iraqआईएस को चकमा देकर किसी तरह भारत पहुंचे हरजीत मसीह ने भारत सरकार को चार साल पहले बताया था कि सभी 39 भारतीयों को लाइन में खड़ा कर गोली मार दी गई थी. वह एक भारी व्यक्ति की ओट लेकर नीचे लेट गया था, इसलिए उसे गोलियां नहीं लगीं. इसके बावजूद विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने भारतीयों को गोली मारे जाने के दावे को खारिज कर दिया था. सरकार का कहना है कि मसीह अपना बयान बार-बार बदल रहा था, जिससे शक पैदा हो रहा था. अतः सरकार ने गुमशुदा भारतीयों को मृत मानने के बजाय अपनी तलाश जारी रखी. इतना ही नहीं, सच कहने के लिए हरजीत को जेल में डाल दिया गया. उसे तरह-तरह से टॉर्चर किया गया. हालांकि सरकार अब कह रही है कि उसे प्रोटेक्टिव कस्टडी में रखा गया था.

दिसंबर 2014 में  खुफिया जानकारी मिली थी कि गुमशुदा भारतीय अब जिंदा नहीं हैं. मारे गए 39 लोगों में 31 पंजाब से थे, 4 हिमाचल प्रदेश और बाकी बिहार और पश्चिम बंगाल से थे. अब विपक्ष यह सवाल उठा रहा है कि मृतकों के संबंध में जानकारी देने में सरकार ने इतनी देर क्यों की? कांग्रेस नेता शशि थरूर ने कहा कि सरकार को ये बताना चाहिए कि ये कैसे हुआ, वे लोग कब मरे. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने भी कहा कि मोदी सरकार संवेदनहीनता की हर सीमा पार कर गई है. मोदी सरकार बार-बार मृतकों के परिजनों को आश्वासन देती रही कि वे लोग जिन्दा हैं. मोदी सरकार ने देश और उन परिवारों को गुमराह क्यों किया? इस पर विदेश राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह कहते हैं कि जब तक मजबूत साक्ष्य उपलब्ध नहीं हो जाते, तब तक संसद को हम कोई सूचना नहीं दे सकते थे.

इराक में गुमशुदा निशान सिंह (पंजाब) के भाई सरवन कहते हैं कि हम सुषमा स्वराज से 11-12 बार मिल चुके हैं. वे हमेशा कहती रहीं कि उनके सूत्रों के मुताबिक, सभी भारतीय जिन्दा हैं. इराक से बचकर निकलने वाला अकेला भारतीय हरजीत झूठ बोल रहा है. अब अचानक ऐसा क्या हो गया? सरकार को हमसे झूठ बोलने की बजाय यह बताना चाहिए था कि उनके पास कोई जानकारी नहीं है. गुरपिंदर कौर कहती हैं कि हमें तो सरकार ने बताया भी नहीं. हमें टीवी से जानकारी मिली. जैसे ही सरकार को पुख्ता जानकारी मिली थी, उन्हें हमसे सम्पर्क करना चाहिए था. आज हम ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं.

एक खबर यह भी है कि इराकी प्रशासन मंगलवार (20 मार्च) को मोसूल में मिले सामूहिक कब्र भारतीयों के होने के बारे में प्रेस कॉन्फ्रेंस करने जा रहा था. जैसे ही भारत सरकार को इसकी सूचना मिली, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने आनन-फानन में इसकी सूचना सदन में रखनी जरूरी समझी. विदेश मंत्रालय इतनी हड़बड़ी में था कि उसे यह भी जरूरी नहीं लगा कि पहले मारे गए लोगों के परिजनों को इसकी जानकारी दे दी जाए.

