जयप्रकाश आंदोलन की उपज और महान दिवंगत समाजवादी नेता स्व. चंद्रशेखर के शिष्यों में शुमार विजय कृष्ण की गिनती बिहार के कद्दावर राजनेता में होती थी. पटना से जब वह बाढ़ के लिए निकलते थे, तो उनके समर्थक बिना बुलाए गाड़ियों के काफिले के साथ उनके पीछे-पीछे चलते थे, लेकिन आज उनके साथ न वो काफिला है और न वो गाड़ी. स्थिति बिल्कुल उलट है. राजनीति के बियावान में प्रवेश कर चुके विजय कृष्ण के भविष्य पर सबकी निगाहें टिकी हैं. लोगों की मानें तो राजनीति का यह चतुर खिलाड़ी कोई गुल अवश्य खिलाएगा, क्योंकि धुन के पक्के, स्वभाव से स्वाभिमानी, मन से संतोषी विजय कृष्ण उन लोगों में से नहीं जो आसानी से हार मान लें और चुपचाप राजनीतिक आत्महत्या कर लें. जेपी आंदोलन की उपज और बिहारी राजनीति में तुर्क का दमखम रखने वाले पूर्व सांसद विजय कृष्ण की खामोशी सूबे की सियासत में नए हलचल के संकेत दे रही है. उनकी खामोशी आने वाले विधानसभा चुनाव में कोई नया समीकरण तैयार कर सकता है. अपने क़रीबी सत्येंद्र सिंह की हत्या के आरोप में जेल से बाहर निकले पूर्व सांसद विजय कृष्ण इन दिनों अज्ञातवास जीवन जी रहे हैं. जेल से निकलने के बाद न तो वह किसी मंच पर दिखे और न ही अब तक उनका कोई बयान सामने आ सका है, लेकिन सूत्रों की मानें तो राजनीति के दिग्गज माने जाने वाले विजय कृष्ण विधानसभा चुनाव की तैयारी में अपनी खिचड़ी तैयार करने में जुट गए हैं. उनके गृह क्षेत्र बाढ़ से उनके चुनाव लड़ने के कयास लगाए जा रहे हैं. पुराने घर यानी राजद में वापसी की संभावना भी है.

अगवानपुर गांव में ललन सिंह के पक्ष में प्रचार करने पहुंचे विजय कृष्ण ने घोषणा की थी कि इस इलाक़े में लालू प्रसाद को कार्यकर्ताओं के दर्शन नहीं होंगे. इधर जदयू में प्रवेश करते हुए विजय कृष्ण पर बड़ी ज़िम्मेदारी डालने की तैयारी चल रही थी. बाढ़ के सकसोहरा में खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि लोग यही चाहते थे कि विजय कृष्ण और नीतीश आपस में मिल जाएं. लोगों की इच्छा अब पूरी हो गई है तथा विजय कृष्ण को शीघ्र ही बड़ी जिम्मेदारी मिलेगी.

