आडवाणी जी ने एक मामूली, लेकिन महत्वपूर्ण बयान दिया है कि 40 साल बाद भी आपात स्थिति जैसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है. लोगों ने विभिन्न तरीकों से इस बयान की व्याख्या की है, लेकिन सबसे तर्कसंगत व्याख्या यह हो सकती है कि आडवाणी जी जैसे एक पुराने राजनेता सत्ता को यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि आज आप जो कर रहे हैं, उसका दीर्घकालिक दुष्परिणाम निकले. जब तक आप सत्ता में हैं, आपको पता नहीं चलता कि क्या गलत है.श्रीमती गांधी बिना सोचे-समझे इतना आगे निकल गईं कि उन्हें एहसास ही नहीं हुआ कि वो खुद अपने द्वारा उठाए गए कदम में ही उलझ जाएंगी.

blog-morarkaकेन्द्र सरकार में एक वर्ष बाद प्रधानमंत्री को अब सत्ता का असल स्वाद पता चल रहा है. सबसे पहले दिल्ली विधानसभा चुनाव मेें भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा. दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि इस हार से सबक सिखने के बजाए और अपनी राजनीतिक लोकप्रियता को बढ़ाने के बजाए वे प्रशासनिक तरीके से केजरीवाल सरकार के लिए मुसिबतें खड़ी करने लगे. उन्होंने केजरीवाल के लिए बाधाएं पैदा करने के लिए लेफ्टिनेंट गवर्नर कार्यालय का उपयोग किया. सारे सही और गलत तरीकों का उपयोग किया. यह रणनीति कारगर नहीं होगी. जिस किसी ने भी इंदिरा गांधी के लंबे शासनकाल का अध्ययन किया है, उसे एहसास है कि प्रशासनिक उपाय बहुत कारगर साबित नहीं होते हैं. दिल्ली में तो इसे हर हाल मेें अर्सेंल होना है. ऐसा लगता है कि दिल्ली भाजपा, पार्टी का किरण बेदी को नेता चुनने की वजह से सहयोग नहीं कर रही है. यदि भाजपा पुन: स्थापित होना चाहती है तो उसे पुराने संगठन को पुनर्गठित करना होगा.
नई दिल्ली की राजनीति से एक अन्य पहलू निकलकर सामने आ रहा है. इंडियन प्रीमियर लीग वाले ललित मोदी चाहते थे कि भारत आए बिना उन्हें ब्रिटेन से यात्रा करने की सहूलियत मिले. ऐसा प्रतीत होता है कि भारतीय उच्चायोग में आवेदन किए बगैर वे ब्रिटिश सरकार से यात्रा करने की अनुमति पाने के लिए अनुरोध कर रहे थे. वह भी ब्रिटेन के दस्तावेजों के आधार पर. अब यहां मामला सामने आ गया, जिसकी वजह से सुषमा स्वराज को भारी शर्मिन्दगी उठानी पड़ी. यह भ्रष्टाचार की बात नहीं है, लेकिन निश्चित रूप से अविवेक की बात है. यह व्यवहार करने का तरीका नहीं है. भारत एक बड़ा देश है और आपको इस तरह के छोटे से एहसान के लिए काम नहीं करना चाहिए था. शायद प्रधानमंत्री को इस सब की जानकारी थी, इसलिए सुषमा स्वराज को हटाया नहीं गया. ब्रिटेन में स्थायी निवास पाने के लिए वसुन्धरा राजे ने ललित मोदी की सिफारिश की और यहां यह भी कहा कि इस बात को लीक न किया जाए कि हमने कोई र्सिेंारिश की है. यह बचकानी हरकत थी. कोई भी ऐसा आदमी, जिसका 20-30 साल का सार्वजनिक जीवन रहा है, ऐसा नहीं करेगा. मॉरीशस रूट के माध्यम से वसुंधरा राजे के बेटे की कंपनी को दिए गए कुछ ऋण की बात भी सामने आई है. मॉरीशस रूट और इस तरह का व्यापार हमेशा से संदिग्ध रहा है, लेकिन इस मामले में यह बताना कि भ्रष्टाचार कहां हुआ है, यह बताना बेहद मुश्किल है. लेकिन इलेक्ट्रानिक मीडिया चैनल और अखबार ऐसी खबरों से भरे पड़े हैं.
इसी बीच आडवाणी जी ने एक मामूली, लेकिन महत्वपूर्ण बयान दिया है कि 40 साल बाद भी आपात स्थिति जैसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है. लोगों ने विभिन्न तरीकों से इस बयान की व्याख्या की है, लेकिन सबसे तर्कसंगत व्याख्या यह हो सकती है कि आडवाणी जी जैसे एक पुराने राजनेता सत्ता को यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि आज आप जो कर रहे हैं, उसका दीर्घकालिक दुष्परिणाम निकले. जब तक आप सत्ता में हैं, आपको पता नहीं चलता कि क्या गलत है. श्रीमती गांधी बिना सोचे-समझे इतना आगे निकल गईं कि उन्हें एहसास ही नहीं हुआ कि वो खुद अपने द्वारा उठाए गए कदम में ही उलझ जाएंगी. बेशक, मोदी समर्थकों ने इस बयान को मोदी के खिर्लों माना और विरोधी खुश हो गए, मानों बहुत सारी समस्याएं हैं. मेरी राय में ये र्सिेर्ं एक वरिष्ठ नेता की हल्की चेतावनी है. वे देश को जो बताने की कोशिश कर रहे हैं, उसके निहितार्थ को समझना चाहिए. वे वरिष्ठ राजनेताओं में से एक हैं और राजनीति में लंबे समय तक उन्होंने सेवा की है. अब समय आ गया है कि उन नेताओं की बातों पर ध्यान दिया जाए, जिन्होंने लंबे समय तक देश की सेवा की है.

