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एक ओर केन्द्र सरकार स्मार्ट सीटी बनाने की दिशा में कदम बढ़ा रही है, तो दूसरी ओर बिहार में इसकी गति धीमी दिखाई पड़ रही है. सरकार की नीतियों का अनुपालन सम्बन्धित विभागीय पदाधिकारियों द्वारा नहीं किया जा रहा है. प्रदेश के नगर निगम में नगर आयुक्त, अपर नगर आयुक्त, नगर प्रबंधक, सफाईकर्मी, लिपिक, बिजली मिस्त्री, अभियन्ता, चालक, ऑपरेटर सहित अन्य पद रिक्त पड़े हैं. एक ही पदाधिकारी को दो-तीन विभागों का प्रभारी बनाया गया है. फलत: किसी भी विभाग का कार्य गुणवत्तापूर्ण सुचारू रूप से स-समय सम्पन्न नहीं हो पाता है. जिसका खामियाजा निकायों के प्रमुख को भुगतना पड़ता है.

इसकी पुष्टि के लिए प्रस्तुत है, बेगूसराय नगर निगम का लेखाजोखा. बेगूसराय नगरपालिका से नगर परिषद बना. पुन: नगर परिषद् से नगर निगम बना. नगर निगम बनने से इसका क्षेत्र बढ़कर 45 वार्ड का हो गया. लेकिन नगरपालिका के समय जो स्थिति थी इसमें कुछ भी बदलाव नहीं हुआ. नगरपालिका बनने पर जितने कर्मियों की नियुक्तियां हुई थी, वही संख्या नगर निगम बनने पर भी है. इस बीच जो कर्मी सेवानिवृत्त हुए उनका पद आजतक रिक्त पड़ा है. नगर निगम के महापौर उपेन्द्र प्रसाद सिंह कहते हैं कि नगर निगम के सामने अनेक चुनौतियां हैं. इन चुनौतियों का सामना एवं निदान करने के लिए यहां पूर्णकालिक नगर आयुक्त नहीं हैं. नगर निगम के पास अपना अभियन्ता, जेई, लिपिक, टैक्स दारोगा, चालक आदि नहीं हैं. 1967-68 में नगरपालिका कार्यालय की जो स्थिति थी आज तक वही है. उस समय नगरपालिका क्षेत्र की आबादी 50 हजार थी. वर्तमान में नगर निगम के 45 वार्ड में 2.75 लाख आबादी है. नगर निगम क्षेत्र के विकास में सबसे बड़ी बाधा है पूर्णकालिक नगर आयुक्त का नहीं होना. नगर निगम बोर्ड के निर्णय को कार्यरूप देना, निगरानी एवं नियंत्रण, गुणवत्तापूर्ण निर्माण एवं विकास की नई योजनाओं का निर्माण आदि सारे कार्य नगर आयुक्त को ही करना होता है. लेकिन विडम्बना यह है कि जनवरी 2016 से आज तक मात्र एक पूर्णकालिक नगर आयुक्त मिले, वो भी मात्र 70 दिनों के लिए. शेष समय का कार्य उधार के पदाधिकारी (प्रभारी) से चलाया जा रहा है. जनवरी 2016 से अद्यतन तीन प्रभारी नगर आयुक्त बनाए गए. जिन्हें वित्तीय प्रभार मिलने में एक माह का समय लगा और इस बीच राशि के अभाव में विकास का कार्य अवरूद्ध रहा. वर्तमान में 25 अगस्त 2017 से डीडीसी को प्रभारी नगर आयुक्त बनाया गया है. ज्ञातव्य हो कि डीडीसी जिला परिषद के पदेन कार्यपालक पदाधिकारी होते हैं, साथ ही सरकारी विकास योजनाओं का कार्यान्वयन इनके पास होता है. अब इन्हें नगर आयुक्त का भी प्रभार मिला है. ऐेसे में डीडीसी नगर निगम के साथ कितना न्याय कर पाएंगे, इसके बारे में कल्पना की जा सकती है.

नगर निगम के सामने सबसे बड़ी चुनौती है, सिवरेज प्लान्ट, जल निकासी, कचड़ा प्रबंधन एवं पम्प हाउस का निर्माण. इस सम्बन्ध में महापौर उपेन्द्र प्रसाद सिंह बताते हैं कि सिवरेज प्लान्ट के लिए किसानों से जमीन खरीदी गई, लेकिन क्रय मूल्य को लेकर विवाद चल रहा है. सिवरेज प्लांट के लिए शहर में तीन पम्प हाउस का निर्माण करने की योजना थी. इसके लिए नगर विकास विभाग पटना द्वारा ‘ट्राइटैक’ चायनीज कम्पनी को बेगूसराय भेजा गया. लेकिन वह नगण्य कार्य ही कर पाया और पलायन कर गया. तभी से इस योजना का कार्य ठप है. जल जमाव की समस्या बनी हुई है. निगम क्षेत्र में पेयजल आपूर्ति ठप है. 75 करोड़ रुपए की लगात से पीएचईडी कैम्पस एवं हर्रख में वाटर ट्रीटमेन्ट प्लान्ट व टावर बना, जो फेल हो गया. इसके साथ ही जल निकासी, कचरा प्रबंधन आदि की व्यवस्था नहीं है. महापौर कहते हैं कि कर्मचारियों की नियुक्ति की बात तो दूर रही, मास्टर रॉल पर भी नियुक्ति का अधिकार इन्हें नहीं है. 10 जनवरी 2017 को मुख्यमंत्री से मिलकर दिए गए पत्र में उन्होनें मांग की थी कि निगम को पूर्णकालिक नगर आयुक्त, पूर्णकालिक अपर नगर आयुक्त, दो नगर प्रबंधक, चार पूर्णकालिक अभियन्ता, पूर्णकालिक अमीन, स्थायी टैक्स दरोगा, स्थायी कार्यालीय स्टाफ, बिजली कर्मचारी, वाहन चालक आदि दिया जाय ताकि नगर निगम क्षेत्र में विकास कार्यों की निगरानी एवं नियंत्रण हो सके, गड़बड़ी करने वालों के दायित्व का निर्धारण कर विभागीय कार्रवाई की जा सके, क्रय सहित अन्य कायार्ंे में पारदर्शिता लाया जा सके. लेकिन आजतक इस दिशा में सरकार द्वारा कोई कदम नहीं उठाया गया.

नगर निगम के उप महापौर राजीव कुमार का कहना है कि पूर्णकालिक नगर आयुक्त, अपर नगर आयुक्त, सीटी मैनेजर और अभियंता के अभाव में बस स्टैंड, स्ट्रीट लाईट आदि पर नगर निगम का नियंत्रण नहीं रह पाता है. नाम मात्र के तकनीकि सेल के कारण क्वालिटी एवं क्वांटिटी पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा है. नियंत्रण एवं निगरानी के अभाव में सौ रुपए के डस्टबीन की खरीद 800 रुपए में हुई है एवं 9000 का स्ट्रीट लाइट 34000 में खरीदा गया है. बोर्ड की बैठक में पार्षदों ने उपरोक्त घोटाले सहित अन्य घोटाले की जांच कराने की मांग की, लेकिन नगर विकास विभाग इस ओर से उदासीन है. अनेक पार्षदों का कहना है कि यदि नगर निगम में व्याप्त घोटालों की सही ढंग से जांच कराई जाय, तो करोड़ों रुपए के घोटाले का पर्दाफाश होगा.

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