उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के देवारांचल स्थित रौनापुर थाना क्षेत्र में केवटहिया, ओढ़रा और सलेमपुर गांवों में पिछले दिनों जहरीली शराब से दो दर्जन से अधिक लोगों की मौत हो गई और दर्जनभर लोग अस्पतालों में जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे हैं. डेढ़ वर्ष पूर्व भी इसी जिले के मुबारकपुर क्षेत्र में जहरीली शराब से 47 लोगों की मौत हो गई थी.

इसके पूर्व बरदह के इरनी गांव में भी 11 लोग जहरीली शराब से मारे गए थे. इन गरीबों को सस्ते में मौत का सामान बेचकर कारोबारी और उस क्षेत्र की पुलिस जेबें भर रही हैं. पहले शराब माफिया गांवों में चोरी छिपे ये कारोबार करते थे, लेकिन अब खुलेआम जहरीली शराब बेचकर लोगों को मौत के मुंह में ढकेल रहे हैं. गांव-गांव में कुटीर उद्योग की तरह जहरीली शराब बनाई और बेची जा रही है. प्रदेश में जहरीली शराब और उससे हो रही मौतों की रोकथाम को लेकर प्रदेश की वर्तमान योगी सरकार नाकाम साबित हुई है.

कुछ अर्सा पहले लखनऊ से सटे उन्नाव में और लखनऊ सीमा के मलिहाबाद के गांव में क्रिकेट मैच के दौरान जहरीली शराब पीने से पचास से ज्यादा लोगों की मौतें हो गई थी और डेढ़ सौ से ज्यादा लोग बीमार हुए थे. कुछ ही दिन के बाद ये मामला ठंढा पड़ गया और अवैध शराब की भट्ठियां फिर से दहकने लगीं. आजमगढ़ घटना के बाद भी पुलिस ने शराब की भट्ठियों पर छापामार कर सैकड़ों लीटर कच्ची शराब, ड्रम, पाउच, स्प्रिट, अल्कोहल, ऑक्सीटोसीन सहित भारी मात्रा में शराब बनाने के उपकरण बरामद किए.

इससे स्पष्ट होता है कि प्रदेश के अंदर शराब माफियाओं ने इस गोरखधंधे में अपनी जड़ें इतनी मजबूती से जमा ली हैं, जिसे उखाड़ना आसान नहीं है. प्रदेश में अवैध शराब बनाने और उसकी बिक्री पर कोई अंकुश नहीं है. पुलिस और आबकारी विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से ये धंधा चलता रहता है. अवैध शराब बनाने का धंधा भी खूब पनप रहा है. चावल, गुड़ की भेली व कुछ अन्य उत्पादों को पीपे में सड़ाकर आसानी से जहरीली शराब तैयार की जाती है. इसे शीघ्र तैयार करने के लिए यूरिया का भी इस्तेमाल होता है.

नशा बढ़ाने के लिए इसमें ऑक्सीटोसीन और नशे की गोलियां भी मिला दी जाती हैं. जहरीली शराब से लोगों के मरने का सिलसिला कई सालों से जारी है. 90 के दशक में भदोही के 27, अक्टूबर 2001 में नोएडा के 18, फरवरी 2010 में वाराणसी के 13, मार्च 2010 में गाजियाबाद और बुलंदशहर के 30, अक्टूबर 2013 में आजमगढ़ के 37 और नवंबर 2014 में भदोही के 10 लोगों की जान जहरीली शराब ने ले ली थी. जहरीली शराब की चपेट में राजधानी से सटे सीतापुर, उन्नाव, हरदोई, बाराबंकी सहित पश्चिमी और पूर्वाचल उत्तर प्रदेश के कई जिले हैं.

कई बार तो नशा पूरा न होने पर ग्रामीण इसके ऊपर से थिनर का भी प्रयोग करते हैं, जिससे कम रुपए में अधिक नशा हो सके. लेकिन अधिक नशे के चक्कर में ग्रामीण मौत को भी दावत देते जा रहे हैं. मौजूदा समय में कच्ची शराब के ऊपर थिनर का नशा लोगों के सिर चढ़ कर बोल रहा है. इसकी गवाही राजधानी से सटे ग्रामीण क्षेत्रों में साफ देखने को मिलती है. वहां जहरीली शराब पीने से अधिक थिनर पीकर मरने वालों की संख्या में इजाफा हुआ है. बीते वर्ष 2016 में यहां थिनर पीने से 6 लोगों की मौत हो गई थी.

इसे लेकर तत्कालीन एसएसपी मंजिल सैनी ने लापरवाही बरतने के आरोप में थाना प्रभारी अरविंद कुमार को निलंबित भी कर दिया था. बीते दिनों भी थिनर पीने से मोहनलालगंज क्षेत्र में दो ग्रामीणों की मौत हो गई. थिनर को खुले में बेचने का अधिकार किसी दुकानदार के पास नहीं है, फिर भी मौत का ये सामान बड़ी आसानी से किसी भी छोटी-मोटी दुकान पर उपलब्ध हो जाता है.

विडंबना ये है कि सुप्रीम कोर्ट की रोक के बावजूद सभी तरह की दुकानों पर थिनर खुलेआम बिक रहा है. इसकी गिरफ्त में ग्रामीण अंचल के कम पढ़े लिखे लोग तेजी से आ रहे हैं. कोर्ट की फटकार के बाद मैन्युफैक्चरिंग कंपनीज ने थिनर का मिक्सर तैयार कर हाई सिक्योरिटी पैकिंग में बिक्री का दावा किया था.

लेकिन राजधानी सहित पूरे प्रदेशभर में थिनर की खुलेआम बिक्री हो रही है. पेपर पर गलत राइटिंग या नेल पॉलिश को मिटाने के नाम पर बिकने वाले थिनर की बढ़ती बिक्री के पीछे की असली वजह भी यही है. स्टेशनरी की दुकानों पर चंद रुपए अधिक लेकर ग्रामीणों को ये खुलेआम बेचा जा रहा है. पेंट घोलने में इस्तेमाल आने वाला थिनर नशे के रूप में धड़ल्लेे से इस्तेमाल में आ रहा है.

राजधानी लखनऊ से सटे ग्रामीण क्षेत्रों में खुले स्टेशनरी के दुकानदार प्रिंट रेट पर 10 से 20 रुपए अधिक लेकर बिना कोई सवाल जवाब किए ग्रामीणों को नशे का ये सामान बेच रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट की रोक के बाद थिनर की खुली पैकिंग बंद कर निब वाली पैकिंग ट्यूब बाजार में आ गई, लेकिन छोटे-मोटे बदलाव के साथ अभी भी कुछ नामचीन कंपनियां खुला थिनर बेच रही हैं.

प्रशासन का कहना है कि थिनर छोटी-मोटी चीजों में इस्तेमाल किया जाता है, इसके कारण दुकानदार भी किसी को आसानी से दे देते हैं. लेकिन सुप्रीम कोर्ट की गाइड-लाइन का जो भी दुकानदार उल्लंघन करता है, उसपर कार्रवाई की जाती है. थिनर बिक्री पर रोकथाम की पूरी जिम्मेदारी जिला प्रशासन की ही है.

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