bawal_rokne_ke_liye_tainat_जिला कचहरी में एक वकील व एक दारोगा की नासमझी ने पुलिस महकमे और वकील बिरादरी को प्रतिष्ठा की लड़ाई में इस कदर उलझा दिया है कि राज्य के कई ज़िले इसकी चपेट में आ गए. आंदोलन और धरना-प्रदर्शन की आंच हाईकोर्ट के वकीलों तक जा पहुंची. क़ानून के पैरोकार कहे जाने वाले पुलिस विभाग और वकील बिरादरी एक-दूसरे के खिला़फ आमने-सामने आकर आंदोलन को धार देने में जुट गए हैं. एक पखवाड़े से ज़्यादा समय बीत चुका है. इलाहाबाद और प्रदेश के ज़्यादातर कचहरी स्थल धरना-प्रदर्शन, महापंचायत, विरोध सभाओं के अखाड़े बन गए हैं. हर जगह न्यायिक कार्य पूरी तरह ठप है. रोज़ाना हज़ारों वादकारी कचहरी से बैरंग वापस लौटने के लिए मजबूर हो रहे हैं. आंदोलन थमने के आसार फिलहाल नहीं दिख रहे हैं. उत्तर प्रदेश के इतिहास में शायद ऐसा पहली बार हो रहा है, जब राज्य पुलिस और वकीलों के बीच टकराव विद्रोह के स्तर तक आ पहुंचा है. बीते 11 मार्च को इलाहाबाद ज़िला कचहरी में रा़ेजाना की तरह न्यायिक कार्य चल रहा था. दोपहर क़रीब साढ़े बारह बजे पेशी में आए दारोगा शैलेंद्र सिंह और वकील नबी अहमद के बीच पहले कहा-सुनी, फिर मारपीट होने लगी. आसपास मौजूद पुलिसकर्मी और वकील वहां आ गए. दारोगा ने अपनी सर्विस रिवाल्वर से गोली चला दी. गोली लगने से वकील नबी अहमद ने मौक़े पर ही दम तोड़ दिया, जबकि अजय नागर नामक सिपाही घायल हो गया. घटना से गुस्साए वकीलों का समूह सड़क पर उतर आया. प्रदर्शन, पथराव, आगजनी और तोड़फोड़ के साथ बवाल बढ़ने लगा. अधिकारी भी पुलिस फोर्स के साथ सड़क पर आ गए. लगातार बिगड़ते हालात देखकर जजों ने कचहरी परिसर में ही आपात बैठक बुला ली.

आरोप है कि प्रशासनिक अधिकारियों की मौजूदगी में पुलिस ने भीतर घुसकर कई जजों की पिटाई कर दी. मुश्किल से तीन घंटे भी नहीं बीते होंगे कि हालात बेकाबू होने लगे. स्मार्ट सिटी बनने जा रहे इलाहाबाद शहर में पुलिसिंग धड़ाम नज़र आई, तो क़ानून व्यवस्था औंधे मुंह पड़ी रही. बवाल ने तक़रीबन आधे शहर को अपनी चपेट में ले लिया. वकील और पुलिस दोनों आक्रामक हो गए. पुलिस ने कई बार लाठीचार्ज के साथ फायरिंग की. राह चलते बेकसूर लोग भी पिटाई के शिकार हुए. कई दर्जन वाहन आग के हवाले कर दिए गए. आईजी बृजभूषण शर्मा, डीएम भवनाथ और एसएसपी दीपक कुमार फोर्स के साथ मौक़े पर पहुंचे तो, लेकिन हालात पर नियंत्रण पाने में वे काफी देर बाद कामयाब हो सके. तब तक शहर के कई हिस्से पुलिस छावनी में बदल चुके थे. प्रशासन को जगह-जगह आरएएफ और पीएसी तैनात करनी पड़ी. 16 मार्च को वकीलों ने देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया, वहीं दूसरी तऱफ पुलिसकर्मियों ने भी बांह पर काली पट्टी बांधकर अपना विरोध जाहिर किया. 