नई दिल्ली, (शशि शेखर) : 26 लाख करोड़ या 1.86 लाख करोड़ के कोयला घोटाले के बाद एक और कोयला घोटाला हमारे सामने है. हमारे दस्तावेज बताते हैं कि ये घोटाला ही है. भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (बीसीसीएल) चाहे, तो ये बता कर इसे गलत साबित कर सकती है कि सैकड़ों करोड़ के कोयले और स्पेयर पार्ट्स के शॉर्टेज का मतलब क्या है? चौथी दुनिया के पास, बीसीसीएल के दस्तावेजों की विजिलेंस/सरकारी कमेटी द्वारा की गई जांच की कॉपी उपलब्ध है. विजिलेंस जांच के ये दस्तावेज साफ-साफ बताते हैं कि कैसे धनबाद में फैले सैकड़ों कोलियरी में बीसीसीएल द्वारा करोड़ों रुपए के कोयले का शॉर्टेज दिखाया गया है और करोड़ों रुपए के स्पेयर पार्ट्स खरीदे गए हैं.

बीसीसीएल में कोल शॉर्टेज का मतलब क्या है

सबसे पहले हम विजिलेंस जांच से जुड़े दस्तावेजों में दर्ज कुछ सच्चाईयों को आपके सामने रखते हैं. सबसे पहले बात करते हैं, रिपोर्ट ऑफ द गवर्नमेंटल कमेटी सेट अप टू इंवेस्टीगेट इनटू स्टॉक शॉर्टेज इन बीसीसीएल की. ये कमेटी कोयला मंत्रालय द्वारा 27 जुलाई 1992 को गठित की गई थी. 6 सदस्यीय इस कमेटी ने सबसे पहले उन 21 कोलियरी की विस्तृत जांच की, जिसने 1-4-1992 तक 50,000 टन से अधिक की कोल शॉर्टेज बताई थी. कमेटी ने कुल 31 कोलियरी की जांच की. 23 अगस्त 1993 को कमेटी ने अपनी जांच पूरी की. इस कमेटी ने अपनी जांच में पाया कि 1983-84से ले कर 1991-92 तक कुल 75.04 लाख टन कोयले की शॉर्टेज दिखाई गई. इतने कोयले की बाजार कीमत उस वक्त 233.80 करोड़ रुपए थी. कमेटी ने यह भी माना कि वास्तविक शॉर्टेज इससे भी ज्यादा हो सकती है. कमेटी अपनी रिपोर्ट में कहती है कि इस शॉर्टेज के कई कारण हो सकते हैं.

मसलन, बुक स्टॉक और एक्चुअल कोल स्टॉक में अंतर, मेजरमेंट में गड़बड़ी के कारण भी हो सकता है, या फिर ऐसे व्यक्ति के कारण भी हो सकता है, जिसकी पहुंच कोलियरी तक हो और उसने गैर कानूनी तरीके से ट्रक में कोयला भर कर इलीगल डिस्पैच किया हो. कमेटी ने पाया कि कुछ कोलियरी ऐसे भी रहे, जहां साल दर साल कोल शॉर्टेज दिखाया गया. इसके अलावा, बीसीसीएल की जांच एक विजिलेंस टीम ने भी की थी. इस विजिलेंस टीम के मुखिया श्री ए टी रॉय थे. विजिलेंस की जांच बताती है कि बीसीसीएल ने स्पेयर पार्ट्स की खरीदारी में भी भारी अनियमितता बरती है. साल 1998 की विजिलेंस रिपोर्ट के मुताबिक कंपनी ने सैकड़ों करोड़ रुपए से अधिक स्पेयर पार्ट्स खरीदने पर खर्च कर दिए, जो वास्तव में खरीदे ही नहीं गए थे. विजिलेंस जांच ये भी बताती है कि बीसीसीएल धनबाद के विभिन्न कोलियरी में स्क्रैप मैनेजमेंट का भी बहुत बुरा हाल है.

