BPSINGH-JYANTI-30pic-5मंडल मसीहा विश्‍वनाथ प्रताप सिंह को इस साल बिहार में रथ यात्रा निकाल कर याद किया गया. उनकी स्मृति में एक पखवाड़े तक बिहार के विभिन्न इलाकों में रथ यात्रा निकाली गई, जिसका समापन पटना में लोक स्वराज्य प्रतिबद्धता दिवस के रूप में हुआ. राजधानी पटना में उस दिन भव्य आयोजन किया गया था, जिसमें जनता दल (यू) के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह सहित राज्य सरकार के कई मंत्री मौजूद थे. समारोह में पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी शामिल होना था, पर अस्वस्थता के कारण भाग नहीं ले सके. नीतीश कुमार संपर्क यात्रा से उसी दिन लौटे थे और हरारत के कारण उनका अस्वस्थ हो जाना स्वाभाविक था. हालांकि, उनकी अनुपस्थिति आयोजक एवं जद (यू) के युवा विधान पार्षद विनोद कुमार सिंह को खल गई होगी. विनोद कुमार सिंह ने पार्टी की बड़ी सेवा की और उसे एक सामाजिक समूह से नए सिरे से जोड़ने की कोशिश की. वीपी सिंह जब भ्रष्टाचार को लेकर राजीव गांधी के ख़िलाफ़ अभियान चलाने के लिए सत्ता त्याग कर सड़क पर आ गए, तो उन्हें राजर्षि कहा गया. वीपी आम भारतीय की उम्मीद के प्रतीक बन गए थे. वह भारतीय राजनीति का बड़ा नाजुक दौर था. वीपी सामने आए और उन्होंने नायकत्व ग्रहण किया. आमजन अब भी उन्हें उच्च आदर्शों के लिए बड़े आदर से याद करते हैं. और, अब विनोद सिंह अपनी दलीय सीमा के तहत ही उनके आदर्शों के प्रति लोगों को जागरूक करने की कोशिश कर रहे हैं. दलीय सीमा इसलिए, क्योंकि पूरे आयोजन में दल का ही बोलबाला रहा. यह कोशिश वीपी सिंह के विराट व्यक्तित्व को छोटा नहीं कर रही है!
बिहार में पिछले कई महीनों से जन्मतिथि-पुण्यतिथि के आयोजनों का दौर चल रहा है. चूंकि सूबे में अगले साल विधानसभा चुनाव है, लिहाजा राजनीतिक दलों में होड़ लगी है, न जाने किस जन्मतिथि-पुण्यतिथि से कितना वोट बढ़ जाए! विश्‍वनाथ प्रताप सिंह का देहांत 27 अक्टूबर, 2008 को हुआ था. उन्हें लेकर छोटे-मोटे आयोजन तो देखे-सुने जाते रहे हैं, पर एक पखवाड़े तक राज्यव्यापी अभियान पहली बार शुरू किया गया. कहने को तो जनता दल (यू) के विधान पार्षद विनोद सिंह ने यह अभियान चलाया. वीपी सिंह के आदर्शों को लेकर आमजन की चेतना जगाने के लिए यह सब किया गया. लेकिन, क्या इस अभियान के पीछे मात्र यही निर्मल-भाव था? लगता है, बात कुछ और हो सकती है, कुछ दल की और कुछ विनोद सिंह की. राज्य में विधानसभा चुनाव की राजनीतिक तैयारियां शुरू हो गई हैं. विभिन्न जातीय समूहों को जगाने और उन्हें अपने साथ गोलबंद करने की कवायद जारी है. राजनीति अब जमात की रही नहीं, वह जाति तक तो चली ही गई है. पर, कई मामलों (और शायद अधिकांश मामलों) में यह जाति का बाना त्याग कर कुनबों तक सीमित हो गई है. ऐसे में कुछ राजनेता कम से कम जाति के बारे में तो सोचते हैं, यही क्या कम है! वस्तुत: तीखी जातीय गोलबंदी (वोटबंदी) के बीच ऐसा अभियान अस्वाभाविक भी नहीं है.
