adani-modiभारत के एक राज्य में एक निजी कम्पनी पावर प्लांट लगा रही है. जिस क्षेत्र में वह पावर प्लांट लग रहा है वह क्षेत्र भारत में सबसे कम बिजली उपलब्धता वाला क्षेत्र है. लेकिन उस पावर प्लांट से निकलने वाली सारी बिजली में उस क्षेत्र का हिस्सा छोड़िए, राज्य का भी कोई हिस्सा नही है. वह बिजली विदेश भेजी जा रही है. जिस कम्पनी को उस पावर प्लांट बनाने का ठेका दिया गया है वह पूर्ण रूप से विदेशी (चीनी) कम्पनी है. जो कोयला उस पावर प्लांट में इस्तेमाल किया जाने वाला है, वो भी भारत का नही है. वह भी ऑस्ट्रेलिया से मंगाए जाने की योजना है, जबकि जिस जिले में वह पॉवर प्लांट लग रहा है, वहां आधुनिक भारत की सबसे पुरानी कोयला खदान मौजूद हैं. और वह राज्य देश का सबसे ज्यादा कोयला उत्पादन करने वाला राज्य है.

लेकिन कुछ लोगों के लिए यह बहुत खुशी की बात है कि इस प्लांट को लगाने के नाम वहां बसे आदिवासियों को भगाया जा रहा है. स्थानीय नदी से भारी मात्रा में पानी लिया जा रहा. कोयला ढुलाई के नाम पर रेलवे लाइन बिछाने के लिए किसानों की जमीनों को छीना जा रहा है. अब आप शायद समझ गए होंगे कि यहां झारखंड के गोड्‌डा जिले में लगाए जा रहे अडानी के पावर प्लांट की बात हो रही है. इस प्लांट की बिजली बांग्लादेश को बेची जाएगी. 1,600 मेगावाट वाले इस पावर प्लांट के  निर्माण का ठेका अडानी ने चीन की कंपनी सेप्को-थ्री को दिया है.

भारत में सबसे ज़्यादा कोयला झारखंड के पास होने के  बावजूद यहां बिजली की भारी कमी है. यहां कुल 59 फीसदी घरों में बिजली के कनेक्शन हैं, जबकि देशभर में यह दर 82 फीसदी है. यहां पर प्रति व्यक्ति बिजली खपत का आंकड़ा मात्र 552 यूनिट्स ही है, जो कि देश के औसत का लगभग आधा ही है.

झारखंड की पुरानी ऊर्जा नीति में साफ प्रावधान था कि झारखंड में लगने वाले और कोयले से चलने वाले किसी भी ऊर्जा संयंत्र की 25 फीसदी बिजली राज्य सरकार को मिलेगी, जो इसे एक तय दर पर दी जाएगी. वैसे अदानी पावर लिमिटेड का कहना है कि वह इस आवश्यकता को पूरा करेगा, लेकिन दूसरे स्रोत से. ये दूसरा स्रोत अभी तक स्पष्ट नहीं किया गया है.

अब सरकारी नीतियों को किस तरह से विशिष्ट पूंजीपतियों के हितो में मोल्ड किया जाता है, इसे समझिए. झारखंड ने 2016 में अपनी ऊर्जा नीति में संशोधन किया, ताकि अडानी राज्य में स्थित अन्य थर्मल परियोजनाओं से मिल रही तुलना में अधिक कीमत पर झारखंड को बिजली बेच सके. लेकिन दिलचस्प रूप से ऊर्जा नीति में हुए बदलाव दूसरे पुराने संयंत्रों पर लागू नहीं हुए, जबकि 2014 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के चलते उन्हें भी अपनी खदानों से हाथ धोना पड़ा था.

