Aarushi-talwar

नई दिल्ली: आरुषि-हेमराज मर्डर केस अब देश-दुनिया की बड़ी मर्डर मिस्ट्री में शामिल हो चुका है. अब जब आरुषि की माता नुपुर तलवार और पिता राजेश तलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस हत्याकांड से बरी कर दिया है, तो फिर से यह  सवाल उठ खड़ा हुआ है कि इन दोनों का कातिल आखिर कौन है? यह सवाल हर किसी के मन में है कि क्या वाकई केस इतना पेचीदा था कि पहले यूपी पुलिस, फिर सीबीआई की दो टीमें, जिनमें से पहली की अगुआई देश के सबसे तेज आईपीएस अफसरों में शुमार अरुण कुमार कर रहे थे, भी कातिल तक नहीं पहुंच पाए.

आइये देखते हैं उस घटनाक्रम को जहां से गडबडी शुरू हुई. वैसे तो यह केस आम मर्डर या डबल मर्डर की तरह ही था. पर यूपी पुलिस के सिस्टम में सबसे बड़ी खामी यह थी, और आज भी है कि यहाँ लॉ एंड ऑर्डर और इन्वेस्टिगेशन दोनों की जिम्मेदारी एक ही पुलिसकर्मी पर थोप दी जाती है.. दूसरा, मीडिया और शासन स्तर पर भी पुलिस पर बहुत प्रेशर रहता है. अगर ये दोनों सिस्टम बदल दिए जाएं तो कोई भी केस इस कदर नहीं बिगड़ेगा कि वह मिस्ट्री में बदल जाए.

16 मई 2008 के दिन के वाकिए को तफसील से देखते हैं.  यह वही दिन था जब सुबह आरुषि तलवार के मर्डर का फोन नोएडा पुलिस के पास आया. पुलिस दो दिन पहले से ही तनाव में थी. इसी दिन सुबह ही नोएडा सेक्टर-11 मेट्रो अस्पताल में भर्ती कम्युनिस्ट नेता हरकिशन सिंह सुरजीत को देखने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी आने वाली थीं.

नोएडा एसएसपी से लेकर सभी पुलिस अधिकारी और दो-तीन थानों की पुलिस इसी वीआईपी ड्यूटी में व्यस्त थे. लिहाजा, जब नोएडा सेक्टर-25 के जलवायु विहार में डॉक्टर दंपति की बेटी की कत्ल की सूचना मिली तो सिर्फ चौकी इंचार्ज और एक-दो सिपाही मौके पर पहुंचे.ऐसे में न आरुषि के घर में तलाशी ली गई और न ही आसपास. बस, इतना हुआ कि घटना के बाद से नौकर हेमराज लापता है. लिहाजा, वही कातिल है मान लिया गया .

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हेमराज की तलाश में नोएडा, दिल्ली से लेकर पुलिस की एक टीम नेपाल तक भेज दी गई. मगर, बेसिक पुलिसिंग ही नहीं की गई. फिर  जब हेमराज की लाश मिल गयी तो अपना चेहरा बचाने के लिए नोएडा और मेरठ रेंज के बड़े पुलिस अफसरों ने इसे आनर किलिंग करार दिया. बेचारी नाबालिग और इस बेरहम दुनिया में असमय क़त्ल कर दी गयी लड़की और बाद में तो उसके माता-पिता के चरित्र तक पर कीचड उछाला गया.

अगर यूपी पुलिस में लॉ एंड ऑर्डर और इन्वेस्टिगेशन की जिम्मेदारी दो अलग-अलग पुलिस टीम के जिम्मे होती तो 16 मई की सुबह आरुषि ह्त्या की जांच के लिए पहुंची पुलिस टीम का एकलौता  फोकस क्राइम पर होता. उसे ये नहीं सोचना पड़ता कि वीआईपी ड्यूटी में क्या करना है. ह्त्या जैसे अपराध में किसी भी क्राइम सीन पर वहां के एक-एक पहलू को गंभीरता से देखना, परखना और पड़ताल करना जरूरी होता है. अगर किसी पर शक होता है तो उसकी, उसके कमरे की तलाशी जरूरी होती है. पर आरुषि हत्याकांड में यह नहीं हुआ. अगर ऐसा किया गया होता तो उसी दिन हेमराज के कमरे में शराब की एक बोतल, बीयर, कोल्डड्रिंक और तीन गिलास मिल जाती. ऐसे में ये समझना आसान होता कि उसके कमरे में कुछ लोग आए थे.

