floodनेपाल के जलग्रहण क्षेत्रों में लगातार वर्षा होने के कारण पहाड़ी नदियों सहित बागमती, त्रिवेणी, कमला और नारायणी में एकाएक पानी का सैलाब आ गया और इसने पूरे चम्पारण को जलमग्न कर दिया. पूर्व के सभी रिकार्ड तोड़ते हुए इस बाढ़ ने जो क्षति पहुंचाई है, उसे पूरा करने में कई वर्ष लग जाएंगे. इस बाढ़ ने जिन लोगों को काल के गाल में पहुंचा दिया, वे तो कभी लौट कर आ भी नहीं सकते. दोनों जिलों, पूर्वी चम्पारण और पश्चिमी चम्पारण के लोगों के लिए ये बाढ़ एक तरह से काल बनकर आई और जन-जीवन में जहर घोल दिया.

प्रलयकारी बाढ़ का कहर

पूर्वी चम्पारण के 22 प्रखण्डों के 260 पंचायतों में बाढ़ कहर बनकर टूट पड़ी. इससे यहां करीब 24 लाख लोग बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं. मोतिहारी, बंजरीया, सुगौली, रामगढ़वा, चिरैया और पताहीं सबसे ज्यादा प्रभावित प्रखण्डों में शामिल हैं. 12 अगस्त को मध्य रात्रि में आई बाढ़ 24 अगस्त तक रही. बुढ़ी गंडक, बागमती, लाल बकेया, कछुआ, सरिसवा, तियर, बंगरी, पसाह, दुधौरा, कड़िया आदि नदियों ने लगभग 40 लाख की आबादी को दस दिनों तक डुबोए रखा. बाढ़ प्रभावितों की मानें, तो इस बाढ़ ने 1974, 1986 और 2007 में आई भीषण बाढ़ को भी छोटा साबित कर दिया. पानी का बहाव इतना तेज था कि किसी को संभलने का भी मौका नहीं मिला. एक स्थानीय बुजुर्ग ने बताया कि हमनें जिन्दगी में ऐसी बाढ़ नहीं देखी थी. इस बाढ़ ने घर-द्वार, खेत-खलिहान और फसलों की जो क्षति की, उसकी भरपाई कैसे और कब तक होगी, कहा नहीं जा सकता. बाढ़ खत्म होने के बाद अब तबाही का असली मंजर सामने आने लगा है.

तबाही का मंजर

जिला प्रशासन के प्रारंभिक जांच के अनुसार, जिले में 15 हजार बासगित घर ध्वस्त हो गए हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस बाढ़ में 37 लोगों की मौत हो गई. कई लोग मौत के मुंह से बच के निकले. बाढ़ के पानी में 800 से ज्यादा मवेशी बह गए, जो मवेशी बचे हैं वे अब चारा के अभाव में मरने के कगार पर हैं. धान का कटोरा के नाम से विख्यात पूर्वी चम्पारण में बाढ़ ने ऐसा तांडव मचाया कि अब लोग दाने-दाने को मोहताज दिख रहे हैं. जिला कृषि पदाधिकारी ओंकार नाथ सिंह के अनुसार, जिले के 27 प्रखण्डों में से 24 प्रखण्डों के सर्वे रिपोर्ट बताते हैं कि बाढ़ से लगभग 48 अरब कीमत की फसलों की क्षति हुई है. एक लाख 9 हजार हेक्टेयर में लगा खरीफ पूरी तरह बर्बाद हो गया, जिसमें धान, मक्का आदि शामिल हैं. सर्वाधिक क्षति रामगढ़वा, पताही और ढाका प्रखण्डों में हुई है. मत्स्य पालकों की तो बाढ़ ने कमर तोड़ कर रख दी है. तालाब, पईन, पोखरा के भर जाने से उनमें पाली गईं करोड़ों की मछलियां निकल गईं.

जिले के नदियों के 6 तटबंध पूरी तरह से टूट गए, बूढ़ी गंडक का बायां तटबंध भी टूटने के कगार पर था, जिसे ग्रामीणों ने अपनी कोशिशों से बचा लिया. सबसे दर्दनाक घटना गुरहनवा स्टेशन के पास महंगुआ गांव में घटी. वहां मजदूरी कर जीवन यापन करने वाले तीन सहोदर भाई विजय गुप्ता, लालबाबू गुप्ता और मुकेश गुप्ता पानी की तेज धार में बह गए. दो दिन बाद उनके शव मिले. जिले के 27 प्रखण्डों की 280 सड़कें पूरी तरह टूट गई हैं. रक्सौल-पीपरा कोठी राजमार्ग ने गड्ढे और तालाब का शक्ल ले लिया है. मुजफ्फरपुर-नरकटियागंज और रक्सौल-दरभंगा रेल खण्ड पर परिचालन तो बाढ़ के आते ही बंद हो गया था. लेकिन बाढ़ ने जिस तरह से रेल की पटरियों और पुलों को नुकसान पहुंचाया, उसके कारण अब भी (खबर लिखे जाने तक) मुजफ्फरपुर से गोरखपुर तक या गोरखपुर होकर दिल्ली जाने वाली ट्रेनें उस रूट से नहीं चल पा रही हैं.

