kashmirपिछले तीन दशकों से लगातार हिंसक हालात की शिकार कश्मीर घाटी में नए साल की शुरुआत पर भी हिंसा और हत्याएं देखने को मिलीं. 31 दिसंबर की सुबह श्रीनगर से 22 किलोमीटर दूर दक्षिणी जिला पुलवामा के लेथपुरा में पहला पैरामिलिट्री फोर्सेज के ट्रेनिंग सेन्टर पर तीन मिलिटेंट्‌स का एक फिदायीन ग्रुप हमलावर हुआ. कैम्प के अंदर खूनी झड़प लगभग दो दिनों तक चली. पहले ही दिन सीआरपीएफ के पांच जवान और दो हमलावर मारे गए. दूसरे दिन फोर्सेज ने तीन हमलावर मिलिटेंट की लाश बरामद की.

इस तरह से 2017 के अंत पर और 2018 की शुरुआत में भी यहां गोलियों और ग्रेनेडों की घनघनाहट और घनगरज सुनने को मिली. घाटी के मौजूदा हालात को देखकर नहीं लगता कि हिंसक हालात के संदर्भ में 2018 पिछले वर्ष के मुकाबले में बेहतर होगा. पिछले चार वर्ष में कश्मीर में सबसे ज्यादा हिंसक वारदातें 2017 में देखने को मिलीं. केन्द्रीय गृहमंत्री की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2017 में कश्मीर में लगभग 350 हिंसक घटनाएं हुईं. इन घटनाओं में 210 मिलिटेंट, 65 आम शहरी और 94 फौजी व सुरक्षा अधिकारी मारे गए. सैकड़ों लोग घायल हुए. 2017 में घाटी के विभिन्न क्षेत्रों में फोर्सेज पर पत्थर फेंकने की सैकड़ों घटनाएं हुईं.

हालांकि केन्द्रीय सरकार साल भर ये झूठा दावा करती रही कि नोटबंदी की वजह से घाटी में पथराव की घटनाएं रुक गई हैं. हकीकत यह है कि हर चंद दिन बाद किसी न किसी इलाके में फोर्सेज और नौजवानों के बीच हिंसक झड़पें होती रहीं. हिंसक हालात के कारण कश्मीर में सबसे ज्यादा शिक्षा विभाग प्रभावित हुआ. 2016-17 के वार्षिक शैक्षिक वर्ष में छात्र व छात्रा को स्कूलों और कॉलेजों में शिक्षा के लिए 100 दिन भी नहीं मिले. अधिकारियों को 2017 के दौरान श्रीनगर शहर में 38 विभिन्न दिनों में लोगों की गतिविधियों पर पाबंदी लगाकर कर्फ्यू जैसी स्थिति पैदा करनी पड़ी.

श्रीनगर की ऐतिहासिक जामा मस्जिद एक साल में 20 हफ्तों तक जुमे की नमाज के लिए बंद रही. इतना ही नहीं इस एक साल में घाटी में 29 बार इंटरनेट सर्विस पर पाबंदी लगाई गई. सच तो यह है कि 2017 कई लिहाज से हालात की गंभीरता का एहसास दिलाता रहा. सेना और सुरक्षा एजेंसियों ने मिलिटेंट्‌स का सफाया करने के लिए इसी साल ऑपरेशन ऑल आउट शुरू किया, जिसके तहत साल भर में 200 से ज्यादा मिलिटेंट मारे गए.

लेकिन दिसम्बर महीने में खुद ही सेना और पुलिस के उच्च अधिकारियों ने श्रीनगर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि इस समय अन्य 200 मिलिटेंट कश्मीर में सक्रिय हैं. यानी कहा जा सकता है कि ऑपरेशन ऑल आउट के तहत मिलिटेंट्‌स को मार गिराने में फौज और फोर्सेज को एक साल और लगेगा. लेकिन इसके बाद भी कोई गारंटी नहीं कि मिलिटेंसी पूरी तरह खत्म हो जाएगी. क्योंकि मिलिटेंटों की सफों में नई भर्ती सिक्योरिटी फोर्सेज के लिए बहुत बड़ी चुनौती साबित हो रही है. सिक्योरिटी फोर्सेज के आंकड़ों के मुताबिक, 2017 में कम से कम 118 कश्मीरी नौजवान मिलिटेंट बन गए हैं. गौरतलब है कि पिछले साल मिलिटेंसी ज्वाइन करने वाले नौजवानों की संख्या सिर्फ 88 थी. 31 दिसम्बर को पैरा मिलिट्री फोर्सेज के ट्रेनिंग सेन्टर पर हमला करने वालों में दो कश्मीरी थे और एक विदेशी.

