भारतीय फुटबॉल का एक नया अध्याय 12 अक्टूबर से शुरू होने जा रहा है. क्या इंडियन सुपर लीग के शुरू होते ही फुटबॉल का जादू भारतीयों के सिर चढ़कर बोलने लगेगा? क्या इससे भारतीय फुटबॉल की तस्वीर बदलेगी? क्या इस लीग के भरोसे देश में फुटबॉल का कायाकल्प हो पाएगा और फुटबॉल देश में क्रिकेट के बराबर लोकप्रिय हो जाएगा? क्या क्रिकेट के पोस्टर ब्वॉयस की जगह देसी फुटबॉलर ले लेंगे? ऐसा कुछ भी कहना अभी जल्दी जल्दबाज़ी होगी ? लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि विश्‍व स्तरीय खिलाड़ियों और कोचों के साथ खेलकर देशी खिलाड़ियों के खेल और फिटनेस स्तर में सुधार जरुर नज़र आएगा. जिसका असर निश्‍चित तौर पर भारतीय फुटबॉल टीम के खेल से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर  नज़र आएगा. 
111111111111111111111एक बार साक्षात्कार में फीफा अध्यक्ष सेप ब्लाटर ने कहा था कि इंडिया इज ए स्लीपिंग जाइंट ऑफ वर्ल्ड फुटबॉल (भारत विश्‍व फुटबॉल का सोता हुआ शेर है.) भले ही उनके इस बयान को उस समय ज्यादा तवज्जो न मिली हो लेकिन आईएसएल के लॉन्च होने के बाद उनके बयान को गंभीरता से लिया जा रहा है. इस लीग के शुरू होने के बाद दुनिया के फुटबॉल के समीकरण में किसी तरह के बदलाव की उम्मीद तो नहीं की जा रही है लेकिन हॉई प्रोफाइल नामों के इस लीग से जुड़ने की वजह से भारतीय फुटबॉल को एक नई दिशा मिलना तो तय दिख रहा है. रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने आईएमजी (इंटरनेशनल मैनेजमेंट ग्रुप) के साथ मिलकर भारतीय फुटबॉल की तस्वीर बदलने की जो कवायद शुरू की है, उनके साथ भारतीय खेलों और बॉलीवुड के जानेमाने लोगों मसलन सचिन तेंदुलकर, सौरभ गांगुली, सलमान खान, रणबीर कपूर, जॉन अब्राहम और अभिषेक बच्चन आदि के नाम जुड़े हैं.
भारतीय फुटबॉल के इस नए अवतार के पास न तो पैसे की कमी है और न ही इससे जुड़े लोगों को अपनी विश्‍वसनीयता और काबीलियत को साबित करने की. लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि क्या वाकई आईएसएल के जरिए भारत का फीफा विश्‍वकप में खेलने का सपना पूरा हो सकता है. खेल के कई बड़े जानकारों के अनुसार यह एक बेहतर कदम है लेकिन इसकी वजह से भारतीय फुटबॉल में किसी बड़े फेरबदल की आस नज़र नहीं आ रही है. आईएसएल से क्रिकेट को चुनौती मिलने में अभी बहुत वक्त लगेगा. सबसे पहली जरुरत फुटबॉल की नींव को मजबूत करने की है पहले ही कदम पर क्रिकेट को चुनौती देने के सपने देखना ठीक नहीं है, पूरे देश में क्रिकेट का एक व्यवस्थित इंफ्रास्ट्रक्चर है, मैदान हैं, कोचिंग के लिए कई क्रिकेट अकादमी हैं और सबसे प्रमुख भारतीय क्रिकेट टीम विश्‍व क्रिकेट में एक पहचान रखती है. भारतीय क्रिकेट का बेहतरीन इतिहास है और वर्तमान भी. भारतीय क्रिकेट का भविष्य सुरक्षित दिखाई देता है. लेकिन फुटबॉल इस मामले में बहुत पीछे है. भारत में खेली जाने वाली डूरंड कप फुटबॉल प्रतियोगिता दुनिया की तीसरी सबसे पुरानी फुटबॉल प्रतियोगिता है इसकी शुरूआत वर्ष 1888 में हुई थी. मोहन बगान फुटबॉल क्लब की स्थापना 1889 में कलकत्ता में हुई थी. यह एशिया के सबसे पुराने फुटबॉल क्लबों में से एक है. बावजूद इसके अब तक फुटबॉल का स्वरुप अखिल भारतीय नहीं हो सका और न ही देश के कोने-कोने में बेहतरीन खेल के मैदान बन सके. उसका दायरा पश्‍चिम बंगाल, गोवा और पूर्वोत्तर राज्यों तक ही सीमित रह गया. आज भारत में फुटबॉल के खिलाड़ियों की कमी है, फुटबॉल देश के कुछ ही राज्यों में केंद्रित है. फुटबॉल दुनिया के 207 देशों में खेला जाता है उसमें भी भारत 158वें पायदान पर है. 