दूसरी बात, किचन में पड़ताल होती तो वहां हेमराज का रखा खाना भी मिल जाता क्योंकि 15 मई 2008 यानी घटना वाली रात उसने खाना नहीं खाया था. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से भी बाद में खाना नहीं खाने की पुष्टि हो गई थी. ऐसे में ये अंदाजा लग जाता कि उसने खाना नहीं खाया, तो क्या वजह हो सकती थी.

नोएडा पुलिस ने कितनी  बड़ी गलती कि इसे ऐसे समझ सकते हैं कि उसने  बिना जांच के पहले हेमराज को हत्यारा बना दिया और जब उसकी लाश मिल गयी तो आरुषि के माता-पिता को दोहरे हत्याकांड का जिम्मेदार बना दिया. उसने यह नहीं समझा कि अगर हेमराज को साजिश के तहत ह्त्या करनी होती तो कम से कम अपने कमरे में शराब की बोतल, अपना खाना और गिलासें नहीं छोड़ता.

दूसरी बात, अगर डॉग स्क्वॉयड की मदद ली जाती तो वो आसानी से तलवार के घर की छत पर सूंघते हुए पहुंच जाता क्योंकि छत की सीढ़ियों पर तो नहीं लेकिन रेलिंग पर खून जरूर लगा था. इस तरह जिस हेमराज का शव एक दिन बाद मिलता वो उसी दिन मिल जाता. ऐसे में मौके से सभी फिंगरप्रिंट तुरंत लिए जाते, सभी फॉरेंसिक सैंपल लेकर जांच होती तो क्राइम का मोटिव और कातिल के बारे में पता लगाना आसान हो जाता. फिर अगर तलवार दंपति को आरुषि-हेमराज की ह्त्या ही करनी थी तो वे घर और छत पर उनके शव क्यों रहने देते

इन बातों की तरफ सीबीआई अफसर अरुण कुमार की अगुआई वाली टीम ने अपनी खोजबीन में  खुलासा भी किया था, जिसकी तसदीक अब हाई कोर्ट के फैसले में पेज नबर -226-227 पर भी की गयी है कि हेमराज का खून एक शख्स के तकिये पर मिला था, जिसे सीबीआई की दूसरी टीम ने अपना फेस बचाने के लिए टाइपिंग में गड़बड़ी करार दिया था. पर यह सब नहीं हुआ

नतीजा यह है कि आज  9 साल बाद भी आरुषि -हेमराज के कातिल का पता नहीं है. कत्ल की वजह का भी पता नहीं है. तलवार दंपति जेल से बाहर आ चुके हैं . हेमराज की पत्नी अपने पति के हत्यारों की तलाश के  लिए सुप्रीमकोर्ट में गुहार लगा रही है. ह्त्या का यह रहस्य आगे खुलेगा या बरकरार रहेगा कहना मुश्किल है. मगर, अगर देश के पुलिस के सिस्टम में ऐसा बदलाव कर दिया जाए कि सामान्य क़ानून व्यवस्था और अपराध की जांच के महकमें अलग-अलग होंगे तो आने वाले समय में ऐसे क्राइम के केस को आसानी से हल किया जा सकेगा.

उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह लंबे अरसे से पुलिस की कार्य-प्रणाली में फेरबदल करने की बात कर रहे हैं. वह लॉ एंड ऑर्डर और इन्वेस्टिगेशन टीम को अलग करने के मामले पर बने आयोग के मुखिया के तौर पर अपनी रिपोर्ट भी दे चुके हैं. मगर, अब तक ऐसा नहीं किया गया है. अगर आने वाले दिनों में दोनों टीमें अलग-अल बनाकर उन्हें फॉरेंसिक के साथ डॉग स्क्वॉड की सुविधा दे दी जाए तो ऐसी मर्डर मिस्ट्री बनने की नौबत ही नहीं आएगी. शायद आरुषि-हेमराज को हमारे समाज की यही श्रद्धांजलि हो.

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