सन्‌ 1857 में छिड़े प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के स्वाधीनता सेनानियों में से एक अति महत्वपूर्ण हस्ताक्षर थे, जगदीशपुर के बाबू कुंवर सिंह. इसके अलावा उनके साथ एक ऐसी कहानी भी जुड़ी है, जिसे इतिहास में मुकम्मल स्थान नहीं मिल सका है. यह अफसाना जुड़ा था जगदीशपुर, आरा की धरमन बाई नाम की एक बेहद खूबसूरत नर्तकी के साथ. इस्लाम धर्म को शिद्दत से मानने वाली धरमन बाई पेशे से तो बेशक एक तवायफ थी, लेकिन उसमें राष्ट्रीयता और देशप्रेम की भावना कूट-कूट कर भरी थी.

लोक मानस में किस्से के रूप में मशहूर इस प्रेम कहानी का कई जगहों एवं खास स्थानों पर जिक्र है. बिहार के कुछ इतिहासकार बताते हैं कि एक बार जब सार्वजनिक मुजरे के कार्यक्रम में कुछ अंग्रेज अधिकारियों ने बाबू कुंवर सिंह की खिल्ली उड़ाने की कोशिश की, तो धरमन ने सभी के सामने न सिर्फ बाबू कुंवर सिंह का भरपूर पक्ष लिया बल्कि सार्वजनिक रूप से उनकी बहादुरी, शौर्य और वीरता का बखान भी किया. इस प्रकरण के बाद कुंवर सिंह का धरमन के प्रति प्रेम और ज्यादा बढ़ गया था.

बाद में तो धरमन बाबू कुंवर सिंह की विश्वस्त सहयोगी के साथ ही उनकी जीवनसंगिनी भी बन गयी थी. कई इतिहासकार बताते हैं कि मुजरे वाली यह घटना पटना में हुई थी और अब वह जगह पटना के बांकीपुर क्लब के नाम से मशहूर है. बांकीपुर की इस घटना का जिक्र बिहार के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास की किताबों में भी दर्ज है.

सवाल है कि इस प्रेम कहानी को सामाजिक मान्यता क्यों नहीं मिली? 1857 के स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास गवाह है कि धरमन बाई एक नर्तकी होने के बावजूद बाबू कुंवर सिंह के साथ कई ऐतिहासिक लड़ाइयों में शामिल रहीं. यही नहीं, धरमन बाई ने अपने जीवन की सारी कमाई बाबू कुंवर सिंह को दान में दे दी थी, ताकि वे अंग्रेजों के खिलाफ कारगर तरीके से लड़ सकें. बाद में धरमन ने जीवनसंगिनी बनकर बाबू कुंवर सिंह को नैतिक सहारा भी दिया था, लेकिन इस ऐतिहासिक सच पर आज भी पर्दा पड़ा है.

कुंवर सिंह को लेकर हजारों लोक आख्यान हैं, किवंदतियां हैं, लेकिन धरमन बीबी का नाम शायद ही कहीं मिले. ऐसा आखिर क्यों है? केंद्र सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के प्रकाशन विभाग की ‘1857 के अमर सेनानी’ नामक श्रृंखला के तहत आई किताब में अब जाकर स्वीकार किया गया है कि धरमन बीबी बाबू कुंवर सिंह की दूसरी पत्नी थीं.

इस पुस्तक की लेखिका प्रसिद्ध इतिहासकार रश्मि चौधरी हैं, जिन्होंने अपनी किताब में बाबू कुंवर सिंह एवं धरमन बीबी के प्रेम प्रसंग को उकेरा है. भोजपुर जिला, ऐतिहासिक शहर आरा, ग्रामीण क्षेत्रों और गंवई जनमानस में प्रचलित किस्सों के अनुसार जगदीशपुर और बीबीगंज में धरमन बाई अंग्रेजों के खिलाफ बाबू कुंवर सिंह का भरपूर साथ देती थीं.

कुंवर सिंह को अंग्रेजों की फौज की खुफिया रिपोर्ट देने, उनसे बचाने और युद्ध के दौरान भोजपुर को सुरक्षित बचाये रखने के लिए रात-रात भर मोर्चे पर अकेले लड़ती रहीं. एक नर्तकी से कहीं ज्यादा वह अपने मुल्क के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने वाली वीरांगना थी. क्या एक स्वतंत्रता सेनानी को इस तरह गुमनामी में रखना देश के गौरवपूर्ण अतीत के लिए उचित है? आरा, जगदीशपुर और कई अन्य गांवों में भी बाबू कुंवर सिंह के साथ और अकेले भी गोरों के खिलाफ छापामार युद्ध करने के प्रमाण मिलते हैं.

भोजपुर मुख्यालय, आरा शहर का धरमन चौक, करमन टोला और धरमन मस्जिद अपने आप में धरमन की कहानी बयां कर रहा है. आरा और जगदीशपुर स्थित धरमन मस्जिद के अलावा धरमन का घर, इस बात के पक्के सबूत हैं कि धरमन से कुंवर सिंह की किस हद तक नजदीकियां थीं. आरा शहर के करमन टोले के बारे में कहावत है कि करमन धरमन की छोटी बहन थी, धरमन बीबी के आग्रह पर बाबू साहब ने आरा में करमन टोले को स्थापित किया था.प

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