lalu yadavराजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव अब राष्ट्रीय राजनीति में बड़ी भूमिका निभाने की तैयारी मेें जुटे हैं. बिहार के नालंदा जिले के राजगीर में राजद के तीन दिवसीय प्रशिक्षण शिविर और राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से यह बात उभर कर सामने आई है. भाजपा विरोधी दलों को एकजुट कर लालू प्रसाद यादव वैसी ही भूमिका निभाना चाहते हैं, जैसी वे यूपीए 1 में सभी भाजपा विरोधी दलों को एकजुट कर केन्द्र में कांगे्रस के नेतृत्व में गठबंधन सरकार बनाने में सफल हुए थे.

इसके लिए लालू प्रसाद यादव आगामी अगस्त महीने में पटना के गांधी मैदान में रैली का आयोजन करेंगे, जिसमें बंगाल की तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी, ओडीशा के बीजू जनता दल के नवीन पटनायक, बसपा की मायावती तथा सपा के अखिलेश यादव तथा सोनिया गांधी को आमंत्रित किया जाएगा. इस रैली के जरिए वे 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को उखाड़ फेंकने की तैयारी करने के लिए सभी दलों को एकजुट होने का आह्‌वान भी करेंगे. वर्तमान में राष्ट्रीय राजनीति में भाजपा विरोधी दलों में बढ़ती लोकप्रियता और इन दलों को एकजुट करने के प्रयास में नीतीश कुमार को केन्द्र स्तर पर बनने वाले संभावित महागठबंधन का श्रेय मिल सकता है.

ऐसा माना जा रहा है कि बिहार में शराबबंदी के बाद नीतीश कुमार ने अपनी लोकप्रियता में इज़ा़फा किया है. विशेषकर आधी आबादी शराबबंदी से सुकून महसूस कर रही है. जो लोग लालू प्रसाद यादव के राजद से नीतीश के गठबंधन करने की वजह से विरोध में थे, वैसे लोग भी शराबबंदी के बाद नीतीश कुमार के समर्थन में बोलने लगे हैं. इन्हीं सब बातों को देख-सुनकर लालू प्रसाद यादव के मन में कहीं न कहीं पुन: यूपीए 1 की तरह किंगमेकर बनने की इच्छा उबाल मारने लगी. इसकी शुरुआत लालू ने नीतीश कुमार के गढ़ नालंदा जिले के राजगीर में तीन दिवसीय राजद प्रशिक्षण शिविर और राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक 2 से 4 मई 2017 तक आयोजित कर की.

राजद के इस शिविर का आयोजन कर लालू ने एक तरह से नीतीश कुमार को चुनौती दे डाली, क्योंकि राजद नेताओं को पहले जानकारी थी कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक और प्रशिक्षण शिविर बोधगया में आयोजित होगा, बाद में आयोजन स्थल बदल कर राजगीर कर दिया गया. इससे स्पष्ट है कि देश स्तर पर भाजपा विरोधी दलों के महागठबंधन बनने या बनाने का श्रेय लेने की होड़ लालू और नीतीश में लगी है. लालू ने राजगीर में आयोजित प्रशिक्षण शिविर के बहाने सबसे पहले अपनी पार्टी के सांसदों, विधायकों और कार्यकर्ताओं को एकजुट करने का प्रयास किया है, ताकि वे  अगस्त में पटना के गांधी मैदान में भाजपा विरोधी दलों की होने वाली रैली में अपनी राजनीतिक ताकत का एहसास करा सकें.

इसमें लालू कितने सफल हो पाएंगे यह तो समय बताएगा, लेकिन राजगीर में राजद के तीन दिवसीय प्रशिक्षण शिविर और राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक का मूल एजेंडा यह रहा कि भाजपा विरोधी दलों को एकजुट करने का श्रेय लालू को मिले. हाल में नीतीश कुमार ने विभिन्न राज्यों का दौरा किया था. इस दौरे में बिहार में शराबबंदी की सराहना सभी प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों ने भी की. भाजपा विरोधी दलों के बीच नीतीश की बढ़ती लोकप्रियता ने लालू को कहीं न कहीं विचलित किया है.

इससे इंकार नहीं किया जा सकता है कि राजद के राजगीर सम्मेलन के सहारे लालू प्रसाद यादव एक बार पुन: खुद को राष्ट्रीय राजनीति का सिरमौर बनने का प्रयास कर रहे हैं. प्रशिक्षण शिविर के सहारे लालू प्रसाद यादव ने अपने ऊपर लगे परिवारवाद के आरोप को कुछ कम करने का प्रयास किया. उद्घाटन सत्र में राबड़ी देवी और स्वास्थ्य मंत्री तेजप्रताप यादव मौजूद नहीं थे. अगर वे आते तो आगे की पंक्ति में ही बैठते. ऐसे में अगली पंक्ति में सिर्फ लालूू, उनकी राज्य सभा सदस्य बड़ी बेटी मीसा भारती और पुत्र एवं बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव बैठे थे.

इसी कतार में प्रेमचंद गुप्ता, जयप्रकाश यादव, बुलोमंडल, तसलीमुद्दीन, जगदानंद सिंह, मंगनीलाल मंडल, मुंद्रिका सिंह यादव, कमर आलम, मनोज झा आदि भी बैठे थे. बिहार में राजद कोटे के सभी मंत्री पीछे की कतार में बैठे थे. मंच पर नेताओं के बैठने की जो व्यवस्था की गई थी, उससे भी लालू  कुछ अमौखिक संदेश देने का प्रयास कर रहे थे. लेकिन उद्घाटन सत्र में राजद के वरिष्ठ नेता पूर्व सांसद डॉ. रघुवंश सिंह के नहीं रहने का कारण लोग समझ नहीं पाए. शिविर में बोलते हुए राजद के वरिष्ठ नेता पूर्व सांसद जगदानंद सिंह ने इस बात को स्पष्ट रूप से स्वीकार किया कि हमारे विचारों में धुंधलापन आया है और प्रशिक्षित लोगों की जमात खत्म हुई है, जिसके कारण राजद कमजोर हुआ है.

