शशि शेखर : 1953 में दामोदर वैली कॉरपोरेशन की नींव रखी गई थी. जनहित के नाम पर झारखण्ड के धनबाद, जामतारा और पश्चिम बंगाल के पुरुलिया और वर्धमान जिलों के लगभग 41 हज़ार एकड़ ज़मीन के साथ ही चार हजार से ज्यादा घरों का अधिग्रहण किया गया. इस अधिग्रहण से करीब 70 हज़ार लोग प्रभावित हुए. प्रभावित परिवारों की तीसरी पीढ़ी आज भी नौकरी और मुआवजा पाने के लिए संघर्षरत है. हाल ही में प्रभावित घटवार आदिवासियों ने नौकरी और मुआवजे के लिए नंगे बदन हो कर प्रदर्शन भी किया था. अधिग्रहण के प्रावधानों के मुताबिक हरेक परिवार के एक सदस्य को डीवीसी में नौकरी दी जानी थी. लेकिन हजारों ऐसे परिवार हैं, जिन्हें आज तक नौकरी नहीं मिली.

प्रभावित परिवारों में से अधिकतर घटवार आदिवासी समुदाय से आते हैं. बहरहाल, इस पूरी कहानी का एक और पहलू भी है. सामाजिक कार्यकर्ता रामाश्रय सिंह के मुताबिक डीवीसी ने विस्थापित परिवारों को नौकरी देने के नाम पर एक बहुत बड़ा फर्जीवाड़ा किया है. रामाश्रय सिंह बताते हैं कि डीवीसी ने तकरीबन 9 हजार लोगों को फर्जी विस्थापित बता कर नौकरी दे दी है. दूसरी तरफ, जो वास्तव में इस परियोजना की वजह से विस्थापित हुए, उन्हें आज तक नौकरी नहीं मिली है. सबूत के तौर पर वे बताते हैं कि शिमपाथ गांव, जिला धनबाद, जहां के 1670 घरों का अधिग्रहण हुआ था, वहां के एक भी प्रभावित व्यक्ति को नौकरी नहीं मिली है. इसी तरह, पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले के रघुनाथपुर थाना के तेलकुंपी गांव के 1700 घरों का अधिग्रहण हुआ था, लेकिन वहां के भी एक भी परिवार को नौकरी आज तक नहीं मिली है. रामाश्रय सिंह बताते हैं कि इस मामले की सीबीआई जांच के लिए वे पिछले कई सालों से कोशिश कर रहे हैं और राज्य सरकार से ले कर केन्द्र सरकार तक को लगातार साक्ष्य भेजते रहे हैं, लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है.

कार्मिक मंत्रालय ने कहा जांच कीजिए, जांच नहीं हुई

22 जनवरी 2015 को भारत सरकार के कार्मिक मंत्रालय ने झारखंड सरकार को पत्र (पत्रांक 261/1/2015/एवीडी 2, दिनांक 22-1-2015) लिख कर 9हजार गैर-विस्थापितों को विस्थापित बता कर नौकरी देने के संबंध में जांच की बात कही. इसका जिक्र झारखंड सरकार के राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग ने रामाश्रय सिंह और उपायुक्त बोकारो/धनबाद को भेजे अपने पत्र में किया है.

राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के उप सचिव पीतांबर सिंह ने उपायुक्त बोकारो/धनबाद को भेजे अपने पत्र (दिनांक 6-5-15) में लिखा है कि ‘श्री रामाश्रय सिंह, सलाहकार, घटवार आदिवासी महासभा, सिंदरी, धनबाद से प्राप्त पत्र, जो मैथन और पंचेत डीवीसी में 9000 गैर विस्थापितों को विस्थापित बता कर नौकरी के संबंध में है, की मूल प्रति संलग्न करते हुए कहना है कि इस पर पूर्णरूपेण जांचोपरांत नियमानुसार तुरंत कार्रवाई करने की कृपा की जाए एवं कृत कार्रवाई से विभाग कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय, भारत सरकार एवं आवेदक को अवगत कराने की कृपा की जाए.’ जाहिर है, आज तक इस पत्र पर कोई कार्रवाई नहीं हुई.

डीवीसी क्यों नहीं देता नियोजित विस्थापितों की सूची

रामाश्रय सिंह बताते हैं कि 9000 फर्जी विस्थापितों को नौकरी देने का उनका आरोप यदि गलत है, तो डीवीसी क्यों नहीं उन्हें नियोजित विस्थापितों की सूची उपलब्ध कराती है. वे इस तरह की सूची आरटीआई के तहत भी मांग चुके हैं, लेकिन ये सूची उन्हें आज तक नहीं मिली है. इस संबंध में अंचल कार्यालय, जामताड़ा ने भी 11-4-15 को डीवीसी, मैथन के मुख्य अभियंता को पत्र लिख कर तीन बिन्दुओं पर पूर्ण सूचना उपलब्ध कराने को कहा था.