 

बहरहाल, ये मान लेना चाहिए कि 80 के दशक से चली आ रही लूट (जांच रिपोर्ट के मुताबिक) अभी भी जारी है, क्योंकि अब तक इसकी न तो कोई मुक्कमल जांच करवाई गई है और न ही केन्द्र सरकार इस घोटाले की जांच को ले कर संजीदा दिख रही है. सिर्फ नौ साल के बीच (1983-84 से1991-92) अगर 233 करोड़ रुपए मूल्य के कोयले का शॉर्टेज दिखा कर घोटाला किया गया है, तो पिछले 25 सालों में यह रकम कितनी हो गई होगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है. ऐसा मानने के पीछे ठोस वजह भी है. सिंदरी के सामाजिक कार्यकर्ता रामाश्रय सिंह लगातार बीसीसीएल के घोटालों से सरकार को अवगत कराते रहे. स्थानीय स्तर पर उपरोक्त जांच रिपोर्ट आने के बाद छिटपुट कार्रवाई जरूर हुई.

कुछेक अधिकारियों की गिरफ्तारी भी हुई, सजा भी मिली, लेकिन इस घोटाले की जांच आज तक सीबीआई से नहीं करवाई जा सकी है. जबकि रामाश्रय सिंह झारखंड सरकार से ले कर यूपीए सरकार और केंद्र की मौजूदा नरेंद्र मोदी सरकार को इससे अवगत कराते आ रहे हैं. उन्होंने दर्जनों बार सरकारों तक अपनी बात पहुंचाई और बदले में सरकार सिर्फ एक पत्र भेज कर अपनी ड्यूटी खत्म समझ लेती है. सवाल सिर्फ लूट का नहीं है, सवाल लूट की छूट देने और जांच से कतराने का भी है. आइए, सिलसिलेवार ढंग से बीसीसीएल और डीवीसी के कारनामों (इसे आगे विस्तार से बताया जाएगा) की जांच की मांग करने और उस मांग का क्या हश्र हुआ, उसे समझते हैं. बीसीसीएल के घोटाले की जांच की मांग का क्या हुआ, इसे पहले देखते हैं.

बाबूलाल मरांडी को थी जानकारी, नहीं की कार्रवाई

बीसीसीएल में चल रहे कोयला घोटाले को ले कर रामाश्रय सिंह ने सबसे पहले झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी को साल 2001 में पत्र लिख कर सीबीआई जांच की अनुशंसा करने की मांग की थी. इस संबंध में उन्होंने 4 महत्वपूर्ण दस्तावेज भी मुख्यमंत्री को सौंपे थे. कोई कार्रवाई न होता देखकर, जब रामाश्रय सिंह ने कई बार रिमाइंडर भेजा, तो उनसे कहा गया कि दस्तावेज गुम हो गए हैं, इसलिए आप फिर से दस्तावेज भेजें. 28-4-2001 को झारखंड सरकार के सीआईडी विभाग के एक इंस्पेक्टर रामाश्रय सिंह के घर पहुंचे और उनसे उक्त दस्तावेजों की मांग की. 2-5-2001 को उन्होंने रांची जा कर उक्त दस्तावेज सरकार के पास फिर से जमा कराए. इन दस्तावेजों के आधार पर एडीजे (सीआईडी) ने भी कार्रवाई करने की अनुशंसा की, लेकिन राज्य सरकार की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई.

तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भेजे सबूत, नहीं हुई कार्रवाई 

इसके बाद, रामाश्रय सिंह ने बीसीसीएल के घोटालों से जुड़े दस्तावेज तत्कालीन यूपीए-2 सरकार को भी भेजे. प्रधानमंत्री कार्यालय से 29-8-2012 को सारे दस्तावेज उचित कार्रवाई के लिए कोयला मंत्रालय के सचिव के पास भेज दिए गए. प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से एक के बाद एक 4 रिमाइंडर कोल सेक्रेटरी को कार्रवाई के लिए भेजा गया, लेकिन आज तक इस पर कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है.

