Jrkपूरा झारखंड राज्य खुले में शौच से मुक्त हो गया है. यह दावा स्वयं मुख्यमंत्री रघुवर दास ने किया है. वैसे इसकी घोषणा 2 अक्टूबर को ही होनी थी, पर अब 15 नवंबर राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर सम्पूर्ण झारखंड को ओडीएफ घोषित कर दिया जाएगा. राज्य सरकार दावे तो कर रही है कि सम्पूर्ण राज्य खुले में शौच से मुक्त हो गया है, पर अभी भी मुख्यमंत्री आवास एवं झारखंड मंत्रालय के कार्यालयों के तीन-चार किलोमीटर के दायरे में ही लोग खुले में शौच करते मिल जाएंगे.

ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति तो अभी भी बदतर ही है. लगभग 50 प्रतिशत ग्रामीण आबादी अभी भी खुले में शौच करती है. वैसे नगर निगम के अधिकारी ने कहा था कि उड़न दस्ता का गठन किया जाएगा. खुले में शौच करते लोग पाए गए तो सिटी बजाकर उन्हें चेतावनी दी जाएगी, अगर इसके बाद भी नहीं माने, तो लोगों पर जुर्माना लगाया जाएगा.

गांवों एवं शहरों में सरकारी अनुदान लेकर लोगों ने शौचालय तो बना लिए, शौचालय के साथ फोटो खिंचवाकर सरकारी राशि तो ले ली, पर इस योजना में खूब घपले-घोटाले हुए और कागजों में शौचालय का निर्माण हो गया. दरअसल 12 हजार रुपए में जिस तरह के शौचालयों का निर्माण हुआ, वे उपयोग के लायक ही नहीं हैं और बनने के कुछ ही सालों में जीर्ण-शीर्ण अवस्था में आ गए हैं. युनिसेफ, रांची का भी यह मानना है कि आधे से ज्यादा शौचालय उपयोग में नहीं हैं.

सरकारी संस्थाएं उठा रहीं सवाल

पेयजल एवं स्वच्छता विभाग का ही मानना है कि बेसलाइन सर्वे के अनुसार शौचालय निर्माण की उपलब्धि 99 फीसदी से अधिक रही, लेकिन पूर्व में बने कुछ ऐसे शौचालय जो अब उपयोग में नहीं लाए जा रहे हैं, इस उपलब्धि पर पानी फेर रहे हैं. ऐसे शौचालयों की संख्या एक लाख 86 हजार 561 है. इन शौचालयों को फिर से पुनर्जीवित किया जाना जरूरी है. विभाग के अधिकारियों का मानना है कि पिछले चार सालों यानि 15 सितम्बर, 2018 तक 33 लाख 65 हजार 780 शौचालयों का निर्माण किया गया है. वर्ष 2014 में शौचालय का कवरेज मात्र 16 फीसदी था, जो अब बढ़कर 99.48 प्रतिशत हो गया है. शत-प्रतिशत लक्ष्य हासिल करने का दावा विभाग द्वारा किया जा रहा है.

स्वच्छ भारत मिशन को मुकाम के करीब तक पहुंचाने में एक लाख स्वयं सहायता समूहों, 55 हजार रानी मिस्त्री एवं 29 हजार जल सहियाओं की भूमिका अहम रही है. राज्य सरकार ने कहा कि शौचालयों का निर्माण और वेरिफिकेशन करा लिया गया है और राज्य स्थापना दिवस पर पूरे राज्य को खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिया जाएगा.

ओडीएफ घोषित किए जाने के दावे पर सरकार खरा नहीं उतर सकी है. सरकार कागजों में 35 लाख शौचालय बनाने का दावा तो कर रही है, पर सरकार के ही एक अन्य संस्थान की बातों पर गौर करें, तो यह साफ हो जाता है कि विभागों में आपसी समन्वय नहीं है और एक-दूसरे के दावों का ही खंडन हो रहा है. स्वच्छ भारत मिशन के निदेशक राजेश शर्मा ने जैसा बताया, उससे यह पता चलता है कि अभी भी लाखों शौचालयों का निर्माण होना है.

उन्होंने बताया कि स्वच्छता सर्वेक्षण की रिपोर्ट जारी होने के बाद डाटा में काफी उलट-फेर हो सकता है, क्योंकि पुराने सर्वेक्षण में कई ऐसे गांव शामिल किए गए थे, जो अब नहीं हैं. इसलिए नई रिपोर्ट में उसे हटाया जाएगा. एक अनुमान के अनुसार, केवल तीन से साढ़े तीन लाख ही शौचालयों का निर्माण शेष रह गया है, जो अक्टूबर माह के अंत तक पूरा हो जाएगा.