वर्तमान में नीतीश सरकार से जिस तरह राजपूतों की नाराजगी बढ़ रही है, ऐसे में हो सकता है कि राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद विजय कृष्ण की घर वापसी को हरी झंडी देकर यह संदेश देने का प्रयास करेंगे कि देखो किस तरह सरकार ने विजय कृष्ण का शोषण किया. राजद की राजनीतिक गलियारे में चहलकदमी करने वाले लोग बताते हैं कि लालू प्रसाद को विजय कृष्ण से सहानुभूति है. संभावना बन रही है कि विजय कृष्ण लालटेन जलाने के लिए बाढ़ में क़दमताल कर सकते हैं. क्योंकि नीतीश कुमार के क़रीबी बाढ़ विधायक ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू को पराजित करने के लिए राजद को सशक्त उम्मीदवार चाहिए. ज़ाहिर है विजय कृष्ण के पास बाढ़ के बहुसंख्यक मतदाताओं का समर्थन भी है और सहानुभूति भी. उनसे जब संपर्क किया गया तो उन्होंने अत्यंत विनम्रतापूर्वक राजनीतिक टिप्पणी करने से इंकार कर दिया. हालांकि विजय कृष्ण यह कहना नहीं भूले कि इंतजार कीजिए परिणाम ज़रूर सामने आएगा. अभी वह खामोश रहकर ही अपनी रणनीति तैयार कर रहे हैं. कहा तो यहां तक जा रहा है बटाईदारी बिल से उपजे विवाद के बाद जदयू में हुए दो फाड़ के बाद विजय कृष्ण का किसी भी पक्ष में खुलकर सामने नहीं आना इस बात की पुष्टि करता है कि पूर्व सांसद की तैयारी किसी नए घर की तलाश में है. पिछले लोकसभा चुनाव के दरम्यान विजय कृष्ण ने राजद में हो रही उपेक्षा को कारण बताते हुए कभी अपने प्रतिद्वंद्वी रहे नीतीश कुमार के घर आसरा ले लिया. लोकसभा चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें तुरुप के पत्ते की तरह इस्तेमाल किया. राजपूत बहुल इलाक़ों में विजय कृष्ण ने ज़ोरदार चुनाव अभियान चलाया.
अगवानपुर गांव में ललन सिंह के पक्ष में प्रचार करने पहुंचे विजय कृष्ण ने घोषणा की थी कि इस इलाक़े में लालू प्रसाद को कार्यकर्ताओं के दर्शन नहीं होंगे. इधर जदयू में प्रवेश करते हुए विजय कृष्ण पर बड़ी ज़िम्मेदारी डालने की तैयारी चल रही थी. बाढ़ के सकसोहरा में खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि लोग यही चाहते थे कि विजय कृष्ण और नीतीश आपस में मिल जाएं. लोगों की इच्छा अब पूरी हो गई है तथा विजय कृष्ण को शीघ्र ही बड़ी जिम्मेदारी मिलेगी. राजनीतिक गलियारे में इस बड़ी जिम्मेदारी को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष के मनोनयन की ओर इशारा माना जा रहा था. कहा तो यहां तक गया कि सत्येंद्र की हत्या में अगर विजय कृष्ण का नाम नहीं आता तो उन्हें जदयू का प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने की पूरी तैयारी हो चुकी थी, लेकिन नई पार्टी की नई छौंक विजय कृष्ण को रास नहीं आई. अपने रिश्तेदार सत्येंद्र सिंह हत्याकांड में वह जेल चले गए. शासन सत्ता से उन्हें उम्मीद थी कि उन्हें बचाने की कोशिश होगी, लेकिन उल्टे शासन ने विजय कृष्ण को जेल भेजने के लिए पूरी ताकत लगा दी. विजय के करीबियों की मानें तो उन्हें साजिशन इस हत्याकांड से जोड़ा गया. करीबी सूत्रों की मानें तो विजय कृष्ण राजधानी में रहकर ही विधानसभा चुनाव की रणनीतियों को अंजाम देने की तैयारी कर रहे हैं. बटाईदारी बिल को लेकर सूबे का सवर्ण तबका काफी हद तक लामबंद हो चुका है. बांका के सांसद दिग्विजय सिंह और महाराजगंज के पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह ने जिस तरह से नीतीश कुमार के विरुद्घ अभियान चलाया है. उस पर भी विजय कृष्ण की नजर हैं. उन्हें उम्मीद है कि राजपूत नेता की कमी को पूरा करने के लिए नीतीश इनको अभयदान देंगे. दूसरी तरफ सियासत की गलियों से यह खबर भी छनकर आ रही है कि विजय कृष्ण आने वाले चुनाव में जदयू और बागी खेमे के समानांतर ताकत तैयार कर कड़ी चुनौती दे सकते हैं. वह फिलहाल खामोश हैं, लेकिन सियासत के इस महारथी की खामोशी जदयू के साथ ही विपक्षी राजद को भी बेचैनी में डाल रखी है कि आखिर ऊंट किस करवट बैठेगा. संभावना है कि सूबे में आचार संहिता लगने की तारीखों के साथ ही विजय कृष्ण अपनी रणनीतियों का खुलासा करेंगे. बाढ़ के लोगों को इंतजार है उनके उद्घोष का क्योंकि सामने महाभारत की बिसात बिछी हुई है और लड़ाके भी दो-दो हाथ करने को बेताब हैं, लेकिन ऐसा करने के लिए ज़रूरी है कि सेनापति युद्ध का बिगुल फूंके.

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