अखिलेश का मुगालता दूर नहीं हो रहा. अखिलेश को घेरे बैठे चाटुकार उन्हें जमीनी असलियत बताते भी नहीं. पिता मुलायम, चाचा शिवपाल और पार्टी के अन्य वरिष्ठों की उपेक्षा कर अखिलेश क्या हासिल कर लेंगे, इसका उन्हें 2017 के विधानसभा चुनाव परिणामों से एहसास हो जाना चाहिए था, लेकिन अखिलेश की दृष्टि अभी भी वास्तविकताओं की तरफ नहीं जा पा रही. पिता मुलायम की उपेक्षा किए जाने की हरकत से न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे देश का परंपरावादी मध्य वर्गीय नागरिक समुदाय दुखी और नाराज हुआ. इसका नतीजा अखिलेश को विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ा, लेकिन उनमें फिर भी कोई समझ नहीं आ रही. समाजवादी परिवार से जुड़े एक नजदीकी ने कहा कि अखिलेश सियासी फायदे के लिए मुलायम की उपेक्षा कर रहे हैं या मुलायम के किसी अंदरूनी व्यवहार से दुखी होकर अखिलेश ने ऐसा कठोर कदम उठाया, इसे गहराई से समझना पड़ेगा.

समाजवादी परिवार के उस खास व्यक्ति के इस वक्तव्य में काफी दम है. लेकिन जहां तक सियासी भविष्य का ताल्लुक है, विशेषज्ञों का मानना है कि अखिलेश को पार्टी के वरिष्ठों का सम्मान स्थापित रखने की दिशा में आगे बढ़ कर काम करना चाहिए, ताकि पूरे प्रदेश में एक अच्छा संदेश जाए. उन्हीं विश्लेषकों का कहना है कि लेकिन अखिलेश यादव इस बारे में सोचे बगैर पार्टी का लगातार नुकसान किए चले जा रहे हैं. ताजा गतिविधियों के कारण तो आम लोगों की नजर में पार्टी और भी रसातल में चली गई. पिता-पुत्र विवाद के अलावा अखिलेश ने कई ऐसे राजनीतिक फैसले भी लिए, जिसने पार्टी का बेड़ा गर्क कर दिया. राजनीतिक विशेषज्ञ यह मानते हैं कि उत्तर प्रदेश में सपा-कांग्रेस का गठबंधन नहीं हुआ होता तो सपा अपेक्षाकृत अधिक सीटें जीतती. आम नागरिक कहते हैं कि अखिलेश के विकास के सियासी-नारे को जनता ने इसलिए खारिज कर दिया, क्योंकि अखिलेश ने पारिवारिक मर्यादा के तकाजे को खारिज करने का काम किया. अखिलेश को यह गलतफहमी थी कि उनके नाम और चेहरे पर वे चुनाव में बाजी मार लेंगे, इसी इरादे से उन्होंने अपने पिता मुलायम का चेहरा साइड-लाइन कर दिया, इस पर उत्तर प्रदेश के मतदाताओं ने उन्हें ही साइड-लाइन कर दिया. अखिलेश यादव ने न खुद को आम लोगों से जोड़ा और न पार्टी की ऐसी छवि गढ़ी. उल्टे उन्होंने जनता में यह संदेश दिया कि पार्टी की स्थापना करने वाले मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव जैसे वरिष्ठ नेताओं की भी ऐसी-तैसी की जा सकती है. दूसरी तरफ अखिलेश और राहुल ने मिल कर जनता के सामने राजा और प्रजा की साफ-साफ विभाजक रेखा खींच कर दिखाने की सार्वजनिक कोशिश की. अखिलेश जितना ही राजा बनने की कोशिश करते रहे, जनता उन्हें उतना ही जमीन की धूल मिट्टी चटाने में जुटी रही.

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