20 मार्च को वकीलों के विभिन्न संगठनों ने महापंचायत करके आंदोलन तेज करने का ऐलान किया. दूसरे ही दिन यानी 21 मार्च को पुलिसकर्मियों ने पूरे प्रदेश भर में विरोध दिवस मनाया. किसी भी पुलिस मेस में भोजन नहीं बना. पुलिसकर्मियों ने भूखे रहकर असंतोष जाहिर किया. इस बीच लखनऊ से आए आईजी (सिविल डिफेंस) अमिताभ ठाकुर ने घटना में घायल सिपाही अजय नागर से अस्पताल जाकर मुलाकात की. उन्होंने सिपाही को एक दिन का वेतन देने की घोषणा कर दी. इसके बाद अमिताभ ठाकुर ने वकील की हत्या के आरोपी दारोगा शैलेंद्र सिंह के आवास राजरूपपुर पहुंच कर उसके परिवारीजनों से मुलाकात कर उन्हें हिम्मत से काम लेने को कहा. मीडिया से बातचीत के दौरान अमिताभ ठाकुर ने कचहरी कांड को एक हादसे की संज्ञा दी. उन्होंने कहा कि दारोगा शैलेंद्र सिंह की हरसंभव मदद सरकार को करनी चाहिए.
पुलिसकर्मियों को अनुशासन विभाग का सरकारी कर्मचारी माना जाता है. पुलिस फोर्स द्वारा इस कदर खुलकर विरोध करने से अधिकारियों के माथे पर चिंता की लकीरें साफ देखी जा रही हैं. वकीलों ने अपने आंदोलन को धार देने के लिए संघर्ष समिति का गठन किया और रणनीति बनाई. समिति की बैठक में प्रदेश के 40 ज़िलों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया. 23 मार्च को सभी ज़िलों के संघों ने अपने ज़िला मुख्यालय पर मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन आला अधिकारियों को सौंपा. इलाहाबाद में वकीलों ने कमिश्नर को ज्ञापन दिया. संघर्ष समिति में प्रदेश के सभी अधिवक्ता संघ के अध्यक्षों और इलाहाबाद के सभी संघों के अध्यक्षों समेत पूर्व पदाधिकारियों को बतौर सदस्य शामिल किया गया है. आंदोलन की कमान बार काउंसिल के सदस्य एवं पूर्व उपाध्यक्ष आईके चतुर्वेदी को सौंपी गई है. शीतला मिश्र कार्यवाहक अध्यक्ष और देवेंद्र नगरहा सचिव बनाए गए. उधर, वकील हत्याकांड और पुलिस हमले की जांच की ज़िम्मेदारी सीबीआई को सौंप दी गई है. लेकिन वकीलों और पुलिस के बीच लगातार बढ़ता टकराव तथा पुलिस फोर्स द्वारा इस कदर विद्रोह पर उतर आना निश्चित रूप से शुभ संकेत नहीं माना जा रहा है. दो व्यक्तियों के आपसी विवाद के पुलिस विभाग बनाम वकील बिरादरी में बदल जाने से हर खास-ओ-आम चिंतित दिखाई दे रहा है.
एसएसपी का तबादला
एक राजनीतिक परिवार के क़रीबी होने का फायदा उठाकर इलाहाबाद में पिछले काफी समय से जमे एसएसपी दीपक कुमार को वकीलों के लाख विरोध के बावजूद नहीं हटाया गया, लेकिन यूपीपीएससी-2015 की प्री-परीक्षा के पेपर रद्द करने की मांग को लेकर हुए उपद्रव, आगजनी और उसके बाद हुई पुलिस फायरिंग की घटना उन्हें महंगी पड़ गई. दीपक कुमार को बीते एक अप्रैल को डीजीपी मुख्यालय लखनऊ से संबंद्ध कर दिया गया और उनके स्थान पर जौनपुर के एसपी वीरेंद्र प्रताप श्रीवास्तव को एसएसपी बनाकर भेजा गया है.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here