उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा से सम्बन्ध रखने वाले चौहत्तर वर्षीय मोहम्मद अशरफ सहराई और सैयद अली शाह गिलानी का 1960 से चोली दामन का साथ है. दोनों लीडर जमात इस्लामी जम्मू कश्मीर के सदस्य थे. 2004 में कश्मीर के अलगाववादी आंदोलन में प्रभावी भूमिका निभाने के लिए दोनों ने जमात इस्लामी छोड़कर तहरीके हुर्रियत की बुनियाद डाली. गिलानी उसके चैयरमैन और सहराई उसके जनरल सेक्रेटरी बन गए. यह वही समय था, जब ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के दो धड़े हो गए थे.

gilaniकश्मीर में अलगाववादी आन्दोलन के सबसे बड़े नेता सैयद अली गिलानी (88 वर्षीय) ने उम्र के तकाजे के कारण तहरीके हुर्रियत की अगुआई छोड़ दी. उन्होंने तहरीके हुर्रियत की चेयरमैनशिप अपने साथी मोहम्मद अशरफ सहराई को सौंप दी. क्या ये वाकई इतनी सीधी-सादी बात है. यह सवाल इस समय कश्मीर के सियासी हलकों में चर्चा का विषय बना हुआ है. राजनैतिक विश्लेषकों का कहना है कि अगर गिलानी को अपनी वृद्धावस्था की वजह से अपने संगठन की अगुआई छोड़नी पड़ी है, तो आने वाले दिनों में इसी कारण हुरियत कॉन्फ्रेंस का नेतृत्व भी छोड़ सकते हैं.

अगर ऐसा हुआ तो गिलानी मोहम्मद यासीन मलिक और मीरवाईज उमर फारूख पर आधारित संयुक्त प्रतिरोधी लीडरशिप, जो गत दो वर्ष से कश्मीर की अलगाववादी आन्दोलन की लगाम संभाले है, खुद ब खुद टूट जाएगी. यह बात उल्लेखनीय है कि इंटेलिजेंस ब्यूरो की तरफ से गिलानी को भारत सरकार के साथ बातचीत करने की एक असफल कोशिश के चार दिन बाद ही गिलानी ने तहरीके हुर्रियत के नेतृत्व से खुद को अलग कर लिया. गिलानी का कहना है कि आईबी का कोई पदाधिकारी मुझसे मिलने के लिए आया था और उन्हें भारत सरकार के साथ बातचीत शुरू करने को कहा.

गिलानी के अनुसार, उन्होंने नई दिल्ली के साथ बातचीत को वक्त की बर्बादी बताते हुए आईबी की पेशकश खारिज कर दी. यहां सवाल यह है कि अगर गिलानी बढ़ती उम्र के बहाने तहरीके हुर्रियत के बाद हुरियत कॉन्फ्रेंस से भी अलग होंगे, तो क्या उनकी जगह लेने वाला हुर्रियत का नया नेता भारत सरकार से बातचीत शुरू करने पर राजी होगा? कुछ विश्लेषक शुरू से ही कहते आए हैं कि गिलानी अपनी सख्त पॉलिसी को जिंदगी भर बरकरार रखना चाहते हैं, क्योंकि इसी पॉलिसी की वजह से उन्हें पब्लिक के बड़े तबके में लोकप्रियता मिली. वे किसी सूरत में इसे नहीं खोना चाहेंगे, बल्कि उनकी इच्छा है कि इतिहास उन्हें कश्मीर के एक ऐसे लीडर के तौर पर याद रखे, जिसने कभी अपना स्टैंड  नहीं बदला और न ही दिल्ली के आगे सर झुकाया.

ये बाद भी उल्लेखनीय है कि सैयद अली गिलानी गत कई वर्षों से कष्टप्रद हालात से गुजर रहे हैं. राज्य सरकार ने गत आठ वर्षों से उन्हें घर में कैद कर रखा है. उन्हें घर से बाहर कदम रखने की इजाजत नहीं दी जा रही है, जिसके कारण जनता से उनका संपर्क खत्म हो चुका है. दूसरी तरफ गिलानी के रिश्तेदारों को विभिन्न बहानों से निशाना बनाया जा रहा है. कश्मीर में टेरर फंडिंग केस की जांच कर रही एनआईए ने कई बार गिलानी के दोनों बेटों नसीम गिलानी और नईम गिलानी को पूछताछ के लिए नई दिल्ली तलब किया.

इतना ही नहीं, एनआईए ने कई हुर्रियत लीडरों समेत सैयद अली गिलानी के दामाद मोहम्मद अलताफ शाह को गत वर्ष जून में गिरफ्तार कर लिया है. ये हुर्रियत लीडर, जिनमें कुछ गिलानी के साथी भी हैं, इस समय दिल्ली के तिहाड़ जेल में हैं. गिलानी के एक साथी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर चौथी दुनिया को बताया कि गिलानी साहब बीमार हैं.

