1680594f-8e87-4e24-a995-da3भारत विश्‍व का दूसरा सबसे बड़ी आबादी वाला देश है. हमारे यहां विकसित देशों की तुलना में स्वास्थ्य सेवाओं की हालत लचर है. सरकार की तरफ़ से किए जाने वाले प्रयासों के बावजूद लोगों में स्वास्थ्य को लेकर बहुत कम जागरूकता है. खासकर, रक्त दान को लेकर लोगों में कई तरह की भ्रांतियां हैं. देश में पढ़े-लिखे लोग भी रक्त दान करने में कतराते हैं, जबकि रक्त दान करना स्वास्थ्य के लिए कई मायनों में लाभदायक होता है. विश्‍व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, ब्लड़ बैंकों में कुल आबादी का 2-3 प्रतिशत रक्त उपलब्ध होना चाहिए, लेकिन भारत में यह बहुत कम है. सरकार की ओर से रक्त दान को प्रोत्साहित करने के लिए जो भी प्रयास होते हैं, वे नाकाफी हैं. देश में जो रक्त दान होता है, वह आवश्यकता पूरी नहीं कर पाता है. इस वजह से कई लोग असमय काल के गाल में समा जाते हैं. इस वजह से ब्लड बैंकों में ब्लड की उपलब्धता बनाए रखने और स्वैच्छिक रक्त दाताओं की संख्या में इजाफा करने की दिशा में आगे बढ़ने की बहुत आवश्यकता है. खासकर उस स्थिति के बारे में विचार करने की आवश्यकता है, जब एक स्वैच्छिक रक्त दाता रक्त लेने वाला बनता है. उस समय उसे बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है. ग्लोब्लाइजेशन के इस दौर में अधिकांश युवा अपने गृह नगर और प्रदेश से दूर देश के दूसरे शहरों में काम कर रहे हैं. वह देश का सबसे ज़्यादा जागरूक और पढ़ा- लिखा वर्ग है. वह स्वैच्छिक रक्त दान करता है, लेकिन जब उसे अपने गृह नगर में अपने माता-पिता या अन्य क़रीबियों के लिए रक्त की आवश्यकता होती है, तब कई कारणों से रक्त उपलब्ध नहीं हो पाता है. इसके कई कारण हैं. पहला यह कि स्वैच्छिक रक्त दान के बाद जो डोनर्स कार्ड मिलता है, उसकी नेशनल वैलेडिटी नहीं होती है. इस वजह से उसका कार्ड आपात स्थिति में वह अर्थहीन हो जाता है.
एक स्वस्थ व्यक्ति एक बार रक्तदान करने के तीन माह बाद ही दोबारा रक्त दान कर सकता है. इस अंतराल में यदि उसे या उसके नज़दीकी रिश्तेदारों को रक्त की आवश्यकता होती है, तब वह तकनीकी रूप से रक्तदान नहीं कर सकता है. वर्तमान में जो प्रावधान हैं, उनके अनुसार रक्तदाता रक्त दान किए गए शहर में ही कार्ड के एवज में ब्लड प्राप्त कर सकता है. इस वजह से उसे अपनों की जान बचाने के लिए मानसिक, आर्थिक एवं शारीरिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इस तरह की घटनाओं से लोगों के समाज के प्रति ज़िम्मेदारी वाले रवैये में गिरावट आती है और नियमित रूप से स्वैच्छिक रक्त दान करने वाले हतोत्साहित होते हैं. ब्लड ट्रांसफ्यूजन सिस्टम में सुधारों के संबंध में इंडियन रेडक्रास सोसायटी की निदेशक डॉ. वनश्री सिंह का कहना है कि वर्तमान में देश के सारे ब्लड बैंकों की नेटवर्किंग बेहद ज़रूरी है. इससे देश भर में स्वैच्छिक रक्त दान करने वालों के स्टेटस की जानकारी मिलेगी. इसके साथ ही सभी ब्लड बैंकों की कार्यप्रणाली एक जैसी करने की आवश्यकता है. ब्लड बैंकों द्वारा एक-दूसरे का ब्लड न लेना, ब्लड की जांच के तरीकों में खामियां जैसी कई परेशानियां हैं. ऐसे में, यदि कोई अथॉरिटी बनती है, तो उससे इस तरह की तकनीकी दिक्कतों में कमी आएगी. और, लोगों को जो परेशानियां हो रही हैं, उनसे निजात मिलेगी.
