तेलंगाना पर केंद्र ने सहमति क्या जताई, अलग मिथिलांचल राज्य की मांग ने एक बार फिर ज़ोर पकड़ लिया. बिहार के सोलह ज़िलों को मिलाकर बनने वाले इस राज्य की मांग से जुड़े नेताओं ने पुरानी फाइलें खोलकर संघर्ष की नई रणनीति बनानी शुरू कर दी है. हालांकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार के किसी भी तरह के बंटवारे की बात को पूरी तरह खारिज कर दिया है, लेकिन अलग मिथिलांचल आंदोलन से जुड़े नेता हार मानने को तैयार नहीं हैं. उत्तर बिहार को विकसित करने के इरादे से मिथिलांचल की पृष्ठभूमि तैयार की गई. एक समय था, जब मिथिलांचल राज्य का नारा भाजपा नेता एवं विधान परिषद के तत्कालीन सभापति ताराकांत झा ने बुलंद किया था. उनकी राय में मिथिलांचल के मुद्दे पर सभी पार्टियों को गंभीरता से विचार करना चाहिए. उन्होंने कहा कि मिथिलांचल भी अलग राज्य बनाने की कसौटी पर खरा उतरता है, मगर अलग राज्य का निर्माण नीतिगत आधार पर होना चाहिए. ताराकांत झा का मानना है कि अलग राज्य का गठन प्रशासनिक सुविधा, भौगोलिक एकता, पिछड़ापन और विकास के आधार पर होना चाहिए, न कि राजनीतिक कारणों से, जैसा कि तेलंगाना के मामले में हुआ. झा ने कहा कि जहां तक मिथिलांचल की बात है तो यह छोटे राज्य की गिनती में आएगा ही नहीं, क्योंकि यह देश के मौजूदा कई राज्यों से बड़ा होगा. भौगोलिक रूप से इसके उत्तर में हिमालय, दक्षिण में गंगा, पूरब में महानंदा और पश्चिम में गंडक नदी है. इसकी सीमा बेतिया से किशनगंज तक फैली है. अतीत में मिथिला राज्य की राजधानी बेतिया के पास सुगांव रही थी.

पृथक मिथिलांचल राज्य निर्माण के लिए दरभंगा प्रमंडल आयुक्त कार्यालय पर बीती 14 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय मैथिली परिषद के तत्वावधान में धरना कार्यक्रम आयोजित किया गया. परिषद के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य डॉ. राममोहन झा ने कहा कि जब भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन किया गया था, उसी समय मिथिलांचल की उपेक्षा की गई. आज जब आर्थिक पिछड़ेपन को राज्य के गठन का आधार बनाया गया है,

तब भी राज्य और केंद्र सरकार द्वारा मिथिलांचल की उपेक्षा की जा रही है. आज़ादी के बाद जहां देश के अन्य हिस्से विकसित हुए, वहीं मिथिलांचल दिन- प्रतिदिन पिछड़ता गया. किसी ने भी मिथिलांचल के विकास के प्रति संजीदगी नहीं दिखाई. नए उद्योग-धंधों की स्थापना और विकास की जगह यहां के कल-कारखाने एवं व्यवसाय चौपट हो गए. हर साल कोसी, करेह, बागमती, बूढ़ी गंडक, वाया, बलान एवं गंगा नदी की बाढ़ और प्राकृतिक आपदा से त्रस्त मिथिलांचल के 16 ज़िले विकास की पटरी से पूरी तरह नीचे उतर चुके हैं. डॉ. झा ने कहा कि मिथिलांचल के अस्तित्व की रक्षा की खातिर उसके आर्थिक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक विकास के लिए पृथक राज्य के गठन हेतु आंदोलन को धारदार बनाया जाएगा. जब तक मिथिलांचल राज्य का गठन नहीं होता, तब तक पूरे दमखम के साथ आंदोलन जारी रहेगा.  पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ. शकील अहमद भी पृथक मिथिलांचल राज्य के पक्षधर हैं. उन्होंने तेलंगाना की तरह पृथक मिथिलांचल के गठन पर बल देते हुए कहा कि लोग इसके लिए राज्य एवं केंद्र सरकार की ओर टकटकी लगाए हुए हैं. डॉ. अहमद ने कहा कि छोटे राज्यों के गठन की एक परिकल्पना है और मिथिलांचल उसकी सभी शर्तों एवं अर्हताओं को पूरा करता है. केंद्र सरकार और कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के प्रति मिथिलांचल के लोगों में अगाध प्रेम की भावना है. दरभंगा ज़िला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष डॉ. कमरूल हसन का कहना है कि पृथक मिथिलांचल राज्य के गठन के लिए दरभंगा से दिल्ली तक लोगों की कतार खड़ी हो जाएगी.
अखिल भारतीय मिथिला राज्य संघर्ष समिति के महासचिव डॉ. वैद्यनाथ चौधरी उर्फ बैजू ने पिछले दो दशकों से आंदोलन छेड़ रखा है. डॉ. चौधरी ने ऐलान किया है कि प्राचीनकाल में मिथिला राज्य था. अंग्रेजों ने अपने शासन के दौरान मिथिलांचल को अंग-भंग कर डाला था. 1912 में जब बंगाल से बिहार अलग होने लगा, तभी से मिथिला राज्य के पुनर्गठन के लिए आंदोलन जारी है.
अंतरराष्ट्रीय मैथिली परिषद ने इस मुद्दे को लेकर अपनी प्रभावकारी रणनीति बनाई है, जिससे राज्य एवं केंद्र सरकार मुकर नहीं सकती है. उसने तेलंगाना, बुंदेलखंड और पूर्वांचल आदि राज्यों के गठन का समर्थन किया और मिथिलांचल के लोगों से दिल्ली के आंदोलन में सहयोग करने का आह्वान किया है.
समस्तीपुर के समाजसेवी अजय कुमार सिन्हा का मानना है कि आज़ादी के बाद छोटे-छोटे प्रांत हरियाणा, पंजाब और गुजरात आदि विकसित हुए. झारखंड, उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ के गठन के बाद उक्त प्रांत के लोग अपने पैरों पर खड़े हो रहे हैं. इसे देखते हुए मिथिलांचल के लोगों में भी पृथक मिथिलांचल राज्य के गठन की लालसा बलवती हो रही है. मिथिला राज्य अभियान समिति के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. सुरेश्वर झा का भी मानना है कि मिथिलांचल अलग राज्य के सारे मापदंडों को पूरा करता है. इसलिए विकास के लिहाज़ से इसे अलग अस्तित्व प्रदान न करना करोड़ों मिथिलावासियों का अपमान होगा.

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