chauthi-duniya-2-001यह एक ऐसी रिपोर्ट है, जो उन दिनों की पुलिस का चेहरा तो सा़फ-सा़फ दिखाती ही है, साथ ही यह भी दिखाती है कि पुलिस व्यवस्था में अपने उच्च अधिकारियों को बचाने का क्या मैकेनिज्म है. इस रिपोर्ट से कई सवाल खड़े किए गए थे. ये ऐसे सवाल थे, जो एक पत्रकार ने अपनी खोजबीन की बिना पर खड़े किए थे, जिन्हें अपराधियों से निपटने में माहिर पुलिस नज़रअंदाज कर गई थी. इस रिपोर्ट को पढ़कर आपको अंदाजा हो सकेगा कि पुलिस की कार्यशैली में कोई बदलाव आया या नहीं?
एक फ्लैट में दो पुरुष और एक स्त्री. अचानक गोली चलने की आवाज़ तथा औरत की तेज चीख सुनाई दी. आसपास के लोग पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि एक पुरुष के सिर में गोली लगी है, जो बाद में अस्पताल जाकर मर गया. लेकिन पुलिस ने वहां मौजूद दूसरे पुरुष तथा स्त्री को गिरफ्तार नहीं किया. इतना ही नहीं, उस कमरे में बच रहे पुरुष को सारे सबूत मिटाने का मा़ैका भी दिया गया. गोली के शिकार व्यक्ति का नाम था राजीव वर्मा. उत्तर प्रदेश पीएसी की उनतालिसवीं बटालियन के कमांडेंट राजीव वर्मा की मौत उत्तर प्रदेश पुलिस के अधिकारियों के खोखले चरित्र और उनमें पनप रही गंदी आदतों के कारण समय-असमय घटने वाली अशोभनीय वारदातों में से एक है.
28 सितंबर, 1981 को लखनऊ में इतनी तेज वर्षा हो रही थी कि स्कूलों में रेनी डे की छुट्टी दे दी गई थी. उस दिन लखनऊ के पुलिस लाइन में स्थित फ्लैटों में रहने वाले अधिकारियों में से कुछ के यहां नाश्ते की तैयारी चल रही थी और कुछ लोग अपने-अपने बरामदों में बैठे चाय की चुस्की के साथ बारिश का आनंद ले रहे थे. इसी बीच साढ़े नौ बजे के क़रीब लखनऊ के पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) प्रकाश सिंह के फ्लैट से ऐसी आवाज़ आई, जैसे कोई पंखा टूटकर गिरा हो या गीली मिट्टी पर पत्थर का बड़ा टुकड़ा गिरा हो. इसी आवाज़ के साथ श्रीमती प्रकाश सिंह की एक तेज चीख सुनाई दी.
चीख सुनकर प्रकाश सिंह के फ्लैट के नीचे तथा आसपास के घरों में रहने वाले लोग बाहर आए. कुछ बड़े अधिकारी जैसे श्री पंडा, जो इस समय बलिया में पुलिस अधीक्षक हैं, श्री भट्ट (एसपी-विजिलेंस), डीआईजी एसएनपी सिन्हा आदि प्रकाश सिंह के फ्लैट पर पहुंचे. वहां उन्होंने राजीव वर्मा को फर्श पर गिरा पाया, जिनके सिर में गोली लगी थी! गोली की आवाज़ सुनकर ट्रैफिक पुलिस के एक उपाधीक्षक श्री अरोड़ा भी घटनास्थल पर पहुंच गए, जो उस वक्त उसी इलाके से ग़ुजर रहे थे. उन्होंने ही राजीव वर्मा को उठाकर अपनी जीप से बलरामपुर अस्पताल तक पहुंचाया. अस्पताल में कोई न्यूरो सर्जन नहीं था. श्री अरोड़ा मेडिकल कॉलेज से डॉ. दूबे को लेकर आए, खून का भी इंतजाम किया गया. लेकिन यह सारी व्यवस्था करने में एक घंटा से भी ज़्यादा समय लग गया. राजीव वर्मा की मौत सिर का ऑपरेशन होने से पहले ही हो गई. प्रकाश सिंह, जिनके फ्लैट में श्री वर्मा को गोली लगी थी, राजीव वर्मा के अस्पताल जाने के दस मिनट बाद नीचे उतरे तथा अपनी कार में अस्पताल गए. इन दस मिनटों में प्रकाश सिंह ने टेलीफोन का रिसीवर ठीक किया, अपने हेड कांस्टेबल से कहकर रिवाल्वर खाली कराया तथा उंगलियों के निशान सा़फ कराए.