कार्रवाई के लिए गृह मंत्रालय ने लिखा झारखंड के गृह सचिव को पत्र

5 मई 2014 को गृह मंत्रालय ने झारखंड के गृह सचिव को एक पत्र लिखा. इस पत्र में साफ-साफ लिखा था कि याचिकाकर्ता रामाश्रय सिंह का पत्र प्राप्त हुआ, जिसमें उन्होंने डीवीसी और बीसीसीएल की सीबीआई जांच की मांग की है. यह याचिका गृह मंत्रालय के पास 11-4-2014 को पहुंची थी, जिसका सी आर नंबर 2,69,338 है. आगे इस पत्र में लिखा गया है कि जहां तक बात सीबीआई जांच के मांग की है, तो इस संबंध में ये कहना है कि जिस राज्य में कोई घटना घटी है, वहां की राज्य सरकार जब तक सीबीआई जांच की अनुशंसा नहीं करती है, तब तक केन्द्र सरकार सुओ मोटो (स्वत: संज्ञान) लेते हुए अपनी तरफ से सीबीआई जांच के लिए नहीं बोल सकती है. इस पत्र में ये भी लिखा है कि आगे अगर ये केस सीबीआई को देना है, तो इसके लिए कार्मिक मंत्रालय से संपर्क किया जा सकता है. जाहिर है, इस पत्र की भाषा से साफ था कि राज्य सरकार चाहे, तो अपनी तरफ से सीबीआई जांच की अनुशंसा कर सकती है, इसमें केन्द्र सरकार को कोई आपत्ति नहीं थी.

अब सवाल है कि ये पत्र मिलने के बाद झारखंड सरकार ने क्या किया? इस दौरान हेमंत सोरेन झारखंड के मुख्यमंत्री रहे. इसके बाद अभी रघुवर दास झारखंड के मुख्यमंत्री हैं. लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई. उल्टे, 28-4-2015 को झारखंड सरकार के अवर सचिव सह जन सूचना पदाधिकारी हरिहर मांझी की ओर से रामाश्रय सिंह को एक पत्र (पत्र संख्या-08/सू. अ. (02-30/2015 2445) भेजा गया. इस पत्र में लिखा है कि गृह मंत्रालय, भारत सरकार नई दिल्ली के पत्र संख्या-24013/1/झारखंड/2014-सीएसआर 3 दिनांक 5 मई 2014, गृह विभाग के प्राप्ति पंजी में दर्ज नहीं है. यानि, इस पत्र के मुताबिक झारखंड के गृह विभाग को गृह मंत्रालय से उक्त कोई पत्र मिला ही नहीं. अब इसका क्या अर्थ निकाला जा सकता है, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है. क्या ये नहीं मानना चाहिए कि सत्ता तक पैठ रखने वाले प्रभावशाली लोगों ने गृह मंत्रालय के उक्त पत्र को ही गायब करा दिया.

मौजूदा केंद्र सरकार को भी भेजी शिकायत, कार्रवाई का इंतजार है

28 सितंबर 2015 को रामाश्रय सिंह ने एक शपथ पत्र देते हुए डीवीसी और बीसीसीएल घोटाले की जानकारी सबूत सहित मौजूदा केन्द्र सरकार के प्रधान सचिव को भेजी. इस पत्र में सारी जानकारी और सबूत देते हुए सीबीआई जांच की मांग की गई. प्रधानमंत्री कार्यालय से 7-10-2015 को एक पत्र (पत्र संख्या-पीएमओपीजी/डी/2015/0239100) मुख्य सचिव, झारखंड सरकार को भेजा गया. इस पत्र में लिखा गया है कि रामाश्रय सिंह का 28-9-2015का पत्र मिला और इसे आपके पास उचित कार्रवाई के लिए भेजा जा रहा है. लेकिन झारखंड सरकार के मुख्य सचिव ने इस पर क्या कार्रवाई की है, आज तक किसी को नहीं मालूम.

जाहिर है, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री से ले कर विभिन्न मंत्रालयों तक को बीसीसीएल में हुए घोटाले की जानकारी है. लेकिन आज तक कहीं से भी कोई कार्रवाई होती नहीं दिख रही है. इसका सीधा सा अर्थ है कि विभिन्न सरकारें और विभिन्न स्तर के अधिकारी इस घोटाले की जांच करना ही नहीं चाहते. सार्वजनिक उपक्रम में हुए घोटाले की सीबीआई जांच करवाने से आखिर सरकारें क्यों कतराती रहीं? अगर याचिकाकर्ता रामाश्रय सिंह के दस्तावेजों और सबूतों में समाचार नहीं है, उनके आरोप अगर निराधार हैं, तो क्यों नहीं उन्हीं के खिलाफ कार्रवाई की जाती है. साफ है, सरकार में बैठे बाबुओं की मंशा इस मामले को लटकाए रखने की है, ताकि एक दिन थक हार कर इस मसले को उठाने वाला व्हिसलब्लोअर अपने घर बैठ जाए और आगे भी लूट का ये खेल जारी रहे.

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