भारत और इजरायल के संबंध दो दशक पुराने हैं. अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में भारत और इजरायल के बीच संबंधों की एक नए सिरे से शुरुआत हुई. अब एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार भारत में बनी है, तो इजरायल के साथ संबंधों का प्रगाढ़ होना लाजिमी है. दोनों देशों के बीच रक्षा और कृषि क्षेत्र में सहयोग बढ़ना सुनिश्‍चित है. खाद्यान्न उत्पादन में भारत को आत्मनिर्भर बनाने में इजरायल की महत्वपूर्ण भूमिका होगी. कृषि में तकनीक का उपयोग समय की मांग है, लेकिन आधुनिक तकनीक अपनाने के साथ-साथ खेती की पारंपरिक शैली बचाए रखना भी हमारे लिए एक बड़ी चुनौती होगी. 
mmmवर्ष 2009 के आम चुनाव के दौरान एक ख़बर आई थी कि इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद भारत में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनवाना चाहती थी. मोसाद ने लालकृष्ण आडवाणी को प्रधानमंत्री बनवाने की पुरजोर कोशिश की, लेकिन वह अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सकी. अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में जब आडवाणी देश के गृहमंत्री थे, तब उन्होंने मोसाद को भारत में नेटवर्क स्थापित करने की इजाजत दी थी. इसके पीछे आडवाणी का मकसद मिलजुल कर आतंकवाद के ख़तरे को कम करना था. इसके लिए रॉ जैसी भारतीय खुफिया एजेंसियों ने पाकिस्तान से संबंधित सूचनाएं मोसाद के साथ साझा करना शुरू किया था. पांच साल के बाद अब मोसाद की इच्छा पूरी हो गई है. इजरायली प्रधानमंत्री बेंजमिन नेतनयाहू ने नरेंद्र मोदी को जीत की बधाई दी. उन्होंने विश्‍वास जताया कि भारत में नई सरकार के गठन के बाद दोनों देशों के बीच संबंधों का विस्तार होगा और द्विपक्षीय संबंधों को एक नई दिशा मिलेगी. नेतनयाहू पिछले कुछ वर्षों से एशियाई देशों के साथ आर्थिक संबंध बेहतर करने का काम कर रहे हैं. इसी वजह से रक्षा व्यापार और कृषि क्षेत्र में भारत और इजरायल के बीच सहयोग बढ़ना सुनिश्‍चित है.
भारत सरकार ने रक्षा क्षेत्र में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को हरी झंडी दिखा दी है. इसका मतलब है कि अब इजरायल भारत में ही रक्षा उत्पादों का उत्पादन कर सकेगा. साथ ही दोनों देश रक्षा क्षेत्र में साझा शोध कर सकेंगे. इजरायल की जनसंख्या बहुत कम है. यदि इजरायल भारत में हथियार उत्पादन करता है, तो भारतीय युवाओं को बड़ी संख्या में रा़ेजगार भी मिलेगा. भारत और इजरायल के बीच राजनयिक संबंधों की शुरुआत 1992 में हुई थी. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के कार्यकाल में दोनों देशों के संबंधों में प्रगाढ़ता आई थी. 2003 में तत्कालीन इजरायली प्रधानमंत्री एरियल शेरोन ने भारत का दौरा किया था. इसके बाद तत्कालीन रक्षा मंत्री जसवंत सिंह और गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी भी इजरायल के दौरे पर गए थे. इजरायल ने करगिल युद्ध के दौरान भी भारत की मदद की थी. इसके बाद दोनों देशों के बीच रक्षा क्षेत्र में लगातार सहयोग बढ़ता गया.
