akhilesh yadavउत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 13 दिसम्बर 2013 को जब कुशीनगर में मैत्रेय परियोजना का शिलान्यास किया था, तो ऐसा लगा था कि अब पूर्वांचल में विकास की गंगा बहेगी. जनपद कुशीनगर के निवासियों की तो खुशी का ठिकाना ही नहीं था. लेकिन इन तीन वर्षों में लोगों की उस खुशी की रंगत उतरने लगी.

लोग अब यही कह रहे हैं कि सरकार चाहे जिसकी भी हो मैत्रेय परियोजना शायद अब कभी भी जमीन पर साकार नहीं हो पाएगी. यह मात्र एक छलावा ही साबित हुआ है. उक्त संदर्भ में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव शरद कुमार सिंह का कहना है कि प्रदेश में चाहे भाजपा की सरकार रही हो या बसपा की या सपा की, इन सभी दलों की सरकारों ने लोगों को ठगने का काम किया है.

मैत्रेय परियोजना की हकीकत यह है कि इसके नाम पर किसानों का आन्दोलन खड़ा कराया गया और नेता लोग सरकार से पैसे लेकर नेपथ्य में चले गए. भोली-भाली जनता हतप्रभ रह गई. जिस मैत्रेय परियोजना का शिलान्यास मुख्यमंत्री के हाथों हुआ था, उस शिलान्यास स्थल पर आज गंदगी का अम्बार लगा है. इससे प्रदेश के विकास की असलियत का अहसास होता है.

आज से लगभग 15 वर्ष पूर्व महत्वाकांक्षी मैत्रेय परियोजना का खाका खींचा गया था. बुद्ध के शांति, अहिंसा, करुणा और जगत कल्याण के संदेश को जन-जन तक पहुंचाने और दुनिया भर के पर्यटकों को आकर्षित करने वाली परियोजना को जमीन पर उतारने की योजना तब और परवान चढ़ी जब बौद्ध गुरु दलाईलामा ने इसे भगवान बुद्ध की महापरिनिर्वाण स्थली कुशीनगर में स्थापित करने की इच्छा जताई.

उनकी इच्छा को दैवीय इच्छा मान कर परियोजना पर काम शुरू हुआ था. प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने 6 नवम्बर 2001 को दलाईलामा को इस बारे में पत्र लिखा था. फिर 6 फरवरी 2002 को दलाईलामा ने पत्र लिखकर परियोजना को उत्तर प्रदेश में शीघ्र स्थापित करने की गुजारिश की थी. इसके बाद बैठकों का दौर चला और 9 मई 2003 को ट्रस्ट और सरकार के बीच एमओयू पर हस्ताक्षर हुए.

वर्ष 2001 में मैत्रेय परियोजना के प्रस्ताव के बाद ही किसान खुलकर इसके विरोध में उतर आए. विरोध सड़क से लेकर दफ्तरों तक चला. किसानों को मनाने और विरोध कम करने में ही पूरे 11 साल बीत गए.

2003 में हुए करार के बाद सरकार ने परियोजना के लिए जून, 2004 में सात गांवों की कुल 800 एकड़ जमीन अधिग्रहीत की. इसके बाद परियोजना के विरोध में पहले से फूटा स्वर और मुखर हो चला. तेज हुए विरोध ने इसके बाद कभी थमने का नाम ही नहीं लिया. गोवर्धन गोंड की अध्यक्षता में भूमि बचाओ संघर्ष समिति के बैनर तले सिसवां महंथ में आंदोलन का बिगुल बजा जो अनवरत जारी रहा.

विरोध के बाद जून 2007 में किसानों ने आंदोलन स्थल पर ही क्रमिक अनशन शुरू कर दिया. इस बीच घेराव, सड़क जाम और प्रशासन से झड़पें भी हुईं. विरोध का असर यह रहा कि सन्‌ 2012 तक परियोजना का काम शुरू नहीं हो पाया. 20 नवम्बर 2012 को जब अखबारों में यह खबर छपी कि विदा हुआ मैत्रेय प्रोजेक्ट, तो पूरे प्रदेश में हंगामा मच गया और परियोजना के विरोधी जश्न मनाने लगे.

कुशीनगर के तत्कालीन जिलाधिकारी रिग्जियान सैम्फिल ने सक्रियता दिखाते हुए सरकार से पत्र व्यवहार शुरू किया और बात मुख्यमंत्री तक पहुंची. 23 नवम्बर को सरकार ने साफ कर दिया कि परियोजना और कहीं नहीं जाएगी, कुशीनगर में ही रहेगी. प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री ब्रम्हाशंकर त्रिपाठी ने क्षेत्र के विकास से जुड़ी इस परियोजना को कुशीनगर में

उतारने की वकालत की, तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मुख्य सचिव को तलब कर परियोजना के प्रतिनिधियों से वार्ता करने का निर्देश दिया. उच्च स्तरीय बैठक में संस्था को भरोसा दिलाने के बाद अध्यात्मिक गुरु रिन्पोछे ने एक बार पुनः परियोजना को शीघ्र जमीन पर उतारने की पहल की. 13 दिसम्बर 2013 को मैत्रेय परियोजना का शिलान्यास हुआ. लेकिन उसके बाद परियोजना पर काम आगे नहीं बढ़ा. मुलायम बार-बार यह कहते रहे कि शिलान्यास के साथ-साथ उद्घाटन की तारीख भी बताई जाए. लेकिन पिता की बात सुनता ही कौन था.

