प्रजातंत्र की सफलता के लिए यह ज़रूरी है कि देश में एक सशक्त व स्थिर सरकार हो, लेकिन इससे भी ज़्यादा ज़रूरी है कि देश में एक सशक्त व विश्‍वसनीय विपक्ष हो. देश में आज एक स्थिर सरकार मौजूद है, लेकिन विपक्ष कहां है? कांग्रेस पार्टी की साख इतनी ख़त्म हो गई कि उसके पास नेता प्रतिपक्ष बनने के लिए ज़रूरी लोकसभा सांसदों की संख्या तक नहीं है. लोगों का भरोसा कांग्रेस से टूट चुका है. दूसरी समस्या यह है कि कांग्रेस पार्टी जनता के भरोसे को वापस पाने के लिए कुछ कर भी नहीं रही है. चुनाव के बाद से राहुल गांधी और सोनिया गांधी निष्क्रिय हो गए हैं. तो सवाल उठता है कि क्या देश में फिर से वन पार्टी डोमिनेन्स का दौर चल पड़ेगा, जो देश में प्रजातंत्र के लिए ख़तरनाक साबित हो सकता है. कांग्रेस अगर शिथिल पड़ जाती है, तो यह ज़िम्मेदारी क्षेत्रीय दलों की होगी कि वे आगे आएं और एक सशक्त विपक्ष का निर्माण करें. हरियाणा के जींद में लाखों लोगों की रैली में नीतीश कुमार ने जनता परिवार को एकजुट करने की मुहिम चलाकर अपना कर्तव्य निभाया है, नई राजनीति की शुरुआत की है.  
pg-125 सितंबर को भौगोलिक दृष्टि से हरियाणा का केंद्र जींद हरियाणा की राजनीति का केंद्र बन गया. सुबह से ही हरियाणा की सड़कों पर इंडियन नेशनल लोकदल के झंडे लहरा रहे थे और समर्थकों में जींद पहुंचने की होड़ लगी थी. यहां से क़रीब 60 किलोमीटर दूर रोहतक से ही सड़कें वाहनों से खचाखच भर चुकी थीं. नेशनल हाइवे नंबर-41 के बाईं और दाईं ओर तथा सड़क के बगल की पगडंडियों पर इंडियन नेशनल लोकदल के समर्थकों का कारवां चल रहा था. हर जगह जाम और हर जगह नारेबाजी. सड़कों का यह माहौल बता रहा था कि इनमें से कोई भी जींद नहीं पहुंच पाएगा या फिर रैली ख़त्म होने के बाद ही पहुंच पाएंगे. जिन लोगों ने दिमाग दौड़ाया, उन्होंने हाइवे से हटकर कच्ची सड़कों पर खेतों के बीच गाड़ियां उतार दीं और समय पर रैली स्थल पहुंच गए. यह कहना पड़ेगा कि जींद में लाखों की रैली थी, लेकिन हरियाणा की कांग्रेस सरकार की तरफ़ से कोई इंतजाम नहीं था. इंडियन नेशनल लोकदल बधाई का पात्र है कि वह बिना पुलिस और बिना सरकारी व्यवस्था के लाखों लोगों की रैली को शांतिपूर्वक आयोजित करने में सफल रहा.
रैली स्थल जींद शहर के बाहर सफैदों बाईपास पर था. क़रीब एक किलोमीटर तक लोगों का हुजूम मौजूद था. ज़्यादातर लोगों ने पारंपरिक हरियाणवी साफे के साथ सफेद पोशाक धारण कर रखी थी और हाथ में हरा झंडा लेकर रैली में शामिल होने आए थे. हर तरफ़ स़िर्फ लोग ही लोग थे. जिन लोगों को लगता था कि स्वर्गीय देवीलाल और चौटाला परिवार को हरियाणा के लोगों ने भुला दिया है या पीछे छोड़ दिया है, उनकी हर दलील को इस रैली ने नि:शब्द कर दिया. इंडियन नेशनल लोकदल की जींद रैली एक ऐतिहासिक रैली साबित हुई. कई लोगों का मानना है कि हरियाणा में इतनी बड़ी रैली पहले कभी नहीं हुई. सही मायने में इस रैली में लाखों की संख्या में लोग शामिल हुए. जितने लोग पंडाल के अंदर थे, उससे कहीं ज़्यादा पंडाल के बाहर मौजूद थे. पंडाल भी इतना बड़ा कि उसके बीचोबीच खड़े होकर भी यह बताया नहीं जा सकता कि स्टेज पर कौन-कौन मौजूद है. यह रैली वैसे तो ओमप्रकाश चौटाला ने महान किसान नेता एवं अपने पिता चौधरी देवीलाल के सौवें जन्म दिवस पर उनके सम्मान में आयोजित की थी, लेकिन यह पूरी तरह से चुनावी रैली थी. स्टेज पर इंडियन नेशनल लोकदल के सभी उम्मीदवार मौजूद थे. इस जनसैलाब को संबोधित करते हुए चौटाला ने कहा कि सरकार आईएनएलडी की बनेगी और वह तिहाड़ जेल में ही मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. लेकिन, इस रैली को महज हरियाणा चुनाव की एक रैली कहना गलत होगा, क्योंकि इस रैली से भारतीय राजनीति के एक नए अध्याय का बीजारोपण हुआ है.

