इस अफवाह में सच्चाई भी नज़र आती है. यह दु:खद है, क्योंकि पश्‍चिमी महाराष्ट्र में एनसीपी और कांग्रेस, दोनों दलों का आधार है. अगर ये दोनों एक दूसरे के ख़िलाफ़ लड़ेंगी, तो उन्हें स़िर्फ और स़िर्फ नु़ुकसान ही होगा. हालांकि, यह सर्वविदित है कि शरद पवार सत्ता में अपनी हिस्सेदारी चाहते हैं और वह शायद यह सोचते हैं कि चुनाव के बाद भाजपा और एनसीपी में कोई तालमेल हो सकता है, कोई डील हो सकती है और इस तरह वह केंद्र में भी अपनी पैठ बना सकेंगे. यह बेकार की सोच है. 
BJP-Shiv-Senaमहाराष्ट्र में 15 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव होने हैं. यहां दो गठबंधन थे. पहला, एनसीपी एवं कांग्रेस का और दूसरा भाजपा एवं शिवसेना का. दोनों वैचारिक तौर से एक दूसरे की पूरक थीं यानी दोनों के विचार मेल खाते थे और यह माना जाता था कि मतदाता किसे वोट दे, इसे लेकर एकदम स्पष्ट था. हालांकि, अब ये दोनों गठबंधन टूट चुके हैं. क्यों? भाजपा और शिवसेना के बीच महज दो या तीन सीटों के लिए असहमति थी. जैसी ख़बरें आ रही हैं, उसके मुताबिक एक भाजपा नेता ने एक सीट को अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया था, जो इस गठबंधन के टूटने का कारण बन गया. यह दोनों ही दलों के लिए बुरा हुआ, क्योंकि दोनों का वोट आधार एक ही है. अगर ये दोनों एक दूसरे के ख़िलाफ़ लड़ती हैं, तो दूसरी पार्टियों को इससे फ़ायदा पहुंचेगा. वहीं दूसरी तरफ़ कांग्रेस एवं एनसीपी गठबंधन के बारे में मुंबई में यह अफवाह थी कि अगर भाजपा एवं शिवसेना का गठबंधन टूट जाएगा, तो एनसीपी भी अपना गठबंधन तोड़ लेगी, क्योंकि चुनाव के बाद एनसीपी, जो भी पार्टी चुनाव जीतेगी, उसके साथ जाना चाहती है.
इस अफवाह में सच्चाई भी नज़र आती है. यह दु:खद है, क्योंकि पश्‍चिमी महाराष्ट्र में एनसीपी और कांग्रेस, दोनों दलों का आधार है. अगर ये दोनों एक दूसरे के ख़िलाफ़ लड़ेंगी, तो उन्हें स़िर्फ और स़िर्फ नु़ुकसान ही होगा. हालांकि, यह सर्वविदित है कि शरद पवार सत्ता में अपनी हिस्सेदारी चाहते हैं और वह शायद यह सोचते हैं कि चुनाव के बाद भाजपा और एनसीपी में कोई तालमेल हो सकता है, कोई डील हो सकती है और इस तरह वह केंद्र में भी अपनी पैठ बना सकेंगे. यह बेकार की सोच है.
इस गठबंधन के टूटने के बाद असल में क्या होगा और अंतत: क्या परिणाम आता है, उसके बाद भाजपा और शिवसेना मिलकर सरकार बनाने के लिए मजबूर होंगी, क्योंकि पिछली सरकार में जिस तरह के घपले और घोटाले हुए हैं, उसे देखते हुए महाराष्ट्र का सत्ताधारी गठबंधन सरकार बनाने की सोच भी नहीं सकता. सिंचाई घोटाले का संबंध मुख्य रूप से एनसीपी से था. इसलिए ऐसा नहीं हो सकता कि गठबंधन टूटने का लाभ एनसीपी को मिले. अगर चुनाव के बाद भाजपा और शिवसेना को सरकार बनाने के लिए एक साथ आना ही पड़ता है, तो फिर इस गठबंधन को तोड़ने का मतलब क्या है? जहां तक महाराष्ट्र का सवाल है, अब तक की स्थिति यही है.
हरियाणा के मामले में मुझे लगता है कि ज़्यादा से ज़्यादा एक हंग असेम्बली यानी त्रिशंकु विधानसभा वाली स्थिति पैदा हो सकती है, क्योंकि अपने दस सालों के रिकॉर्ड की वजह से कांग्रेस अब सत्ता में आने की सोच भी नहीं सकती है और यहां पर भाजपा को मिला वोट केंद्र सरकार के लिए था. हरियाणा में इनका कोई जाति आधारित वोट नहीं है. इसलिए ओम प्रकाश चौटाला का हरियाणा में दावा मजबूत दिखता है. 90 सदस्यीय छोटी विधानसभा में किसे कितनी सीटें मिलेंगी, अभी कहना मुश्किल है. इसका पता तो नतीजे आने के बाद ही चलेगा. पिछले दस सालों से हरियाणा में जो कुछ हो रहा है, उसके मुकाबले हरियाण को एक बेहतर सरकार की ज़रूरत है. अन्य राज्यों के चुनाव अभी दूर हैं. कश्मीर की हालत को देखते हुए वहां चुनाव करा पाना मुश्किल दिखता है.
मैं सोचता हूं कि चुनाव की नई तारीखों की घोषणा करने से पहले कश्मीर को गवर्नर रूल से गुजरना पड़ेगा. एक तस्वीर यह आ रही है कि बाढ़ के दौरान की गई मेहनत की वजह से कश्मीर के आम लोगों के बीच सेना की छवि अच्छी बनी है. गिलानी की स्थिति कमजोर हुई है. उनकी सेना और केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ बातें बेअसर साबित हुई हैं. प्रधानमंत्री द्वारा कश्मीर मामले में उठाया गया क़दम सराहनीय है. यह अच्छा संकेत है कि गिलानी द्वारा पाकिस्तान के उच्चायुक्त के यहां जाने की घटना को मुद्दा नहीं बनाया गया. बिना किसी धार्मिक या राजनीतिक दुराग्रह के कश्मीर की मदद के लिए सारा देश एकजुट हुआ. मैं सोचता हूं कि कुल मिलाकर स्थिति अच्छी है, लेकिन इस वक्त सबसे बड़ी ज़रूरत इस बात की है कि कश्मीर के लोगों का पुनर्वास किया जाए.

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