यह भारत को तोड़ने की बेहद ख़ौफनाक साज़िश है. जिसे रच रही हैं विश्व की दो सबसे खतरनाक खु़फिया एजेंसियां. मक़सद है हिंदुस्तान में गृहयुद्ध का कोहराम मचाना. यहां की ज़म्हूरियत को नेस्तनाबूद करना. संस्कृति और परंपराओं को दूषित-संक्रमित करना, ताकि इस देश का वजूद ही खत्म हो जाए. इसके लिए निशाने पर हैं देश की अज़ीम ओ तरीम 35 हस्तियां. इन दोनों ख़ु़फिया एजेंसियों के एजेंट्‌स न्यायाधीशों, राजनीतिज्ञों, मंत्रियों, नौकरशाहों एवं शीर्ष पत्रकारों की दिन-रात निगरानी कर रहे हैं. यहां तक कि अपने बेहद निजी पलों में भी ये 35 हस्तियां मह़फूज नहीं हैं.

सीआईए के ई-जासूस चौबीसों घंटों अनवरत सभी साइटों पर भटकते रहते हैं. छोटी से छोटी सूचना भी इनके रिकॉर्ड में प्रमुखता से दर्ज़ होती है. पॉलिग्राफ सिक्यूरिटी में दक्ष, इंफॉर्मेशन सिस्टम इंजीनियरों की पूरी फौज इन सूचनाओं का बारीक़ से बारीक़ विश्लेषण करती है, ताकि भारत के खिला़फ जारी मुहिम के तहत देश को संभालने और आगे ले जाने वाली हस्तियों के विरुद्ध सबूत इकट्ठा हो सकें. उनकी निजी पसंद-नापसंद, शौक़ और हरकतों को औज़ार बनाकर समाज में ज़लील करने का सामां हासिल हो सके.

जासूसी करने वाले एजेंट्‌स के नाम हैं-ई जासूस, जो बग़ैर दिखे और बिना किसी कैमरे या इलेक्ट्रॉनिक उपकरण के शयनकक्षों तक में घुसकर अपना जाल बिछा चुके हैं. देश की सभी अहम पार्टियों के शीर्ष नेताओं की हरकतें, उनकी बातचीत सहित कुछ भी, इन ई-जासूसों की नज़रों से छुपा नहीं है. सीआईए और मोसाद मिलकर भारत के खिला़फ इस षड्‌यंत्र को अंजाम दे रहे हैं. ज़रिया बना है इंटरनेट. फेसबुक, ऑरकुट, जीमेल, याहूमेल, टि्‌वटर सब पर पैनी नज़र है. अमेरिकी खु़फिया एजेंसी सीआईए ने 20 मिलियन डॉलर निवेश करके इन-क्यू-टेल नाम की एक कंपनी बनाई है. इन-क्यू-टेल ने अमेरिका की कई जानी मानी सॉफ्टवेयर कंपनियों को अपने साथ जोड़ा है. यह कंपनी इंटरनेट की म़ुकम्मल दुनिया पर गहरी और बारीक़ नज़र रख रही है. हज़ारों लोगों को इस काम के लिए नियुक्त किया गया है. सीआईए के 90 एजेंट इस पूरे अभियान को दिशा और गति दे रहे हैं. विश्व की 15 प्रमुख भाषाओं में काम किया जा रहा है. सीआईए ने इसके लिए भाषा विशेषज्ञों और सैन्य विशेषज्ञ इंजीनियरों की नियुक्ति की है. हिंदी, अंग्रेजी, अरबी, उर्दू, फारसी, चीनी, फ्रेंच, रूसी, जर्मनी, संस्कृत एवं जापानी आदि भाषाओं में इंटरनेट पर होने वाले सभी आदान-प्रदान का रिकॉर्ड सीधे सीआईए मुख्यालय में दर्ज़ हो रहा है.

