unionअभी कुछ ही दिन पहले सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी की एक रिपोर्ट आई थी, जो बताती है कि साल 2017 के पहले चार महीने, जनवरी 2017 से अप्रैल 2017 के बीच तकरीबन 1.5 मिलियन यानि 15 लाख नौकरियां समाप्त हो गईं. जाहिर है, ये नोटबंदी का असर ही था. अप्रैल 2016 में कुल नौकरियों की संख्या 401 मिलियन थी, जो दिसंबर 2016 तक बढ़कर 406.5 मिलियन हो गई. इसके बाद के 4 महीनों में ये घट कर 405 मिलियन रह गई यानि 1.5 मिलियन (15 लाख) नौकरियां खत्म हो गईं. गौरतलब है कि ये वक्त नोटबंदी और नोटबंदी के बाद हालात के सामान्य होने का था. इसके बाद, जुलाई से जीएसटी लागू किए जाने के बाद एक बार फिर छोटे और मंझोले व्यापारियों का काम प्रभावित हुआ. इस वजह से अकेले सूरत जैसे शहर से एक लाख से अधिक बिहार और यूपी के मजदूरों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा. बड़ी आईटी कंपनियां और एलएंडटी जैसी बड़ी कंस्ट्रक्शन कंपनियों ने भी काफी संख्या में अपने यहां से लोगों को काम से निकाला.

सवाल है कि देश में दर्जनों मजदूर संगठन हैं, वो क्या कर रहे हैं? ऐसे माहौल में जब मजदूरों और कामगारों का काम छूट रहा है, ये मजदूर संगठन क्या उनके लिए आवाज उठा रहे हैं? चौथी दुनिया ने इस बारे में ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस, इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस और भारतीय मजदूर संघ से बात की. इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस के प्रेसीडेंट जी संजीव रेड्डी ने चौथी दुनिया से बात करते हुए कहा कि नोटबंदी, जीएसटी के बाद मजदूरों का सबसे बड़ा दुश्मन बनने जा रहा है, श्रम कानूनों में किए जाने वाला प्रस्तावित संशोधन. उन्होंने बताया कि सरकार आने वाले सत्र में ट्रेड यूनियन एक्ट, इंडस्ट्री डेस्प्यूट सेटलमेंट एक्ट, लेबर लॉ आदि में संशोधन करने जा रही है. उनके मुताबिक, पहले जहां किसी कंपनी के 7 सदस्य मिल कर ट्रेड यूनियन बना सकते थे अब वहीं ये संख्या कंपनी के सदस्यों की 50 फीसदी तक बढ़ाने की कोशिश की जा रही है, ताकि ट्रेड यूनियन बनाने की कोशिश को कमजोर किया जा सके. उसमें कोई बाहरी व्यक्ति नहीं हो सकता, प्रबन्धन बिना नोटिस दिए वेतन घटा सकता है, टर्म्स ऑफ कॉन्ट्रैक्ट ऑफ एम्प्लॉयमेंट में प्रबन्धन अपनी मर्जी से बदलाव कर सकता है. रेड्डी मानते हैं कि अगर इस तरह का कानून पास हुआ तो आने वाले समय में मजदूरों और कर्मचारियों के हितों की रक्षा बिल्कुल नहीं हो पाएगी. इंटक आगामी 9-10-11 नवंबर को संसद मार्ग पर इस मुद्दे को लेकर प्रदर्शन भी करने वाली है.

इंटक के नेशनल वाइस प्रेसीडेंट अशोक सिंह ने बताया कि इस प्रदर्शन में देश के सभी मजदूर संगठन एक साथ एक मंच पर आएंगे. हालांकि, उन्होंने ये भी बताया कि मजदूर संगठनों की इस एकता में आरएसएस समर्थित भारतीय मजदूर संघ शामिल नहीं है. बीएमएस क्यों शामिल नहीं है, ये पूछने पर अशोक सिंह ने कहा कि बीएमएस का गठन ही आरएसएस ने इसलिए किया, ताकि देश में मजदूर संगठन कमजोर हो जाए. बहरहाल, 26 अक्टूबर को दिल्ली के श्रमिक भवन में करीब दर्जन भर मजदूर संगठनों की बैठक हुई. इस बैठक में 9-10-11 नवंबर को होने वाले प्रदर्शन के बारे में बातचीत हुई. इस बारे में अशोक सिंह ने बताया कि हमने तय किया है कि चूंकि जंतर-मंतर पर एनजीटी ने प्रदर्शन की मनाही कर दी है, फिर भी हम सरकार से जगह मांगेंगे और अपना प्रदर्शन करेंगे. भले ही हमें जगह मिले या न मिले लेकिन हम अपने 12 सूत्री मांग को लेकर अपना आन्दोलन अवश्य करेंगे. हम किसी भी परिणाम को झेलने के लिए तैयार हैं. इस बैठक में एटक की अमरजीत कौर, हिन्द मजदूर सभा के हरभजन सिंह सिद्धू, सीटू के तपन सेन आदि भी शामिल हुए.