आखिरी दो बजट भी सामान्य बजट ही थे, क्योंकि लोगों और बाजार को बजट से र्कोंी आशायें थीं, जैसा कि चुनाव प्रचार के दौरान कहा जा रहा था और वादे किए जा रहे थे. दिलचस्प बात यह है कि अभी भी यह स्पष्ट नहीं है कि यहां सरकार यूपीए-2 की नीतियों को ही आगे बढ़ाना चाहती है और यूपीए-3 की तरह दिखना चाहती है, जैसा कि अभी नज़र आ रहा है. वित्त मंत्री ने एक मुहावरे का इस्तेमाल किया था कि वे टैक्स टेररिज्म (कर आतंकवाद) को खत्म करेंगे, इसके लिए कुछ सर्कुलर भी जारी किए गए, लेकिन वे काफी नहीं हैं.

मुंबई से भी कुछ घोटालों की खबरें आ रही हैं. एक जूनियर मंत्री, जिसने अपने राजनीतिक जीवन का र्सेंर हाल ही में शुरू किया है, उनसे शायद ये गलती हुई है. उन्होंने सीधे पार्टी को भुगतान करने की बजाए बिचौलियों को भुगतान किया है. इसे अभी भ्रष्टाचार के नज़रिए से नहीं देखा जा सकता है, लेकिन नौकरशाही के स्तर पर चूक जरूर हुई है. सवाल यह है कि वे क्या कर रहे थे? अगर मंत्री कुछ गलत फैसला कर रहा है तो ब्यूरोक्रेसी को टोकना चाहिए. इससे यही जाहिर होता है कि ब्यूरोक्रेट्स, मंत्री की अनुभवहीनता का फायदा उठा रहे हैं. सरकार को बहुमत का अहंकार नहीं होना चाहिए. बहुमत आता है, जाता है, लेकिन व्यवस्था ठीक से चलती रहना चाहिए. खैर, वक्त है कि चीजों को समय रहते दुरुस्त किया जाए.
जहां तक ललित मोदी प्रकरण का सवाल है, तो उनके बारे मेें मेरी जो थोड़ी बहुत जानकारी है, उसके अनुसार मैं कह सकता हूं कि वो खुद को क्रेडिट देने के चक्कर में किसी और की छवि को नुकसान पहुंचा सकते हैं. जैसा उन्होंने हाल ही में किया है. आखिरकार, सुषमा स्वराज और वसुन्धरा राजे ने उनकी मदद की. मोदी को चाहिए था कि उनकी छवि को नुकसान न पहुंचाएं, लेकिन वे इस बात का इजहार खुशी से कर रहे हैं कि अभी तो खेल शुरू हुआ है.
इस बीच, कई योजनाओं की घोषणाएं हुई हैं. स्मार्ट सिटी, मेक इन इंडिया और इंडस्ट्रियल कॉरिडोर की बात है, लेकिन वास्तविक रूप में क्या हो रहा है, सरकार को यह लोगों को बताना चाहिए. महंगाई नियंत्रण में नहीं है. निजी क्षेत्र की भावनाएं बेहतर नहीं हुई हैं. विदेशी निवेशक अभी भी मैट नोटिस को लेकर आशंकित हैं. वित्त मंत्री खुद एक कॉरपोरेट वकील और बुद्धिमान व्यक्ति हैं. मैं यह नहीं कह सकता कि वो चीजों को पटरी पर क्यों नहीं ला पा रहे हैं. बेशक लोग कह रहे हैं कि सबकुछ पीएमओ द्वारा नियंत्रित है यह मैं नहीं जानता. वित्त मंत्रालय में ऐसे अधिकारी हैं, जो यहां के क्रियाकलापों की समझ रखते हैं और परिणाम को समझते हैं. विदेशी निवेश को आकर्षित करने और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए आप जो कर रहे हैं, उससे कुछ अलग करना होगा. आखिरी दो बजट भी सामान्य बजट ही थे, क्योंकि लोगों और बाजार को बजट से र्कोंी आशायें थीं, जैसा कि चुनाव प्रचार के दौरान कहा जा रहा था और वादे किए जा रहे थे. दिलचस्प बात यह है कि अभी भी यह स्पष्ट नहीं है कि यहां सरकार यूपीए-2 की नीतियों को ही आगे बढ़ाना चाहती है और यूपीए-3 की तरह दिखना चाहती है, जैसा कि अभी नज़र आ रहा है. वित्त मंत्री ने एक मुहावरे का इस्तेमाल किया था कि वे टैक्स टेररिज्म (कर आतंकवाद) को खत्म करेंगे, इसके लिए कुछ सर्कुलर भी जारी किए गए, लेकिन वे र्कोंी नहीं हैं. आयकर विभाग की मानसिकता सालों में बनती है. उसे एक दिन में नहीं बदला जा सकता. अगर आप ऐसे करते हैं और राजस्व का नुकसान होता है तो वे इसका दोष सरकार की नीतियों पर ही म़ढ़ देंगे. वित्त मंत्री को अवकाश प्राप्त राजस्व सेवा के अधिकारियों की एक छोटी सी कमेटी बनानी चाहिए, जो सरकार को दिशा दे सके, कानून में बदलाव ला सके. जब तक कानून मेें आमूलचूल परिवर्तन नहीं होंगे, तब तक सकारात्मक परिणाम नहीं आएंगे.

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