राजीव वर्मा की पत्नी मंजू वर्मा ने घटना का विवरण देते हुए बताया कि उस दिन सुबह में उन्होंने मेज पर नाश्ते की प्लेट लगाना शुरू किया. इसी बीच राजीव वर्मा ने कहा, सरदार जी के यहां से आते हैं फोन करके. क्योंकि, उनका फोन उस समय खराब था. इसके पंद्रह मिनट बाद गोली की आवाज़ और चीख सुनकर जब वह प्रकाश सिंह के फ्लैट में पहुंची, तो श्री वर्मा को ज़मीन पर गिरा पाया.

राजीव वर्मा की पत्नी मंजू वर्मा ने घटना का विवरण देते हुए बताया कि उस दिन सुबह में उन्होंने मेज पर नाश्ते की प्लेट लगाना शुरू किया. इसी बीच राजीव वर्मा ने कहा, सरदार जी के यहां से आते हैं फोन करके. क्योंकि, उनका फोन उस समय खराब था. इसके पंद्रह मिनट बाद गोली की आवाज़ और चीख सुनकर जब वह प्रकाश सिंह के फ्लैट में पहुंची, तो श्री वर्मा को ज़मीन पर गिरा पाया. घटना की सूचना मिलने पर पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी मा़ैके पर पहुंचे. पुलिस महानिरीक्षक ने सीआईडी को जांच का काम सौंपा, जब इसमें ढिलाई दिखाई पड़ी, तो मुख्यमंत्री ने चौबीस घंटे में जांच पूरी करने के आदेश दिए. लेकिन इन पंक्तियों के लिखे जाने तक यानी हत्या के चौबीस दिनों बाद तक न जांच पूरी हुई और न प्रकाश सिंह के विरुद्ध दफा 302 (क त्ल) का मुक़दमा कायम हुआ. उनके विरुद्ध साक्ष्यों को नष्ट करने के आरोप में भारतीय दंड संहिता की धारा 201 के तहत म़ुकदमा दायर किया गया, जिसमें अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की गई है.
खुफिया विभाग के अधिकारी इस घटना के पीछे तीन संभावनाएं देख रहे थे-हत्या, दुर्घटना या आत्महत्या की. इन्हीं अनुमानों के आधार पर उन्होंने जांच की शुरुआत की. लेकिन उत्तर प्रदेश पुलिस के अधिकारी जांच में कितनी रुचि ले रहे हैं, यह इसी बात से जाहिर होता है कि 14 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी के यहां मंजू वर्मा एवं प्रकाश सिंह को बुलाकर सुलह कराने की कोशिश की गई. जानकार सूत्रों का कहना है कि आईपीएस अधिकारियों ने यह सोचा कि जब राजीव वर्मा मर ही गए, तो इस प्रकरण पर ज़्यादा छानबीन से आईपीएस बिरादरी की बदनामी क्यों होने दी जाए. अत: सीआईडी अधिकारियों को इशारा दिया गया कि दुर्घटना की संभावनाओं को ही आधार बनाकर जांच की जाए. यदि इसे दुर्घटना मान लिया जाएगा, तो प्रकाश सिंह के विरुद्ध केवल सबूत नष्ट करने का मामला ही चल पाएगा. लेकिन कुछ ऐसे तथ्य हैं, जिनसे लगता है कि दुर्घटना की कहानी गढ़ी हुई है.

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