महालेखापाल कार्यालय ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि एक जैसे मामलों में सभी पक्षों के साथ हुए समझौतों की शर्तें भी एक जैसी होनी चाहिए थी. ऑडिट रिपोर्ट यह भी बताती है कि समझौते की शर्तों में हुए इस बदलाव से राज्य सरकार की जेब पर हर साल 296.40 करोड़ रु का अतिरिक्त बोझ पड़ सकता है. समझौता 25 साल के लिए हुआ है. इस लिहाज से देखें तो यह अतिरिक्त बोझ कुल मिलाकर 7410 करोड़ रु का होगा. यानी जमीन राज्य सरकार की और नुकसान भी राज्य सरकार का और  बिजली बेची जाएगी बांग्लादेश को. वैसे जब अडानी समूह ने बांग्लादेश के साथ बिजली आपूर्ति का समझौता किया था, तो उसने यह नहीं बताया था कि गोड्डा बिजली संयंत्र के लिए कोयला कहां से आएगा? मार्च 2018 में ऑस्ट्रेलिया में अडानी एंटरप्राइजेज के मुखिया जयकुमार जनकराज ने ऐलान किया कि गोड्डा परियोजना के लिए कोयला आस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड  प्रांत की कारमाइकल खदान से भेजा जाएगा.

जबकि इस वक्त अडानी की ऑस्ट्रेलिया की वह पूरी परियोजना गड्ढे में जा रही है और दूसरी बात यह है कि ऑस्ट्रेलिया से आने वाला कोयला, झारखंड में मौजूद कोयले की अपेक्षा बहुत महंगा पड़ेगा. अप्रैल 2018 में प्रकाशित अपनी एक रिपोर्ट में इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनैलिसिस के विशेषज्ञ साइमन निकोल्स ने लिखा है कि इतना पैसा खर्च कर के एक ऐसे राज्य में कोयला आयात करने का कोई मतलब नहीं बनता, जो कोयला खनन के मामले में भारत में सबसे आगे है.

लेकिन इस कहानी का अंत अभी बाकी है. बांग्लादेश में बिजली की भारी कमी है. जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जून 2015 में ढाका गए थे, वहां प्रधानमंत्री शेख हसीना के साथ मुलाकात में उन्होंने अनुरोध किया था कि बांग्लादेश में भारतीय ऊर्जा कंपनियों को भी मौके दिए जाएं. मोदी ने कहा था कि भारत बांग्लादेश के 2021 तक 24,000 मेगावाट ऊर्जा का लक्ष्य पाने में उसकी मदद कर सकता हैं.

ठीक अगले दिन बांग्लादेश पावर डेवलपमेंट बोर्ड ने अडानी पावर लिमिटेड और रिलायंस पावर लिमिटेड द्वारा बनाए जाने वाले पावर प्रोजेक्ट्स से बिजली खरीदने के लिए समझौतों की घोषणा कर दी. साल 2010 में भारत ने बांग्लादेश को एक अरब डॉलर का कर्ज देने का ऐलान किया था. यह कर्ज बिजली-सड़क जैसी बुनियादी ढांचे से जुड़ी परियोजनाओं के लिए था. उस वक्त एनटीपीसी और बांग्लादेश बिजली बोर्ड के बीच नयी परियोजना के  बारे में समझौता भी हुआ था. लेकिन मोदी सरकार के  सत्ता में आने के बाद स्थिति तेजी से बदली.

अडानी पावर जैसी निजी कंपनियों से महंगी बिजली खरीदने को बांग्लादेश को भी राजी किया गया. नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन को फरवरी 2018 में एक बोली जीतने के बाद बांग्लादेश को प्रति इकाई 3.42 रुपए की दर से 300 मेगावाट बिजली आपूर्ति करने का ठेका मिला है, जबकि आइईईएफए के साइमन निकोल्स के  मुताबिक भारत की निजी कम्पनियो से बांग्लादेश द्वारा खरीदी जाने वाली बिजली की तय कीमत 8.6127 अमेरिकन सेंट्स या 5.82 रुपए प्रति इकाई हैं. स्वतंत्र भारत के इतिहास में क्रोनी कैपिटलिज्म की इससे बड़ी मिसाल मिलना मुश्किल है.

(लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं.)

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