वो वृद्धावस्था में पहुंच गए हैं. पिछले कई वर्षों से घर की चहारदीवारी तक ही सीमित होकर रह गए हैं. उनकी अमली सियासत बस एक कमरे तक सीमित है. उनके करीबी रिश्तेदारों को निशाना बनाया गया है. मेरे ख्याल से इस हालत में तहरीक और गिलानी दोनों के लिए यही मुनासिब है कि वे रिटायरमेंट ले लें. गिलानी साहब ने तहरीक के प्रति अविस्मरणीय भूमिका निभाई है. उनकी बढ़ती उम्र अब इससे ज्यादा कुर्बानियों की इजाजत नहीं दे सकती है. मेरे ख्याल से तहरीके हुर्रियत का नेतृत्व छोड़ना गिलानी के सियासत से रिटायरमेंट की तरफ पहला कदम है.

उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा से सम्बन्ध रखने वाले चौहत्तर वर्षीय मोहम्मद अशरफ सहराई और सैयद अली शाह गिलानी का 1960 से चोली दामन का साथ है. दोनों लीडर जमात इस्लामी जम्मू कश्मीर के सदस्य थे. 2004 में कश्मीर के अलगाववादी आंदोलन में प्रभावी भूमिका निभाने के लिए दोनों ने जमात इस्लामी छोड़कर तहरीके हुर्रियत की बुनियाद डाली. गिलानी उसके चैयरमैन और सहराई उसके जनरल सेक्रेटरी बन गए. यह वही समय था, जब ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के दो धड़े हो गए थे. एक धड़े का नेतृत्व मीर वाईज उमर फारूक ने संभाला और दूसरे का सैयद अली गिलानी ने.

गिलानी की सरबराही वाली हुर्रियत कॉन्फ्रेंस अठारह छोटे-छोटे संगठनों पर आधारित प्लेटफॉर्म है. तहरीके हुर्रियत इसकी सबसे बड़ी ईकाई है. गिलानी और सहराई को हमेशा एक दूसरे का हमप्याला व हमनिवाला समझा जाता रहा है. सहराई खुद को गिलानी का साया मानते हैं. ये अफवाह बहुत पहले से फैल रही है कि गिलानी अपनी राजनीतिक विरासत सहराई के सुपुर्द करेंगे. गिलानी ने तहरीके हुर्रियत की भागदौड़ सहराई के सुपुर्द करने का फैसला एक ऐसे समय में लिया है, जब घाटी के हालात बहुत नाजुक हैं.

घाटी में आईएसआईएस की मौजूदगी की आशंका

गत दो वर्ष के दौरान यहां मिलिटेंसी में काफी तेजी आई है.  कुछ समय से अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन आईएसआईएस का एक उप संगठन ग़ज़वतुलहिन्द भी यहां सक्रिय है. इस संगठन की अगुआई जाकिर मूसा नाम का हिजबुल मुजाहिदीन का एक बागी जंगजू कर रहा है. जाकिर मूसा ने गत वर्ष हुर्रियत लीडरों को भी हत्या करने की धमकी दी है. 12 मार्च को दक्षिणी कश्मीर के एक गांव में उसके तीन सदस्य सेना के साथ मुठभेड़ में मारे गए. मारे जाने वाले मिलिटेंट में से दो स्थानीय थे और एक आंध्र प्रदेश से सम्बन्ध रखता था.

स्थानीय मिलिटेंट में श्रीनगर के आसपास रहने वाले ईसा फाजली की लाश उसके घर पहुंचा दी गई तो यहां दस से पंद्रह की तादाद में नकाबपोश नौजवान प्रकट हुए जिनके हाथों में आईएसआईएस झंडे थे. वे इस संगठन के अगुआ अबुबक्र बगदादी के हक में नारे लगा रहे थे. इन नकाबपोश लोगों ने ईसा फाजली की लाश को आईएसआईएस के झंडे में लपेट दिया और कहा कि इस मिलिटेंट ने आजादी के लिए नहीं, बल्कि इस्लाम के लिए कुर्बानी दी है. कुछ मीडिया रिपोर्ट में यह बताया गया कि इस मौके पर इन नकाबपोश लोगों ने गिलानी की हुर्रियत के एक कार्यकर्ता के साथ मारपीट भी की. ये वो स्थिति है, जो कश्मीर में उभरती हुई नजर आ रही है.

गिलानी की जगह तहरीके हुर्रियत का नेतृत्व संभालने के बाद अपने पहले इंटरव्यू में सहराई ने आईएसआईएस की आलोचना की. उन्होंने कहा कि हम कश्मीर की आजादी के लिए लड़ रहे हैं. हमारा कोई आलमी एजेंडा और न ही आईएसआईएस या अलकायदा जैसे संगठनों के साथ हमारा कोई लेना-देना है. उन्होंने कहा कि कश्मीर के तहरीक को आईएसआईएस से जोड़कर बदनाम करने की कोशिश की जा रही है. सहराई ने कश्मीरी नौजवानों से अपील की कि वे चरमपंथी विचारधारा से दूर रहें.

ऐसा लग रहा है कि गिलानी जानबूझ कर एक स्ट्रैटजी के तहत खुद को दूर रखने की कोशिश करते हुए दूसरे अलगाववादी लीडरों को वर्तमान स्थिति में रोल निभाने का मौका दे रहे हैं, ताकि उनकी सख्त छवि जिस पर उन्हें गर्व है सुरक्षित रहे. साथ ही नए नेतृत्व को उदारता के साथ कश्मीर के मामले के हल के लिए कोशिश करने का मौका मिले.प

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