आज से अगले पांच सालों में हिंदुस्तान को पाकिस्तान, बांग्लादेश या अफ्रीकी देशों जैसी स्थिति में देखने की कल्पना आपको कैसी लगती है? चौंकिए मत, यह सच होने जा रहा है. जिस तरह इन देशों के न्यायाधीशों, राजनीतिज्ञों, नौकरशाहों और पत्रकारों की साख ख़त्म हो गई है, वैसे ही हमारे देश में भी होने वाला है. जैसे वहां लोकतंत्र पर भरोसा ख़त्म हुआ है, वैसे ही हमारे यहां भी होने वाला है. पैंतीस लोगों में भाजपा, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और वामपंथी दलों के नेता हैं तो कुछ जुझारू और साख वाले पत्रकार भी. यह रिपोर्ट का़फी खोजबीन के बाद तैयार हुई है और खोजी पत्रकारिता की झलक दिखाती है. हमारे पास उन पत्रकारों, राजनेताओं के नाम आने शुरू हो गए हैं, जो इन एजेंसियों के लिए देश के लोकतंत्र पर आस्था ख़त्म करने के काम में हिस्सा बंटा रहे हैं. इसका खुलासा अगली रिपोर्ट में करेंगे, पर अभी जो लिख रहे हैं, वह भयावह है और घृणित भी…

भारत की गुप्तचर एजेंसियों को इस बात की पूरी खबर है कि सीआईए और मोसाद के ई-जासूस इंटरनेट के ज़रिए देश के पैंतीस खासम़खास लोगों के घरों में अपनी जगह बना चुके हैं. भारत या विश्व में कहीं भी ये पैंतीस लोग जैसे ही अपना ईमेल अकाउंट खोलते हैं, ई-जासूस सक्रिय हो जाते हैं. नेट के ज़रिए चैटिंग, ई-व्यापार, बातचीत, डाटा का आदान-प्रदान, फ्लिकर या यूट्युब का इस्तेमाल आदि सब कुछ सीआईए मुख्यालय और मोसाद मुख्यालय में सीधे रिकॉर्ड हो रहा है. बंद कमरों में की गई इनकी बातें, मुद्दों पर चर्चाएं और योजनाएं-सब. जिस सॉफ्टवेयर के ज़रिए ये सभी सूचनाएं इकट्ठा की जा रही हैं, वह यहां तक बताता है कि कौन सी सूचना नकारात्मक है और कौन सी सकारात्मक, कौन सी चर्चा हल्की है और कौन सी गंभीर. इन 35 लोगों के अलावा भारत के जिन अन्य लोगों का लेखा-जोखा रखा जा रहा है, उनकी बातचीत को भी यह सॉफ्टवेयर रिकॉर्ड कर रहा है और उनकी श्रेणी भी निर्धारित कर रहा है. सीआईए ने जिन खास लोगों को अपने निशाने पर ले रखा है, उनका वह शारीरिक नुक़सान नहीं करना चाहती, बल्कि उन शीर्ष लोगों के निजी क्षणों का ब्यौरा इकट्ठा कर उनका सामाजिक रूप से पतन करना चाहती है.
भारत की खुफिया एजेंसी के एक बड़े अधिकारी बताते हैं कि सीआईए और मोसाद इन दोनों की यही कोशिश है कि सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों का इस तरह से चरित्र हनन किया जाए कि वे समाज में अपना मुंह दिखाने के क़ाबिल न रहें. जब चरित्र धूल-धूसरित होगा तो नेता टूटेगा. नेता पर दाग़ लगने से पार्टी बिखरेगी. और, ऐसी हालत में देश कमज़ोर होगा. आमजनों का नेताओं से भरोसा उठेगा, अराजकता फैलेगी. तब सीआईए और मोसाद जैसी विध्वंसकारी ताक़तों को मौक़ा मिलेगा भारत पर क़ाबिज़ होने का, देश को तहस-नहस करने का.
दरअसल देखा जाए तो हो भी यही रहा है. अचानक ही अलगाववादी शक्तियों ने एक साथ अपना सिर उठा लिया है. यूं तो व़क्त-व़क्त पर अलग-अलग राज्यों की मांगें उठती रही हैं, पर ये इतनी तीव्रतर कभी नहीं थीं. तेलंगाना, बुदेलखंड, कामतापुर, पूर्वांचल, हरित प्रदेश एवं गोरखालैंड आदि राज्यों की मांगें इतनी ज़ोर पकड़ चुकी हैं कि, इनके लिए किए जा रहे आंदोलन हिंसक हो चुके हैं. विघटनकारी तत्व देश की अखंडता पर हावी हो चुके हैं. इन विघटनकारी शक्तियों को बड़ी आर्थिक मदद विदेशों से मिलती है. ज़ाहिर है, ये वही विदेशी ताक़तें हैं जो भारत की अस्मिता को छिन्न-भिन्न करना चाहती हैं. आज़ादी के बाद देश के 14 राज्यों का 21 राज्यों में बंटना, फिर 25 राज्यों का बन जाना, उसके बाद 28 राज्यों का गठन और अब उनके भी टुकड़े करने की आवाज़ों का उठना. भाषाई, सामाजिक और आर्थिक स्तर के आधार पर हिंदुस्तान के टुकड़े-टुकड़े कर देना. अंगे्रजों ने हिंदुस्तान के इसी बिखराव का फायदा उठाकर इसे अपना ग़ुलाम बना लिया था.