नीतीश कुमार नेता-विपक्ष की दौड़ में सबसे आगे हैं. उन्होंनेे नरेंद्र मोदी की वजह से बिहार में गठबंधन तोड़ा, मुख्यमंत्री पद का त्याग किया. वह देश के अकेले नेता हैं, जो मोदी से सार्वजनिक रूप से दो-दो हाथ करते हैं. उनका मोदी विरोध वैचारिक, अव्यक्तिगत और सम्मानित है. अगर भविष्य में जनता परिवार इकट्ठा होता है, तो सबसे अहम भूमिका नीतीश कुमार की होगी.

इस रैली में जनता परिवार को एकजुट करने की मुहिम शुरू हुई है. जींद की रैली में पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा, पंजाब के मुख्यमंत्री सरदार प्रकाश सिंह बादल, जनता दल यूनाइटेड के अध्यक्ष शरद यादव, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के प्रतिनिधि शिवपाल यादव के अलावा कई जाने-माने लोग मौजूद थे. सभी नेताओं ने इस बात पर जोर दिया कि अब सभी को एकजुट होना होगा. नीतीश ने कहा कि जनता दल परिवार के सदस्य यदि एकजुट होंगे, तो देश में नई राजनीति का शंखनाद होगा. शरद यादव ने कहा कि नया भारत बनाने के लिए पुराने साथियों को एक साथ आने की ज़रूरत है. पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा ने कहा कि जनता दल बनवाने में चौधरी देवीलाल का बड़ा योगदान था और आज फिर जनता दल के पुराने परिवार को एकजुट होने की ज़रूरत है. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के भाई शिवपाल यादव ने कहा कि कांग्रेस और भाजपा के ख़िलाफ़ एकजुट होकर लड़ाई लड़ी जानी चाहिए. मतलब यह कि इस रैली को स़िर्फ हरियाणा चुनाव के नज़रिये से नहीं, बल्कि वर्तमान राजनीति की चुनौतियों से निपटने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक गठबंधन तैयार करने की सोची-समझी योजना के रूप में देखना चाहिए.
रैली हरियाणा में हुई. यह रैली हरियाणा चुनाव के मद्देनज़र इंडियन नेशनल लोकदल ने आयोजित की थी. पार्टी को इसमें जबरदस्त सफलता मिली और इस रैली ने हरियाणा की राजनीति में भूचाल ला दिया. लेकिन, इस रैली में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हीरो बनकर उभरे. वह इस रैली में एक राष्ट्रीय नेता के रूप में नज़र आए. उनका भाषण सबसे जबरदस्त रहा. उनके भाषण को हरियाणा के लोगों ने खूब सराहा. नरेंद्र मोदी पर किए गए कटाक्षों पर लोगों ने जमकर तालियां बजाईं. उन्होंने यह कहकर ललकारा कि कहां गया वह 56 इंच का सीना? चीन की फौज हमारी सीमा में घुस आती है और पाकिस्तानी हमारे सिपाहियों पर गोलियां चलाते हैं. नीतीश ने इस रैली में जब यह कहा कि भाजपा अच्छे दिनों का झूठा सपना दिखाकर चुनाव जीती है और लोगों के साथ धोखा हुआ है, तो माहौल तालियों से गूंज उठा. इन तालियों से अर्थ निकलता है. एक यह कि लोग सचमुच यह मानने लगे हैं कि अच्छे दिन महज एक चुनावी नारा था, जो पूरा नहीं होने वाला है और दूसरी बात यह कि लोग नीतीश कुमार को भाजपा के विरुद्ध संघर्ष करते देखना चाहते हैं. यही वजह है कि नीतीश कुमार ने यह साफ़ कर दिया कि भाजपा को रोकने के लिए जनता परिवार का एकजुट होना ज़रूरी है. नीतीश कुमार का भाषण पूर्ण रूप से राजनीतिक था. उनकी भाषा सरल थी, लेकिन शब्द सटीक और तीखे थे. इसके अलावा उनका पूरा भाषण प्रधानमंत्री मोदी पर केंद्रित था. उन्होंने अपने हमले में कोई कसर नहीं छोड़ी. उन्हें सुनकर ऐसा लगा कि अगर भाजपा सरकार के ख़िलाफ़ देश में कोई सशक्त विपक्ष का नेता है, तो वह नीतीश कुमार ही हैं.