दोनों देश पिछले कुछ सालों से फ्री ट्रेड एग्रीमेंट पर बातचीत रहे हैं, लेकिन अब तक यह मूर्त रूप नहीं ले पाया है. वर्तमान में भारत और इजरायल के बीच सालाना व्यापार 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर का है. दोनों देशों के बीच शिक्षा और कृषि क्षेत्र में भी सहयोग लगातार बढ़ रहा है. दोनों देश रक्षा और वैज्ञानिक शोध के क्षेत्र में लगातार सहयोग कर रहे हैं. इजरायल अमेरिका के साथ अपने संबंधों के आधार पर भारत को नहीं देखता है. इजरायल ने अमेरिका से संबंधों के इतर दूसरे देशों के साथ अपने संबंध मजबूत किए हैं. उदाहरण के तौर पर इजरायल भारत को फालकन रडार के साथ एरो इंटरसेप्टर मिसाइल बेचना चाहता था, लेकिन अमेरिका इसके पक्ष में नहीं था. उसने इस डील को रोकन के लिए एमटीसीआर का हवाला दिया. चूंकि इजरायल ने एरो इंटरसेप्टर मिसाइल अमेरिका के सहयोग से विकसित की थी. इसलिए अंततः अमेरिकी दबाव में न आकर इजरायल ने भारत को एरो मिसाइल के बिना फालकन रडार की आपूर्ति की. बेंजमिन नेतनयाहू ने नरेंद्र मोदी से बातचीत के दौरान विश्‍वास जताया कि दोनों देश आपसी संबंधों का विस्तार करके उन्हें एक नई दिशा देंगे.
इजरायल रक्षा व्यापार के मामले में एशिया में अपने सबसे क़रीबी सहयोगी अमेरिका को भी चुनौती देता नज़र आ रहा है. नेतानयाहू यह बात बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा बाज़ार है और इजरायल प्रमुख निर्यातक. ऐसे भी इजरायल ने भारत को हथियार और रक्षा उपकरण निर्यात करने के मामले में 2008 में रूस को भी पीछे छोड़ दिया. इसके अलावा इजरायल ने पाकिस्तान को हथियार निर्यात न करने की नीति अपनाई है. उसने साफ़ तौर पर कहा कि वह ऐसा कोई क़दम नहीं उठाएगा, जिससे भारत की सुरक्षा के लिए परेशानी खड़ी हो. उसने कहा कि हमारे संबंध केवल हथियारों की खरीद-फरोख्त तक सीमित नहीं हैं. हमें भारत के साथ अपने संबंधों पर गर्व है.
नवगठित एनडीए सरकार कृषि क्षेत्र में मूलभूत बदलाव करने जा रही है. नरेंद्र मोदी देश को हर स्तर पर आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं. आत्मनिर्भरता के इस मिशन में भारत के लिए सबसे ज़्यादा मददगार देश इजरायल हो सकता है. कृषि और रक्षा दो ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें इजरायल ने पिछले कुछ दशकों में अप्रत्याशित बढ़ोतरी दर्ज की है. आज कृषि उत्पाद और तकनीक निर्यात में इजरायल दुनिया के अग्रणी देशों में शामिल है. भौगोलिक रूप से कृषि के लिए प्रतिकूल वातावरण होने के बावजूद इजरायल में कृषि एक उच्च विकसित उद्योग है. इजरायल के कुल क्षेत्रफल का लगभग साठ प्रतिशत हिस्सा मरुस्थल है. पानी की भी वहां कमी है, इसके बावजूद इजरायल उच्च गुणवत्ता वाले कृषि उत्पादों के बाज़ार में अपनी पैठ बनाता जा रहा है.
इजरायल के कुल क्षेत्रफल का 20 प्रतिशत हिस्सा ही प्राकृतिक रूप से खेती करने योग्य है. बावजूद इसके, इजरायल के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि की 2.6 प्रतिशत हिस्सेदारी है. कुल निर्यात में कृषि उत्पादों की 3.6 प्रतिशत भागीदारी है. इजरायल के 3.7 प्रतिशत लोग कृषि कार्य में लगे हैं. इजरायल अपनी 95 प्रतिशत खाद्य ज़रूरतें स्वयं ही पूरा कर लेता है. पिछले एक-डेढ़ दशक में इजरायल ने कृषि उत्पादन में 26 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि उसने उत्पादन में यह वृद्धि 12 प्रतिशत कम पानी के इस्तेमाल से की है. वह भी तब, जब दुनिया के अधिकांश देशों में पानी की कमी के चलते उत्पादन गिरता जा रहा है, ऐसे में इजरायल दुनिया को खेती के नए और आधुनिक तरीके अपनाने के लिए प्रेरित कर रहा है.