इसमें पहला बिन्दु ये था कि मैथन और पंचेत डीवीसी ने जितने विस्थापितों को नियोजन दिया है, पूर्ण विवरण के साथ उन सब की सूची उपलब्ध कराएं. दूसरा ये कि मैथन और पंचेत डीवीसी ने जिन विस्थापितों का जमीन अधिग्रहित किया है, उनका पूर्ण विवरण के साथ उनकी भी सूची उपलब्ध कराई जाए. तीसरा बिन्दु ये है कि मैथन और पंचेत डीवीसी ने 1977 और 1978 में विस्थापितों को नियोजन देने के लिए जो पैनल बनाया था, उसका पूर्ण विवरण उपलब्ध कराया जाए. लेकिन डीवीसी ने आज तक ऐसी कोई सूची उपलब्ध नहीं कराई है, क्योंकि अगर ये सूची सार्वजनिक होती है, तो फिर अपने-आप सारा खेल सामने आ जाएगा.

बिना मुआवजा, जमीन कब्जा किए जाने का सबूत

अनुमंडल पदाधिकारी धनबाद ने 12 फरवरी 2015 को एक पत्र धनबाद के उपायुक्त को लिखा है. ये पत्र ही इस बात को साबित करने के लिए काफी है कि नौकरी तो नौकरी विस्थापितों को आज तक मुआवजा भी ठीक से नहीं मिल सका है. इस पत्र में अनुमंडल पदाधिकारी ने लिखा है कि रामाश्रय सिंह द्वारा अधोहस्ताक्षरी संपरक कर जिला भू-अर्जन पदाधिकारी द्वारा डीवीसी प्रबंधन को लिखित पत्र की प्रति उपलब्ध कराते हुए बताया गया है कि‘डीवीसी प्रबंधन द्वारा कुल 29 पंचाटियों को 39,949 रुपए का भुगतान अब तक नहीं किया गया है, जबकि डीजीएम, डीवीसी श्री बी नंदी द्वारा दिनांक14-11-2014 को पत्र से सूचित किया गया है कि उपर्युक्त राशि का भुगतान भू-अर्जन पदाधिकारी को कर दिया गया है.

स्पष्ट है कि डीवीसी प्रबंधन द्वारा गलतबयानी की जा रही है एवं बिना राशि भुगतान के 29 पंचाटियों की जमीन पर अनाधिकृत रूप से कब्जा रखा गया है. अत: श्री सिंह से प्राप्त पत्र की प्रति संलग्न करते हुए अनुरोध है कि डीवीसी प्रबंधन पर नियमानुसार कार्रवाई हेतु जिला भू-अर्जन पदाधिकारी को आदेशित करने की कृपा की जाए.’ सवाल है कि क्या अनुमंडल पदाधिकारी का ये आदेश गलत है, रामाश्रय सिंह का आरोप गलत है या फिर डीवीसी का दावा? जाहिर है, इस सवाल का जवाब तक तक नहीं मिल सकता, जब तक इस पूरे मामले की समुचित जांच न करवाई जाए.

जांच से कौन और क्यों डर रहा है

दरअसल, बीसीसीएल की तरह ही डीवीसी (9000 फर्जी विस्थापितों को नौकरी देने) मामले में भी रामाश्रय सिंह ने राज्य सरकार से ले कर केन्द्र सरकार तक शिकायतें की. 5 मई 2014 को गृह मंत्रालय ने झारखंड के गृह सचिव को भेजे अपने पत्र में भी इस बात का जिक्र किया था कि याचिकाकर्ता रामाश्रय सिंह का पत्र प्राप्त हुआ, जिसमें उन्होंने डीवीसी मामले की सीबीआई जांच की मांग की है और अगर राज्य सरकार चाहे, तो अनुशंसा कर सकती है. ये अलग बात है कि इस पत्र पर राज्य सरकार ने कोई कर्रवाई नहीं की और उल्टे राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि उसे गृह मंत्रालय से कोई पत्र ही नहीं मिला है. 4-8-14 को झारखंड विधानसभा में विधायक मथुरा प्रसाद महतो ने भी इस बारे में सवाल उठाया था, जिसके जवाब में तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने यथाशीघ्र कार्रवाई के लिए भारत सरकार से अनुशंसा करने का आश्वासन दिया था. मौजूदा मुख्यमंत्री रघुवर दास ने भी 30 दिनों के भीतर कार्रवाई करने के लिए कहा था. प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से भी दर्जनों बार झारखंड के मुख्य सचिव को पत्र भेज कर रामाश्रय सिंह की शिकायत पर उचित कार्रवाई करने के लिए कहा गया. लेकिन इसे भारतीय लोकतंत्र की विडंबना ही कही जा सकती है कि प्रधानमंत्री कार्यालय का आदेश राज्य का मुख्य सचिव नहीं मानता और मुख्यमंत्री का आदेश राज्य के अधिकारियों के लिए कोई मायने नहीं रखता.

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