अचानक संपूर्ण देश में कोई नफरत छोडो बोल रहे हैं ! तो कोई भारत जोडो ! पचहत्तर साल, मतलब आजादी के अमृतमहोत्सवी वर्ष के दौरान यह नौबत क्यो आ गई ? क्या नफरत छोडो बोलने से नफरत छुटने वाली है ? 1925 से नागपुर से नफरत फैलाने के लिए एक संघठन की स्थापना की गई है ! जिसका नाम आर एस एस है ! और रोजमर्रा की शाखा में बौद्धिक, गित – खेलों के माध्यम से वह अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ किस तरह का विषवमन करते हुए छोटे – छोटे बच्चों को बताया करते हैं ! जैसे आजसे नब्बे साल पहले जर्मनी में हिटलर अपने स्टॉर्म स्टुपर्स (एस एस) नाम के संघठन के बच्चों को यहुदीयो के बारे में बताया करता था ! बिल्कुल उसीकी नकल करते हुए भारत में संघ की शुरुआत की गई है ! आने वाले 2025 में सौ साल पूरे हो रहे हैं ! और वह बारह महीनों चौबीसों घण्टे अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ भड़काने का काम लगातार करने के कारण आज समाजका लगभग ध्रुवीकरण हो चुका है ! यह बात, सत्तर के दशक में ! भिवंडी तथा जलगांव के दंगों की जांच करने वाले, जस्टिस मादान ने ! अपने रिपोर्ट में साफ कहा है कि दंगे में आर एस एस के लोग शामिल हैं या नहीं ! यह बात दिगर है ! लेकिन संघ की शाखा में जो प्रशिक्षण दिया जाता है ! उसीके परिणामस्वरूप दंगों में लोगों को शामिल होने की प्रेरणा होती हैं ! जिसकी झलक आजसे तैतीस साल पहले भागलपुर दंगे में, (24 अक्तूबर 1989) और उसके तेरह साल बाद (27 फरवरी 2002) गुजरात के दंगों में देखने को मिला है ! भागलपुर दंगे के बाद ! हम लोगों ने, (भागलपुर दंगे के बाद शांति सद्भावना के काम करने वाले सभी साथियों ने! ) “लगातार देशभर में भारत की आने वाले पचास साल की राजनीति सिर्फ और सिर्फ सांप्रदायिकता के इर्द-गिर्द ही रहेगी !” यह बात कहने की कोशिश करते आ रहे है ! लेकिन शायद हमारे कहने में कोई कमी रही होगी ! या फिर आज नफरत छोडो बोलने वाले लोगों के आग्रक्रम के विषय, कोई और रहने की वजह से ! उन्हें इस बात की गंभीरता का एहसास होने में ! तीस सालों से अधिक समय लग गया है !


और आज अचानक नफरत छोडो बोलने भर से नफरत छुटने वाली नही है ! क्योंकि इन तीस – पैतिस सालों के भीतर नफरत नस – नस के अंदर फैल जाने की वजह से ! सिर्फ एक दिन का सांकेतिक कार्यक्रम करने से, नफरत जाने वाली नही है ! उसके लिए सातत्यपूर्ण काम करने की आवश्यकता है !


यह माहौल, अचानक एक दिन में नहीं आया है ? 27 फरवरी 2002 के दिन ! गोधरा कांड के बाद, 59 लाशों के जुलुस निकाल कर, गुजरात का दंगा करके ही ! एक आदमी जिसने कभी भी ग्रामपंचायत का चुनाव भी नहीं लढा था ! वह आज देश का प्रधानमंत्री बनने की ! प्रक्रिया क्या एक दिन में हुई है ? वह और उसके संघठन ने, इस देश की ध्रुवीकरण की राजनीति को गति देने के लिए ! कोई कोर-कसर बाकी नही रखी ? और उस समय महान 137 साल पुराने कांग्रेस की सत्ता गिनकर दस साल भारत में रहने के बावजूद ! ( 2004 – 2014) इस आदमी की नकेल कसने की जगह ! इसे बेस्ट मुख्यमंत्री का पुरस्कार राजीव गांधी के नाम पर ! कांग्रेस के तत्कालीन केंद्रीय सरकार के तरफसे दिया गया है ! और दुसरी तरफ सोनिया गांधी इसे मौत का सौदागर बोल रही थी ! इस विरोधाभास का क्या कारण है ?


