उनके हाथों में जादुई स्पर्श है. वे रंगों की दुनिया के बेताज बादशाह हैं. उंगलियों में दबा ब्रश उनके इशारे पर चलता है. रंगों को आवाज़ और चित्रों को जीवंतता देने में उनका कोई सानी नहीं है. जितनी देर में आप अपने लबों से चाय के कप का फासला तय करते हैं, वे आपको जीती-जागती तस्वीर में उतार चुके होते हैं. जिक्र हो रहा है, महोली के गुमनाम आर्टिस्ट हरि सिंह का. ये वही हरि सिंह हैं, जिनकी पेन्टिंग भारत भवन की दीवारों को अलंकृत करने के बाद अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चुनी गई हैं. महोली वासियों को गर्व है कि उनके यहां की प्रतिभा ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नगर का नाम रौशन किया है.

देश की सबसे बड़ी इंटरनेशनल वाटर कलर कला प्रतियोगिता में महोली के रहने वाले हरी सिंह की फ्लावर बोगन बेलिया पेंटिंग का चयन हुआ है. इस प्रतियोगिता में 65 देशों से 450 कलाकारों की वाटर कलर पेंटिंग्स का चयन हुआ है. इसमें से 150 पेंटिंग्स भारत के कलाकारों की हैं. इन पेंटिंग्स में हरि सिंह की पेंटिंग भी शामिल हैं. अब तक यह मुकाम विरले कलाकारों को ही हासिल हो पाया है. इसके पहले हरि सिंह की पेंटिंग्स भोपाल के भारत भवन में लगने वाली वार्षिक प्रदर्शनी सृजन में भी चयनित हो चुकी हैं.

आईफैक्स (आल इंडिया फाइन आर्ट एंड क्राफ्ट सोसायटी) द्वारा चयनित हरि सिंह की पेंटिंग्स को इंटरनेशनल वाटर कलर सोसायटी ने न सिर्फ़ सराहा है, बल्कि इंटरनेशनल वाटर कलर सोसायटी द्वारा आयोजित बीनाले 2017-18 में जगह भी दी है. यह अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी 09 दिसम्बर से 14 दिसम्बर तक दिल्ली में लगी थी. इस प्रदर्शनी में 65 देशों के 450 कलाकारों की पेंटिंग्स शामिल की गई हैं. हरि सिंह को इस बात की बेहद खुशी है कि वे पेंटिंग में महोली को अहम स्थान दिला पाए हैं. बचपन में अपनी क्लास में ड्रॉइंग में ‘वेरी गुड’ पाने वाले हरि सिंह की आलमारी आज शील्ड और ट्रॉफियों से भरी हुई है.

हुनर से हारी मुफ़लिसी

विपरीत परिस्थितियों में मेहनत से सफलता हासिल करने वालों को शोहरत और शाबाशी मिलती रही है, लेकिन बुलन्दियों पर पहुंचने के बाद दूसरों को आगे बढ़ाने का प्रयास अभिनंदनीय और अभिनव हो जाता है. मुफ़लिसी के चलते अपनी पढ़ाई पूरी करने में असमर्थ रहे आर्टिस्ट हरि सिंह की पेंटिंग जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चुनी गई, तो उन्हें देश ही नहीं पूरी दुनिया में ख़्याति मिली. हरि सिंह के पिता अमर सिंह महोली चीनी मिल में फिटर के रूप में काम करते थे. 15 वर्ष की उम्र से वाटर पेंटिंग बनाने वाले हरि सिंह ने ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की, लेकिन अपने आराध्य विषय चित्रकला का साथ वह इंटर तक ही दे पाए.

इंटर की पढ़ाई उन्होंने महोली के कृषक इंटर कॉलेज से पूरी की थी. यहां मातादीन आर्य और रसीद खां इनके आर्ट टीचर हुआ करते थे. आर्थिक कमजोरी व पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते हरि सिंह आर्ट के प्रति अपनी प्रतिभा को स्कूल जाकर और ज्यादा निखार नहीं पाए, लेकिन उच्च कोटि का आर्टिस्ट बनने के लिए उनकी लगन और मेहनत अनवरत जारी रही. पिता की मृत्यु के बाद हरि सिंह को महोली चीनी मिल में फोरमैन के पद पर काम मिला.

90 के दशक में चीनी मिल बंद हो जाने पर उनका तबादला पहले गोरखपुर की लक्ष्मीगंज और फिर पीलीभीत चीनी मिल के लिए किया गया. कानफाड़ू मशीनों के बीच समुचित सामग्री के अभाव में भी कला के प्रति उनकी साधना भंग नहीं हुई, बल्कि बढ़ती ही गई. एक समय ऐसा भी आया जब उन्हें यह महसूस हुआ कि उनकी नौकरी उनकी प्रतिभा की राह में रोड़ा बन रही है, तो उन्होंने चीनी मिल की नौकरी छोड़ दी और दिल्ली चले गए. वहां उन्होंने अपना सब कुछ कला के नाम कर दिया. आखिरकार कला पर जिंदगी के चालीस साल न्यौछावर करने वाले हरि सिंह को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल ही गई.

नयी दिल्ली में इंटरनेशनल वाटर कलर सोसाइटी बीनाले 2017-18 द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय पेंटिंग प्रदर्शनी हरी सिंह के हुनर और विलक्षण प्रतिभा का गवाह बनी है. चित्रकला की तमाम विधाओं में महारत हासिल करने वाले हरि सिंह अपने हुनर और विलक्षण प्रतिभा से अन्य कलाकारों को भी आकर्षित कर रहे हैं. अन्तरराष्ट्रीय आर्टिस्ट की पहचान बनाने के लिए उन्होंने अपनी ज़िन्दगी के पैंतालीस बरस कुर्बान किए हैं. वे चाहते तो इंजीनियर भी बन सकते थे, लेकिन वे बने ही हैं पेंटिंग के लिए.

इनकी बनाई हुई दुर्लभ पेंटिंग्स देखने के लिए देश की राजधानी दिल्ली में देसी और विदेशी लोगों का मजमा लगा हुआ है. हरी सिंह कहते हैं कि स्कूल के दिनों में उनके गुरु मातादीन आर्य और रशीद खान उन्हें एक ही शिक्षा देते थे कि मेहनत करो सफलता मिलेगी. गुरु की इस बात को उन्होंने हमेशा अपने ध्यान में रखा और हमेशा पेंटिंग बनाने में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया. हरि सिंह कहते हैं कि आज उनके गुरू उनकी पेंटिंग्स देखते तो बहुत खुश होते. आज जो कुछ भी है, उनके आशीर्वाद की बदौलत है.

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