अगले एक दशक में दुनिया भर में पानी की उपलब्धता में 35 प्रतिशत की कमी आएगी. सारी दुनिया इससे निपटने के लिए प्रयासरत है. भारत भी इस समस्या से जूझ रहा है. भारत की जनसंख्या में लगातार इज़ाफा होने के साथ-साथ कृषि उत्पादन में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है. कृषि भूमि की कमी के साथ-साथ जोत का आकार भी छोटा हो रहा है. लाभकारी न होने की वजह से लोग खेती छोड़ दूसरे काम-धंधे अपना रहे हैं. सवा अरब आबादी को पर्याप्त भोजन मुहैया कराने के लिए दूसरी हरित क्रांति की आवश्यकता है. इसके लिए भारत इजरायल की ओर आशा भरी नज़रों से देख रहा है. सत्तर के दशक में भारत में हरित क्रांति की शुरुआत हुई थी, जिसका लक्ष्य उत्पादकता बढ़ाकर खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर बनना था. इसके बाद भारत ने खेती के पारंपरिक तरीके छोड़कर आधुनिक तरीके अपनाए, जिसका हमें तात्कालिक फायदा मिला और हम खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर हो गए, लेकिन रासायनिक खाद और कीटनाशकों के इस्तेमाल के कारण खेतों की उर्वरकता में लगातार कमी आती गई. इसके साथ ही साल दर साल खेती की लागत बढ़ती गई. कीटनाशकों के इस्तेमाल की वजह से पर्यावरण पर भी विपरीत प्रभाव पड़ने लगा. ट्रैक्टरों का इस्तेमाल होने से खेती-बाड़ी में जानवरों की भागीदारी कम हो गई. इस वजह से दुग्ध उत्पादन में भी कमी आई. गोबर से बनने वाली खाद का उपयोग कम हो गया. इसके बाद मोनसेंटों जैसी कंपनी ने हाइब्रिड बीज बाज़ार में उतारे. ये वे बीज थे, जिनसे खेतों में उत्पादन तो बढ़ा, लेकिन किसान उत्पादित फसल को बीज के रूप में उपयोग नहीं कर पा रहे थे. इससे बीज से लेकर खाद तक, हर चीज के लिए किसान बाज़ार पर निर्भर हो गया. हर तरफ़ से खेती की लागत में इज़ाफा हो रहा था. किसान उपज के बाद लागत भी नहीं निकाल पा रहा था, जिसका सीधा असर उसकी ज़िंदगी पर पड़ने लगा. कर्ज के मकड़जाल में फंसकर किसान आत्महत्या करने लगे. सरकार के लिए यह एक नई परेशानी बन गई.
भारत और इजरायल लंबे समय से कई क्षेत्रों में सहयोग कर रहे हैं, जिनमें कृषि क्षेत्र हमेशा से प्रमुख रहा है. कृषि क्षेत्र में साझा विकास के मुद्दे शामिल रहे हैं. इसके लिए सरकार, विशेषज्ञ और किसान लगातार संपर्क में हैं. दोनों देश अपने-अपने कृषि के तरीकों और पारंपरिक ज्ञान को साझा कर रहे हैं. इजरायल ने वर्ष 2011 में हरियाणा के घरौंदा (ज़िला करनाल) में सेंटर ऑफ एक्सिलेंस स्थापित किया था. इसका उद्देश्य जमीनी स्तर पर भारत और इजरायल के बीच कृषि क्षेत्र में शोध और विकास को बढ़ावा देना था.