बिहार के सामाजिक समूहों की राजनीतिक निष्ठाएं काफी साफ़ होती जा रही हैं. पिछले कई वर्षों से मंडल राजनीति के नायकों से बिहार के अगड़े समाज की न केवल दूरी रही है, बल्कि यह जातीय दलबंदी में तब्दील होती चली गई. यह दूरी (या दलबंदी कह लीजिए) मंडल राजनीति के नायकों के प्रशासनिक व राजनीतिक निर्णयों और इन सामाजिक समूहों के राजनीतिक आचरण में अभिव्यक्त होती रही है. इसीलिए पिछले कई वर्षों से मंडलवादी राजनीति के निष्ठावान नेता बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह को बड़े तामझाम के साथ उनकी जयंती-पुण्यतिथि मनाकर याद करते आ रहे हैं. नवादा- मुंगेर से लेकर पटना-दिल्ली तक उन्हें याद करने के लिए बड़े पैमाने पर आयोजन किए जाते हैं. नीतीश कुमार एवं अन्य बड़े नेता इन आयोजनों में शामिल हुए हैं. श्री बाबू के स्वजातीय मतदाताओं को उनके शुभचिंतक होने का भरोसा दिलाते रहे हैं. वस्तुत: वीपी सिंह को भी इसी ख्याल से याद किया गया लगता है. इससे पहले वीपी सिंह को लेकर ऐसे आयोजनों से बिहार के लोग रूबरू नहीं हुए थे. यहां यह भी याद रखने की ज़रूरत है कि उक्त सभी आयोजन पार्टी स्तर पर नहीं होते. जद (यू) के नेताओं को आगे करके यह काम किया जाता है. इस मामले में जद (यू) में एकरूपता है कि कुछ खास आदर्श व्यक्तित्वों की जयंती-पुण्यतिथि वह आयोजित करता है, बाकी जयंती या पुण्यतिथि, किसी भी व्यक्तित्व की क्यों न हो, पार्टी नहीं मनाती, उसके नेता मनाते हैं. मंडल मसीहा वीपी सिंह के साथ भी यही हुआ, श्री बाबू के साथ भी यही हुआ.
वोट के लिए नाम भुनाने की कछुआ-खरगोश दौड़ में चाल, चरित्र और चेहरे की शुचिता को लेकर राजनीति करने वाली भारतीय जनता पार्टी भी पीछे नहीं है. बिहार में अपने आदिपुरुष कैलाशपति मिश्र की जयंती भुला देने वाली भाजपा एक बार फिर उन्हें लेकर काफी संवेदनशील हो गई. उसने पिछले दिनों कैलाशपति मिश्र की स्मृति में पूरे राज्य में पूरे सप्ताह का अभियान चलाया. उनके नाम पर पटना में एक बड़ा आयोजन किया गया. भाजपा डॉ. श्रीकृष्ण सिंह की जयंती दलीय स्तर पर तो नहीं मनाती, पर अपने किसी नेता को आगे करके यह काम अंजाम देती है. भाजपा में दलित नायकों को लेकर भी बहुत उत्साह कहीं नहीं दिखता. औरों की बात जाने दीजिए, बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर तक की जयंती बिहार में भाजपा नहीं मनाती. जब बंगारू लक्ष्मण पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे, तो अंबेडकर को याद करने की परंपरा राष्ट्रीय स्तर पर बनी थी, जो राज्य तक ढंग से नहीं उतर सकी. हां, कुछ नेताओं के स्तर पर यह आयोजन होता रहा.
लेकिन, भाजपा पिछले कुछ वर्षों से कर्पूरी ठाकुर की जयंती मनाने लगी है. कर्पूरी जी बिहार के जिस सामाजिक समूह (अति पिछड़ा) के रहे हैं, वह पिछले कुछ वर्षों से एक सशक्त वोट बैंक के तौर पर उभरा है. गत दो-तीन चुनावों में इस समूह ने अपनी ताकत का प्रदर्शन किया है. अब फिर चुनाव आ रहा है और इस वोट बैंक पर लालू-नीतीश के साथ-साथ भाजपा की भी गहरी नज़र है. लोकसभा चुनाव के दौरान इस वोट बैंक में नरेंद्र मोदी की सामाजिक पृष्ठभूमि के कारण भाजपा ने खासी सेंधमारी की थी और उससे चुनाव परिणाम में संख्यात्मक तौर पर फ़़र्क पड़ा था. इतना तो तय है कि अति पिछड़ों का समूह लालू-नीतीश के साथ अपनी सहज एकता पाता है, जबकि भाजपा से उसे कई स्तर पर हिचक है और इसका कारण भाजपा का समर्थक सामाजिक समूह है. भाजपा ने अब कर्पूरी जयंती का आयोजन प्रखंड स्तर तक करने का निर्णय लिया है. इसके पीछे नए-नए सामाजिक समूहों को पार्टी से जोड़ने और भावी विधानसभा चुनाव में उन्हें वोटों में तब्दील करने की मंशा है. यह देखने और समझने में अभी वक्त लगेगा कि भाजपा को इससे कितना लाभ मिलता है.
वस्तुत: राजनीतिक दलों और राजनेताओं के लिए राजनीति के सिवाय किसी और का कोई महत्व नहीं है. भारतीय समाज के आदर्श व्यक्तित्वों को राजनीति में जातीय वोट बैंक का उपकरण बनाने की हरसूरत कोशिश की जा रही है. सरदार पटेल, नेहरू, लोहिया एवं जेपी जैसे युगांतकारी राजनेताओं की बात तो दूर, सामाजिक एवं ऐतिहासिक नायकों के साथ भी यही हो रहा है. देश की राजनीति हमारे नायकों को वोट जुगाड़ू प्रतिमा में बदल रही है. वीपी सिंह के साथ भी यही हो रहा है. राजनीति में कोई तो ऐसा आए, जो हमारे नायकों की महानता को वोट की राजनीति से बाहर रखे. लगता है, इसके लिए अभी प्रतीक्षा करनी होगी, लंबी प्रतीक्षा.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here