सबसे बड़ी बात यह हुई कि शिविर के माध्यम से लालू ने देश व प्रदेश की राजनीति के बदलते परिवेश और वोटरों की बदलती मानसिकता को ध्यान में रखते हुए अपनी छवि को बदलने का प्रयास किया. क्योंकि लालू नेे शिविर में अपने भाषण में अनुशासन शब्द का कई बार इस्तेमाल किया. लालू ने कहा कि अनुशासन के साथ ही पार्टी आगे बढ़ेगी. राजद में ढुलमुल और आया राम, गया राम नेताओं की अब नहीं चलेगी. अनाप-शनाप बयान नहीं चलेगा. हमारा मिशन देश से भाजपा का खात्मा व धर्मनिरपेक्ष शक्तियों को सत्ता में लाना है. ज्ञात हो कि लालू-राबड़ी के कथित जंगलराज में राजद के नेता-कार्यकतार्र् कितने अनुशासनप्रिय थे, यह बताने की जरूरत नहीं है.

अब राजद ने चौक-चौराहों पर राजद कार्यकर्ताओं व नेेताओं से बहस करने की बात कही है, ताकि हर जगह राजद की चर्चा रहे. यह बात पूर्व सांसद जगदानन्द सिंह ने कही, लेकिन शिविर में लालू और उनके पुत्र बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के निशाने पर भाजपा ही रही. लालू ने इस शिविर से भाजपा के विरोधी दलों से केन्द्र स्तर पर एकजुटता के लिए बिहार मॉडल अपनाने का आग्रह किया. लालू ने राजद की बैठक में कहा कि आज समाजवादियों के ऊपर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है. देश खतरे के दौर से गुज़र रहा है. हर जगह राम मंदिर, गाय, कब्रगाह और श्मशान की राजनीति हो रही है. दलदल में फंसे देश को बाहर निकालने के लिए हम सभी को साथ आना होगा.

नीतीश कुमार के साथ मेरी बहुत लड़ाई थी, लेकिन बिहार में भाजपा को पराजित करने के लिए हमने गठबंधन किया और सफल रहे. आज देश के स्तर पर इसी तरह का गठबंधन बनाने की जरूरत है, तभी भाजपा-आरएसएस को पराजित किया जा सकता है. तीन दिवसीय शिविर में परिवारवाद पर किसी भी राजद नेता ने कुछ भी नहीं बोला. साम्प्रदायिक शक्तियों को सत्ता से बाहर करने की बात करने वाले राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव और उनके पुत्रों ने शिविर के दूसरे दिन पूरी तरह परिवारवाद, जातिवाद पर ही आ गए.

उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने स्पष्ट कहा कि देश में साम्प्रदायिक शक्तियों के खिलाफ लड़ाई में यादव इंजन हैं, तो अन्य लोग बोगी. शिविर के दूसरे-तीसरे दिन तो पूरी तरह से लालू परिवार ही छाए रहे. राजद के बड़े नेताओं की उपस्थिति के बावजूद मंच पर पहली पंक्ति में लालू के अलावा मीसा भारती, तेजस्वी यादव, तेज प्रताप बैठे थे. लालू पुत्र उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने भी राजद कार्यकर्ताओं को विशेष कर यादवों को एकजुट करने के लिए वही रणनीति का ऐलान किया, जिसकी शुरुआत उनके पिता ने दो दशक पूर्व की थी. तेजस्वी ने अपने कार्यकर्ताओं को लाठी से लैस होने की बात कही. साथ में इतना जोड़ा कि लैपटॉप भी देंगे.

लालू दो दशक पूर्व पटना के गांधी मैदान में राजद कार्यकर्ताओं की लाठी रैली कर देश भर में चर्चा में आए थे. राजद के राजगीर शिविर से स्पष्ट हो गया है कि लालू प्रसाद यादव में एक तरफ बिहार की सत्ता पर पूर्णत: काबिज होने की छटपटाहट है, तो दूसरी तरफ राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा विरोधी दलों की एकजुटता का श्रेय लेने की होड़ भी. इस चाहत में दर्द बस इतना है कि चारा घोटाले में सजायाफ्‌ता होने के कारण वे खुद चुनाव लड़ने से वंचित हैं, लेकिन किंगमेकर तो बन ही सकते हैं. कह सकते हैं कि राजद की तीन दिवसीय प्रशिक्षण शिविर-सह-राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में ‘कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना’ साधने का प्रयास लालू प्रसाद यादव ने किया.

यह तो अगस्त में पटना के गांधी मैदान में आयोजित भाजपा विरोधी दलों की रैली में पता चलेगा कि लालू का निशाना ‘टारगेट’ पर लगा कि नहीं. फिलहाल लालू अपनी राजनीतिक चाल से भाजपा विरोधी दलों को एकजुट करने के प्रयास में लगकर नीतीश की बढ़ती लोकप्रियता पर भी लगाम लगाना चाहते हैं. राजद का प्रशिक्षण शिविर और राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक नीतीश के गढ़ में कर के लालू ने कुछ इसी तरह का संदेश देने का प्रयास किया है.

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