राजनीतिक तौर पर सबसे ज़्यादा आश्‍चर्यजनक उपस्थिति पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल की थी. प्रकाश सिंह बादल की पार्टी भाजपा की सहयोगी है. पंजाब में वह कई सालों से मिलजुल कर चुनाव लड़ते रहे हैं. उनकी बहू मोदी सरकार में एक महत्वपूर्ण मंत्री भी हैं. वैसे पंजाब की ज़मीनी हकीकत यह है कि वहां भारतीय जनता पार्टी और अकाली दल के बीच रिश्ते तनावपूर्ण होते जा रहे हैं. लोकसभा चुनाव के दौरान अमृतसर से जेटली की हार का ठीकरा भाजपा ने अकाली दल पर फोड़ा था. भाजपा के कई लोग बताते हैं कि यह गठबंधन अब ज़्यादा दिनों तक चलने वाला नहीं है. प्रकाश सिंह बादल देश के वरिष्ठ राजनेताओं में हैं. वह एक अनुभवी राजनेता हैं. राजनीति की हर चाल वह सोच-समझ कर और भविष्य की संभावनाओं को देखकर चलते हैं. इस हिसाब से जींद की रैली में प्रकाश सिंह बादल का होना एक बड़ा राजनीतिक संकेत है. यह अकाली दल का भाजपा को संकेत है कि उसके सामने विकल्प खुले हुए हैं. दूसरा संकेत यह है कि अकाली दल को भी यह महसूस होने लगा है कि जिन वादों के साथ भाजपा लोकसभा चुनाव जीती है, उन्हें पूरा करना संभव नहीं है. इस रैली में मुलायम सिंह यादव को भी आना था, लेकिन बताया गया कि स्वास्थ्य ठीक न होने की वजह से वह नहीं आ सके.
जनता परिवार के एकजुट होने का औचित्य
कांग्रेस पार्टी का मनोबल टूट चूका है. वह हर राज्य में सिमट रही है. महाराष्ट्र में कांग्रेस की सरकार थी, लेकिन एनसीपी के साथ गठबंधन टूटने के बाद कांग्रेस का चुनाव हारना तय माना जा रहा है. लोकसभा में कांग्रेस पार्टी की संख्या क्षेत्रीय दलों से दो-चार सीट ही ज़्यादा है. कांग्रेस पार्टी और भाजपा की नीतियों में अब भेद करना मुश्किल हो गया है. दोनों की आर्थिक नीतियां एक ही हैं. ए के एंटनी ने अपने बयान में लोकसभा चुनाव में हार की वजह कांग्रेस का प्रो-मुस्लिम होना बताया. ए के एंटनी सोनिया गांधी के चहेते सिपहसालार हैं. कांग्रेस पार्टी के नेताओं के बयानों से लग रहा है कि वह एक
सॉफ्ट-हिंदुत्व पार्टी में तब्दील होने लगी है. सवाल यह है कि देश में अगर प्रजातंत्र है, तो विपक्ष का महत्व भी है. विपक्ष ऐसा हो, जो वैचारिक और नीतियों के तौर पर भिन्न हो. भारत पिछले 25 सालों से नव-उदारवाद और बाज़ारवाद की गुत्थियों में उलझ कर नुक़सान झेल रहा है. लोग परेशान हो रहे हैं. ज़िंदगी का गुजारा पहले से ज़्यादा कठिन और दु:खदायी होता जा रहा है. जब तक इन नीतियों को बदला नहीं जाएगा, तब तक लोगों की परेशानियों का स्थायी हल नहीं निकाला जा सकता. जनता परिवार में शामिल पार्टियां वैचारिक तौर पर एक जैसी हैं. इनकी विचारधारा किसानों, मज़दूरों, दलितों, पिछड़ों एवं अल्पसंख्यकों के विकास के लिए समर्पित है. ये जयप्रकाश नारायण और लोहिया के समाजवाद की अनुयायी हैं. यह कहना पड़ेगा कि भूतकाल में इन पार्टियों ने अपनी विचारधारा को छोड़कर स़िर्फ सत्ता की राजनीति की है, लेकिन आज के राजनीतिक माहौल में इन्हें अपनी मूल विचारधारा पर वापस लौटना होगा. यह इनके लिए और देश के लिए भी अनिवार्य है. वर्तमान केंद्र सरकार के सामने आज कोई विपक्ष नहीं है. विपक्ष की भूमिका में कांग्रेस आज तक खरी नहीं उतरी. अब तो उसके पास पर्याप्त संख्या भी नहीं है. इसलिए नीतीश कुमार और मुलायम सिंह यादव की यह ज़िम्मेदारी है कि वे केंद्र सरकार के सामने एक सशक्त विपक्ष का रोल अदा करें और देश के प्रजातंत्र को बचाएं.

