नई दिल्ली: अयोध्या मामले पर मध्यस्थता के लिए कमेटी बनने के बाद शुक्रवार को पहली बार सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. इसके बाद मामले में मध्यस्थता पैनल ने 15 अगस्त तक का समय मांगा, जिसको कोर्ट ने मंजूर कर लिया. इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबडे, डीवाई चंद्रचूड, अशोक भूषण और एस. अब्दुल नजीर की संवैधानिक बेंच कर रही है.
इस दौरान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा, ‘हम मामले में मध्यस्थता कहां तक पहुंची, इसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं कर सकते हैं. इसको गोपनीय रहने दिया जाए. वहीं, अयोध्या मामले में अभी 13 हजार 500 पेज का अनुवाद किया जाना बाकी है. मुस्लिम याचिकाकर्ताओं ने अनुवाद पर सवाल उठाते हुए कहा कि अनुवाद में  कई गलतियां हैं. इसके बाद कोर्ट ने मुस्लिम पक्षकार को अपनी आपत्तियों को लिखित में दाखिल करने की इजाजतत दे दी.
इससे पहले 8 मार्च को अयोध्या की भूमि पर मालिकाना हक के मामले को सुलझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता की इजाजत दी थी. मध्यस्थों की कमेटी में जस्टिस इब्राहिम खलीफुल्ला, वकील श्रीराम पंचू और आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर शामिल हैं. इस कमेटी के चेयरमैन जस्टिस खलीफुल्ला हैं.
इस कमेटी को 8 हफ्तों में अपनी रिपोर्ट देने को कहा गया था. इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ सुनवाई कर रहा SC सुप्रीम कोर्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट के 30 सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ सुनवाई कर रहा है. हाईकोर्ट ने 2.77 एकड़ जमीन का एक हिस्सा हिंदू महासभा को दिया गया जिसमें राम मंदिर बनना था. दूसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया था. विवादित स्थल का तीसरा निर्मोही अखाड़े को दिया गया था.
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