1956 में मेलबर्न ओलंपिक में भारतीय टीम चौथे पायदान पर रही थी, इसके बाद भारतीय टीम ने ऐसा कोई कमाल नहीं दिखाया जिससे उसे दुनिया में उसका नाम ऊंचा होता. इस वजह से भारत में युवाओं ने फुटबॉल को प्रोफेशनल तौर पर नहीं अपनाया. इस वजह से देश में विश्‍वस्तरीय खिलाड़ियों की कमी है. जो भी खिलाड़ी देश में फुटबॉल खेल रहे हैं, उनमें से गिने-चुने खिलाड़ियों को ही देशभर में लोग पहचानते हैं. अधिकांश खिलाड़ियों और उनके खेल से दर्शक अंजान हैं. आईएसएल जो विदेशी खिलाड़ी जुड़े हैं उनमें से कुछ ने तो हाल ही में संन्यास लिया है और कुछ पुराने नामी-गिरामी खिलाड़ी हैं. वर्तमान समय के दिग्गज फुटबॉल खिलाड़ी मेसी, रोनाल्डो, रूनी आदि इस लीग से जुड़ेंगे ऐसा दूर की कौड़ी ही नज़र आता है, क्योंकि आईएसएस का आयोजन उस वक्त हो रहा है दुनिया की जानी-मानी फुटबॉल लीग खेली जाती हैं. उदाहरण के लिए इंग्लिश प्रीमियर लीग का आयोजन अगस्त से मई के बीच, स्पेनिश प्रीमियर लीग(ला-लीगा) का आयोजन सितंबर से जून के बीच होता है, ब्राजील लीग अप्रैल से दिसंबर तक खेली जाती है. ऐसे में दुनिया के दिग्ग्ज खिलाड़ियों का व्यवहारिक रुप से आईएसएल में खेलना असंभव नज़र आता है. या तो फ्रेंचाइज़ी ऐसे खिलाड़ियों को लीग से जोड़ लें, जिससे लीग की लोकप्रियता बढ़े, लेकिन यह सौदा टीमों को अभी मुनाफे का नज़र नहीं आ रहा है, ऐसे में कोई भी फ्रेंचाइजी जोखिम नहीं उठाएगी. शुरूआत के दो-तीन सीजन के अनुभवों के आधार पर शायद ऐसा हो. भारतीय फुटबॉल महासंघ के पदाधिकारियों का भी विश्‍व फुटबॉल जगत में ज्यादा दखल नहीं है. ऐसे में वह आईएसएल के लिए विंडो की मांग भी नहीं कर सकते हैं. फीफा भारत में फुटबॉल के विकास को लेकर बेहद गंभीर है और उसने आईएसएल को आधिकारिक मान्यता भी दी है. लेकिन इस संबंध में भी फीफा कोई निर्णय शुरूआती निर्णयों के आधार पर ले सकता है.
आईएसएल का सीजन अक्टूबर से दिसंबर के बीच चलेगा. आठों टीमें होम और अवे के आधार पर सभी टीमों से दो-दो मैच खेलेंगे. अंत में अंकतालिका में सबसे ऊपर की चार टीमों के बीच सेमीफाइनल मुक़ाबले खेले जाएंगे. सेमीफाइनल मुक़ाबले भी होम और अवे के आधार पर खेले जाएंगे. इसके बाद टॉप दो टीमों के बीच फाइनल मुकाबला खेला जाएगा. टीम में कम से कम एक प्रतिष्ठित खिलाड़ी(मार्की प्लेयर) का होना जरूरी है, इसके अलावा सात विदेशी खिलाड़ियों से करार करना जरुरी है. जिनमें से दो खिलाड़ियों से क्लब सीधे करार कर सकता है जबकि अन्य पांच खिलाड़ियों को फॉरेन प्लेयर्स ड्राफ्ट में से चुनने की बाध्यता है. इसके अलावा टीम में 14 भारतीय खिलाड़ियों का होना जरुरी है, जिनमें से 4 स्थानीय खिलाड़ी होंगे. एक विदेशी खिलाड़ी जिसने अपने देश का प्रतिनिधित्व किसी महाद्वीपीय प्रतियोगिता जैसे कि यूरोपियन चैंपियनशिप, कोपा अमेरिका, अफ्रीकन नेशनल कप, एशिया कप या फीफा विश्‍वकप में भाग ले चुका हो वह मार्की प्लेयर कहलाएगा. क्लब द्वारा दिए गए ग्रुप के बाहर के किसी खिलाड़ी को यदि टीम मार्की प्लेयर बनाना चाहती है जिसने किसी जाने माने क्लब के लिए खेलते हुए बेहतरीन प्रदर्शन किया हो साथ ही राष्ट्रीय टीम का प्रतिनिधित्व किया हो. ऐसी स्थिति में एआईएफएफ की टेक्निकल टीम द्वारा स्वीकृति के बाद उस खिलाड़ी को मार्की प्लेयर के रुप में साइन किया जा
सकता है.