परियोजना की राह का सबसे बड़ा रोड़ा किसानों का विरोध था. यह विरोध वर्ष 2001 में ही खड़ा हो गया था. इस विरोध के साये से मैत्रेय परियोजना कभी उबर नहीं पाई. वर्ष 2004 में परियोजना के विरोध में आंदोलन स्थल सिसवां महंथ में क्रमिक अनशन शुरू हुआ, तो इसको विभिन्न राजनीतिक दलों ने भी हवा दी. स्वयंसेवी संस्थाओं ने भी किसानों के विरोध को समर्थन दिया.

जमीन का क्षेत्रफल कम करने के बाद भी बात नही बनी. प्रशासन ने बीच का रास्ता निकाला तो यहां भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सूर्यप्रताप शाही के जमीन का पेंच फंस गया. परियोजना के बीच में पड़ने वाली 10 एकड़ जमीन के कारण अड़ंगा लग गया. इससे परियोजना को बड़ा झटका लगा. अभी यह सब चल ही रहा था कि परियोजना विरोधी किसानों का समूह हाईकोर्ट की शरण में चला गया. हाईकोर्ट ने किसानों की जमीन लेने पर रोक लगाते हुए सरकार से ही जवाब-तलब कर दिया.

इसके बाद तो मुआवजा वितरण और किसानों से करार का काम पूरी तरह से ठप्प हो गया. लगा कि अब परियोजना ठंडे बस्ते में चली जाएगी. तत्कालीन जिलाधिकारी रिग्जियान सैम्फिल की सकारात्मक पहल पर लखनऊ की उच्च स्तरीय बैठक में 202 एकड़ जमीन पर ही परियोजना को जमीन पर उतारना तय हुई. इस पर सरकार और परियोजना के प्रतिनिधि मान भी गए. परियोजना की स्थापना के रास्ते खुल गए, लेकिन लालफीताशाही और नेतागीरी ने काम आगे नहीं बढ़ने दिया.

13 वर्ष के 13 पड़ाव

  1. मैत्रेय परियोजना के लिए वर्ष 2000 में यूपी में भूमि चयन के साथ-साथ प्रतिमा की डिजाइनिंग का काम शुरू हुआ.
  2. 6 नवम्बर 2001 और 6 फरवरी 2002 को तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने दलाई लामा को पत्र लिखकर मैत्रेय प्रोजेक्ट को यूपी में स्थापित करने का अनुरोध किया.
  3. कुशीनगर में महापरिनिर्वाण मंदिर के पास सात गांवों की 750 एकड़ भूमि परियोजना के लिए चिन्हित हुई.
  4. 9 मई 2003 को मैत्रेय प्रोजेक्ट ट्रस्ट और प्रदेश सरकार के बीच एमओयू पर हस्ताक्षर हुए.
  5. सरकार ने भूमि अधिग्रहण का कार्य पूरा कर लिया लेकिन किसानों के विरोध के कारण उस पर कब्जा नहीं ले सकी.
  6. मई 2011 में प्रदेश सरकार ने मैत्रेय परियोजना को 273 एकड़ में सीमित करने का प्रस्ताव दिया जिस पर मैत्रेय प्रोजेक्ट ट्रस्ट राजी हो गया.
  7. भूमि मिलने में देरी से हताश मैत्रेय प्रोजेक्ट के आध्यात्मिक निदेशक लामा जोपा रिनपोछे ने नवम्बर 2012 में परियोजना को कुशीनगर से हटा कर बोधगया में स्थापित करने की घोषणा की.
  8. 22 नवम्बर 2012 को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि मैत्रेय प्रोजेक्ट को कुशीनगर से जाने नहीं दिया जाएगा. उन्होंने तत्कालीन मुख्य सचिव जावेद उस्मानी को प्रोजेक्ट की राह की अड़चनें दूर करने का निर्देश दिया.
  9. 23 नवम्बर को लखनऊ में हुई उच्चस्तरीय बैठक में 945 रुपये प्रति वर्ग मीटर की दर से किसानों से जमीन लेने का निर्णय हुआ.
  10. 28 नवम्बर 2012 को किसानों से करार का काम शुरू हुआ. तीन महीने में 202 एकड़ भूमि मिली.
  11. फरवरी से अगस्त तक परियोजना के काम में एक बार फिर सुस्ती आई. मैत्रेय प्रोजेक्ट ट्रस्ट ने एमओयू निरस्त करने की नोटिस दी तो बातचीत फिर शुरू हुई.
  12. 18 अक्टूबर 2013 और फिर 3 दिसम्बर 2013 को लखनऊ में हुई बैठक के बाद मुख्यमंत्री के हाथों परियोजना के शिलान्यास का कार्यक्रम टल गया और एक बार फिर उहापोह की स्थिति बन गई.
  13. 6 दिसम्बर 2013 की शाम मुख्यमंत्री कार्यालय व संस्कृति विभाग ने कुशीनगर जिला प्रशासन को बताया कि 13 दिसम्बर को ही शिलान्यास होगा. प्रशासन ने युद्ध स्तर पर तैयारियां शुरू कीं, शिलान्यास भी हुआ, लेकिन काम आगे नहीं बढ़ा.
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