6 अप्रैल 2006 के दिन, महाराष्ट्र नांदेड के, आर एस एस के, राज कोंडावार नाम के एक कार्यकर्ता के पाटबंधारे स्थित, घर में बम बनाने का काम हो रहा था ! ( शायद राहूल गांधी की भारत जोडो यात्रा नांदेड से गुजरने वाली है ! ) उससे ध्यान हटाने के लिए ! विशेष रूप से, नागपुर आर एस एस हेडक्वॉर्टर पर 1 जून 2006, सिर्फ दो महिनों के भीतर ही ! तथाकथित फिदायीन हमला करने का नाटक किया गया ! और मालेगाँव के दोनों बमब्लास्ट ! यह सब महाराष्ट्र में कांग्रेस की सरकारों के ! और केंद्र में भी कांग्रेस पार्टी की सरकारों के रहते हुए हुआ है ! और इन सभी घटनाओं पर तत्कालीन कांग्रेस की सरकारों का रवैया कितना ठंडा था ! इसका अनुभव मैंने खुद देखा है ! क्योंकि नांदेड, नागपुर तथा मालेगाव के दोनों घटनाओं कि जांच ! मैंने और मेरे अपने सहयोगियों की मदद से, मैंने खुद करने के पस्चात ! कांग्रेस के तत्कालीन नेताओं को सभी रिपोर्ट सौंप दी थी ! और उसके बावजूद कांग्रेस ने क्या किया ? अचानक आज भारत जोडो कार्यक्रम के अलावा ?


बाबरी मस्जिद विध्वंस के मामले से लेकर, शाहबानो जैसी साठ साल से भी अधिक उम्र की ! एक तलाकशुदा औरत को, भारत के सर्वोच्च न्यायालय के तरफसे दी गई मामुली सी मदद को ! एक उम्रदराज औरत को दि गई सहुलियत को ! सिर्फ कुछ कठमुल्ला मुसलमानों को खुश करने के लिए ! संसद में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को बदलने का निर्णय ! “सवाल आस्था का है ! कानून का नही”! इस नारे के कारण ! बाबरी मस्जिद विध्वंस करने वाले लोगों को लिए, मार्ग प्रशस्त किया गया है ! और सर्वोच्च न्यायालय ने भी ! तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश श्री. रंजन गोगोई के अध्यक्षता में, मस्जिद की जगह मंदिर बनाने के लिए ! फैसला सिर्फ और सिर्फ” सवाल आस्था का है ! कानून का नही”, इसी आधार पर दिया गया है ! यही भारतीय संविधान को परे रखकर ! बहुसंख्यायत को सामने रखकर दिया गया फैसला है ! भारतीय न्यायपालिका ने, खुद ही अपनी साख कम करने के लिए ! विशेष रूप से यह फैसला इतिहास में दर्ज हो गया है !


” हम नही कहते की हर मुस्लिम आतंकवादी होता है ! लेकिन सभी आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने वाले मुस्लिम ही क्यों होते हैं ?” यह संघ के लोग अक्सर बोलते हुए देखकर ! मेरा मानना है कि ! नांदेड, नागपुर, मालेगाव, समझौता एक्सप्रेस, अजमेर शरिफ, हैदराबाद के मक्का मस्जिद कानपुर, बनारस, तेनकाशि और अन्य आतंकवादी घटनाओं का ! इमानदारी से अध्ययन करने के बाद ! नतीजा क्या निकला है ? और उसके बावजूद कांग्रेस केंद्र में भी ! और अधिकांश राज्यों में भी सत्ता में रहते हुए क्या कारवाई की है ?


वेसैही भारत के इतिहास में पहली बार ! किसी राज्य में मुख्यमंत्री खुद किसी दंगे के लिए जिम्मेदार है ! (यह तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ” कहा कि मुख्यमंत्री ने राजधर्म का पालन नहीं किया! “) और इससे ज्यादा प्रमाण राना आयुब, जस्टिस कृष्ण अय्यर की क्राइम अगेंस्ट ह्यूमानिटी रिपोर्ट, पूर्व पुलिस प्रमुख श्री आर बी श्रीकुमार और तत्कालीन लेफ्टिनेंट जनरल जमीरूद्दीन शाह, मनोज मित्ता, अशिश खेतान जैसे लोगों की कड़ी मेहनत से, कई तरह के दस्तावेज मौजूद होते हुए ! क्या कारवाई हुई है ? और हिंदु हृदय सम्राट ! अपने आप को घोषित करने के लिए ! समस्त भारतीय संसदीय राजनीति के छाती पर, मुंग दल ने का मौका आखिर कौन दिया है ?


हेमंत करकरे जब मालेगाव बमब्लास्ट की जांच-पड़ताल कर रहे थे ! और उन्होंने अभिनव भारत की बैठकों के प्रोसिडिंग के तफ़सील, दयानंद पांडे तथा कर्नल प्रसाद पुरोहित के लॅपटॉप के अॉडियो – विडिओ रेकॉर्ड की ट्रांसक्रिप्ट मालेगांव कोर्ट में पेश की है ! क्या वह पर्याप्त सबूत नहीं है ? उसके बावजूद प्रज्ञा सिंह ठाकुर भोपाल से लोकसभा सदस्य के रूप में बैठती है ? और उसी लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार श्री दिग्विजय सिंह, प्रज्ञा सिंह ठाकुर के आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त होने की बात को अनदेखा करते हुए ! किसी कम्प्यूटर बाबा के यज्ञों के कार्यक्रम में व्यस्त थे ! और हमारे जैसे लोगों को टालने का काम कर रहे थे ! और आज वह भारत जोडों कार्यक्रम के आयोजन में शामिल है ! कौन सा भारत ? जो संघ के लोगों ने सौ सालों में छिन्न – भिन्न करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी है !


