तो क्या 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले जम्मू-कश्मीर को धार्मिक और क्षेत्रीय आधार पर तीन भागों में बांटने की तैयारी कर ली गई है? सूत्रों की माने तो एनडीए सरकार चुनाव से पहले ये कदम उठा सकती है. इसका मतलब है कि मुस्लिम बहुल घाटी, हिन्दू बहुल जम्मू और बौद्ध बहुल लद्दाख को तीन हिस्सों में बांट देगी. ये भी हो सकता है कि लोकसभा के जरिए जम्मू और लद्दाख को यूनियन टेरिटरी का दर्जा दे दिया जाए और फिर चुनाव में भाजपा इसका फायदा उठाने की कोशिश करे. लेकिन सबसे महत्वपूर्ण सवाल तो ये है कि क्या जम्मू-कश्मीर को धार्मिक और क्षेत्रीय आधार पर विभाजित करना इतना आसान होगा?

दरअसल, इस तरह का सुझाव बहुत पुराना है. साल 2000 में भी तत्कालीन गृहमंत्री एलके आडवाणी ने लेह के दौरे के दौरान लद्दाख और जम्मू को सीधे केन्द्र के नियंत्रण में देने की बात की थी. जब, प्रधानमंत्री वाजपेयी सिन्धु दर्शन मेले में शिरकत के लिए लद्दाख गए थे, तब लद्दाख बौद्धिष्ट एसोसिएशन ने प्रधानमंत्री से इस क्षेत्र को यूनियन टेरेटरी का दर्जा देने की मांग की थी. अडवाणी ने गृहमंत्री के बतौर उस सुझाव का समर्थन किया था. आम धारणा यही है कि राज्य को धार्मिक आधार पर तीन हिस्सों में बांटने की योजना आरएसएस की है. 18 मार्च 2000 को आरएसएस की जनरल बॉडी मीटिंग में एक प्रस्ताव पारित किया गया था, जिसमें आरएसएस ने कहा था कि अगर जम्मू और लद्दाख को घाटी से अलग किया गया, तो इन दोनों क्षेत्रों में तेजी से विकास होगा और फिर इन्हें धारा 370 की आवश्यकता भी नहीं रहेगी.

पिछले दिनों लद्दाख में ज्वाइंट एक्शन कमिटी नामक संगठन ने एक प्रस्ताव पास किया, जिसमें लद्दाख क्षेत्र को यूनियन टेरेटरी का दर्जा देने की मांग करते हुए कहा गया कि लद्दाख का घाटी के साथ सांस्कृतिक, भाषायी सम्बन्ध नहीं हैं. इसलिए इसे घाटी से अलग किया जाना चाहिए. इतना ही नहीं, 23 सितंबर को नई दिल्ली में 100 प्रमुख हस्तियों ने एक मीटिंग में हिन्दू सिविलाइजेशन को संरक्षण देने के लिए मोदी सरकार के सामने जो प्वाइंट रखने का फैसला किया है, उनमें जम्मू-कश्मीर राज्य को तीन भागों में बांटने का सुझाव भी शामिल है. इन प्रमुख हस्तियों में बुद्धिजीवी, प्रत्रकार, लेखक और धार्मिक गुरु इत्यादि शामिल हैं, जो देशभर के विभिन्न भागों से सम्बन्ध रखते हैं.

दिलचस्प बात यह है कि जम्मू और लद्दाख को घाटी से अलग करने के प्रस्ताव को घाटी में भी कई हलकों से समर्थन मिल रहा है. वरिष्ठ पत्रकार गुलाम नबी ख्याल ने राज्य के विभाजन को कश्मीर मसले के हल का बेहतर तरीका करार दिया है. उन्होंने इस बारे में कई अखबारों और पत्रिकाओं में भी लिखा है. ख्याल की दलील है कि ये राज्य के तीनों क्षेत्र कश्मीर, लद्दाख और जम्मू की एकता एक कृत्रिम बंधन है. इसी के कारण डोगरा शासकों ने देश के लालच में अपनी तानाशाही कायम की. जम्मू में भी भीम सिंह एंड कंपनी के अलावा जम्मू स्टेट फॉर्म सक्रिय है, ताकि डोगरा लैंड को एक अलग राज्य का दर्जा दिया जाए.

विश्लेषकों का एक तबका ऐसा भी है, जो जम्मू और लद्दाख क्षेत्र में मुसलमानों की अच्छी खासी संख्या की मौजूदगी की वजह से इन क्षेत्रों को घाटी से अलग करना असंभव समझते हैं. उल्लेखनीय है कि 10 जिलों वाले जम्मू सूबे के तीन बड़े जिलों डोडा, पूंछ और राजौरी में मुसलमानों का बहुमत है. इन जिलों में क्रमशः 64 फीसदी, 88.87 और 60.97 फीसद मुस्लिम आबादी है. इसके अलावा ये जिले लाइन ऑफ कंट्रोल के साथ मिलते हैं. इसी तरह लद्दाख के सन 1979 में दो जिले करगिल और लेह बनाए गए. इनमें भी बड़ी मुस्लिम आबादी मौजूद है. ऐसे हालात में लद्दाख और करगिल क्षेत्रों को घाटी से अलग करना कोई आसान बात नहीं है.

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