एटक की सचिव अमरजीत कौर ने चौथी दुनिया से बात करते हुए कहा कि नोटबंदी और जीएसटी से छोटा सेक्टर और माइक्रो इन्डस्ट्री को काफी नुकसान हुआ जबकि ये सेक्टर 80 फीसदी से अधिक रोजगार का सृजन करते हैं. अमरजीत कौर ने बताया कि उनका संगठन नवंबर के दूसरे सप्ताह में संसद मार्ग पर धरना देगी और श्रम कानून में मजदूर विरोधी प्रावधान के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराएगी. एटक ने अपनी 12 सूत्रीय मांग तैयार की है. उनका कहना है कि अगर सरकार हमारी मांगें नहीं मानती है तो अगले साल सभी मजदूर संगठन एक साथ मिल कर पूरे देश में हड़ताल करेंगे. चौथी दुनिया ने जब मजदूर संघ के महासचिव बृजेश उपाध्याय से इस बारे में बात की तो पहले तो वो ये मानने को तैयार ही नहीं थे कि नोटबंदी या जीएसटी से मजदूरों का काम खत्म हो रहा है. वे कहते हैं कि मैं इस बात से सहमत नहीं हूं कि इससे कोई बहुत बड़ा नुकसान हुआ है बल्कि इससे मजदूर को फायदा हुआ है और वे संगठित क्षेत्र में आ गए हैं. मौजूदा बेरोजगारी को वे अस्थायी फेज मानते हैं. हालांकि, वे ये मानते हैं कि नोटबंदी और जीएसटी का क्रियान्वयन और बेहतर किया जा सकता था, बशर्ते सरकार सभी हितधारकों से सलाह मशविरा करती. बहरहाल, हरेक संगठन की अपनी राजनीति होती है, लेकिन, सरकार की आर्थिक नीति और श्रम कानूनों के साथ छेड़छाड़ से निश्चित तौर पर देश के मजदूरों और श्रमिकों का भारी नुकसान हुआ है और आगे भी हो सकता है. ऐसे में ये मजदूर संगठन इन मजदूरों के हितों की कितनी रक्षा कर पाते हैं, इसका इंतजार इस देश को भी है, कामगारों को भी है.

मजदूर संगठनों की 12 सूत्री मांग

  1. सार्वजनिक वितरण प्रणाली के सार्वभौमिकरण कर मूल्य वृद्धि पर लगाम लगाया जाए. कमोडिटी बाजार में वायदा कारोबार बन्द हो.
  2. रोजगार सृजन के लिए मजबूत कदम उठाते हुए बेरोजगारी घटाई जाए.
  3. सभी बेसिक लेबर लॉ (श्रम कानून) का क्रियान्वयन हो. इसमें कोई अपवाद या छूट न हो और लेबर लॉ के उल्लंघन पर कड़ी कार्रवाई हो.
  4. न्यूनतम वेतन प्रति माह 18000 रूपये से कम न हो.
  5. सभी कामगारों को सामाजिक सुरक्षा मिले.
  6. सभी श्रमिकों के लिए न्यूनतम पेंशन 3 हजार रुपए हो.
  7. केन्द्र और राज्य के पीएसयू में विनिवेश बन्द हो.
  8. कॉन्ट्रैक्ट जॉब बन्द हो और और जो हैं उन्हें नियमित कर्मचारी की तरह ही समान वेतन-भत्ता मिले.
  9. वेतन, बोनस, पीएफ पर सीलिंग हटे, ग्रेच्युटी की मात्रा बढाई जाए.
  10. आवेदन दिए जाने के 45 दिनों के भीतर अनिवार्यत: ट्रेड यूनियन का रजिस्ट्रेशन हो.
  11. हम श्रम कानून संशोधन के खिलाफ हैं.
  12. हम रेलवे, बीमा और डिफेंस में एफडीआई के खिलाफ हैं.

चूंकि जंतर-मंतर पर एनजीटी ने प्रदर्शन की मनाही कर दी है, फिर भी हम सरकार से जगह मांगेंगे और अपना प्रदर्शन करेंगे. भले ही हमें जगह मिले या न मिले लेकिन हम अपने 12 सूत्री मांग को लेकर अपना आन्दोलन अवश्य करेंगे. हम किसी भी परिणाम को झेलने के लिए तैयार हैं.

–अशोक सिंह, नेशनल वाइस प्रेसिडेंट, इंटक

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