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ऐशो-आराम और मौज-मस्ती में सरकारी विमानों के इस्तेमाल का मामला समाजवादी सरकार के सैफई महोत्सव के समय भी उठा था. मुख्यमंत्री अखिलेश इस पर खूब नाराज भी हुए थे लेकिन सैफई महोत्सव समाप्त होने के बाद ही उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सफाई दी थी. जब तक महोत्सव चला तब तक अखिलेश सरकार ठुमके देखने में मस्त रही और जमीन के लोग अपने नेताओं, अफसरों, उनके परिवार के सदस्यों और फिल्मी हस्तियों को लाने-ले जाने में मिनट-मिनट पर आसमान में घर्र-घों कर रहे सरकारी विमान और हेलीकॉप्टरों को देख-देख कर निहाल होते रहे.

तब उड़ान-ईंधन पर हुए खर्च को लेकर भी सवाल उठे थे. सरकार के जवाब से यह भी पता चला कि उत्तर प्रदेश सरकार के पास काफी ‘फ्यूल इफिशिएंट’ विमान और हेलीकॉप्टर हैं. तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने तब यह ‘सच-सच’ बताया था कि महोत्सव पर पांच-छह करोड़ रुपए से अधिक खर्च नहीं हुए. हालांकि यह आंकड़ा हर बयान के साथ इधर-उधर खिसकता रहा. जब पूरे महोत्सव पर कुल खर्च पांच-छह करोड़ ही आया तो उसी झूठ-गणित से विमानों और हेलीकॉप्टरों की चकरघिन्नियों पर आए खर्च का भी असली हिसाब लगाया जा सकता है. सैफई महोत्सव के दरम्यान सरकारी विमान और हेलीकॉप्टर की उड़ानों पर कितना खर्च आया, सरकार ने नहीं बताया. एक जनवरी 2013 से 31 दिसम्बर 2013 के बीच सरकारी विमानों के ईंधन पर मात्र चार करोड़, 21 लाख, 26 हजार, 448 रुपए का खर्च आने की बात बता कर सरकार कन्नी काट गई. यह भी वैसा ही सच है जिसे कुछ अरसे बाद सरकार खुद ही झूठ बता देती है और एक नया सच रच लेती है.

सच आखिर कैसे बाहर निकले? सीबीआई से जांच हो जाती तो सच बाहर आ सकता था. सच जानने के जो संवैधानिक-लोकतांत्रिक तौर-तरीके थे, वे काम नहीं आ रहे. सूचना के अधिकार जैसे हथियार को मायावती और अखिलेश यादव की पूर्ववर्ती सरकारों ने पंगु बना कर रख दिया. योगी के आने के बाद भी कोई विशेष बदलाव नहीं है. विमानों और हेलीकॉप्टरों के आने-जाने का ब्यौरा रखने वाले लॉग बुक और जरनी लॉग बुक को सरकार ने पाइलटों और विमान इंजीनियरों की निजी सम्पत्ति घोषित कर रखा है.

सरकार कहती है कि वायुयान और हेलीकॉप्टरों की कहां-कहां यात्रा हुई और कहां-कहां रि-फ्यूलिंग हुई उसका विवरण परिचालन इकाई द्वारा संकलित नहीं किया जाता. दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह है कि बेवकूफाना तरीके से उड़ाने के कारण जो बेशकीमती विमान दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं, उनका ब्यौरा भी आम नागरिक को नहीं मिल पाता. बस इतनी ही जानकारी मिल पाती है कि तीन हवाई जहाज और तीन हेलीकॉप्टर उड़ान के लायक हैं और तीन विमान और एक हेलीकॉप्टर उड़ान के लायक नहीं रहे. उड़ान के लायक क्यों नहीं रहे? इसका कोई जवाब नहीं मिलता.

अभी बाढ़ है तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी सरकारी हेलीकॉप्टर से खूब उड़ान भर रहे हैं और बाढ़ प्रभावित इलाकों का हवाई निरीक्षण कर रहे हैं. लेकिन निवर्तमान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को उड़ान का खास शौक था. मुख्यमंत्री सचिवालय की तत्कालीन प्रमुख सचिव अनीता सिंह नागरिक उड्‌डयन महकमे की भी प्रभारी हुआ करती थीं.

वे मुख्यमंत्री अखिलेश से लेकर मुलायम सिंह तक की वैमानिकी-सुविधा का ध्यान रखती थीं. इसी खास सुविधा के इरादे से 90 करोड़ की लागत से बेल-412 हेलीकॉप्टर खरीदा गया था. इस हेलीकॉप्टर की खरीद के लिए अखिलेश ने अनीता सिंह और उड्‌डयन सचिव एसके रघुवंशी को एयर-शो देखने के लिए खास तौर पर सिंगापुर भेजा था.

अखिलेश के पहले मुख्यमंत्री मायावती ने भी वर्ष 2010 में 40 करोड़ का ऑगस्टा हेलीकॉप्टर खरीदा था. लेकिन बेवकूफ पायलटों और खराब रख-रखाव के कारण वह एक ही साल में खराब हो गया. अखिलेश सरकार ने उसकी मरम्मत पर पांच करोड़ रुपए फूंक डाले. हेलीकॉप्टर की मरम्मत के नाम पर ऑगस्टा वेस्टलैंड कंपनी ने प्रदेश सरकार से मनचाही कीमत वसूली थी. मायावती-काल में यूपी सरकार के लिए ऑगस्टा हेलीकॉप्टर खरीदने में कोई कमीशन नहीं लिया गया होगा, इसकी कोई गारंटी नहीं दे सकता. सनद रहे, यह वही ऑगस्टा वेस्टलैंड कंपनी है जिसने 53 करोड़ डॉलर का ठेका पाने के लिए नेताओं-नौकरशाहों को करीब साढ़े तीन सौ करोड़ रुपए की रिश्वत दी थी.aa

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