देश में इन दिनों चुनावी माहौल काफी गर्म है. ऐसे राजनीतिक दलों से जुड़े लोगों की बात तो छोड़िये. आम लोगों पर भी नेता बनने का भूत सवार है. मामला सिहावा विधान सभा क्षेत्र का है. जहां पेशे से किसान झनकलाल चंद्रवंशी पर चुनाव लड़ने का ऐसा जूनून सवार हुआ कि वे लोकसभा चुनावों के लिए नामांकन कराने जा पहुंचें. नामांकन शुल्क के लिए उन्होंने साढ़े बारह हजार रुपयों का भी इंतजाम किया था. लेकिन ऐन मौके पर उनकी एक गलती से सारी उम्मीदें टूट गईं. दरअसल हुआ ये कि झनकलाल अपने जाति प्रमाण पत्र की जगह अपने बेटे का सर्टीफिकेट ले आये थे. फिर क्या था नामांकन पत्र दाखिल किये बगैर ही उन्हें बैरंग लौटना पड़ा.

वहीं दूसरा मामला ओडिशा के कालाहांडी जिले के लाडूगांव का है. जहां के प्रधानी बाग का चुनाव लड़ने का सपना सिर्फ इसलिए अधूरा रह गया क्योंकि उनके पास चुनाव खर्च का ब्योरा देने के लिए अलग से कोई बैंक अकाउंट नहीं था. प्रधानी बाग अपने पुराने बैंक खाते का विवरण लेकर पहुंचे थे. हालांकि उन्होंने कहा है किचुनाव लड़ने के लिए अगले 5 साल इंतजार करेंगे. लेकिन महासमुंद संसदीय सीट चुनाव जरुर लड़ेंगे.

बताया जाता है कि 2014 में महासमुंद लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने वाले 11 प्रत्याशियों के नाम चंदूलाल थे. जिससे प्रधानी बाग काफी प्रभावित हुए और उन्होंने महासमुंद सीट से चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया. प्रधानी बाग सेंट्रल यूनिवर्सिटी गांधीनगर गुजरात से पीएचडी कर रहे हैं.

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