असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का दूसरा और अंतिम ड्राफ्ट जारी किया गया. इसमें 40 लाख लोगों को नागरिकता नहीं मिली. एनआरसी के मुताबिक, कुल 2 करोड़ 89 लाख 83 हजार 668 लोग भारत के नागरिक हैं.

आवेदक अपने नामों की सूची इसके अलावा एनआरसी की वेबसाइट पर भी देख सकते हैं. वहीं असम में शांति और कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए अर्धसैनिक बलों की तैनाती भी की गई है.

असम में वैध नागरिकता के लिए 3 करोड़ 29 लाख 91 हजार 384 लोगों ने एनआरसी में आवेदन किया था, जिसमें से 40 लाख 7 हजार 707 लोग अवैध करार दे दिए गए हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर ये 40 लाख लोग कौन हैं, जिनपर ‘बेघर’ होने का खतरा मंडरा रहा है. ये 40 लाख लोग वे हैं, जो एनआरसी में कागजी वैध दस्तावेज की कार्रवाई पूरी नहीं कर सके, जिसके चलते उन्हें अवैध ठहराया गया है.

40 लाख लोगों में वे भी शामिल हैं, जिनके पास 25 मार्च 1971 से पहले की नागरिकता के कोई भी वैध दस्तावेज नहीं हैं, जिसके चलते एनआरसी ने उन्हें वैध नागरिक नहीं ठहराया.

 

असम में घुसपैठियों को वापस भेजने के लिए यह अभियान करीब 37 सालों से चल रहा है. 1971 में बांग्लादेश के स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान वहां से पलायन कर लोग भारत भाग आए और यहीं बस गए. इस कारण स्थानीय लोगों और घुसपैठियों में कई बार हिंसक वारदातें हुई. 1980 के दशक से ही यहां घुसपैठियों को वापस भेजने के आंदोलन हो रहे हैं.

 

बता दें कि रजिस्टर ऑफ सिटिजनशिप एक ऐसी सूची है, जिसमें असम में रहने वाले उन सभी लोगों के नाम दर्ज हैं, जिनके पास 24 मार्च 1971 तक या उसके पहले अपने परिवार के असम में होने के सबूत मौजूद हैं. असम देश का इकलौता राज्य है, जहां के लिए इस तरह के सिटिजनशिप रजिस्टर की व्यवस्था है. इस तरह का पहला रजिस्ट्रेशन साल 1951 में किया गया था.

हालांकि दूसरे भाग के जारी होने से करीब एक हफ्ते पहले केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि 30 जुलाई को जो लिस्ट जारी होनी है, वो महज़ एक ड्राफ्ट होगा और फाइनल ड्राफ्ट को जारी करने से पहले सभी भारतीयों को अपनी नागरिकता साबित करने का मौका दिया जाएगा.

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