पत्रकार निरंजन टकले ने Who Killed Judge Loya ? 315 पनौ की किताब में, सीबीआई स्पेशल कोर्ट के जज की, नागपुर के सरकारी अतिथिगृह रविभवन में आजसे आठ साल पहले !( 30 नवम्बर – 1 दिसंबर 2014 ) संशयास्पद मृत्यू के प्रकरण को, किस तरह रफा-दफा किया गया है ? और सबसे हैरानी की बात ! हमारे देश के सर्वोच्च न्यायालय में, इस केस की जनहित याचिकाओकी सुनवाई का तफ़सील, निरंजन टकले ने, पंद्रहवे प्रकरणमे, पन्ना नंबर 286 में The Judgement नाम से 303 पन्ने तक, सत्रह पन्नों का सर्वोच्च न्यायालय में चले जनहित सुनवाई ! और उसी दौरान जस्टिस चलमेश्वर और रंजन गोगोई, मदन लोकुर तथा जस्टिस कुरियन जोसेफ की संयुक्त प्रेस वार्ता !
शायद भारत के सर्वोच्च न्यायालय के इतिहास में पहली बार ! किसी न्यायाधीश के सरकारी आवास पर ! बाकायदा पत्रकारों को संबोधित करते हुए
!12th January 2018 “Justice Chelameswar, With folded palms, did most of the talking.
” My dear friends, ” he said on live television, ” all of you know, this is an extraordinary event in the history of any nation – – more particularly this nation. An extraordinary event in the history of this institution of judiciary. We were compelled to take this decision to call for a press conference, ”
So far, he was right. This was the first time in the Supreme Court ‘s history that its senior judges had called for a presser of this kind. Of any kind.
For some time, the administration of the Supreme Court is not in order ” he said “there are many things – – which are less than desirable – – which have happened in the last few months. Time and again, as senior members of the Court, we thought we owed a responsibility to the institution, to the nation. We tried to – – collectively – – – ”
” Persuade ? ” whispered Justice Gogoi.
” – – – persuade, the – – – ”
” Chief justice ? ”
” – – – the Chief Justice, that certain things are not in order. Therefore, you should take remedial measures. Unfortunately, our efforts failed, And, my dear friends, all fore of us are convinced that unless this institution is preserved, and it maintains its equanimity, democracy will not survive in this Country. Or any Country. ”
This was a bombshell of a quote.
Justice Chalmeswar took pains to clarify that they weren’t commenting on what was happening in the news. That they weren’t concerned with political controversy. But he didn’t stop talking about Chief Justice Dipak Misra.
” This morning, on a particular issue, the four of us went and met the Hon’ble Chief Justice of India with a specific request. We could not, unfortunately, convince him that we were right. Therefore, we were left with no choice except to communicate it to the Nation. We have heard a lot of wise men talking in this country. I don’t want – – another twenty years later – – some very wise men in this country bleme us, that ” Chalmeswar, Ranjan Gogoi, Madan Lokur and Kurian Joseph sold their souls. They didn’t take care of this institution ! They didn’t take care of the interest of this Nation ! ‘So, we place it before the people of this country. That’s all, gentlemen,” he ended, folding his palms again.
A racket ensured, Reporters bombarded the Supreme Court judge with questions. Justice Chalmeswar looked reluctant to answer. Justice Gogoi whispered in his ear. Chalmeswar continued, in the most diplomatic, vaguest way possible.
About a couple of months back, the four of us gave a signed letter to the Chief Justice of India. We’ll give copies of the letter. We wanted a particular thing to be done in that it left too many questions. It raised further questions and further doubts about the integrity of the institution. This morning also, we had to go on something like this – – – ”
Interruptions. Hubbub. Questions. Gogoi whispering again. Chalmeswar speaking, but constantly being interrupted.
Eventually, Justice Gogoi took the lead.
” There is no speculation here, ” he said firmly. ” we are going to give you a copy of a letter, which we had written two months back. All the issues are spell out there. Go through that letter. You ‘ll know what the issues are. Do we have to repeat those issues again ? ”
” Is there any issue – – -? “a reporter asked.
” It is an issue of the assignment of a case, which is an issue raised in that letter, “Gogoi answered briefly.
” Is this about Loya’s thing? “a reporter asked.
” Is it about Loya? “another chimed in.
Without a second’s hesitation, Justice Ranjan Gogoi answered
” Yes”
यह है एक सीबीआई स्पेशल कोर्ट के न्यायाधीश की मृत्यु की कहानी! जिस देश में एक हाईकोर्ट के न्यायाधीश के बराबर के न्यायाधीश की मृत्यु होकर आज इस 30 नवंबर और एक दिसम्बर को गिनकर आठ साल होने जा रहे हो! और मामले की जांच की जगह मामले को रफा-दफा करने के लिए हमारे देश की न्यायिक व्यवस्था भी लगी हुई है! फिर आप किनसे उम्मीद कर सकते हो?
डॉ सुरेश खैरनार 6 नवंबर 2022, नागपुर

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