राहत और बचाव कार्य में लगी सेना

बाढ़ की विभिषिका का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि चम्पारण के इतिहास में पहली बार राहत और बचाव कार्य के लिए एक साथ जल, थल और वायु सेना को लगाना पड़ा. राहत और बचाव कार्यों में गति लाने के लिए बिहार सरकार ने सूचना और जनसम्पर्क विभाग के प्रधान सचिव अनुपम कुमार को विशेष जिलाधिकारी बना कर भेजा. पूरा जिला 10 दिनों तक एनडीआरएफ की टीम और सेना के हवाले रहा. राहत एवं बचाव कार्यों में सेना के 2 बटालियन, 2 हेलिकॉप्टर और एनडीआरएफ के 300 जवानों को लगाया गया था. ये सभी जवान 227 नावों और 24 मोटर वोट के सहारे बाढ़ में फंसे लोगों को बचाने और राहत पहुंचाने के काम में लगे रहे.

पानी में फंसे लोगों तक हेलिकॉप्टर के द्वारा खाने का पैकेट पहुंचाया गया. 8 दिनों में दोनों हेेलिकॉप्टरों ने 48 उड़ानें भरीं. जिलाधिकारी रमण कुमार के अनुसार, हेेलिकॉप्टरों के माध्यम से पौने दो लाख लोगों तक सूखा राशन पहुंचाया गया. जिले में सरकारी सहायता से 303 स्थानों पर कम्यूनिटि किचेन चलाया गया. तकरीबन 50 हजार बाढ़ प्रभावित लोग गांव घर छोड़कर ऊंचे स्थलों, एनएच और बांधों पर शरण लिए थे. मोतिहारी के लुम्बिनी भवन में सरकारी कर्मियों के साथ-साथ स्वयंसेवी संस्थाओं के सैकड़ो लोगों ने भी सूखा राहत सामग्री की पैकेजिंग का काम किया.

राहत कार्य में जुटे केन्द्रीय कृषि मंत्री व अन्य जनप्रतिनिधि

केन्द्रीय कृषि मंत्री सह स्थानीय सांसद राधामोहन सिंह ने बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में जाकर स्थिति की समीक्षा की और खुद भी राहत कार्यों में जुटे रहे. श्री सिंह ने भाजपा की ओर से दर्जनों स्थलों पर बाढ़ प्रभावित लोगों के लिए लंगर की व्यवस्था कराई और जहां लोग फंसे हुए थे, वहां तक भी राहत सामग्री और खाना पहुंचवाया. इनके साथ स्थानीय विधायक और बिहार सरकार के पर्यटन मंत्री प्रमोद कुमार भी क्षेत्र के लोगों की सेवा में लगे रहे. कमोबेेश सभी जनप्रतिनिधियों ने आपदा के समय संवेदना दिखाते हुए राहत कार्यों में सहयोग किया.

स्वयंसेवी संस्थाओं ने भी दिखाई मानवीय संवेदना

स्वयंसेवी संस्थाओं ने भी आपदा के समय सराहनीय कार्य किया. राधा कृष्ण सेवा संस्थान के अध्यक्ष शंभुनाथ सिकारीया ने जिलाधिकारी रमण कुमार और विशेष जिलाधिकारी अनुपम कुमार के माध्यम से मुख्यमंत्री राहत कोष के लिए एक लाख का चेक दिया. स्वयंसेवी संस्था उपकृति द्वारा एक सप्ताह तक शहर के विभिन्न क्षेत्रों में बाढ़ पीडितों के लिए खाने का पैकेट उपलब्ध कराया गया. वहीं विभिन्न स्थलों पर चिकित्सा शिविर का आयोजन कर दवाएं दी गईं. रोटरी क्लब के सचिव अधिवक्ता राकेश कुमार सिन्हा के नेतृत्व में राहत सामग्री का वितरण किया गया. जबकि रेड क्रास, मारवाड़ी युवा मंच सहित दर्जनों संस्थाओं ने आगे बढ़कर बाढ़ पीडितों तक राहत सामग्री पहुंचाई.

