बूचड़खानों

नई दिल्ली : योगी आदित्यनाथ के यूपी का सीएम बनते ही कई बूचड़खानों पर ताले लगने शुरू हो गए और अवैध मीट कारोबारियों में दहशत फैल गया. लोगों में यह संदेश गया कि योगी ने सरकार में आते ही अपने कानून का राज शुरू कर दिया. हालांकि अवैध बूचड़खानों को बंद करने और मीट कारोबारियों की मनमानी पर अंकुश लगाने के लिए योगी सरकार ने जिन कानूनों का सहारा लिया है, वे वर्षों पुराने हैं. निवर्तमान सरकार और प्रशासन की उदासीनता के कारण उन कानूनों पर अमल नहीं हो रहा था. लेकिन सीएम बनने के बाद योगी ने उन्हें कठोरता से लागू कराना शुरू कर दिया है.

उत्तर प्रदेश नगर निगम अधिनियम, 1959 के मुताबिक, स्थानीय निकायों को यह सुनिश्‍चित करना होगा कि शहर की सीमाओं के भीतर लोगों को दिए जा रहे मांस ताजे व स्वच्छ हैं. इस अधिनियम की धारा 421 से 430 में बूचड़खानो, जानवरों की बिक्री और निजी बूचड़खानों के नियंत्रण के कामकाज के लिए कई नियम निर्धारित किए गए हैं और इनपर अमल सरकार की जिम्मेदारी है.

हालांकि अवैध बूचड़खानों का मामला केवल यूपी की समस्या नहीं है. साल 2012 में अवैध बूचड़खानों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी एक आदेश जारी किया था. लक्ष्मी नारायण मोदी बनाम भारत सरकार के इस केस में कोर्ट ने सभी राज्य सरकारें से शहरों में बूचड़खानों के लिए नियत जगह तय करने की बात कही थी. साथ ही उनका आधुनिकिकरण करने व बूचड़खानों से निकले सॉलिड वेस्ट और प्रदूषण से बचने के लिए ठोस कदम उठाने का आदेश दिया था.

लेकिन सियासी व कानूनी उदासीनता के कारण अब तक न तो कानून लागू किए जा सके हैं और न ही न्यायालय का आदेश पर अमल हुआ है. यूपी में ज्यादातर बूचड़खाने व मांस की दुकानें बिना लाइसेंस ही चल रही थी. खबरों के मुताबिक, वर्तमान में लखनऊ में चल रही 1000 से ज्यादा अवैध मीट दुकानों में से लगभग 200 दुकानों को इस हफ्ते बंद करा दिया गया है.

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