वर्तमान परेशानियां को दूर करने के लिए देश के सभी ब्लड बैंकों की वीसैट, इंटरनेट और अन्य माध्यमों से नेटवर्किंग की आवश्यकता है, जिससे राष्ट्रीय स्तर पर रक्त की उपलब्धता की जानकारी हो सके. इसके साथ ही रक्त दान करने वालों को एटीएम कार्ड जैसा एकीकृत ब्लड डोनेशन कार्ड उपलब्ध कराया जाए, जिसे आवश्यकता पड़ने पर देश भर में कहीं भी उपयोग में लाया जा सके. यदि रक्त दाताओं को इस तरह की सहूलियत मिलने लगे, तो दूसरे लोग भी प्रोत्साहित होंगे और रक्त दाताओं की संख्या एवं ब्लड बैंकों में रक्त की उपलब्धता में इजाफा होगा. ब्लड बैंकों तक आसानी से पहुंचने के लिए इमर्जेंसी सेवा नंबरों जैसे 100, 101, 102 और 108 की तरह एक टोल-फ्री नंबर उपलब्ध कराया जाना चाहिए जिस पर लाइसेंस्ड ब्लड बैंकों की जानकारी, ब्लड ग्रुप के आधार पर ब्लड की उपलब्धता, निकटतम ब्लड बैंक का पता आदि जानकारियां मिल सकें, जिससे बिना समय बर्बाद किए रक्त प्राप्त करके मरीज की जान बचाई जा सके. उड़ीसा में बल्डबैंकों की नेटवर्किंग का काम हुआ है लेकिन दिल्ली जैसे विकसित शहरों में भी यह नहीं हो पाया है.
ब्लड डोनेशन को आपातकाल में इस्तेमाल हो सकने वाले आवश्यक हथियार के रूप में प्रचारित करने की आवश्यकता है, ताकि लोग जिस तरह पैसों का बैंकों में निवेश करते हैं, उसी तरह वे ब्लड बैंकों में रक्त दान कर निवेश करें, जिसका फायदा अखिल भारतीय स्तर पर उन्हें और उनके परिवार को मिल सके. एक यूनिफॉर्म अथॉरिटी बनने से ब्लड बैंकों में होने वाली कालाबाज़ारी को भी रोका जा सकता है और अवैध रूप से चल रहे ग़ैर लाइसेंसी ब्लड बैंकों पर भी रोक लगाई जा सकती है. ब्लड बैंकों के लिए यह अनिवार्य कर दिया जाए कि वे अपने यहां वर्ग के आधार पर उपलब्ध रक्त की जानकारी सूचना पटल पर लगातार अपडेट करते रहें. साथ ही अपनी और अथॉरिटी की वेबसाइट पर भी लाइव फीड उपलब्ध कराते रहें. अलग-अलग ब्लड बैंकों में ब्लड की क़ीमत अलग-अलग होती है. सरकार को इस संबंध में भी एकरूपता लाने के लिए आवश्यक दिशानिर्देश जारी करने चाहिए. इस तरह के क़दम केंद्रीयकृत अथॉरिटी बनाए बिना संभव नहीं हैं.
वर्ष 2009 में भारत सरकार ने देश में रक्त दान और रक्त संग्रहण की प्रक्रिया रेगुलेट करने के लिए नेशनल ब्लड रेगुलेशन अथॉरिटी (एनबीटीए) बनाने का निर्णय लिया था, लेकिन 2013 आते-आते सरकार इस दिशा में कोई निर्णय नहीं ले सकी और यह प्रस्ताव ठंडे बस्ते में चला गया. सितंबर 2009 में एक ड्राफ्ट नोट विभिन्न विभागों, मसलन वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामले और व्यय विभाग, स्वास्थ्य विभाग, योजना आयोग आदि को भेजा गया था, लेकिन वित्त मंत्रालय ने इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया था. वित्त मंत्रालय ने कहा कि उसे जो प्रस्ताव भेजा गया था, उसमें बहुत सी खामियां और क़ानूनी बाध्यताएं थीं. इस कारण उसे अमलीजामा नहीं पहनाया जा सकता है. इस वजह से स्वास्थ्य मामलों की स्टैंडिंग कमेटी ने इससे संबंधित ड्राफ्ट फिर से तैयार करने के लिए वापस भेज दिया. रेगुलेटिंग अथॉरिटी इतनी ताकतवर बनाई जाए, जिससे वह अनियमितताएं बरतने और नियमों की अवहेलना करने वाले ब्लड बैंकों के ख़िलाफ़ कड़ी से कड़ी कार्रवाई कर सके. इससे रक्त दान के मार्ग में आने वाली समस्याओं का समाधान हो जाएगा और बड़ी संख्या में लोग रक्त दान के लिए सामने आएंगे, जिससे रक्त की कमी से होने वाली मौतों में कमी आएगी.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here