शहर में भी तबाही

बाढ़ से मोतिहारी शहर में जन जीवन अस्त व्यस्त हो गया. शहर के कई मुहल्लों में कमर तक पानी भर गया. लोग घरों को छोड़ कर अन्यत्र जाने को मजबूर हो गए. नकछेद टोला, राधा नगर, भवानीपुर जीरात, चांदमारी, आजाद नगर, अम्बिका नगर सहित कई मुहल्ले डूब गए. गोपालपुर पश्चिमी में एक पक्का मकान पानी में समा गया, जबकि कई धर क्षतिग्रस्त हो गए. नगर परिषद् द्वारा भी राहत कार्य चलाया गया.

नेपाल के चितवन पार्क के जानवर भी बाढ़ में बहे

भारत की सीमा से लगे नेपाल के नेशनल पार्क के जानवर भी बाढ़ की विभिषिका से नहीं बच पाए. चितवन नेशनल पार्क के सूचना पदाधिकारी नरेन्द्र आर्याल के अनुसार, बाघ, गेंडा, हिरण सहित कई अन्य जानवर बाढ़ की धारा में बहने लगे थे. आठ गेंडा और दर्जनों हिरण बाढ़ में बहकर बिहार की सीमा में चले गए, जिसे बाद में पूर्वी चम्पारण के जिला प्रशासन ने नेपाल को सुपूर्द कर दिया. अरेराज के अनुमंडल पदाधिकारी विजय कुमार पाण्डेय ने बताया कि बाढ़ में बहकर आए 15 हिरणों को ग्रामीणों के सहयोग से पकड़कर नेपाल को सौंप दिया गया. वाल्मिकीनगर के वाल्मिकी बाघ अभ्यारण्य और नेपाल के चितवन नेशनल पार्क के पदाधिकारी अभी भी बाढ़ में बहे कई वन्य प्राणियों की खोज में लगे हैं. पश्चिमी चम्पारण के वाल्मिकी बाघ अभ्यारण्य के पदाधिकारी हाथी पर चढ़ कर बाघों की तलाश कर रहे हैं, ताकि वे कहीं बाढ़ में बह कर रिहायसी ईलाकों में न चले गए हों.

घड़ियालों का खतरा गहराया

नेपाल के चितवन पार्क के पास बड़े घड़ियालों का एक बड़ा आश्रय स्थल है. वे घड़ियाल भी बाढ़ के पानी में बहकर रिहायसी इलाकों में आ गए हैं. वहीं वाल्मिकीनगर के वीटीआर के पास गंडक नदी के संगम स्थल पर छोटे घड़ियाल रहते हैं. यह स्थान घड़ियालों का प्रजनन स्थल भी कहा जाता है, जहां बड़ी संख्या में घड़ियाल अण्डा देती हैं. बाढ़ के कारण इन घड़ियालों का रिहायसी इलाकों में प्रवेश पूर्वी चम्पारण, पश्चिमी चम्पारण, गोपालगंज, छपरा और वैशाली जिलों के लिए खतरे का संकेत है. गौरतलब है कि एक माह पूर्व ही बगहा और अरेराज के संग्रामपुर ईलाके में एक घड़ियाल दो लोगों को अपना शिकार बना चुका है.

मुख्यमंत्री ने लिया बाढ़ और राहत का जायजा

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बाढ़ ग्रस्त पूर्वी और पश्चिमी चम्पारण का दौरा किया और राहत कार्यों का निरीक्षण कर पदाधिकारियों को कई निर्देश दिए. मुख्यमंत्री ने मोतिहारी में विशेष डीएम अनुपम कुमार से राहत कार्यो की जानकारी ली, वहीं बेतिया में भी राहत एवं बचाव कार्यों की समीक्षा की. सुगौली के एक कम्यूनिटी किचेन में उन्होंने लोगों से बातचीत भी की और उनकी समस्याएं सुनीं. सुगौली के लोगों ने शिकायत की कि चीनी मील द्वारा गंदा पानी छोड़ने के कारण बदबू और महामारी फैल रही है. इसपर उन्होंने डीएम रमण कुमार निर्देश दिया कि चीनी मील से गंदे पानी की निकासी पर तत्काल रोक लगाते हुए जांच कर कार्रवाई करें.

बाढ़ के बाद का संकट

बाढ़ के बाद महामारी का संकट बढ़ गया है. चारो तरफ फैला पानी अब सड़ने लगा है. शहर के बाहरी इलाके में नगर परिषद् द्वारा फेंका गया कचरा अब महामारी का कारण बनता जा रहा है. हजारों लोगों के घर ध्वस्त हो गए हैं. रोजी-रोटी की समस्या अलग है. ऐसे में सरकार और प्रशासन के लिए इन संकटों से उबरना सबसे बड़ी चुनौती होगी.

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