आज इजरायल दुनिया में खेती के मामले में बड़े पैमाने पर तकनीक का उपयोग कर रहा है, जिनमें कम पानी से खेती, खारे एवं पुनर्चक्रित पानी का खेती में उपयोग, माइक्रो इरिगेशन से उत्पादकता में बढ़ोतरी, रोग रहित बीज एवं पौध का विकास, कीटनाशकों के उपयोग के बगैर खेती, बारहमासी सब्जियों का उत्पादन, नए एवं उन्नत किस्म के बीजों का विकास और उत्पादन के बाद संरक्षण की तकनीक का विकास आदि शामिल हैं, ताकि उत्पादन में वृद्धि हो और उत्पादों में लंबे समय तक उच्च गुणवत्ता एवं ताजगी बनी रहे. नरेंद्र मोदी जमीनों के हेल्थ कार्ड बनाने की बात करते रहे हैं. उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में इस पर काम भी किया. मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए इजरायल सोइल कंडीशनर सब्सटेंस (वर्मेकुलाइट) का उपयोग कर रहा है. इसे मिट्टी में मिलाने से उत्पादन में वृद्धि होती है.मोदी इस क्षेत्र में इजराइल के कदम पर चल सकते हैं. भारत में जेनेटिकली मोडिफाइड फसलों के उपयोग पर विवाद हो रहा है, लेकिन इजरायल इससेअलग सीड ट्रीटमेंट टेक्नोलॉजी पर काम कर रहा है. इसमें फसल के जीन को प्रभावित किए बिना बीज की क्वालिटी में सुधार किया जा रहा है. जिससे रोगमुक्त सब्जियों और फसलों का उत्पादन हो सकता है. फिलहाल इस तकनीक का फलों के व्यावसायिक उत्पादन में उपयोग हो रहा है. यह तकनीक भारत में जीएम फसलों के विवाद को खत्म के देगी.
देश में दूसरी हरित क्रांति की बात कही जा रही है. ऐसे में पारंपरिक कृषि की ओर लौटना भी पूरी तरह संभव नहीं है. अबतक कृषि शोध के क्षेत्र में हमने ज़्यादा प्रगति नहीं की है. सरकार देश में नदियों को जोड़कर वर्षा का जल देश के विभिन्न हिस्सों में भेजना चाहती है. यह भारत का जल संबर्धन की दिशा में बढ़ाया एक महत्वपूर्ण कदम है. इजरायल ने हमेशा से जल संवर्धन को राष्ट्रीय प्राथमिकता माना है. इजरायल में दुनिया का सबसे दक्ष जल संवर्धन तंत्र काम करता है. इजरायल की ड्रिप इरिगेशन तकनीक ने सिंचाई का तरीका ही बदल दिया है. इजरायल अपने यहां के 75 प्रतिशत जल का पुनर्चक्रण करता है. मोर क्रॉप पर ड्रॉप जैसी नीति बनाकर इजरायल जल संवर्धन के क्षेत्र में नए कीर्तिमान बना रहा है. इजरायल में 95 प्रतिशत सब्जियों का उत्पादन ड्रॉपर सिस्टम से होता है. जल संरक्षण और कम पानी का उपयोग करके कृषि उत्पादन बढ़ाने की जो तकनीक इजरायल ने विकसित की है, वह भारत के लिए बहुत उपयोगी हो सकती है. भारत में राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में लाखों एकड़ ज़मीन बंजर पड़ी है. वहां इजरायल के अनुभव का फायदा उठाया जा सकता है. इससे खेती के पारंपरिक तरीके छोड़े बगैर हम इस क्षेत्र में बदलाव ला सकते हैं. इजरायल पिछले 40 सालों से जैविक खेती के क्षेत्र में काम कर रहा है. राजस्थान में कई ग़ैर सरकारी संगठन कम पानी का उपयोग करके ऑर्गेनिक फॉर्मिंग को बढ़ावा देने का काम कर रहे हैं. सरकार को उन संस्थानों के अनुभवों के आधार पर इजरायल से कृषि क्षेत्र में तकनीकी सहयोग लेना चाहिए. इजरायली अनुभवों का फायदा हमें हो सकता है और हम जैविक फसलों के सबसे बड़े निर्यातक के रुप में उभर सकते हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि उनका विकास मॉडल वह है, जिसमें दुनिया के सफलतम अनुभव अपनी कार्यप्रणाली में शामिल हों, इस लिहाज से भारतीय कृषि और रक्षा क्षेत्र में इजरायली घुसपैठ सुनिश्‍चित दिखती है.कृषि में तकनीक का उपयोग समय की मांग है, लेकिन आधुनिक तकनीक अपनाने के साथ-साथ खेती की पारंपरिक शैली बचाए रखना भी हमारे लिए एक बड़ी चुनौती होगी.

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