ओडीएफ के लक्ष्य को तयशुदा समय में पूरा करने में 4 लाख 44 हजार शौचालयों का निर्माण किया जाना शेष है. पेयजल एवं स्वच्छता विभाग की 18 सितम्बर, 2018 की रिपोर्ट कुछ ऐसा ही बताती है. इस तिथि को आधार बनाएं, तो प्रतिदिन 31 हजार से अधिक शौचालयों का निर्माण करना होगा.

राज्य सरकार का जो दावा है उसके अनुसार, 24 जिलों में 12 पूरी तरह ओडीएफ हो चुके हैं और शेष 12 जिले लक्ष्य के करीब हैं. राज्य सरकार ने केंद्र सरकार को जो रिपोर्ट सौंपी है, उसमें यह कहा गया है कि झारखंड खुले में शौच से पूरी तरह मुक्त हो चुका है. झारखंड ने केंद्र सरकार की ओर से दिए गए निर्धारित लक्ष्य को एक साल पहले पूरा कर लिया है. केंद्र सरकार ने शौचालय निर्माण पूरा करने का लक्ष्य अक्टूबर 2019 तक दिया था, पर रघुवर सरकार ने अपनी पीठ थपथपाने के लिए अक्टूबर 2018 को ही 40 लाख शत-प्रतिशत लक्ष्य पूरा कर लिया.

उल्लेखनीय है कि 2014 में बेसलाइन सर्वे के तहत झारखंड को लक्ष्य दिया गया था. इस सर्वे में वैसे घरों की पहचान की गई थी, जहां शौचालय नहीं थे, ऐसे घरों की संख्या 40 लाख थी. केंद्र सरकार ने 2019 तक लक्ष्य हासिल करने का निर्देश दिया था, पर झारखंड सरकार हर कार्यों एवं योजनाओं में एक कदम आगे चलती है, जमीन पर कार्य हो या न हो, कागजों में सारे आंकड़ों पर ही यहां के मुख्यमंत्री को पीठ थपथपाने की आदत सी बन गई है.

उप राष्ट्रपति दे चुके हैं नसीहत

एक शौचालय बनाने के लिए बारह हजार रुपए दिए गए, जाहिर है कि इतने पैसों में एक शौचालय का निर्माण ही नहीं हो सकता. एक शौचालय में लगभग एक हजार ईंट का प्रयोग होता है और एक हजार ईंट की कीमत शहरी क्षेत्रों में जहां दस से ग्यारह हजार रुपए है, वहीं चार बोरा सीमेंट, बालू एवं छत के ऊपर लोहे की चादर और दरवाजा, इन सभी समानों की कीमत न्यूनतम पांच से छह हजार रुपए है, इसके अतिरिक्त मिस्त्री एवं मजदूर को भी भुगतान देना होता है, जो लगभग एक से डेढ़ हजार रुपए तक है.

जाहिर है कि सरकार द्वारा आवंटित राशि से शौचालय का निर्माण होना मुश्किल है, ऐसे में लोगों ने किसी तरह दो से ढाई फीट का ढांचा खड़ा कर इसके सामने फोटो खिंचवाकर सरकार से राशि ले ली, इसके कुछ ही दिनों बाद उक्त ढांचा भी गिर गया. अगर सरकार किसी स्वतंत्र एजेंसी या थर्ड पार्टी से जांच कराए, तो 10 प्रतिशत शौचालय भी ग्रामीण क्षेत्रों में उपयोग लायक नहीं मिलेंगे.

उप राष्ट्रपति वैंकैया नायडू ने अपने झारखंड दौरे के क्रम में राज्य सरकार को नसीहत दी थी कि ओडीएफ का सर्वेक्षण बार-बार कराया जाए, ताकि यह संशय दूर हो सके कि शौचालय सिर्फ कागजों पर बनाए जा रहे हैं. वैंकेया नायडू केंद्र में शहरी विकास मंत्री भी रह चुके हैं. इसलिए उन्हें यह जरूर अहसास हुआ कि राज्य सरकार ने इतने कम दिनों में कैसे 40 लाख शौचालय बना लिए.

ग्रामीण क्षेत्रों में शत-प्रतिशत शौचालय का निर्माण दिखा दिया गया है, पर सच्चाई यही है कि अभी भी 70 प्रतिशत ग्रामीण आबादी खुले में शौच करती है. राज्य के अन्य जिलों में भी कमोबेश यही हालात हैं.

शहरी आबादी छोड़कर अगर शहर से ही तीन किलोमीटर की दूरी पर सच्चाई जानने जाएं, तो ओडीएफ की पोल खुलती दिख जाएगी. राज्य के दूसरे जिलों की बात छोड़कर अगर राजधानी रांची को ही देखें, तो 2 अक्टूबर तक पूरे रांंची को ओडीएफ करना था, पर जिला प्रशासन पूरी तरह से फेल है. प्रखंडों में कछुए की चाल से शौचालय निर्माण हो रहा है. रांची के उपायुक्त राय महिमापत रे ने सभी अधिकारियों को जमकर फटकार लगाई और हर हाल में 15 नवंबर तक ओडीएफ करने का लक्ष्य दिया गया.