बगदाद में भारतीय दूतावास ने 2014 में 40 भारतीय कामगारों से सम्पर्क खत्म होने की जानकारी दी थी, तभी से भारत सरकार उनकी तलाश में जुटी थी. इतना ही नहीं, इराकी खुफिया एजेंसियों ने भी 2014 में यह जानकारी दी थी कि इन इलाकों में आईएस ने सामूहिक हत्याएं की हैं, जिनमें केवल सुन्नियों को ही जिंदा छोड़ा गया है. सरकार तमाम सूचनाओं को नकारती रही और जांच एजेंसियां भी लंबे समय तक अंधेरे में तीर मारती रहीं. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल और तत्कालीन आईबी प्रमुख आसिफ इब्राहीम भी  बगदाद में डेरा डाले थे. सरकार का तर्क है कि मोसुल और तिकिरित के आईएस के कब्जे में होने के कारण पुख्ता जानकारियां नहीं मिल रही थीं और खुफिया जानकारियों को भी जांचा-परखा जा रहा था. खुफिया एजेंसियों भी यह मानकर चल रही थीं कि सभी भारतीय मारे जा चुके हैं, क्योंकि उनके जिन्दा होने का एक भी सबूत हाथ नहीं लगा था.

यह सूचना सिर्फ इसलिए गुमशुदा भारतीयों के परिजनों को नहीं दी गई, क्योंकि ऐसा करना सरकार के लिए ठीक नहीं होता. आईएस के हाथों बच निकले बांग्लादेशी और कुछ राहत में जुटे कर्मचारी भी हरजीत मसीह की बात की पुष्टि कर रहे थे, पर भारत सरकार इस बात को मानने के लिए तैयार ही नहीं थी कि सभी 39 भारतीय मारे जा चुके हैं. पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल बताते हैं कि हम यह मानने के लिए तैयार नहीं थे कि यहूदियों और ईसाइयों को निशाना बना रहा इस्लामिक स्टेट भारतीयों को भी मार सकता है. अभी तक भारत सरकार के साथ आईएस का कोई टकराव नहीं हुआ था.

जुलाई 2017 में मोसुल आईएस से आजाद हो गया. इसके बाद विदेश राज्य मंत्री वीके सिंह दो बार इराक की यात्रा के दौरान बादूश गए. ठीक एक माह बाद भारतीय अधिकारी मोसुल में गुमशुदा भारतीयों की खोज-खबर लेने के लिए वहां पहुंचे. जानकारी मिली कि मोसुल के उत्तर-पश्चिम में बादूश गांव में एक सामूहिक कब्र है. यहीं आईएस के आतंकियों की एक जेल भी थी. भारतीय अधिकारियों ने तलाश जारी रखी और एक सामूहिक कब्र में ठीक 39 लाशें मिलीं. रडार से जांच के दौरान जमीन के नीचे हडि्‌डयों का एक ढेर मिला. इसके बाद डीएनए टेस्ट से ही गुमशुदा भारतीयों की शिनाख्त हो सकती थी.

फॉरेंसिक विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर रिश्तेदारों का डीएनए उपलब्ध है, तो मृतक के पहचान में कुछ दिन ही लगते हैं. भारतीय अधिकारियों ने नई दिल्ली से सभी गुमशुदा भारतीयों के परिवारों से संपर्क स्थापित कर उनके डीएनए सैम्पल मांगे. नवंबर 2017 तक सभी डीएनए सैम्पल मोसुल भेज दिए गए थे. रिश्तेदारों का डीएनए सैम्पल लेने के बाद भी सरकार ने गुमशुदा भारतीयों के परिजनों को कोई जानकारी नहीं दी. उन्हें सिर्फ यह बताया गया कि कुछ जरूरी पहचान प्रक्रिया पूरी करने के लिए डीएनए सैम्पल लिए जा रहे हैं. अब डीएनए की जांच से आईएस की दरिंदगी का भी पता चला है.

जानकारी मिली है कि सभी भारतीयों के सिर में गोली मारी गई थी. इराक में फॉरेंसिक मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉक्टर जैद अली अब्बास ने जानकारी दी कि अधिकतर शवों के सिर में गोली मारे जाने के निशान हैं. मैं इस बात की पुष्टि कर सकता हूं कि उन्हें एक साल पहले ही मारा जा चुका था. ऐसे में सवाल यह है कि कौन सी ऐसी मजबूरी थी, जिसके कारण सरकार ने समय पर मृतकों के परिजनों को सूचना नहीं दी. जब इराक में प्रेस कॉन्फ्रेंस की जानकारी मिली तो हड़बड़ी में इसकी सूचना मृतकों के परिजनों को नहीं, बल्कि सदन को दी गई.

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