आज़ादी के बाद भारत एक हुआ. मज़बूत बना. विकास के नए आयाम ग़ढे गए. तरक्की के सोपानों पर च़ढता हुआ भारत विश्वशक्ति बनने की ओर अग्रसर हुआ. विश्वव्यापी आर्थिक मंदी भी भारतीय अर्थव्यवस्था की री़ढ नहीं तोड़ सकी. जबकि अमेरिका जैसे महाशक्तिशाली देश की भी चूलें हिल गईं. यक़ीनन ये हालात अमेरिका को गंवारा नहीं. वह भला कैसे चाहेगा कि भारत विश्वशक्ति बन उसका मुक़ाबला करे. लिहाज़ा एक बार फिर भारत को टुकड़ों में करने की साज़िश में सीआईए अपनी सहयोगी मोसाद के साथ लग चुकी है.
सोशल नेटवर्किंग साइट इसमें बहुत बड़ी मददगार साबित हो रही है. साइबर क्राइम के मशहूर वकील पवन दुग्गल कहते हैं कि नेट के 70 प्रतिशत यूजर्स ग़ैर अमेरिकी हैं. ये अमेरिका से बाहर रहते हैं. 180 देशों में इनका जाल फैला हुआ है. 200 से ज़्यादा ग़ैर अमेरिकी भाषी ब्लॉगर टि्‌वटर समूह हैं. इनकी रीयल टाइम सूचना सीआईए के मिशन को बहुत ़फायदा पहुंचा रही है. कंप्यूटर्स नेटवर्किंग की सबसे बड़ी कंपनी सिस्को की वार्षिक सुरक्षा रिपोर्ट 2009 में यह भी खुलासा हुआ है कि स्पैम मेल ट्रैेफिक के मामले में भारत इस साल दुनिया का नंबर तीन देश बन गया है. इस साल भारत में स्पैम मेल के मामले में 130 प्रतिशत का इज़ा़फा हुआ है. भारत में फेसबुक यूजर्स की तादाद 35 करोड़ तक जा पहुंची है. सीआईए के लिए फेसबुक मुंहमांगी मुराद साबित हो रहा है. सीआईए जिस वायरस के ज़रिए अपने ई-जासूसों को बेहद तेज़ी से फैला रहा है, उसका नाम फेसबुक का उल्टा कर कूबफेस रखा गया है. हालांकि सीआईए ने 2008 में ही इस वायरस को इंटरनेट की दुनिया में छोड़ दिया था, लेकिन यह पूरी तरह से सक्रिय 2009 के आ़खिर तक हुआ. टि्‌वटर भी पूरी तरह इसकी चपेट में आ चुका है. शुरुआत में यह वायरस अमूमन यू ट्यूब लिंक पर क्लिक करने के लिए उकसाता था, लेकिन अब फेसबुक, टि्‌वटर और ऑरकुट आदि पर दोस्तों के फर्ज़ी नाम से सूचनाएं भेजकर प़ढने को उकसाता है.
सीआईए का सबसे घातक वायरस ट्रॉजन है, जो 2009 का सबसे खतरनाक वायरस माना गया है. यह नाम, पासवर्ड, और बैकिंग डीटेल्स से भी आगे जाकर आपके दोस्तों के भी डिटेल्स चुरा लेता है. यह इतना खतरनाक वायरस है कि इसे कई एंटी वायरस प्रोग्राम भी नहीं पकड़ पाते हैं. 2009 में तकरीबन 62 लाख कंप्यूटर इस वायरस के शिकार हुए हैं.
गृह मंत्रालय के एक अधिकारी के मुताबिक़, भारत के 172 बेहद मशहूर लोगों की बैकिंग डीटेल्स और उनकी निजी बातें इस वायरस ने हैक कर ली हैं. इसमें कुछ ऐसे संवेदनशील मसले हैं कि जो आम हो जाएं तो देश में राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक संकट खड़ा हो जाए. भारत में गृहयुद्ध के आसार पैदा करने के लिए सीआईए और मोसाद इन्हीं उपलब्ध सूचनाओं को अपना हथियार बना रही हैं. वे बस सही मौके की तलाश में हैं.