आज के राजनीतिक हालात में एक सशक्त विपक्ष के रूप में देश के प्रजातंत्र को बचाने के लिए जनता परिवार का एकजुट होना ज़रूरी है. कांग्रेस विपक्ष का रोल नहीं निभा सकती है. विपक्ष का उसे अनुभव नहीं है और फिलहाल कांग्रेस हारे हुए व्यक्ति की मानसिकता से ग्रसित है. जनता परिवार को एकजुट होने के लिए ज़रूरी है कि उसके पास वैचारिक प्रतिबद्धता हो, दूरदर्शिता हो, आम लोगों के विकास की योजना हो और सबसे ज़रूरी यह कि आपस में एकता हो.

आज के राजनीतिक हालात में एक सशक्त विपक्ष के रूप में देश के प्रजातंत्र को बचाने के लिए जनता परिवार का एकजुट होना ज़रूरी है. कांग्रेस विपक्ष का रोल नहीं निभा सकती है. विपक्ष का उसे अनुभव नहीं है और फिलहाल कांग्रेस हारे हुए व्यक्ति की मानसिकता से ग्रसित है. जनता परिवार को एकजुट होने के लिए ज़रूरी है कि उसके पास वैचारिक प्रतिबद्धता हो, दूरदर्शिता हो, आम लोगों के विकास की योजना हो और सबसे ज़रूरी यह कि आपस में एकता हो. साथ ही अलग-अलग पार्टियों के एकजुट होने से प्राकृतिक रूप से पैदा हुए विरोधाभास से निपटने की क्षमता भी होनी चाहिए. विचारधारा के अलावा यह भी ज़रूरी है कि जनता परिवार का एक नेता हो. वह भी सर्वमान्य. सर्वमान्य का मतलब यह नहीं कि स़िर्फ नेताओं के बीच उसकी मान्यता हो, बल्कि ऐसा व्यक्ति, जिसकी ग़रीबों, मज़दूरों, पिछड़ों, दलितों एवं अल्पसंख्यकों के बीच मान्यता हो और जिस पर भ्रष्टाचार का दाग न हो. ऐसा व्यक्ति, जो कांग्रेस के भ्रष्टाचार और भाजपा की सांप्रदायिकता का मुक़ाबला कर सके. जनता परिवार का एक आर्थिक एजेंडा होना भी ज़रूरी है. उसे महंगाई ख़त्म करने के उपाय बताने होंगे. युवाओं के लिए कल्याणकारी योजनाएं भी ज़रूरी हैं. जल-जंगल-ज़मीन के मुद्दे पर भी एकजुटता ज़रूरी है. उसे विकास का एक मॉडल पेश करना होगा. युवाओं को रोज़गार कैसे मिलेगा और उनके हुनर का इस्तेमाल आने वाली सरकार कैसे करेगी, इसकी रूपरेखा भी सामने रखनी होगी. सांप्रदायिकता से कैसे लड़ना है, इसका ब्लूप्रिंट भी जनता के सामने रखना होगा. 2014 का भारत एक्शन चाहता है, समस्याओं का समाधान चाहता है. एक ऐसा नेता चाहता है, जिसे युवा स्वीकार कर सकें. जींद की रैली में लोगों का जो रिस्पांस था, वह इस बात का सबूत है कि नीतीश नेता-विपक्ष की दौड़ में सबसे आगे हैं. नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी की वजह से बिहार में गठबंधन तोड़ा, मुख्यमंत्री पद का त्याग किया. वह देश के अकेले नेता हैं, जो नरेंद्र मोदी से सार्वजनिक रूप से दो-दो हाथ करते हैं. उनका मोदी विरोध वैचारिक, अव्यक्तिगत और सम्मानित है. अगर भविष्य में जनता परिवार इकट्ठा होता है, तो सबसे अहम भूमिका नीतीश कुमार की होगी.

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