Yogi Adityanath
Yogi Adityanath

मायावती के मसले पर उत्तर प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार दोनों अलग-अलग स्टैंड पर खड़ी हो गई है. मायावती को कानून के शिकंजे में कसने की योगी कोशिश कर रहे हैं तो जेटली उसमें अड़ंगा डाल रहे हैं. यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपनी सरकार के छह महीने पूरे होने पर जारी श्वेत-पत्र में भी प्रदेश की करीब दो दर्जन चीनी मिलों को बेचे जाने में हुए अरबों रुपए के घोटाले का उल्लेख किया है. इसके पहले अप्रैल महीने में योगी ने चीनी मिलों के बिक्री-घोटाले की जांच कराए जाने की घोषणा की थी. लेकिन अरुण जेटली के कॉरपोरेट अफेयर मंत्रालय ने इस मामले में कानूनी रायता बिखेर दिया. आप यह जानते ही हैं कि जेटली वित्त के साथ-साथ कॉरपोरेट अफेयर विभाग के भी मंत्री हैं. नॉर्थ-ब्लॉक गलियारे के एक आला अधिकारी कहते हैं कि यूपी की चीनी-मिलों को कौड़ियों के मोल बेच डालने के मामले में सुप्रीम कोर्ट से आखिरी फैसला आना बाकी है, लेकिन कॉरपोरेट अफेयर मंत्रालय के राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा आयोग (कम्पीटीशन कमीशन ऑफ इंडिया) ने जो कानूनी रोड़े खड़े किए हैं, उससे घोटाला साबित होने में मुश्किल होगी. चीनी मिल बिक्री घोटाले से मायावती को बेदाग बाहर निकालने की समानान्तर किलेबंदी कर दी गई है. योगी जी को ध्यान रखना होगा कि यह किलेबंदी उन्हीं की पार्टी की केंद्र में बैठी सरकार ने की है.

पिटारा खुलेगा, तो सभी होंगे बेनकाब

चीनी मिलों के विक्रय-प्रकरण का पिटारा खुलेगा तो भाजपा की भी संलिप्तता उजागर होगी. सपा की भूमिका से भी पर्दा हटेगा. भाजपा इस वजह से भी इस मामले को ढंके रहना चाहती है और योगी इस वजह से भी इसे उजागर करने में रुचि ले रहे हैं. चीनी मिलों को बेचने की शुरुआत भाजपा के ही शासनकाल में हुई थी. भाजपा सरकार ने ही चीनी-मिलों पर गन्ना किसानों और किसान समितियों की पकड़ कमजोर करने और बिखेरने का काम किया था. चीनी मिलें बेचने की शुरुआत तत्कालीन भाजपा सरकार ने की थी, सपा ने अपने कार्यकाल में इसे आगे बढ़ाया और बसपा ने इसे पूरी तरह अंजाम पर ला दिया. इसकी हम विस्तार से आगे चर्चा करेंगे. अभी यह बताते चलें कि मायावती के कार्यकाल में चीनी मिलों को औने-पौने भाव में कुछ खास पूंजी घरानों को बेचे जाने के मामले की जांच की घोषणा योगी सरकार ने सत्तारूढ़ होने के महीनेभर बाद ही अप्रैल महीने में कर दी थी. इस घोषणा से केंद्र सरकार फौरन सक्रिय हो गई और कम्पीटीशन कमीशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) ने अगले ही महीने यानि, मई महीने में ही अपना फैसला सुनाकर योगी सरकार को झटके में ला दिया. कमीशन ने साफ-साफ कहा कि मायावती सरकार ने उत्तर प्रदेश की सहकारी चीनी मिलों की बिक्री में कोई गड़बड़ी नहीं की. कम्पीटीशन कमीशन ऑफ इंडिया, यानि राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा आयोग भारत की संवैधानिक अधिकार प्राप्त विनियामक संस्था है. आयोग ने चार मई 2017 को दिए अपने फैसले में कहा है कि ऐसा कोई भी सबूत नहीं मिला है जिसमें कहीं कोई गड़बड़ी पाई गई हो. चीनी मिलों की बिक्री में अपनाई गई प्रक्रिया आयोग की नजर में पूरी तरह पारदर्शी है. आयोग ने यह भी कहा है कि नीलामी से किसी भी पार्टी को रोका नहीं गया और न किसी को धमकी ही दी गई. इस फैसले पर राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा आयोग के चेयरमैन देवेंद्र कुमार सीकरी और सदस्य न्यायमूर्ति जीपी मित्तल, यूसी नाहटा और ऑगस्टीन पीटर के हस्ताक्षर हैं.

चीनी मिल घोटाले पर भिड़ी दो केंद्रीय संस्थाएं

आप मजा देखिए, सियासत जिस जगह नाक घुसेड़ दे, वहां क्या हाल कर देती है. संवैधानिक अधिकार प्राप्त केंद्र सरकार की दो संस्थाएं चीनी मिल बिक्री घोटाले में मायावती की संलिप्तता को लेकर दो अलग-अलग परस्पर-विरोधी दिशा में खड़ी हैं. महालेखाकार (सीएजी) की जांच रिपोर्ट कहती है कि चीनी मिलों की बिक्री में घनघोर अनियमितता हुई, लेकिन प्रतिस्पर्धा आयोग कहता है कि बिक्री में कोई अनियमितता नहीं हुई. कैग की जांच रिपोर्ट पहले आ गई थी, आयोग का फैसला अभी हाल में आया है. दो परस्पर-विरोधी रिपोर्टें देख कर आम नागरिक क्या धारणा बनाए और किस जगह खड़ा हो! यह विषम स्थिति है. राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा आयोग का 103 पेज का फैसला चौथी दुनिया के पास है. इस फैसले को पढ़ें तो यह अपने आप में ही तमाम विरोधाभासों से भरा पड़ा है.

 

— प्रभात रंजन दीन

 

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here