demonstration-(2)_030311034बजट का जो होना होगा, वह हो जाएगा, लेकिन देश का क्या होगा? भाजपा को चुनाव में जिस तरह की कामयाबी मिली थी, उससे लोगों ने संपूर्ण बदलाव की उम्मीद की थी. संपूर्ण बदलाव एक दोमुंहा शब्द है. इसका अर्थ होता है, नीचे से लेकर ऊपर तक बदलाव. लेकिन, सवाल यह है कि कैसा बदलाव? क्या हम आगे बढ़ते हुए 21वीं सदी में अपनी किस्मत का हाल लिखने में कामयाब हो पाएंगे, दुनिया के दो-तीन सबसे अधिक संपन्न और ज़िम्मेदार देशों में शामिल हो पाएंगे? या फिर हम आज भी कांग्रेसी समाजवाद की तरफ़ वापस जा रहे हैं, जो निम्न विकास दर हासिल करने, ग़रीबी उन्मूलन के बजाय उसमें वृद्धि करने, सभी निजी व्यवसायों को शक की निगाह से देखने और सरकारी क्षेत्र के नुक़सान में चलने वाले उपक्रमों को प्रोत्साहित करने का काम करता है?
संसद के अंदर और बाहर इस तरह के बहुत सारे भ्रम फैलाए गए. भूमि अधिग्रहण के सवाल ने संसद की कार्यवाही बाधित रखी. पिछली सरकार ने एक भूमि अधिग्रहण बिल पास किया था, जिसमें यह दर्शाने की कोशिश की गई थी कि बड़े और लालची व्यापारी भारत के ग़रीब किसानों को उनकी ज़मीन से वंचित कर देना चाहते हैं. इसलिए किसी भी काम के लिए भूमि अधिग्रहण को महंगा, समय लेने वाला और तक़रीबन असंभव बना देना चाहिए. कांग्रेस को मालूम था कि उसकी वापसी नहीं हो रही है, इसलिए उसने भूमि अधिग्रहण की यह नीति अपनाई. यह सच है कि भाजपा ने उस बिल का समर्थन किया था. उसने ऐसा इसलिए किया था, क्योंकि भारतीय राजनीति का सबसे बड़ा भ्रम यह है कि भारतीय किसान ग़रीब हैं और उन्हें हर क़ीमत पर खेती करते रहने देना चाहिए, चाहे उससे अर्थव्यवस्था को नुक़सान ही क्यों न पहुंचे. जैसे (आपको याद होगा) राहुल गांधी ने ओडिशा के ग़रीब आदिवासियों से वादा किया था कि वह उन्हें उनकी ग़रीबी से बाहर नहीं निकालेंगे. उसी तरह से यूपीए का क़ानून किसी भी तरह के ग़ैर कृषि कार्य के लिए भूमि अधिग्रहण को रोकने के लिए बनाया गया था. समाजवाद को ज़िंदा रखने के लिए देश को ग़रीब रखना ज़रूरी था.
जबकि यह हक़ीक़त है कि एक समूह के रूप में किसान ग़रीब नहीं हैं. विदर्भ क्षेत्र में कुछ किसान हैं, जो ग़रीब हैं, जहां से किसानों की आत्महत्याओं की रिपोर्ट्स आई हैं. लेकिन, अधिकतर किसान (अपनी ज़मीन जोतने वाले) ग़रीब नहीं हैं. भूमि अधिग्रहण के ख़िलाफ़ जंतर मंतर पर एकत्र हुए किसानों की रंग-बिरंगी पगड़ियों पर एक नज़र डालिए और खुद अंदाज़ा कीजिए. वे ज़मींदार हैं, किसान नहीं. कृषि उत्पादों पर आयकर नहीं लगता. यही एक ऐसा क्षेत्र है, जिसे इस तरह का विशेषाधिकार प्राप्त है. ग़रीब तो बंटाईदार और खेतिहर मज़दूर हैं, लेकिन वे इस बिल से प्रभावित नहीं होंगे. उस ज़मीन से उन्हें औने-पौने मज़दूरी मिलती है. अगर उस भूमि पर कारखाना लग जाता है, तो उनके लिए अच्छा ही होगा. उन्हें पूरे साल रोज़गार मिलता रहेगा. दरअसल, विपक्ष भू-स्वामी वर्ग को ग़रीब दिखाकर उनके हितों की रक्षा करना चाहता है. इसकी हिमायत विपक्ष के साथ-साथ अन्ना हजारे भी कर रहे थे. राजनीति का ताना-बाना अलंकृत भाषा पर तैयार किया जाता है. भाजपा का कोई भी नेता यह नहीं कहेगा कि किसान ग़रीब नहीं हैं. इसके बावजूद कृषि क्षेत्र का आलम यह है कि भू-पति किसानों की हालत तो ठीक है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत अधिक ग़रीबी है. इसकी वजह क्या है? इसे समझना बहुत मुश्किल नहीं है. औद्योगिक और सेवा क्षेत्र के मज़दूरों की कार्यक्षमता कृषि क्षेत्र के मज़दूरों से दस गुना अधिक है. भारत समृद्ध हो जाएगा, अगर उन्हें खेती से हटाकर औद्योगिक और सेवा क्षेत्र में अच्छी नौकरी दे दी जाए. इसके लिए निश्‍चित रूप से भूमि की आवश्यकता होगी. अगर भूमि का हस्तांतरण नहीं किया गया, तो ग़रीब हमेशा ग़रीब रह जाएंगे.
हो सकता है कि भाजपा (एनडीए सरकार) दबाव में आकर पुराना क़ानून अपना ले, क्योंकि यह एक आसान और लोकप्रिय रास्ता है. लेकिन, यह रास्ता अपनाने के बाद अर्थव्यवस्था में संपूर्ण बदलाव को आने वाली पीढ़ी पर छोड़ देना चाहिए. शासन चलाने का मूलमंत्र होता है कि सरकार मुश्किल ़फैसले लेने में सक्षम हो. बड़ी और दूरगामी जीत हासिल करने के लिए वह सामयिक अलोकप्रियता सहने के लिए तैयार रहे. अगर शुरुआती दौर में ही उसने हार मान ली, तो फिर मौक़ा हमेशा के लिए हाथ से चला जाएगा. प्रधानमंत्री को चाहिए कि वह सबको बताएं कि देश को अभी आवश्यकता है त्वरित आर्थिक विकास की, स्मार्ट शहरीकरण की, स्थायी नौकरियों की, कारगर बुनियादी सुविधाओं की, रहने लायक एवं स्वच्छ आवासों की, निजी एवं सरकारी स्कूलों में ऐसी शिक्षा व्यवस्था की, जो बच्चों को साक्षर बनाने के साथ-साथ कंप्यूटर व इंटरनेट में भी दक्ष बनाए. उन्हें (प्रधानमंत्री को) बताना चाहिए कि तैयार माल और सेवाओं की कारगर आपूर्ति से ही लाभ हो सकता है. केवल कृषि, उद्योग एवं सेवाओं के आधार पर ही लाभकारी कारोबार हो सकता है और ग़रीबी दूर हो सकती है. आज दुनिया के जो देश अमीर हैं, वे किसी ज़माने में ग़रीब और कृषि प्रधान थे. जब उन्होंने उद्योग के लिए ज़मीनों का इस्तेमाल करना शुरू किया, तब जाकर वे अमीर बने. ग़रीबों को खेतों से उठाकर उन्हें वर्कशॉपों और फैक्ट्रियों में काम देना चाहिए. यही ग़रीबी हटाने तरीका है.

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