पर राजधानी रांची के चार किलोमीटर के भीतर ही लोग खुले में शौच करते दिख जाएंगे. रेल पटरियां तो पूरे तौर पर अस्थायी शौचालय बन गईं हैं. इस बात का अहसास मुख्यमंत्री रघुवर दास को भी है, तभी उन्होंने यह कहा कि गांव एवं पंचायतों में बने शौचालयों का अधिक से अधिक इस्तेमाल हो, इसके लिए जल सहिया एवं स्वच्छता दूत अहम भूमिका निभाएंगे.

स्वच्छता जागरुकता अभियान के तहत जल सहिया खुले में शौच करने वालों के खिलाफ अभियान चलाएगी और सीटी बजाकर लोगों को खुले में शौच करने से रोकेगी. उन्होंने कहा कि जनशक्ति का ही परिणाम है कि राज्य को शत-प्रतिशत खुले में शौच से मुक्ति मिल गई है. उन्होंने कहा कि लोगों को भी जागरुक होना चाहिए और आगे आकर इस कुप्रथा को रोकना चाहिए. राज्य के सभी लोगों की भागीदारी सुनिश्चित कराने के लिए एक अभियान चलाया जा रहा है.

कबाड़ हो गए करोड़ों के मॉड्‌यूलर टॉयलेट

राज्य में सार्वजनिक शौचालयों की स्थिति भी अत्यंत दयनीय है और पंचायतों में बने अधिकांश सार्वजनिक शौचालय उपयोग के लायक नहीं हैं. किसी में पानी नहीं है तो किसी का दरवाजा ही टूटा हुआ है. इस कारण लोग बगल के खुले स्थानों को शौचालय के रूप में उपयोग करते हैं. शहरों में सुलभ इंटरनेशनल द्वारा बनाए गए सार्वजनिक शौचालयों का गरीब लोग इसलिए उपयोग नहीं कर पाते हैं, क्योंकि ये कुछ महंगे हैं. मुख्यमंत्री दाल भात योजना में जहां लाभुक पांच रुपए में खाना खा लेते हैं, वहीं सुलभ इंटरनेशनल का शौचालय उपयोग करना इससे महंगा पड़ता है.

राज्य सरकार ने शहरों में मॉड्‌यूलर टॉयलेट तो बनवाए, अरबों रुपए खर्च हुए, पर ये शौचालय कबाड़ ही बनते जा रहे हैं. स्कूलों में बने शौचालय की भी स्थिति अत्यंत दयनीय है. स्कूलों में शौचालय तो बना दिए गए पर इनके देखभाल एवं सफाई के लिए स्कूलों को फंड आवंटित नहीं किए गए, इसका परिणाम यह हुआ कि देखरेख के अभाव में स्कूलों में बने शौचालय उपयोग के लायक नहीं रहे, इसमें पढ़ने वाले बच्चों को खुले मैदान का ही सहारा लेना पड़ता है.

यूनिसेफ में सेनिटेशन कार्य से जुड़े अधिकारियों का भी मानना है कि कागजों में 40 लाख शौचालय बनाए जाने का दावा तो किया गया है, पर वास्तविक स्थिति कुछ और ही है. शहरी क्षेत्रों में बने शौचालय तो कुछ उपयोगी भी साबित हो रहे हैं, पर ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति भयावह है. गांवों में बनाए गए अधिकांश शौचालयों का कोई अस्तित्व ही नहीं बचा है, इस कारण अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों के लोग खुले में शौच करने को मजबूर हैं. खुले में शौच के कारण लोगों के स्वास्थ्य पर भी असर पड़ रहा है और लोग डायरिया, डेंगू जैसे गंभीर बीमारियों की जद में आ रहे हैं और इसके कारण लोगों की मृत्यु का आंकड़ा भी बढ़ा है.


चार साल में बने 40 लाख शौचालय

जिलों का नाम   लक्ष्य

पलामू  274071

लातेहार 122111

गढ़वा   195334

गुमला  166193

लोहरदगा 67776

सिमडेगा 97913

हजारीबाग       232993

चतरा   158217

कोडरमा 83919

रामगढ़  92597

बोकारो  166843

देवघर  182730

धनबाद  187065

दुमका  205342

गिरिडीह 273457

गोड्‌डा   149752

जामताड़ा 118198

खूंटी    81052

पाकुड़   188930

प. सिंहभूम     162313

पूर्वी सिंहभूम    182397

रांची    252605


12 ज़िलों में बनने हैं 4.44 लाख से अधिक शौचालय

जिलों का नाम   शौचालयों की संख्या

दुमका  89207

पलामू  60384

गिरिडीह 56633

पाकुड़   52744

रांची    45610

गोड्‌डा   41167

गुमला  38459

गढ़वा   35482

बोकारो  12083

साहिबगंज      9703

पूर्वी सिंहभूम    4904

खूंटी    201

कुल    446577


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