इन दो कश्मीरी मिलिटेंटों में एक फरदीन अहमद खांडे की उम्र सिर्फ 17 साल थी, जबकि उसके साथी मंजूर अहमद बाबा की उम्र 22 वर्ष थी. दोनों तीन माह पहले मिलिटेंट बने थे. फरदीन के परिजनों का कहना है कि चंद महीने पहले तक वो अपने पैतृक इलाके तराल के स्कूल में पढ़ते थे. इस घटना में सिक्योरिटी फोर्सेज के लिए सबसे ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि घाटी में पहली बार कश्मीरी मिलिटेंटों ने इस तरह का आत्मघाती हमला किया. अतीत में जब भी यहां सिक्योरिटी फोर्सेज पर आत्मघाती हमले हुए, उनमें हमेशा विदेशी मिलिटेंट देखने को मिले.

यहां की हालात पर गहरी नजर रखने वाले विश्लेषकों का मानना है कि कश्मीर में हिंसा और मिलिटेंसी भयानक रुख अख्तियार कर रही है. विश्लेषकों को जम्मू कश्मीर में आने वाले पंचायती चुनाव, जिनके लिए 15 फरवरी की तारीख तय है, पर भी हिंसा भड़कने की आशंका है. क्योंकि चुनाव के मौके पर हमेशा घाटी में हिंसा हो जाती है. 2011 में जब राज्य में पंचायती चुनाव हुए थे, तब उस समय संदिग्ध मिलिटेंटों ने कम से कम नौ पंचायत सदस्यों की हत्या कर दी थी. पिछले साल आठ अप्रैल को जब श्रीनगर बडगाम के लोकसभा सीट के उपचुनाव हुए तो एक ही दिन में फोर्सेज के हाथों आठ नौजवानों की हत्या हो गई.

2017 में जहां एक तरफ घाटी में हिंसा की लहर जारी रही, वहीं दूसरी तरफ साल भर सीमाओं पर भी युद्ध का समा बंधा रहा. दिसंबर के तीसरे हफ्ते में केन्द्रीय गृहमंत्री ने संसद को बताया कि जम्मू कश्मीर में लाइन ऑफ कंट्रोल और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर पाकिस्तानी फायरिंग और गोलाबारी के नतीजे में 30 लोग मारे गए, जिनमें 14 फौजी जवान, चार सीमा सुरक्षा बल के अधिकारी और 12 आम शहरी शामिल हैं. हालांकि ये आंकड़े सिर्फ 10 दिसंबर तक के हैं. इसके बाद भी कंट्रोल लाइन पर कई फौजी जवान भी मारे गए.

गृह मंत्रालय के अनुसार, पाकिस्तानी फौज में 10 दिसंबर तक 881 बार जंगबंदी समझौते का उल्लंघन करते हुए कंट्रोल लाइन और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर गोलाबारी की. ये बात उल्लेखनीय है कि सीमा पर होने वाली हर झड़प के बाद दोनों देश एक दूसरे पर झड़प शुरू करने में पहल करने और जंगबंदी के उल्लंघन का आरोप लगाते रहते हैं. गृह मंत्रालय ने संसद को ये भी बताया कि इस वर्ष यानी 2017 को कंट्रोल लाइन और सीमा पर पिछले सात साल में सबसे ज्यादा जंगबंदी का उल्लंघन हुआ. यानी एक तरफ घाटी के अंदर हिंसा का ग्राफ बढ़ता जा रहा है और दूसरी तरफ सीमाओं पर जंगी माहौल पैदा होता जा रहा है.

चूंकि भारत और पाकिस्तान के ताल्लुकात में तनाव बरकरार है और दोनों देशों के बीच किसी भी स्तर की वार्ता नहीं हो रही है. इसलिए सीमाओं पर जंगबंदी के क्रियान्वयन की कोई आशा नजर नहीं आ रही है. इसलिए घाटी के अंदरूनी हालात में भी फिलहाल बेहतरी की कोई उम्मीद नहीं है. ऐसा लगता है कि बीते साल की तरह इस साल भी इस बदनसीब इलाके में हिंसा के साए मंडराते रहेंगे. ये स्थिति बदल सकती है, अगर इस मसले को हल करने के लिए एक गंभीर और प्रभावी पॉलिटकल प्रॉसेस शुरू किया जा सकता है. लेकिन फिलहाल मोदी सरकार कश्मीर से सम्बन्धित कोई सकारात्मक राजनीतिक प्रक्रिया शुरू करने के मूड में नजर नहीं आती है.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here