सतीश शेट्टी का नाम आपको याद है? अगर नहीं याद है, तो इसमें आपकी गलती भी नहीं है. इतने बड़े देश में, जहां रोज सौ ख़बरें पैदा होती हैं और उतनी ही दम तोड़ देती हैं, वहां चार साल पहले सच के एक सिपाही की हत्या की घटना भला कौन याद रखना चाहेगा और क्यों? बहरहाल, चार साल पहले हुई इस हत्या की सीबीआई जांच चल रही थी, लेकिन एक भी गवाह और पर्याप्त सुबूत न मिलने की बात कहकर सीबीआई ने इस मामले की क्लोजर रिपोर्ट अदालत में दाखिल कर दी है यानी नो वन किल्ड सतीश(सतीश को किसी ने नहीं मारा).
11बीते 11 अगस्त को देश के बहुचर्चित आरटीआई कार्यकर्ता सतीश शेट्टी हत्याकांड की जांच कर रही सीबीआई ने वडगांव-मावल कोर्ट में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी. यानी इस क्लोजर रिपोर्ट के दाखिल होते ही एक तरह से सीबीआई ने उन लोगों को क्लीन चिट दे दी है, जिन पर इस हत्याकांड में शामिल होने का शक किया जा रहा था. सीबीआई ने इस मामले में किसी को भी गिरप्तार नहीं किया. सतीश शेट्टी की हत्या 13 जनवरी, 2010 को हुई थी. इस हत्या के पीछे भू-माफियाओं का हाथ होने की आशंका जताई गई थी.
दरअसल, पुणे के सतीश शेट्टी जब 13 जनवरी, 2010 को सुबह अपने घर से बाहर निकले, तो उन पर धारदार हथियारों से हमला कर दिया गया. 38 वर्षीय सतीश पुणे से 40 किलोमीटर दूर तालेगांव में रहते थे. सूचना के अधिकार के तहत सतीश कई मामलों का पर्दाफाश कर चुके थे. सतीश पुणे की भ्रष्टाचार उन्मूलन समिति के संयोजक भी थे. आरटीआई का इस्तेमाल करके सतीश शेट्टी ने महाराष्ट्र में कई ज़मीन घोटालों और मुंबई-पुणे एक्सप्रेस-वे में हुए घोटाले को उजागर किया था. इसी वजह से सतीश भू-माफियाओं के निशाने पर आ गए थे. आरटीआई की सहायता से सतीश ने अवैध बंगले के निर्माण और मिट्टी के तेल एवं राशन की कालाबाज़ारी के विरोध में भी आवाज़ उठाई थी. बॉम्बे हाईकोर्ट ने सतीश शेट्टी हत्याकांड का स्वत: संज्ञान लेकर सीबीआई को इस मामले की जांच करने का आदेश दिया था. इससे पहले पुणे पुलिस इस मामले की जांच कर रही थी. 8 अगस्त, 2014 को भी हाईकोर्ट ने सीबीआई को उन ज़मीन घोटालों की फाइलें खोलने के लिए कहा था, जिनमें सतीश शेट्टी ने एफआईआर दर्ज कराई थी. खुद सीबीआई ने भी माना था कि उक्त मामलों का सतीश की हत्या से संबंध हो सकता है, इसलिए उनकी जांच ज़रूरी है. सीबीआई चार साल से इस मामले की जांच कर रही थी. तक़रीबन वह मामले की तह तक पहुंच भी चुकी थी. सीबीआई ने 10,000 पृष्ठों की जांच रिपोर्ट भी बना ली थी.