राहुल गांधी और उमर अब्दुल्ला भी बने शिकार
तीन फरवरी, 2007 कांगे्रेस महासचिव राहुल गांधी से संबंधित बहुत सारी अश्लील सामग्री अचानक एक वेबसाइट पर नमूदार होती है. इस वेबसाइट पर राहुल गांधी के चरित्र पर कीचड़ उछालने में कोई कसर बाक़ी नहीं रखी गई थी. कांग्रेस पार्टी के अंदर हड़कंप मच गया था. विपक्षी पार्टियों के नेताओं को रस तो आ रहा था, पर वे तुरंत कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहे थे. हर कोई सांस रोके सही बात जानने के इंतज़ार में था. मामला सत्तारू़ढ पार्टी के युवराज का था. लिहाज़ा ख़ु़फिया एजेंसियों ने अपनी पूरी ताक़त छानबीन में झोंक दी. पता चला कि अमेरिका के रहने वाले दो व्यक्तियों ने वेबसाइट पर राहुल गांधी से संबधित अश्लील सामग्री डाली थी. बेहद मशक्कत से उनका ई-मेल आईडी और पता ठिकाना भी मालूम कर लिया गया. कांग्रेस प्रवक्ता और पेशे से वकील अभिषेक मनु संघवी ने उन दोनों अमेरीकियों को क़ानूनी नोटिस भी भेजा. जांच कुछ और आगे बढ़ी तो पता चला कि राहुल को बदनाम करने के लिए वेबसाइट विजुअल टेक्नोलॉजी नामकी सॉफ्टवेयर कंपनी की है. ये विजुअल टेक्नोलॉजी वही कंपनी है, जिसने सीआईए की जासूसी कंपनी आई-क्यू-टेल के लिए उस सॉफ्टवेयर को बनाया है, जो इंटरनेट पर ई-जासूसी का काम करता है. यह जानकर गृह मंत्रालय के अधिकारियों के हाथ पैर फूले हुए हैं.
अब बात करते हैं जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की. 2006 में जम्मू कश्मीर में हुए एक सेक्सकांड में उनका नाम विरोधियों ने जमकर घसीटा. हवाला दिया गया कि उमर अब्दुल्ला का नाम सीबीआई जांच में सामने आया है. इस मसले पर जम्मू कश्मीर विधानसभा में हुआ हंगामा आज भी लोगों को याद है. अपने चरित्र हनन से दुखी होकर उमर अबदुल्ला ने मुख्यमंत्री पद से इस्ती़फा तक दे दिया था. लेकिन जब जांच हुई तो उमर अब्दुल्ला कोनिर्दोष पाए गए. मुख्यमंत्री तो वह बने रहे, पर उनकी छवि को जो नुक़सान पहुंचा, उसकी भरपाई होनी मुश्किल है.
बाद में पता चला कि उमर अब्दुल्ला के चरित्र पर कलंक लगाने वाले पीडीपी नेता और पूर्व उप मुख्यमंत्री मुज़फ्फर बेग ने जिस सूची के आधार पर सेक्स कांड के आरोपियों की सूची में उमर अब्दुल्ला का नाम होने का दावा किया था, वह सूची एक फर्ज़ी वेबसाइट से डाउनलोड थी. इस वेबसाइट की आईडी भी अमेरिका की ही थी.
हालांकि उमर अब्दुल्ला के चरित्र हनन का मामला शांत होने के बाद उमर अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कांफ्रेंस के लोगों ने भी मुज़फ्फर बेग की जमकर छीछालेदर की. मुज़फ्फर बेग का नाम कई महिलाओं से जोड़ा गया. एक बड़े पत्रकार की विधवा से लेकर एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश की बेटी तथा एक सिनेमा हॉल की मालिक की बहन और भतीजी तक से उनके अवैध संबंधों की बात कही गई. जब स़फेदपोश डॉन रोमेश शर्मा की गिरफ़्तारी हुई थी, तो उसके घर की तलाशी में कई नेताओं और भगवा पार्टी के प्रमुख नेत्रियों की अश्लील तस्वीरें बरामद होने की बात सामने आई थी.
वैसे देश में जब कभी आम चुनाव या विधानसभा चुनावों का व़क्त होता है तो नेता एक दूसरे को नीचा दिखाने में जुट जाते हैं. एक दूसरे पर अश्लील आरोप लगाते हैं. सपा नेता और मशहूर अभिनेत्री जया प्रदा और आज़म ख़ान की सियासी जंग का शर्मनाक नज़ारा अभी भी सबको याद है. पर चुनावी फिजां ख़त्म होते ही ये बातें भी गई बीती हो जाती हैं. पर सीआईए और मोसाद चरित्र हनन का जो भयावह खेल खेल रहे हैं, वह हिंदुस्तान के अस्तित्व को ही खत्म करने वाला है.
