधान परिषद सदस्य हैं. अखिलेश-रामगोपाल के विद्रोही अधिवेशन से मुलायम का मनोबल इतना दब गया कि उन्होंने पांच जनवरी को बुलाए आधिकारिक अधिवेशन को स्थगित कर दिया.

अखिलेश के  लिए बांहें खोले है कांग्रेस,बसपा पर भी डाल रही डोरे

अब समाजवादी पार्टी में पिता और पुत्र की दो अलग-अलग धाराएं हो चुकी हैं. मुलायम सिंह यादव औपचारिक तौर पर चुनाव आयोग जाकर अपना दावा दाखिल कर चुके हैं. अखिलेश यादव भी करीब सवा दो सौ विधायकों के हस्ताक्षर वाला शपथ पत्र चुनाव आयोग भेज कर अपने खेमे को असली समाजवादी पार्टी बता रहे हैं. यानि, अब स्पष्ट है कि मुलायम की समाजवादी पार्टी और अखिलेश की समाजवादी पार्टी विधानसभा चुनाव में अलग-अलग उतरेगी.

मुलायम पूर्व में घोषणा कर चुके हैं कि वे किसी भी दल के साथ चुनावी गठबंधन नहीं करेंगे. बदली हुई स्थितियों में उनके साथ कोई दल गठबंधन करने की पहल करेगा कि नहीं, यह भी नहीं कहा जा सकता. लेकिन अखिलेश खेमे और कांग्रेस के गठबंधन की संभावनाएं बनी हुई हैं. अखिलेश यादव के लिए मुख्यमंत्री की दावेदारी छोड़ देने का कांग्रेस नेता शीला दीक्षित का प्रस्ताव दोनों दलों के बीच तालमेल की संभावनाओं का स्पष्ट संकेत है. शीला दीक्षित को कांग्रेस की ओर से उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री पद की प्रत्याशी के रूप में प्रस्तुत किया गया था. शीला दीक्षित ने कहा, मसमाजवादी पार्टी के नेता और यूपी के मौजूदा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव मुख्यमंत्री पद के लिए मुझसे कहीं बेहतर प्रत्याशी हैं और मैं अखिलेश के लिए रास्ता छोड़ देने में खुशी महसूस करूंगी.

आप याद करते चलें कि चुनाव की घोषणा होने के फौरन बाद कांग्रेस ने सांप्रदायिक ताकतों को सत्ता में आने से रोकने के लिए सपा के साथ अपने गठबंधन के विकल्प खुले रखने के स्पष्ट  संकेत दिए. कांग्रेस ने साफ-साफ कहा कि गठबंधन पर फिलहाल तो कोई बातचीत नहीं हुई है, लेकिन समान विचारधारा वाली पार्टियों के साथ वह हाथ मिलाने को तैयार है. दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने भी कहा कि कांग्रेस और उनकी पार्टी के बीच गठबंधन होता है तो नतीजे अच्छे होंगे. उन्होंने कहा, मयदि अखिलेश चुनाव अभियान का नेतृत्व करने की बात सही है तो मेरे लिए यह उपयुक्त होगा कि मैं दौड़ से हट जाऊं. वह युवा और अनुभवी हैं.

वैसे, कांग्रेस ने सपा (अखिलेश गुट) के साथ-साथ बसपा से भी तालमेल का विकल्प खोल रखा है. कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि जिस भी दल के साथ सीटों की हिस्सेदारी पर सम्मानजनक बात बन जाएगी, कांग्रेस उस दल के साथ तालमेल कर लेगी. कांग्रेस के उत्तर प्रदेश प्रभारी महासचिव गुलाम नबी आजाद इसी रणनीति पर काम कर रहे हैं. बसपा प्रमुख मायावती कांग्रेस की मांग के मुताबिक सीटें देने पर राजी नहीं हैं. उधर, अखिलेश यादव पहले ही यह कह चुके हैं कि कांग्रेस से अगर चुनावी गठबंधन हो गया तो गठबंधन को 300 सीटें मिलेंगी. कांग्रेस सपा के अखिलेश गुट के  साथ जाने को अधिक प्राथमिकता दे रही है. उसकी वजह यह भी है कि सपा कांग्रेस के लिए सौ से अधिक सीटें छोड़ सकती है, जबकि मायावती इसके लिए राजी नहीं हैं.

मुस्लिम वोट खींचने की जद्दोजहद में लगी हैं सारी पार्टियां

जहां तक टिकट की घोषणा की अद्यतन स्थिति का सवाल है, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर चुकी है. मुलायम सिंह यादव की तरफ से समाजवादी पार्टी के 403 प्रत्याशियों की सूची जारी हो चुकी है. उस पर अखिलेश यादव ने भी अपने 235 प्रत्याशियों की लिस्ट जारी कर दी थी. लेकिन समाजवादी पार्टी के झगड़े में प्रत्याशियों की सूची भी दो-धार में फंस गई है. हालांकि, प्रो. राम गोपाल यादव बार-बार यह कह रहे हैं कि उनकी पार्टी (अखिलेश खेमा) ही असली है, और 403 सीटों पर अखिलेश टीम ही चुनाव लड़ेगी. दूसरी तरफ बसपा भी 403 प्रत्याशियों की घोषणा कर चुकी है. मायावती और मुलायम दोनों ही मुस्लिम वोटों पर अपनी-अपनी दावेदारी जता रहे हैं. मायावती ने आगे बढ़ कर 97 मुसलमानों को अपना उम्मीदवार बनाया, जबकि दलित प्रत्याशियों की संख्या 87 ही है. साफ है कि दलितों की पार्टी बसपा ने मुसलमानों का वोट पाने की आशा में अपनी प्राथमिकताओं को ताक पर रख दिया है.

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