8 अगस्त, 2014 को अदालत ने सीबीआई को उक्त मामले खोलने के आदेश दिए और कहा कि चार सप्ताह के भीतर सीबीआई इस पर अपनी रिपोर्ट अदालत में पेश करे. घोटालों की रिपोर्ट सौंपने की बजाय सीबीआई ने तीन दिनों बाद ही यानी 11 अगस्त को वडगांव-मावल कोर्ट में सतीश शेट्टी हत्याकांड जांच की क्लोजर रिपोर्ट दे दी. आधार यह था कि किसी भी अभियुक्त के ख़िलाफ़ कोई सुबूत नहीं मिला. सवाल है कि 8 अगस्त से लेकर 11 अगस्त तक यानी 3 दिनों के भीतर ऐसा क्या हो गया, जिससे सीबीआई को पीछे हटना पड़ा. सीबीआई के प्रवक्ता का कहना है कि अभियुक्तों के ख़िलाफ़ अभियोजन चलाने के लिए पर्याप्त सुबूत नहीं थे, इसलिए क्लोजर रिपोर्ट लगा दी गई.
ग़ौरतलब है कि आरटीआई कार्यकर्ता सतीश शेट्टी ने पुणे-मुंबई एक्सप्रेस-वे पर ज़मीन हड़पने के मामले में जिन 13 लोगों के ख़िलाफ़ 2009 में तालेगांव पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज कराई थी, उसमें आइडियल रोड बिल्डर्स (आईआरबी) के मुखिया वीरेंद्र मैसकर का भी नाम शामिल था, जिनके बारे में कहा जाता है कि उनके राजनीतिक गलियारों में ऊंचे संबंध हैं. ध्यान देने की बात यह है कि सतीश अक्टूबर 2009 में एफआईआर दर्ज कराते हैं और फरवरी 2010 में उनकी हत्या हो जाती है. अक्टूबर 2012 में सीबीआई ने आईआरबी के कार्यालय पर छापे भी मारे थे. इस मामले में अभियुक्तों के पालीग्राफ टेस्ट भी हुए थे, लेकिन अपनी क्लोजर रिपोर्ट में सीबीआई ने यह कहा है कि पालीग्राफ टेस्ट को ठोस सुबूत नहीं बनाया जा सकता.
बहरहाल, सीबीआई द्वारा इस मामले को बंद करने के संबंध में सरकार की तरफ़ से कुछ नहीं कहा गया है. सांसद राजू शेट्टी ने ज़रूर इस मसले पर आवाज़ उठाई है. राजू शेट्टी ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर आरटीआई कार्यकर्ता सतीश शेट्टी की हत्या की जांच फिर से सीबीआई द्वारा शुरू कराने की मांग की है. राजू शेट्टी ने सीबीआई के निर्णय को चकित करने वाला निर्णय बताया है. उन्होंने कहा कि सीबीआई ने इसके पूर्व कई पेचीदा मामलों को उजागर किया है. अगर यह जांच बंद हो गई, तो समाज में गलत संदेश जाएगा. जाहिर है, सतीश शेट्टी ने सड़क निर्माण परियोजना के घोटाले में अहम खुलासा किया था. इस घोटाले में कुछ बड़े लोगों के नाम सामने आ सकते थे, लेकिन अब सीबीआई द्वारा जांच बंद होने से भ्रष्टाचार के कुछ अहम मामले शायद कभी जनता के सामने नहीं आ पाएंगे.
सवाल है कि जिस व्यवस्था के ख़िलाफ़ कोई नागरिक एक सूचना निकालता है और उसे सार्वजनिक करता है, वही व्यवस्था क्यों और कितनी सुरक्षा उस नागरिक को देना चाहेगी? निष्पक्ष जांच की बात तो बहुत दूर की है. यह सच्चाई कौन नहीं जानता कि किसी भी बड़े घोटाले में कौन-कौन से और किस तरह के लोग शामिल होते हैं. भारत में जितने भी बड़े घोटाले सामने आए हैं, उनमें किसी नेता या अफसर की संलिप्तता ज़रूर होती है. ऐसे में अगर कोई आम आदमी किसी घोटाले का पर्दाफाश करता है, तो सोचिए क्या होगा.

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