चरित्र हनन के ज़रिए समाज तो़डने की साज़िश
सीआईए और मोसाद के गठजोड़ ने भारतीय राजनेताओं, न्यायाधीशों, पत्रकारों, अधिकारियों, बड़े उद्योगपतियों के चरित्र हनन की जो घिनौनी रणनीति बनाई है, उसके तहत उसने रिश्तों की सभी मर्यादाओं को तोड़कर रख दिया है. भारत की गुप्तचर एजेंसियों को कुछ ऐसी तस्वीरें हाथ लगी हैं, जो होश फाख्ता कर देने वाली हैं. सीआईए और मोसाद की योजना इन तस्वीरों को विभिन्न वेबसाइट्‌स पर एक साथ पोस्ट करने की थी. इन तवीरों में नामचीन हस्तियां विभिन्न मुद्राओं में महिलाओं और पुरुषों के साथ नज़र आ रहे हैं. इन तस्वीरों पर नज़र पड़ते ही एकबारगी उल्टी बातें ही ज़ेहन में उभरती हैं. संबधित व्यक्ति के प्रति कुछ संशय, कुछ सवाल मन में सर उठाते हैं. चौथी दुनिया ने भी इन तस्वीरों को देखा. लाज़िमी है, अटपटा सा लगा. पर जब उन तस्वीरों की बाबत छानबीन की गई तो माज़रा कुछ और निकला. पता चला कि वे देश के प्रमुख लोग, जो  तस्वीरों में किसी महिला या पुरुष के साथ नज़र आ रहे हैं, वे दरअसल उनके सगे संबधी हैं, न कि उनके आपत्तिजनक संबंध. अब ज़रा सोचिए. अगर ये तस्वीरें एक बार बाज़ार में आ जाए तो समाज की जो पहली प्रतिक्रिया होगी, वह भूचाल लाने वाली ही होगी. अब उसके बाद लाख स़फाई दी जाए कि जो दिख रहा है, उसकी हक़ीक़त कुछ और है, पर सुनेगा कौन? बस यहीं मोसाद और सीआईए की रणनीति कामयाब हो जाती. संस्कार और संस्कृति पर हमलाकर ये दोनों खु़फिया एजेंसियां हिंदुस्तानी समाज और उसके विश्वास को तोड़ने में सफलता पा लेतीं. 35 मशहूर लोगों के चरित्र को एक के बाद एक, दाग़दार देखने के बाद भारतीय समाज और राजनीति में वो झंझावात मचता, जो इस देश को तबाह कर ही देता. हालांकि हिंदुस्तान के दुश्मनों ने सन 1952 से ही अपनी नापाक सोच को अमल में लाना शुरू कर दिया था. 1952 में ही अमेरिकी राष्ट्रपति ने अभी तक का सबसे बड़ा जासूसी अभियान शुरू किया था. उत्तरी कोरिया, चीन और सोवियत संघ की तिकड़ी तोड़ने के लिए, अमेरिका ने बग़ैर भारत को भनक लगे कश्मीर, गुजरात और राजस्थान के सीमावर्ती इलाक़ों को तीसरे विश्वयुद्ध की रणनीति बनाने के लिए चिन्हित कर लिया था. अमेरिका के टोही लड़ाकू विमानों ने पूरे इलाक़े का ऩक्शा बनाकर उसकी टोह भी ले ली थी. तभी दुर्घटनावश 29 जनवरी 1952 को सीआईए का एक टोही विमान चीन की सीमा के अंदर गिर पड़ा. उसमें सवार तीनों पायलट ज़िंदा बच गए और चीनी सेना की गिरफ्त में आ गए. तब पूछताछ में पूरी साज़िश का खुलासा हुआ. सीआईए के सबसे सफल अधिकारियों में शुमार ब्रोकन रीड ने अपनी 50 साल की नौकरी पूरी करने के बाद यह रहस्य उगला है. ब्रोकन रीड ने कहा है कि अगर उस व़क्त अमेरिका का टोही विमान दुर्घटनाग्रस्त नहीं होता तो भारत तीसरे विश्वयुद्ध की चपेट में आकर तभी का बर्बाद हो गया होता.

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