पिछले दिनों तमिलनाडु राजनीतिक ड्रामे का केंद्र रहा. विधायक दल की चुनी हुई राजनेता को शपथ ग्रहण से रोक कर राज्यपाल ने वहां निम्न स्तर का एक नया मानक स्थापित किया है. ये बहुत कमज़ोर बहाने हैं कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने वाला है या विधायकों को एक रिसोर्ट में बंधक बना कर रखा गया है.

राज्यपाल यह बहाना नहीं बना सकते, क्योंकि ऐसी स्थिति में आईबी उन्हें हर चीज़ से बा़खबर रखती है. उन्हें ़खबर थी कि रिसोर्ट में रखे गए विधायक बंधक नहीं थे, बल्कि अपनी मर्ज़ी से वहां थे. लेकिन इसके बावजूद केंद्र सरकार के दबाव में (जिसमें गृह मंत्रालय, पीएमओ और प्रधानमंत्री स्वयं शामिल थे) वे राजनीति करने की कोशिश कर रहे थे, ताकि शशिकला को उस पद से वंचित रखा जाए, जिसके लिए उनके विधायकों ने उन्हें चुना है.

बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट के फैसले की वजह से शशिकला मुख्यमंत्री नहीं बन सकीं. लेकिन बाद की घटनाएं आदर्श न्याय (पोएटिक जस्टिस) साबित हुईं. यहां राज्यपाल को वो काम करना पड़ा, जो वे नहीं करना चाहते थे. जब शशिकला द्वारा मनोनीत व्यक्ति को उसी रिसॉर्ट के विधायकों ने अपना नेता चुना, तो राज्यपाल को उसे शपथ दिलाना पड़ा.

अब सवाल यह उठता है कि उनके उस ग्रैंड स्कीम का क्या हुआ, जिसमें वे पन्नीरसेल्वम को विधायकों की बहुमत का समर्थन हासिल करने का मौक़ा दे रहे थे? एआईएडीएमके के कुल 134 विधायकों में से 124 विधायकों ने शशिकला के उम्मीदवार को चुना. यह तथ्य राज्यपाल की शर्मिंदगी के लिए काफी है कि उनका फैसला इतना कमज़ोर था या केंद्र सरकार के दबाव में इतना पक्षपातपूर्ण था, जो उनके पद की मर्यादा के लिए तो ठीक नहीं ही था, केंद्र सरकार के लिए भी ठीक नहीं था.

विडंबना यह है कि भाजपा, कांग्रेस को हर तरह से बदनाम करने की कोशिश करती है और कहती है कि हम उससे अलग हैं, लेकिन हक़ीक़त में वो वही काम कर रही है, जो कांग्रेस किया करती थी. दरअसल, भाजपा वो काम और अधिक भद्दे तरीके से कर रही है. कांग्रेस कम से कम कुछ लाज-लिहाज़ रखती थी और परदे में काम करती थी. बहरहाल, अब यह अध्याय समाप्त हो चुका है. तमिलनाडु की राजनीति अपने पुराने ढर्रे पर आ गई है. देखते हैं आगे क्या होता है.

दूसरा मामला नए सेनाध्यक्ष बिपिन रावत से जुड़ा हुआ है. एक सेनाध्यक्ष कितना नीचे जा सकता है, उन्होंने भी इसका रिकॉर्ड स्थापित किया है. सेनाध्यक्ष को बहुत अधिक बात नहीं करनी चाहिए. वे जितना कम बात करेंगे, उतना ही अच्छा होगा. उन्होंने एक बयान जारी किया है कि कश्मीर में छात्रों द्वारा पत्थरबाज़ी से ये समझा जाएगा कि वे आतंकवादियों के भागने में मदद कर रहे हैं और उनके खिलाफ कार्रवाई होगी.

यह पूरी तरह से गैरज़रूरी, भड़काऊ, शरारतपूर्ण और उत्तर प्रदेश में भाजपा को फायदा पहुंचाने की नियत से दिया गया बयान है. सौभाग्यवश भारत के लोग होशियार हैं, उनपर ऐसी चीज़ों का बहुत प्रभाव नहीं पड़ता और वे यूनिफॉर्म को बहुत गंभीरता से नहीं लेते. चाहे आर्मी चीफ हों या पुलिस चीफ, उन्हें अपने काम पर ध्यान केन्द्रित रखना चाहिए. पूर्व दिल्ली पुलिस चीफ बीएस बस्सी ने भी कुछ ऐसा ही किया था. उन्होंने एक चुने हुए मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को आम बहस की चुनौती दी थी.

मुझे नहीं मालूम कि मोदी कौन सा मानक स्थापित कर रहे हैं. शायद वे समझ रहे हैं कि वे देश के लिए कुछ अच्छा कर रहे हैं. अपने हर भाषण में वे कहते हैं कि आज़ादी के बाद से 70 साल तक कांग्रेस ने देश के लिए कुछ नहीं किया. मुझे नहीं मालूम कि वे किस दुनिया में जीते हैं? आज हम जो भी हैं, जिसमें एक दिन में 104 उपग्रह अन्तरिक्ष में भेजना शामिल है, इसका श्रेय किसी न किसी रूप में जवाहरलाल नेहरु और इंदिरा गांधी को भी जाना चाहिए. जिन्होंने कुछ संस्थाएं बनाई, जिनमें इसरो, डीआरडीओ और बाकी कई संस्थाएं शामिल हैं. ये संस्थाएं 26 मई 2014 के बाद वजूद में नहीं आई हैं.

बेशक भारत के लोग होशियार हैं, वे इन सब बातों में विश्वास नहीं करते. ज़ाहिर है कोई भी पार्टी दशकों तक सत्ता में रहेगी, तो उससे गलतियां भी होंगी और वो चुनाव हारेगी और फिर बाद में जीतेगी भी. लोकतांत्रिक प्रक्रिया में यह चलता रहता है. यह दावा गलत है कि 70 सालों में कुछ भी नहीं हुआ और हम ही सब कुछ कर रहे हैं. दरअसल, आपका स्टैंडर्ड रोज़-बरोज़ गिरता जा रहा है. बहरहाल, 11 मार्च को पता चल जाएगा कि हवा किस दिशा में बह रही है. मैं समझता हूं कि यह देशहित में होगा कि मतदाता भाजपा को सबक सिखाएं. उसे हरा कर नहीं, बल्कि एक सीमित स्तर तक लाकर.

उनका अहंकार बहुत अधिक है, वह निश्चित रूप से कम होना चाहिए. लोकतंत्र में अहंकार काम नहीं करता. इंदिरा गांधी का आपातकाल विफल हो गया था. ़िफलहाल हम लोग अभी अघोषित आपातकाल के दौर से गुजर रहे हैं. हर नौकरशाह अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर काम कर रहा है. हर मंत्री, राज्य मंत्री, हर कोई अपनी सीमा से अधिक बात कर रहा है. यह जितनी जल्द ख़त्म होगा, देश के लिए उतना ही अच्छा होगा.

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