बैडमिंटन, हॉकी और कब्डडी जैसे खेलों की लीग भारत में सफल रही हैं. ऐसे में आईएसएल भी सफल होगी और इससे खिलाड़ियों को भी पहचान मिलेगी. खेल प्रेमियों को मैदान में जुटाना बड़ी समस्या नहीं है, बल्कि बेहतरीन घरेलू खिलाड़ी जुटाना सबसे बड़ी समस्या है. इस समस्या का समाधान एकाएक नहीं होगा, इसमें सालों लग जाएंगे. तब खिलाड़ियों की एक नई खेप तैयार हो पाएगी. आईपीएल के सात सीजन गुजर चुके हैं लेकिन एक-दो टीमों को छोड़कर अन्य के लिए यह मुनाफे का सौदा साबित नहीं हुआ है. क्रिकेट के देश में बहुत लोकप्रिय होने के बाद यह स्थिति है तो आईएसएल को मुनाफे का सौदा साबित होने में अभी सालों लगेंगे. टीमें इसे अभी लंबा निवेश मानें तो ही बेहतर होगा, हालिया भविष्य में उन्हें सिर्फ निवेश ही करना होगा. हालांकि हर टीम को दस साल के लिए लगभग 150 करोड़ रुपये ( 25 मिलियन अमेरिकी डालर) का निवेश करना होगा. इसके बाद खिलाड़ियों को खरीदने अथवा अनुबंधित करने में जो खर्च हो रहा है वो अलग. देश के युवा फुटबॉल प्रेमी ईपीएल जैसे दुनिया के सबसे बेहतरीन और लोकप्रिय टूर्नामेंट को देखकर बड़े हुए हैं ऐसे में उनकी रुचि एक सबस्टैंडर्ड टूर्नामेंट में कैसे होगी जिसमें मालिक तो स्टार्स हैं लेकिन खिलाड़ी स्टारडम की खोज में हैं. ऐसे में इस टूर्नामेंट को टीवी दर्शक मिलना थोड़ा मुश्किल नज़र आता है. टीवी दर्शकों को लुभाने के लिए आयोजक और प्रसारणकर्ता क्या नीतियां अपनाएंगे यह देखना बेहद रोचक होगा. आईएसएल की शुरूआत भी विरोधों के बीच हुई है आई-लीग की शुरूआत भी आईएसएल की तरह फुटबॉल को और लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से हुई थी. पहले तो आई-लीग की टीमों ने खिलाड़ियों को फ्री नहीं करने की बात कही, लेकिन बाजार के दबाव के आगे उन्हें नत-मस्तक होना पड़ा. 2017 में भारत अंडर-17 फीफा विश्वकप की मेजबानी कर रहा है ऐसे में उसके आयोजन को लेकर तो देश में माहौल बनेगा साथ ही देश में फुटबॉल को लेकर एक नया दर्शक वर्ग तैयार होगा.बाजार बहुत शक्तिशाली होता है. बाजार को भारत में फुटबॉल से लाभ कमाने के अवसर दिखाई पड़ रहे हैं तो वह भारत में फुटबॉल का बाजार खड़ा करने के लिए पिल पड़ा है. किसी भी तरह वह भारत में फुटबॉल को बढ़ता और खुद को फलता-फूलता देखना चाहते हैं ऐसे में देश में कुछ ही सालों में अंतरराष्ट्रीय स्तर का इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा हो जाएगा. पहले से ही दुनिया के कई नामी-गिरामी फुटबॉल क्लबों ने भारत में युवाओं को फुटबॉल में प्रशिक्षित करने के लिए फुटबॉल ट्रेनिंग स्कूल खोल दिए हैं. आईएसएस के आने के बाद उनकी दुकानें भी चल पड़ेंगी. अगर बाजार ने यह ठान लिया है कि उसे भारत में फुटबॉल को लोकप्रिय खेल बनाना है तो उसे कोई नहीं रोक सकता. फीफा को भी भारत के फुटबॉल की मुख्यधारा में आने से फायदा ही है. ऐसे में वह भी इस लीग को सफल बनाने में हर संभव सहयोग करेगा.

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